Tuesday 13 March 2018

केश में धारण करने योग्य अलंकार

१. जूडे एवं चोटी में धारण किए जानेवाले अलंकार

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        स्वर्ण के फूल, स्वर्ण के फूलों का गजरा इत्यादि अलंकार जूडे एवं चोटी में धारण किए जाते हैं ।

अ. अलंकारों से होने वाले लाभ

अ. ‘वायुमंडल में कार्यरत देवताओं की रज-सत्त्वप्रधान तरंगें अलंकारों के माध्यम से बालों में आकर्षित होती हैं । इससे केश में विद्यमान रज-तम अल्प होकर केश सात्त्विक एवं चैतन्यमय होने में सहायता मिलती है ।
आ. जूडे एवं चोटी में अलंकार धारण करने से केश के सर्व ओर चैतन्य का वलय निर्मित होता है । इससे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से बालों की रक्षा होती है ।’
इ. स्वर्ण से बने सूर्य एवं चंद्र के प्रतीकात्मक चित्र जूडे पर धारण करने के लाभ
चंद्ररूपी प्रतीकसूर्यरूपी प्रतीक
१. ‘बालोंमें घनीभूत शक्तितेजरूपी तारकतेजदायी मारक
२. परिणामदेहमें विद्यमान प्राणशक्तिरूपी
चेतनास्वरूप संक्रमणको गति प्राप्त होना
बाह्य वायुमंडलकी अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंसे देहका रक्षण होना एवं देहके सर्व ओर तेजदायी मारक तरंगोंका सुरक्षाकवच बननेमें सहायता मिलना
३. उपयोग किसके लिए ?प्राणशक्तिरूपी चेतनामें
वृद्धि करनेके लिए
देहपर आए काली शक्तिका आवरण नष्ट करनेके लिए’

आ. मोतियों से युक्त स्वर्ण की वेणी (सात्त्विकता : २ प्रतिशत)

