Wednesday 31 January 2018

विश्व में भुखमरी का कारण है जानवरों का कत्लेआम –
BY RAJIV DIXIT JI
दोस्तों अगर पुरे विश्व के लोग मॉस खाना बंद कर दे तो पूरी दुनिया में इतना अनाज पैदा होता है कि पुरे विश्व के एक एक व्यक्ति का तो पेट भरा जा सकता है इसके आलावा अगर इतनी ही एक दूसरी दुनिया पैदा हो जाये उसका भी पेट भरा जा सकेगा अब आपको एक आंकड़े से समझाते है
इस समय पूरी दुनिया में 650 करोड़ लोग रहते है भारत में 115 करोड़ लोग है, चीन में 140 करोड़ लोग है ये दो देश है जिनकी जनसंख्या सबसे ज्यादा है इसके आलावा तीसरा सबसे बड़ा देश है अमेरिका जहा पर लगभग 27 करोड़ लोग है इसके बाद यूरोप के 15 देश है फ़्रांस है जर्मनी है स्पेन है हॉलैंड है पुर्तगाल है इन 15 देशो की कुल जनसँख्या 30 करोड़ है फिर अफ्रीका है फिर लैटिन अमेरिका है सारी दुनिया में कुल 650 करोड़ लोग है
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राजीव भाई कहना ये चाहते है कि अगर पूरी दुनिया की जनसँख्या दो गुनी हो जाये यानी 1300 करोड हो जाये और मास उद्योग पर ताला लगा दिया जाये तो जितना भोजन आज यानी गेहू, चना, दाल, चावल, सब्जी, फल आदि पूरी दुनिया में पैदा होता है जितना अनाज आज पैदा हो रहा है वो इन 1300 करोड़ लोगो का पेट भरने को प्रयाप्त है आप कहेगे वो कैसे ये बात आपको समझ नहीं आई होगी तो आपको समझाते है
दुनिया में जो मास का उत्पादन होता है उसकी प्रक्रिया क्या है वो आपको जानना होगा दुनिया में मास का उत्पादन होता है जानवरों का कतल करके| और जानवरों में सबसे ज्यादा कतल होने वाला जो प्राणी है उसका नाम है गाय, गाय के वंश का बैल, गाय के वंश के बछड़े और बछिया, सबसे ज्यादा ये कतल होते है पूरी दुनिया में| उसके बाद दुसरे न. पर जो सबसे ज्यादा कतल होने वाला प्राणी है पूरी दुनिया में वो है सुवर| उसके बाद तीसरे न. पर जो सबसे ज्यादा कतल होने वाला प्राणी है पूरी दुनिया में वो है भैस और चौथे न. पर जो सबसे ज्यादा कतल होने वाला जो प्राणी है वो है बकरे, बकरियां और भेड और पांचवे न. पर जो सबसे ज्यादा कतल होने वाला जो प्राणी है वो है मुर्गे और मुर्गियां और उसके बाद आते है छोटे पक्षी जिनकी कोई गिनती है | इन जानवरों को कतल करने से पहले इनके शरीर में मांस ज्यादा हो तो कतल करने वाले उद्योगों को फायदा ज्यादा होता है तो जानवरों के शरीर में मांस बढाने के लिये उनको अनाज खिलाया जाता है गेहू खिलाते है, गेहू के आलावा चावल और चना आदि खिलाते है और मक्की और बाजरी खिलाते है तो इन सब जानवरों को भोजन खिलाया जाता है| और ये सभी जानवर प्रकृति से घास खाने वाले है गाय घास खाने वाली है भैस घास खाने वाली है, इसी तरह सुवर मनुष्य का मल और दूसरी चीजे खाने वाला है इसी तरह बकरे और बकरियां पूरी तरह से शाहकारी जीव है और ये मुर्गे मुर्गियां ज्यादातर ऐसी ही चीजे खाते है तो ये जानवर जो है ये घास खाने वाले और चारा चरने वाले जीव है लेकिन मांस उत्पादन करने वाली कंपनियां इनको जबरदस्ती अनाज, दाल मटर और बाजारी और मक्की ऐसी चीजे खिलाते है इनको खिलने ये इनको ये फायदा होता है कि अगर गेहू, सोयाबीन या कोई और अनाज खिलाया जाये तो वो बहुत जल्दी मोटे होने लगते है| बहुत जल्दी उनके शरीर में चर्बी बढने लगती है बहुत जल्दी उनका शरीर भरी होने लगता है और जानवरों को काटकर बेचने वाले जो लोग है उनके लिये तो सबसे अच्छा यही है कि जो जानवर जितना ज्यादा भारी होगा जितना ज्यादा मोटा होगा, मास उतना ज्यादा होगा और जितना ज्यादा मांस होगा मुनाफा उतना ही ज्यादा होगा| इसीलिये मास उत्पादन करने वाली कंपनियां जानवरों को वो भोजन करवाते है जो भोजन मनुष्य के लिये है अब वो मनुष्य का भोजन जानवरों को करवा दिया जाता है तो मनुष्य के हीस्से में भोजन कम पड़ना शुरू हो जाता है और वही भोजन की कमी हजारो – लाखो लोगो को भूख से मार देती है
