Sunday 7 January 2018

"स्टार्टअप नेशन" (भाग-१)
इज़राइल का नाम तो आपमें से हर किसी ने सुना होगा, लेकिन अक्सर इज़राइल की चर्चा अरब देशों से होने वाले झगड़ों, या फिर इज़राइल की कृषि की तकनीकों या आधुनिक सैन्य उपकरणों के संदर्भ में ही होती है। लेकिन इस बात पर कितने लोगों का ध्यान गया होगा कि दुनिया भर में स्टार्ट अप कंपनियों के मामले में भी इज़राइल सबसे आगे है?
केवल ८० लाख जनसंख्या, लगभग शून्य प्राकृतिक संसाधन, और चारों तरफ के दुश्मन देशों से लगातार युद्ध में उलझे हुए इज़राइल में स्टार्टअप कंपनियों की संख्या भारत, जापान, कोरिया, कनाडा और ब्रिटेन से भी अधिक है। अमरीका के नैस्डेक शेयर बाज़ार में कोरिया, जापान सिंगापुर, भारत और पूरे यूरोप की कुल जितनी कंपनियां सूचीबद्ध हैं, उससे ज्यादा अकेले इज़राइल की हैं, जबकि इस देश की जनसंख्या अपने मुंबई या दिल्ली जैसे शहरों से आधी भी नहीं है!
जो देश १९४८ से पहले तक दुनिया के नक्शे में ही कहीं नहीं था, उसने इतनी चुनौतियों और संकटों के बावजूद केवल ७०-७५ वर्षों में इतनी प्रगति कैसे कर ली? इसका जवाब आपको मिलेगा डैन सेनोर और सॉल सिंगर की पुस्तक 'स्टार्टअप नेशन' में। तो आइए आज इस किताब की और इसके माध्यम से इज़राइल की बात करें।
१९४८ में संयुक्त राष्ट्र संघ में मतदान के द्वारा इज़राइल नामक एक नया देश विश्व-मानचित्र पर उभरा। उस समय इज़राइल बहुत गरीब देश था, चारों तरफ दुश्मन थे, बार-बार युद्ध का सामना करना पड़ा, खेती के लायक भूमि नहीं थी, सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं था, लेकिन आज इज़राइल कई क्षेत्रों में दुनिया के अधिकांश देशों से आगे है और इसमें तकनीक की बहुत बड़ी भूमिका है। यहां तक कि कृषि के क्षेत्र में भी इज़राइल ने जो प्रगति की है, उसमें ८५% योगदान तकनीक का ही है।
इज़राइल के प्रथम प्रधानमंत्री ने अपने देशवासियों से कहा था कि दुनिया में किस तकनीक के कारण क्या हासिल हुआ, ये बतानेवाले बहुत लोग मिल जाएंगे, लेकिन आगे क्या होने वाला है, और उसमें कौन-सी तकनीक काम आएगी, दुनिया को यह बतानेवाले लोगों की ज़रूरत है। अतीत को देखने के लिए अनुभव काम आता है, लेकिन भविष्य को देखने के लिए दूरदृष्टि होनी चाहिए और इज़राइल को उसी की ज़रूरत है क्योंकि शून्य से काम शुरू करना है।
आज के इज़राइल को देखकर स्पष्ट है कि इस देश ने अकल्पनीय को भी साकार कर दिखाया है, और यह संभव हुआ है कि वहां की सरकार, समाज और सेना के साझा प्रयासों से।
इज़राइल की सरकार इस बात पर विशेष ध्यान देती है कि राष्ट्रीय संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा नए शोध और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने में लगाया जाए। जनसंख्या के अनुपात में इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की संख्या के मामले में इज़राइल दुनिया में सबसे आगे है। नई तकनीक का विकास करने या नई तकनीक को सबसे पहले अपनाने के मामले में इज़राइल सबसे आगे है। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में इंटरनेट का सबसे ज्यादा उपयोग करने के मामले में भी इज़राइल ही सबसे आगे है।
कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि इज़राइल की आर्थिक प्रगति वाकई विश्व के अर्थशास्त्र के इतिहास में अतुलनीय है। इज़राइल के लोग केवल नई तकनीक को सबसे पहले अपनाने तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अक्सर वे पुराने दृष्टिकोण को ही पूरी तरह बदलकर रख देते हैं।