जूडे पर धारण करने के संदर्भ में साधिका द्वारा किए सूक्ष्म-ज्ञानविषयक प्रयोग

        वेणी धारण करने का विचार मन में आने से लेकर धारण की हुई वेणी निकालने तक प्रत्येक चरण पर साधिका को सूक्ष्मरूप से क्या अनुभव हुआ, यह दिया है ।
  • वेणी धारण करने का केवल विचार मन में आना : ‘स्वर्ण की वेणी में विद्यमान मोतियों से श्वेत प्रकाश ऊपर की ओर जाता प्रतीत हुआ । स्वर्ण की वेणी के अनेक रूप वातावरण में पैâलते दिखाई दिए ।
  • स्वर्ण की वेणी थैली से बाहर निकालते समय ऐसा दिखा कि उससे श्वेत प्रकाश निकल रहा है । वातावरण में चैतन्य अनुभव हुआ एवं मेरे मन पर आया काला आवरण घट गया ।
  • स्वर्ण जडित एक-एक मोती गदा-समान लग रहा था । प्रत्येक मोती कमल के फूल समान लग रहा था एवं पानी पर तैरता हुआ दिखाई दे रहा था । दैवी सरोवर में कमलपुष्प एवं उनमें शंख दिखाई दिया । मुझे ऐसा लगा कि उस सरोवर में ‘श्रीविष्णु का वास है ।’ स्वर्ण की वेणी की ओर देखने पर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसमें दैवी तत्त्व है । इससे अनायास ही मेरा भाव जागृत हो रहा था । इसलिए मुझे ऐसा लगा कि ‘मुझमें विद्यमान मांत्रिक का (मांत्रिक एक प्रकार की अनिष्ट शक्ति है । अनिष्ट शक्ति व्यक्ति में रहकर अथवा बाहर से उसे कष्ट देती है ।) प्रकटीकरण घट रहा है’ । ऐसा दिखाई दिया कि सर्व ओर से हो रहे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के अनुसार वेणी अपनी दिशा परिवर्तित कर अनिष्ट शक्तियों से युद्ध कर रही है।
  • देवता के शस्त्र की ओर देखने पर जैसे शक्ति प्रतीत होती है, स्वर्ण की वेणी देखने पर मुझे वैसे प्रतीत होने लगा एवं मेरे अनाहत चक्र पर अच्छी संवेदनाएं अनुभव होने लगीं । ऐसा लगा कि स्वर्ण की वेणी के मोतियों पर लगे स्वर्ण के पुष्प दैवी तत्त्व आकर्षित कर रहे हैं । फूल की पंखुडियों के समीप सर्व ओर नीला प्रकाश दिखाई दिया । मोतियों के नीचे डंडी एवं मोतियों को जोडने वाला भाग लाल रंग का दिखाई दिया । ऐसा लगा मानो ‘स्वर्ण की वेणी निर्गुण-सगुण स्तर पर कार्य कर रही है ।’ स्वर्ण की वेणी की ओर देखते समय ही मुझमें विद्यमान मांत्रिक का प्रकटीकरण घटकर मुझे अपना अस्तित्व अनुभव होने लगा ।
  • जूडे पर स्वर्ण की वेणी धारण करने का विचार मन में आने पर प्रयोग का विवरण संगणक पर टंकित करते समय नींद आ रही थी, वह चली गई । (साधिका को आने वाली नींद शारीरिक कारणों से नहीं, अपितु अनिष्ट शक्तियों के कष्ट का एक परिणाम था । – संकलनकर्ता)
  • जूडे पर स्वर्ण की वेणी धारण करने पर मेरे सिर के सर्व ओर आया काला आवरण घट गया एवं जूडे पर चैतन्य प्रतीत होने लगा । जब तक जूडे पर वेणी थी, तब तक सिर में चैतन्य अनुभव हो रहा था ।
  • स्वर्ण की वेणी में लगे आंकडे में मोतियों के माध्यम से ग्रहण हुआ ईश्वरीय तत्त्व संचारित हुआ । आंकडे का स्पर्श गर्दन की हड्डी को हुआ । वहां से ग्रहण हुआ ईश्वरीय तत्त्व शरीर में पैâलने लगा । इससे शरीर में विद्यमान काली शक्ति का विघटन हुआ । ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरे मन में उत्पन्न निरुत्साह घट रहा है ।
  • जूडे पर धारण की हुई स्वर्ण की वेणी उतारते समय वेणी के स्थान पर मेरे हाथ में वेणी के आकार का श्वेत प्रकाश दिखाई दिया । वेणी उतारने के उपरांत भी कुछ समय तक उस स्थान पर वेणी धारण करने का परिणाम अनुभव हुआ ।
  • प्रत्यक्ष एवं मानसरीति से शरीर के विविध भागों से स्वर्ण की वेणी को स्पर्श कराने पर अथवा घुमाने पर उससे प्रक्षेपित चैतन्य के कारण ऐसा प्रतीत हुआ कि ‘मुझ पर आध्यात्मिक उपाय हो रहे हैं’ । (आध्यात्मिक उपाय होना अर्थात अनिष्ट शक्ति का कष्ट घट जाना । – संकलनकर्ता)
        शरीर पर वेणी द्वारा मानस उपाय करते समय वेणी में वायुतत्त्व कार्यरत हुआ और वह (वेणी) वेगवान अस्त्र के समान कार्यरत होने की प्रतीति हुई । उपायों का यह प्रयोग करते समय ऊपर दिए अनुसार शरीर के ऊपरी भाग के अवयवों से निचले भाग के अवयवों पर क्रमानुसार उपाय न होकर मुझे जिस भाग से काली शक्ति दूर होने की आवश्यकता प्रतीत हो रही थी, उसके अनुसार उपाय हो रहे थे; अर्थात उन विशिष्ट अवयवों को स्वर्ण की वेणी का स्पर्श कराया जा रहा था ।

