Thursday 4 January 2018

 वामपंथियों की पहचान . जरूरी है...
 आज वामपंथी पिछली पीढ़ी के वामियों की तरह झोला टाँग के और दाढ़ी बढ़ा के इंकलाब जिंदाबाद का नारा नहीं लगते. नास्तिक नहीं कहते खुद को, हो सकता है हमसे आपसे ज्यादा धर्मग्रंथों के उद्धरण देते हों, पौराणिक कहानियों की भी खूब जानकारी रखते हैं क्योंकि उन्हें तोड़ मरोड़ कर उन्हें सामाजिक विघटन का बारूद बनाना होता है...और अपने को वामपंथी तो बिल्कुल नहीं कहते.
कुछ दिनों पहले एक वामपंथी सज्जन ने खूब घुल मिल कर बात की, वेद-पुराण-गीता रामकृष्ण-विवेकानंद की बात की...अगले दिन फेसबुक पर देखा, उन्हें कुलभूषण जाधव और अफ़ज़ल गुरु में अंतर नहीं समझ आ रहा था... आज एक मित्र प्रश्न उठा रहे थे कि कैसे जानते हैं कि खालिद और कन्हैया भारत तोड़ो के नारे लगा रहे थे? हो सकता है राष्ट्रवादी लोग ही लगा रहे हों, या सरकार या आइबी ने वो नारे लगवाए हों. भ्रम फैलाना वामपंथी का एक और हथियार है. बात कितनी भी स्पष्ट हो, वे विद्वता और कुतर्क का ऐसा गुबार खड़ा कर देंगे कि सच छुप जाए.
एक गाँव में एक चोर घुसता है...वह चोरी करके पूरब की ओर भागता है...जब पूरा गाँव उसे दौड़ा रहा होता है तो दूसरा एक चोर पश्चिम की ओर मुँह करके चोर-चोर चिल्लाते हुए दूसरी तरफ भागता है और लोगों को कहता है - आपको कैसे पता कि जो पूरब की तरफ भाग रहा है वही चोर है? हो सकता है चोर पश्चिम की तरफ भागा हो...
पुराने मार्क्सवादी वामपंथी डाकू थे. वे सर पर पगड़ी बाँध के, दाढ़ी बढ़ा के कंधे पे बंदूक रखके आते थे और गाँव के बीच पहुँच के फायर करते थे और ऐलान करते थे कि डाकू आ गए हैं. नए वामपंथी चोर हैं. और ये ऐसे ही झुण्ड में काम करते हैं. और जब एक चोर को लोग पकड़ने पूरब की ओर दौड़ते हैं तो दूसरा चोर उन्हें पश्चिम की तरफ भटकाता है......तो वह वामपंथी चोर है. उसे पकड़ कर ठोक सकें तो ठीक है...नहीं तो कम से कम अपने घर के दरवाजे पर नज़र रखें, वह आपके घर में तो नहीं घुस रहा...

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