इसका एक उदाहरण आपको इंटेल के कंप्यूटर चिप में मिलेगा। इंटेल कंप्यूटर बनाने वाली प्रसिद्ध कंपनी है।हर कंप्यूटर में एक चिप होता है, जिसका प्रदर्शन इस आधार पर मापा जाता है कि एक सेकंड में चिप कितनी बार ऑन और ऑफ होती है, जिसे क्लॉक स्पीड कहते हैं। क्लॉक स्पीड जितनी अधिक होगी, चिप उतना कार्यक्षम माना जाएगा।
इज़राइल के इंजीनियरों ने एक नए तरह का चिप बनाया और उनका दावा था कि यह चिप इंटेल के वर्तमान चिप से बेहतर और ज्यादा दक्ष है। आप अगर यह सोच रहे हैं कि उन्होंने चिप की क्लॉक स्पीड को बहुत अधिक बढ़ा पाने की कोई तकनीक ढूंढ निकाली होगी, तो आपका अनुमान गलत है। उन्होंने जो चिप बनाया था, उसकी क्लॉक गति इंटेल के चिप की गति से भी धीमी थी और फिर भी उनका दावा था कि यह चिप इंटेल के चिप से बेहतर है!
इन इज़राइली इंजीनियरों ने जब अपने नए चिप का डिज़ाइन पहली बार प्रस्तुत किया, तो इंटेल के मैनेजरों ने उसे खारिज ही कर दिया। वे मानने को तैयार ही नहीं थे कि धीमी गति वाला चिप तेज़ गति वाले चिप से बेहतर हो सकता है।
लेकिन इज़राइली इंजीनियरों ने हार नहीं मानी। उनका तर्क था कि वास्तव में चिप के प्रदर्शन को मापने के लिए क्लॉक स्पीड को आधार बनाने का पैमाना ही गलत है क्योंकि ज्यादा गति पाने के लिए ज्यादा ऊर्जा भी लगती है और इसके कारण ऊष्मा (गर्मी) भी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप कंप्यूटर जल्दी गर्म हो जाता है और उसका प्रदर्शन प्रभावित होता है।
इज़राइल के इंजीनियरों ने चिप की गति को कम करने के अलावा एक बदलाव और किया था। उन्होंने चिप में प्रोसेसिंग के लिए आने वाली जानकारी को भी छोटे-छोटे भागों में बांटने की नई तकनीक विकसित की थी। इसमें कम ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती थी, और इस कारण उससे उत्पन्न होने वाली ऊष्मा भी कम हो जाती थी। फलस्वरूप गति बढ़ती थी और बैटरी या ऊर्जा कम लगती थी।
इंटेल को यह समझाने और इस नई 'मोबिलिटी' चिप का परीक्षण करने के लिए मनाने में इज़राइली इंजीनियरों को बहुत समय तक प्रयास करना पड़ा। अंततः कई बार के प्रयासों के बाद उन्हें इसमें सफलता मिल ही गई और इंटेल ने उनके इस चिप का उपयोग करने का निर्णय लिया। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि इसका परिणाम क्या हुआ? इसका परिणाम यह हुआ है कि इंटेल की कुल आय का लगभग आधा हिस्सा इज़राइल के मोबिलिटी चिप डिवीजन की बदौलत आता है! मतलब इंटेल की आधी कमाई इसी चिप के भरोसे हो रही है!
यह तो हुआ इज़राइल के इंजीनियरों की प्रतिभा और प्रयास का एक उदाहरण, लेकिन इज़राइल के आर्थिक विकास में सेना की क्या भूमिका है? इस बारे में लेख के अगले भाग में बात करेंगे।

"स्टार्टअप नेशन" (भाग २)
 पहले भाग में मैंने आपको बताया था कि १९४८ में जब इज़राइल दुनिया के नक्शे पर आया, तब वहां बहुत गरीबी थी और इस देश के पास प्राकृतिक संसाधनों और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव था। लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है और इज़राइल तकनीक और इंटरनेट के उपयोग जैसे कई क्षेत्रों में दुनिया के अन्य देशों से बहुत आगे निकल चुका है। स्टार्टअप कंपनियों की संख्या के मामले में भी यह दुनिया में पहले स्थान पर है। कल के लेख में हमने इंटेल का उदाहरण भी देखा था। आज इस बारे में बात करेंगे कि इज़राइल की उन्नति और यहां की स्टार्टअप कंपनियों की सफलता के पीछे इज़राइली सेना का क्या योगदान है?