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अब थोड़े आंकड़ो की बात करते है सारी दुनिया के जानवरों को जो अनाज खिलाया जाता है वो कुल उत्पादन का लगभग 40% है है भारत जैसे देशो में और 70% है अमेरिका जैसे देशो में|
भारत और अमेरिका की राजीव भाई ने अलग अलग श्रेणिया बनाई है भारत का मतलब है दुनिया के सभी गरीब देश| जैसे भारत एक देश है, इंडोनेशिया है, मलेशिया है, पाकिस्तान है, बांग्लादेश है तो भारत जैसे दुनिए में 186 देश है जिनको गरीब देश कहा जाता है आजकल इन देशो के लिये एक अंग्रेजी का शब्द की विकशित हु है जो है Developing Country (विकासशील देश) | तो भारत जैसे 186 देश है इन सभी देशो में मांस उत्पादन के लिये कुल कृषि उत्पन का 40% जानवरों को खिलाया जाता है अब दूसरी तरफ अमेरिका है, जर्मनी है, फ्रांस है, ब्रिटेन है का कनाडा है और यूरोप के कई सारे देश है| इन देशो में कुल कृषि उत्पादन का 70% जानवरों को खिलाया जाता है आप सोचेये अमेरिका में जितना गेहू पैदा होता है उस पैदा हुए गेहू का 70% जानवरों को खिलाया जाता है अमेरिका के जानवर गेहू , सोयाबीन और अन्य कृषि उत्पन खाकर जल्दी से मोटे हो जाये, जल्दी से उनके शरीर में मांस बढ़ जाये, ज्यादा मोटे हो जाये और फिर उनको काटकर उनका मांस दुनिया में बेचकर कंपनिया ज्यादा मुनाफा कमाए|
आप सोचेये जो आमिर देश है उनके कृषि उत्पादन का 70% जानवर खा जाते है जो गरीब देश है वहा मांस उत्पादन के लिये कुल उत्पादन का 40% अनाज जानवर खा जाते है अगर इनका ओसत निकाला जाये 70+40=110/2 =55% यानि दुनिया में आधा अनाज जानवरों को खिलाकर, उनको मोटा बनाकर फिर उनका मांस कुछ लोग खाते है| अगर इस तर्क को सीधा सा समझने की कोशिस करे कि आधे से ज्यादा अनाज पहले हम जानवरों को खिलाकर उनको मोटा बनाए, फिर उनका मांस हम खाए इससे अच्छा सीधा सीधा ये है कि वो आधा अनाज सीधे ही हम खा जाये तो जितनी जनसँख्या की आज पूर्ति हो रही है उससे दुगनी जनसँख्या की पूर्ति ऐसे ही हो जाएगी |
तो आप कहेगे की जानवरों के लिये कहा से आयेगा तो प्रकृति ने ऐसी सुन्दर व्यवस्था की है कि जहा से आपके लिये भोजन आता है वही से जानवरों के लिये भी पैदा हो जाता है उसके लिये अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़त| जब आप खेती करते है हम गेहू पैदा करते है गेहू का ऊपर वाला हीस्सा हमारे काम आ जाता है उससे निचे का पूरा हीस्सा गाय बेल या भैस के काम आ जाता है खाने के लिये| तो अतिरिक्त कुछ पैदा नहीं करना पड़ता जानवर के लिये| इसका सीधा सा मतलब है मनुष्य के लिये जो पैदा हो रहा है उसी में से जानवरों की पूर्ति होती है| हम मक्के के उत्पादन करते है, बाजरे के उत्पादन करते है तो मक्की और बाजरे का जो ऊपर का हीस्सा होता है जो लगभग 1 फूट का होता है वो तो हमारे काम आ जायेगा और बचा हुआ नीचे का हीस्सा का 6-7 फुट का जो हीस्सा है वो तो किसी जानवर के ही काम आने वाला है|
प्रकृति और परमात्मा ने तो व्यवस्था ऐसी की है कि मनुष्य के लिये कुल उत्पादन जितना चाहीए उससे 6-7 गुणा ज्यादा उत्पादन चारे और घास के रूप में जानवरों के लिये भी हो ही जाता है उसके लिये कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता | इसलिये हमें जानवरों की यह चिंता छोड़ देनी चाहीए कि उनको अनाज नहीं खिलायेगे तो उनका पेट कहा से भरेगा| उनका पेट भरने के लिये तो प्रकृति और परमात्मा ने व्यवस्था की हुई है| आप तो बस ये चिंता करिये कि इनको काट काट कर अपने मुह में ठूसना बंद कर दीजिये उनकी व्यवस्था तो बहुत सुन्दर और अछे से है