र्इ. स्वर्ण की वेणी का कार्य

        ईश्वरीय तत्त्व ग्रहण कर उसे प्रक्षेपित करने के कारण स्वर्ण की वेणी से निरंतर ईश्वरीय तत्त्व के लेन-देन का कार्य होता रहता है । उसी प्रकार वह जीव में क्षात्रभाव उत्पन्न करने का कार्य भी करती है ।
कृतज्ञता : स्वर्ण की वेणी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते समय मुझे देवालय के घंटे की ध्व्नि सुनाई दी । देवालय दिखा और देवालय में विराजमान देवी के दर्शन हुए । (ऐसा लगा कि देवालय श्री शांतादुर्गादेवी का है ।)’
निष्कर्ष : स्वर्ण की वेणी की सात्त्विक कलाकृति तथा वेणी की मोतियों के कारण सात्त्विक स्पंदन निर्मित हुए । इन स्पंदनों के कारण साधिका पर आध्यात्मिक उपाय हुए । उसके शरीर की काली शक्ति घट गई और उसे अच्छी अनुभूतियां हुर्इं ।

२. मांग में धारण किया जाने वाला अलंकार : मांगटीका (ललाटिका)

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अ. मांगटीके का महत्त्व

        मांगटीका धारण करनेवाले जीव की बुद्धि शुद्धएवं सात्त्विक बनती है । उस जीव में ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज निर्मित होते हैं ।

आ. मांगटीके का कार्य

अ. जिस प्रकार ज्ञान प्रदान करनेवाला ब्राह्मण समाज को उचित-अनुचित विषयों का ज्ञान प्रदान करता है और लोगों से उचित कर्म करवा लेता है, उसी प्रकार मांगटी का कार्य करता है ।
आ. सहस्रारचक्र पर मांगटीका धारण करनेवाली स्त्रीद्वारा मांगटीके के माध्यम से ब्रह्मांड रिक्ति से ईश्वरीय चैतन्य के कारण ईश्वरीय ज्ञान ग्रहण होता है ।

इ. मांगटीके के (सात्त्विकता : २ प्रतिशत) संदर्भ में साधिका द्वारा किया गया सूक्ष्म-ज्ञान विषयक प्रयोग