जैसा कि आप जानते ही हैं, इज़राइल चारों तरफ दुश्मन देशों से घिरा हुआ है और अपने जन्म से लेकर आज तक इज़राइल को कई बार युद्ध का सामना करना पड़ा है। अभी भी यहां लगातार संघर्ष चलता रहता है और युद्ध का खतरा भी हमेशा बना रहता है।
स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में देश की सुरक्षा के लिए एक सशक्त सेना का होना आवश्यक है। लेकिन बहुत थोड़ी-सी जनसंख्या वाला छोटा-सा देश बहुत बड़ी सेना कैसे बनाए?
इज़रायल ने अनिवार्य सैन्य सेवा के द्वारा इसका समाधान निकाला। १८ वर्ष की आयु पूरी करने पर सभी युवक-युवतियों को २ से ३ वर्ष के लिए सेना में काम करना पड़ता है। हालांकि, कुछ लोगों को इससे बाहर रखा गया है, लेकिन उसके बारे में मैं लेख के अगले भाग में बात करूंगा।
सेना में २-३ वर्षों की इस सक्रिय सेवा को एक्टिव ड्यूटी कहा जाता है। लेकिन कई बार उसके बाद भी आपातकालीन स्थिति में सेना इन पूर्व-सैनिकों की मदद लेती है। इसके अलावा बीच-बीच में उन्हें प्रशिक्षण या अन्य कार्यक्रमों के लिए भी बुलाया जाता है। ऐसा कई वर्षों तक चलता रहता है। एक्टिव ड्यूटी के बाद होने वाली यह सर्विस रिज़र्व ड्यूटी कहलाती है।
भारत सहित अधिकांश अन्य देशों के छात्र स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के दौरान आमतौर पर यह सोच रहे होते हैं कि उन्हें किसी अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में अपनी पसंद के कोर्स में एडमिशन मिल जाए। लेकिन इज़राइल के छात्रों का ध्यान इस बात पर लगा होता है कि उनका चयन सेना में उनकी मनपसंद यूनिट में हो जाए!
सेना में इतनी केएक्टिव ड्यूटी पूरी करने के बाद अधिकांश युवा यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेते हैं और अपनी डिग्री पूरी करते हैं। भारत में इतनी सुविधाओं और विकल्पों के बावजूद भी केवल ८-९% लोग कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी करते हैं, जबकि इज़राइल में यह आंकड़ा लगभग ४५% है।
सेना की हर यूनिट का एक अलग काम और विशेषज्ञता होती है। हर यूनिट में प्रवेश के मापदंड भी अलग-अलग और बहुत कठिन होते हैं। लेकिन सैन्य सेवा का प्रशिक्षण लेने और सेना की विशिष्ट यूनिट में काम करने के कारण ये युवा किसी न किसी विशेष विषय में निपुण भी हो जाते हैं। आगे जब वे निजी क्षेत्र में नौकरी करने जाते हैं या अपनी स्टार्टअप कंपनी शुरू करते हैं, तो यह ज्ञान, अनुभव और विशेषज्ञता उनके बहुत काम आती है।
उदाहरण के लिए,
 यूनिट ८२०० इज़राइली सेना में सबसे महत्वपूर्ण खुफिया विभाग है। इसके सदस्य कंप्यूटर के अपने ज्ञान का उपयोग आतंकियों की पहचान और निगरानी के लिए करते हैं। आगे जब यही सैनिक निजी क्षेत्रों में काम करने जाते हैं, तो वे अपने ज्ञान, कौशल और अनुभव का उपयोग ऑनलाइन धोखाधड़ी और साइबर हमलों की पहचान करने और उन्हें रोकने में करते हैं। इनमें से कई लोगों ने बहुत सफल कंपनियों की स्थापना की है। ऐसी ही एक कंपनीं का नाम है – चेकपॉइंट, जो कि अमरीकी स्टॉक एक्सचेंज नैस्डेक तक में सूचीबद्ध है और इसका मूल्य ५ अरब डॉलर आंका गया है। फ्रॉड साइंसेज़ भी ऐसी ही एक कंपनी है। इसे पेपाल ने लगभग १७ करोड़ डॉलर में खरीदा है।
