Monday 1 January 2018

महान सम्राट विक्रमादित्य के विषय में अत्यंत प्रामाणिक सामग्री सुलभ होने पर भी उनके ऐतिहासिक अस्तित्व को क्यों छिपाया गया ? क्योंकि उन्होंने १०८ देशों पर शासन किया था ,यह तथ्य ९० वर्षों तक छल बल से भारतीयों से अधिकाधिक सहयोग प्राप्त कर लगभग आधे भारत में संधि पूर्वक शासन करने वाले अंग्रेज राजपुरुष छिपाना चाहते थे .यह तो स्वाभाविक था .
परन्तु १९४७ के बाद इसे सरकारों ने क्यों छिपाया ?क्योंकि वे विद्या की दृष्टि से नितांत अभारतीय लोग थे और हैं
भारत के आधुनिक तथाकथित इतिहासकार नामधारी विद्वानों का या तो अज्ञान या दुष्टता या मूढ़ता इस से भी प्रमाणित है कि यूरोप आदि के इतिहास के लिए वे यूरोप के तनिक से साहित्य ,जो कुछ पन्ने मात्र होते हैं ,प्रायः फटे पन्ने या उनका कोई शताब्दियों बाद किया गया उल्लेख . को ही प्रमाण मान लेते हैं पर महाभारत सहित अत्यंत विशालकाय भारतीय इतिहास ग्रंथों को काल्पनिक कहकर उड़ाते हैं . वस्तुतः तो वे दंडनीय हैं पर अभी उपहास योग्य मान लें और संतोष करें किन्तु विद्वान तो ये किसी भी कसौटी पर नहीं है ,इनकी तुलना में यूरोपीय विद्वान हाल में ही विकसित इतिहास विधा के लिए अत्यंत परिश्रम कर रहे है अतः प्रशंसा के पात्र हैं 
यूरोप में इतिहास विधा का विकास २० वीं शताब्दी ईस्वी में ही हुआ है .
अज्ञानी मूर्ख कृपा कर इस विषय में ,जो स्वयं यूरोप में निर्विवाद मान्य है , इस पन्ने पर प्रलाप ना करें . जो बक बक करनी है ,अपने पन्ने पर करें
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महान सम्राट विक्रमादित्य ने रोम के शक नरेश को जीता था और उन्हें बांधकर उज्जयिनी लाये थे .. फिर उन्हें नगर में घुमाकर उन शरणागत नरेश को छोड़ दिया था .महाकवि कालिदास रचित ज्योतिर्विदाभरण में इसका स्पष्ट उल्लेख है :
यो रूम देशाधिपतिम शकेश्वरम , जित्वा तु तं उज्जयिनीम आहवे. 
आनीय सम्भ्राम्य मुमोचयत्यहो , स विक्रमार्कः खलु सत्य विक्रमः .
rameshwar mishr pankaj

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