        ‘स्वर्ण के मांगटीके की ओर एवं उसके पदक की ओर देखना, तथा उसे सिर पर धारण करने तक मुझे सूक्ष्म से क्या अनुभव हुआ, वह दिया है ।
अ. मांगटीके की ओर देखना
१. मांगटीके की ओर देखने पर मुझे कष्ट देनेवाले मांत्रिक को कष्ट हुआ, जिससेमेरे मस्तिष्क की शिराएं तन गर्इं ।
२. मांगटीके में विद्यमान चैतन्य के कारण मांत्रिक का आंखों के माध्यम से हो रहा प्रकटीकरण घटने लगा एवं आंखों में शीतलता अनुभव होने लगी ।
३. मांगटीके की ओर देखते समय मुझमें भाव जागृत हो रहा था । इससे मांत्रिक का प्रकटीकरण घट गया । मुझे अपना अस्तित्व अनुभव हुआ ।
४. मेरा मन संवेदनशील होने लगा । मेरे अनाहतचक्र पर अच्छी संवेदनाएं अनुभव होने लगीं । सहस्रारचक्र पर अत्यधिक शीतलता अनुभव हो रही थी ।
५. मांगटीके की ओर देखते समय ऐसा प्रतीत हुआ कि मुझ पर आया काला आवरण घट गया है ।
६. मांत्रिक को पुनः कष्ट होने से उसके मूल रूप पर परिणाम हुआ और ऐसा लगा कि उसे कष्ट हो रहा है ।
७. परिणामस्वरूप मस्तिष्क की शिराएं तन गर्इं एवं आंखें बडी होकर मांत्रिक क्रोध से मांगटीके पर त्राटक कर युद्ध करने लगा ।
आ. मांगटीके के पदक की ओर देखना
१. मांगटीके के पदक की ओर देखने पर मैंने स्वयं को एक मंदिर में गर्भगृह के सामने खडी होकर घंटा बजाकर देवता को नमस्कार करते हुए देखा । गर्भगृह से प्रचुर मात्रा में नीला प्रकाश बाहर निकल रहा था । मुझे ऐसा दिखा कि उस नीले प्रकाश से मैं आलोकित हो गई हूं ।
२. गर्भगृह से आनेवाले शक्तिरूपी नीले प्रकाश का परिणाम मुझ पर होने लगा एवं मेरा भाव जागृत होने लगा । मुझे दिखा कि मैं उसमें डूब गई हूं ।
३. ऐसा लगा कि मांगटीके पर बने फूल के मध्य का गोल भाग मंदिर का गर्भगृह है एवं जहां मैं खडी हूं वह स्थान गर्भगृह के बाहर का मंडप है । उसमें से नीला रंग धुएं समान निरंतर ऊर्ध्व दिशा की ओर जाता हुआ दिखाई दिया । इसी प्रकार आपतत्त्वमिश्रित नीली तरंगें गर्भगृह के बाहर भूमि से कुछ दूरी पर समानांतर पैâलती हुई दिखाई दीं ।
४. ऐसा प्रतीत हुआ कि मांगटीके पर बने फूल एवं मांगटीके के बाह्य गोले में आपतत्त्वमिश्रित नीली तरंगें गतिमान होकर घूम रही हैं ।
५. पदक के मध्यमें स्थित फूल से नीले-श्वेत कण वातावरणमें पैâलते प्रतीत हुए ।
६. मांगटीके की ओर देखते समय मुझमें विद्यमान मांत्रिक को कष्ट होने लगा एवं ऐसा लगा कि वह मांगटीके को घूंसा मारकर तोडने का प्रयास कर रहा है ।
इ. सूक्ष्म से मांगटीका सिर पर धारण करना
१. सूक्ष्म से मांगटीका सिर पर धारण करने के उपरांत सिर पर शीतलता अनुभव हुई । वह चैतन्यरूपी शीतलता सहस्रारचक्र से शरीर के भीतर जाती प्रतीत हुई ।
२. मन एकाग्र होकर ध्यान लगा ।
३. जहां मांगटीके के पदक का माथे से स्पर्श होता है, वहां अच्छी संवेदनाएं अनुभव होने लगीं । इसके उपरांत ऐसा लगा कि मांगटीके से सुनहरा रंग बाहर निकल रहा है । उस समय मेरे सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्मित होता दिखाई दिया ।
४. मांगटीके के स्थान पर श्वेत रंग दिखने लगा । साथ ही, मांगटीके में विद्यमान चैतन्यमय ऊर्जाशक्ति धुएं समान मांगटीके के दोनों ओर से प्रक्षेपित होने लगी ।
५. मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि ‘मांगटीके से मुझ पर निरंतर उपाय हो रहे हैं’ ।
ई. निष्कर्ष
        मांगटीका जीव में भक्तिभाव उत्पन्न करता है । मांगटीके संबंधीप्रयोग करते समय पूर्व की तुलना में अधिक समय लगा । ज्ञानप्राप्ति में बहुत बाधाएं आ रही थीं । ऐसा प्रतीत हुआ कि मांत्रिक प्रयोग में व्यवधान उत्पन्न कर रहा है ।’

र्इ. मांगटीका धारण करने के लाभ

        ‘मांगटीका धारण करने से ब्रह्मरंध्र्र की ओर मार्गक्रमण करनेवाली ज्ञानशक्ति की तरंगें आकर्षित होती हैं । इससे सिर के सर्व ओर चैतन्यमय तरंगों का कवच बनता है ।’
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘मांगटीके से कर्णाभूषण तक के अलंकार

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