इस अनिवार्य सैन्य सेवा का एक और प्रभाव भी होता है। चूंकि हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही इन युवाओं को तुरन्त ही सेना के कठोर अनुशासन और चुनौतियों वाले जीवन में ढाल दिया जाता है, इसलिए वे कम उम्र में ही बहुत परिपक्व और मानसिक रूप से मज़बूत बन जाते हैं। भविष्य में अपने व्यवसाय या जीवन की चुनौतियों का सामना करने में भी इससे उन्हें मदद मिलती है।
रिज़र्व ड्यूटी का एक और फायदा भी है। चूंकि इज़राइल के अधिकांश लोग किसी न किसी समय सेना में नौकरी कर चुके होते हैं और आगे भी कई वर्षों तक रिज़र्व ड्यूटी के कारण सेना से जुड़े रहते हैं, इसलिए देश में सामाजिक और व्यापारिक संबंधों का एक बहुत विशाल नेटवर्क भी तैयार हो गया है। इसका भी लाभ अंततः पूरे देश को मिलता रहता है।
इज़राइली सेना की एक विशेषता यह भी है कि अन्य देशों की तुलना में ये अपने ऑफिसरों को ज्यादा अधिकार और फैसले लेने की अधिक स्वतंत्रता देती है। उदाहरण के लिए वहां एक लेफ्टिनेंट के पास जितनी अथॉरिटी है, उतनी दुनिया की किसी सेना के लेफ्टिनेंट के पास नहीं है। सेना की टुकड़ी का आकार भी छोटा होता है, इसलिए हर सैनिक पर भी यह दबाव रहता है कि वह बेहतर प्रदर्शन करे, कुछ अलग हटकर सोचे और कुछ बड़ा काम करके दिखाए।
इज़राइली सेना ने ऐसा करके भी दिखाया है। सन १९६७ में अचानक फ्रांस ने इज़राइल की सेना को हथियार बेचना बंद कर दिया। इसके जवाब में इज़राइल ने स्वदेशी हथियारों के निर्माण का पूरा उद्योग ही खड़ा कर लिया। फ्रांस ने शस्त्रों की आपूर्ति रोक दी, तो मजबूरन इज़राइल को आत्मनिर्भर बनना पड़ा। लेकिन बड़ी बात ये है कि इज़राइल ने केवल छोटे-मोटे हथियार बनाकर ही अपनी पीठ नहीं थपथपा ली, बल्कि एक दशक के भीतर ही उसने युद्धक टैंकों और लड़ाकू विमानों जैसे उन्नत हथियार भी विकसित कर दिखाए। इतना ही नहीं, १९८८ आते-आते इज़राइल दुनिया के उन गिने-चुने १०-१२ देशों में शामिल हो चुका था, जिन्होंने अपना स्वयं का उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाने की क्षमता हासिल कर ली थी।
इज़राइल की इस विशिष्ट परिस्थिति के कारण इज़राइल के बच्चे-बच्चे को घर में, स्कूल में और सेना की नौकरी में आक्रामकता और नवाचार की सीख मिलती है। धीरे-धीरे यह उसकी आदत ही बन जाती है। इसी कारण लोग कुछ नया करने, नई चुनौतियों को स्वीकारने या जोखिम उठाने में हिचकते नहीं हैं। इसी के परिणामस्वरूप आज इज़राइल कई क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों व सफलताओं के झंडे गाड़ चुका है, और इसमें सेना की बहुत बड़ी भूमिका है।
अब लेख के अगले और अंतिम भाग में मैं इज़राइल की आर्थिक नीति और कुछ सामाजिक पहलुओं के बारे में बात करके इस विषय को समाप्त करूंगा। आपको यह लेख कैसा लगा, मुझे कमेन्ट के द्वारा बताइये।
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सुमंत विद्वांस जी

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