Sunday 11 March 2018

भारतीय लोक तंत्र संख्या के बल पर संवैधानिक आतंकवाद है...
जिसकी संख्या कम है,वह जाति सही होने पर भी दंड सहती है और जिसकी संख्या अधिक है,वह गलत होने पर भी सुविधा पाता है। मजे की बात है कि कम संख्या वाले इतिहास में बहुत महान कार्य किये हैं,विद्वान रहे हैं,लेकिन आज वे उपेक्षित हैं,और अधिक संख्या वाले संविधान के अस्त्र से उन्हें आतंकित किये हुए हैं।
इस आतंकवाद से बहुसंख्यक जाति कुछ भी कर सकती है।यह सामाजिक न्याय नहीं,जातीय आतंकवाद है।अगर राष्ट्र पति,प्रधान मंत्री,राज्य पाल,मुख्य मंत्री,सेना अध्यक्ष,मुख्य न्यायाधीश,कैबिनेट सचिव,मुख्य सचिव,प्रमुख सचिव,भी sc, st, हैं,तो उनके बच्चों को आरक्षण
का लाभ मिलेगा,वहीं सामान्य वर्ग किसान,मजदूर,रिक्शा चालक,भूमिहीन,गृह हीन, कंगाल भी हो,तो भी उससे 80 प्रतिशत मार्क्स की अपेक्षा की जाएगी।यही बात ओबीसी में है।यह यदि 08 लाख भी साल भर में कमा रहा हो,मतलब प्रतिमाह 60 हजार रुपये,तो भी इनके बच्चों को आरक्षण मिलेगा,वहीं सामान्य परिवार भूखों मर रहा हो,कोई आय न हो,लोग उसे गाली देते हों,वह कलकत्ता बम्बई दूध बेचता हो,टैक्सी चलाता हो,भीख मांगता हो,तो भी उसके बच्चों को आरक्षण नहीं मिलेगा।हैं न विचित्र।उसपर कुछ लोग हमें कहते हैं कि आप निष्पक्ष होकर नहीं लिखते,पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिखते हो।है न विचित्र।आप लिखो तो निष्पक्ष,अम्बेडकर व पेरियार की तरह,हम लिखें तो पूर्वाग्रह।क्या बात है।आप दिनरात मनुवादी कह कर गाली दो,तो सभ्य,हम अम्बेडकरवादी,पेरियारवादी,भीमवादी कह दें,तो असभ्य?आप की संख्या अधिक है तो आतंकवाद का लाइसेंस मिल गया।आप के नेता अम्बेडकर,लोहिया,ने आप के लिए सोचा।हमारे नेता,पण्डित मदनः मोहन मालवीय ने बीएचयू बनाकर, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाकर,हमारे लिए नहीं,देश के लिए सोचा।
यह फर्क है हमारे व आप में।

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