sanskar


 ग्रांड ट्रंक रोड बहुत प्राचीन मार्ग था। जिसे 'उत्तरापथ' कहा जाता था।
ये पेशावर से आगे भी "खैबर दर्रे" तक जाता था। सम्भवतः इसका निर्माण "सम्राट अशोक" ने करवाया।
शेरशाह सूरी, ने सिर्फ अपना "ठप्पा" लगाया और अंग्रेजों ने मरम्मत के नाम पर 'ग्रांड ट्रंक रोड' का नामकरण किया।
जीटी रोड(ग्रांड ट्रंक)रोड भारत का सबसे बड़ा सड़क मार्ग है। जो कलकत्ता को पेशावर(अब पाकिस्तान) से जोड़ता है।
सामान्य ज्ञान में अक्सर ये पढ़ाया जाता कि इसका निर्माण दिल्ली के "अफगान शासक शेरशाह सूरी" ने कराया।
 एक नजर डालते हैं...सूरी के राज्यकाल के 5वर्षों पर और फिर समझने का प्रयास करें,
●शेरशाह सूरी ने 1540 ई0में हुमायूं को बिलग्राम के युद्ध मे हराकर 68साल की आयु में दिल्ली का बादशाह बना। गद्दीनशीन होने के बाद वो "हुमायूं" का पीछा करते हुए अपने बेटे खवास की सहायता के लिए पंजाब तक गया।
●उसके बाद "सिंधु नदी" के किनारे की एक कबीलाई लड़ाकू जाति गक्खड़ों से युद्ध में उलझा रहा।
●1541ई0 में "खिज्रखान" ने बंगाल में विद्रोह कर दिया! उसे दबाने के लिए वो "कई महीने" बंगाल में रहा।
●1541 में मालवा के शासक 'कादिर खान' के साथ युद्ध करके, मालवा को अपने साम्राज्य में मिलाया।
●1541 में ही "कालपी का युद्ध" जिसमें उसका पुत्र "कूवत खान" मारा गया। "कूवत खान" की मौत के प्रतिशोध लिए कालपी का अभियान किया।
●1542 के आखिरी महीनों में, "रायसिन" पर हमला; 8महीने रायसिन दुर्ग का घेरा डाला।। अंत में न जीत पाने की स्थिति में दुर्ग के "राजा पूरनमल" से समझौता करके उन्हें धोखे से मार दिया।
●रायसिन, कब्जाने के बाद रणथम्भौर के शासक "उस्मान खान" पर चढ़ाई।
●1543 में "मुल्तान के विद्रोह" को दबाने के लिए हैव्वत खान को भेजा।
●1544 में मारवाड़ के "राजा मालदेव" पर आक्रमण डेढ़ माह तक मारवाड़ का घेरा डालने के बाद छल से मारवाड़ पर कब्जा।
●1544ई0 में शेरशाह ने "चित्तौड़" पर आक्रमण किया और चित्तौड़ को कब्जे लिया।
●1544ई0 में ही आमेर पर कब्जा।
●1545ई0 में "कालिंजर" पर हमला भीषण युद्ध में कालिंजर तो विजय हुई, पर तोप फट जाने से बुरी तरह झुलस गया। जिस दिन कालिंजर पर विजय मिली, उसी दिन 22अप्रेल 1545 को मर गया। ☠️
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अब बताओ,

 उसे कलकत्ता से पेशावर तक, लगभग 2300किमी लम्बी सड़क का निर्माण कराने का समय कहाँ मिला?
 ग्रांड ट्रंक रोड बहुत प्राचीन मार्ग था। जिसे 'उत्तरापथ' कहा जाता था।
ये पेशावर से आगे भी "खैबर दर्रे" तक जाता था। सम्भवतः इसका निर्माण "सम्राट अशोक" ने करवाया।
शेरशाह सूरी, ने सिर्फ अपना "ठप्पा" लगाया और अंग्रेजों ने मरम्मत के नाम पर 'ग्रांड ट्रंक रोड' का नामकरण किया।


शेरशाह 1545 में कालिंजर में जल कर मरा। उसके बाद उसका लड़का हाकिम खान सूर पहले हेमचन्द्र की सेना में पानीपत मे तथा उसके बाद राणा प्रताप सिंह के सेनापति के रूप में लड़ कर मारा गया। 
सासाराम में उसका मकबरा किसने और कैसे बनवाया। वस्तुतः यह परशुराम का जल के भीतर अष्टकोण मन्दिर था। इसके नाम पर इस नगर को सहस्रराम (सहस्रार्जुन को मारने वाले राम) कहते थे जिससे यह सासाराम हो गया है। वस्तुतः यह परशुराम जन्मभूमि मन्दिर था जिस को राम और कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर की तरह कब्जा कर भ्रष्ट किया गया है।

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वो भूखा है साहेब
बाँसकरिल खाता है।
बाँस के कोअले sprout का अचार , सब्जी बनती है, इसे उबालकर या भूनकर भी खाया जाता है। वर्षा ऋतु में बाँस में नयी कोपल, नये पोर आते हैं तब यह बहुत नर्म होते हैं और पकाने में आसान ।
भारत में अन्न की कमी हो जाती है, भूख से मरने के समाचार भी आ जाते हैं, किसी बड़े नेता ने कहा था कि भारतीय खाते बहुत हैं इस कारण खाद्यान्न घट जाता है।
भारत सरकार ने छः सौ करोड़ लोगों का पेट भरने की योजना बनाई है, बजट में बारह सौ करोड़ रुपये का आबंटन है।
अब बाँस की खेती होगी, इससे भुखमरी भी समाप्त होगी तथा बाँस से बनी अन्य वस्तुओं का निर्यात कर बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी । देश में रोजगार बढ़ेगा।




laghu katha

एक इलाके में एक भले आदमी का निधन हो गया , लोग अर्थी ले जाने को तैयार हुये और जब उठाकर श्मशान ले जाने लगे तो एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पांव पकड़ लिया और बोला के मरने वाले ने मेरे 15 लाख देने है, पहले मुझे पैसे दो फिर उसको जाने दूंगा।_*
*_अब तमाम लोग खड़े तमाशा देख रहे हैं, बेटों ने कहा के मरने वाले ने हमें तो कोई ऐसी बात नही कही कि वह कर्जदार है, इसलिए हम नही दे सकतें मृतक के भाइयों ने कहा के जब बेटे जिम्मेदार नही तो हम क्यों दें। अब सारे खड़े है और उसने अर्थी पकड़ी हुई है, जब काफ़ी देर गुज़र गई तो बात घर की औरतों तक भी पहुंच गई।_*
*_मरने वाले कि इकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और अपनी सारी नक़द रकम जमा करके उस आदमी के लिए भिजवा दी और कहा कि भगवान के लिए ये रकम और ज़ेवर बेच के उसकी रकम रखो और मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको। मै मरने से पहले सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी। और बाकी रकम का जल्दी बंदोबस्त कर दूंगी।_*
*_अब वह अर्थी पकड़ने वाला शख्स खड़ा हुआ और सारे लोगो से मुखातिब हो कर बोला: असल बात ये है मैने मरने वाले से 15 लाख लेना नही वरन उसका देना है और उसके किसी वारिस को मै जानता नही था तो मैने ये खेल किया। अब मुझे पता चल चुका है के उसकी वारिस एक बेटी है और उसका कोई बेटा या भाई नही है।_*


इस भ्रष्ट अधिकारी #आइएएस और पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती की दुर्गति तो देखिये...
आप भी सबक लीजिये, गलत काम और भ्रष्टाचार से बचिये... यह जो फर्श पर बैठा हुआ मोटा सा आदमी है, वह सजल चक्रवर्ती है। सजल चक्रवर्ती झारखंड सरकार का मुख्य सचिव था। मुख्य सचिव का रूतबा आप जानते होंगे। रांची जैसे शहर में जिलाधिकारी था। जिलाधिकारी के तौर पर इनके कई किस्से थे, खासकर आवारागर्दी, यारगर्दी, सुंदरीगर्दी के काफी लोमहर्षक कहानियां बनायी थी इन्होंने। चारा घोटाले ये फंस गये। जेल जाने के बाद भी झारखंड के भ्रष्ट सरकारों ने इन्हें मुख्य सचिव बना डाला।
अब इस अधिकारी को चारा घोटाले में सजा हो गयी। ये जेल में बंद हैं। ये चारा घोटाले के मुकदमे की सुनवाई के लिए कोर्ट आये। पर कोर्ट की पहली मंजिल तक चढने में इनकी ऐसी दुर्गति हो गयी। इनकी दो बीवियां इनकी आवारागर्दी और सुंदरीगर्दी से परेशान होकर तलाक देकर चली गयीं। इनके पैसों और इनकी पैरवी पर राज करने वाले लोग आज इनके साथ नहीं हैं। इन्हें कोई खड़ा करने के लिए हाथ भी देने के लिए तैयार नहीं हैं। अब जिंदगी के अंतिम दिन इन्हें जेल में ही गुजारने होंगे। इसीलिए आदमी को ऐसी दुर्गति से बचने के लिए ईमानदारी और नैतिकता की जरूरत होती है।
यह मोटा सजल चक्रबर्ती है। कभी झारखण्ड का चीफ सेक्रेटरी था। चटोरा और गांठ का कच्चा। जो मिला भकोसता गया। हज़ार से लेकर करोड़ तक अंटी करता चला। पूरा मुर्ग उड़ाने के बाद आधा किलो रसगुल्ला खाता था। इसकी पहली जनानी इसे छोड़ भागी। क्यों न भागती। रात को बिस्तर पर उसे लगता, कि किसी ने उसके ऊपर गर्म आटे की बोरी रख दी हो। फिर दूसरी शादी की। वह इसकी जमा जथा ले भागी।
इसके पास बचे सिर्फ नोटों के बोरे। लेकिन उनका क्या करता। क्या जनानी की जगह नोट की बोरी के साथ सोता रात को? करना परमात्मा का यह हुआ, कि चारा घोटाला में धरा गया। अदालत में पेशी को आया, तो सीढ़ी न उतर पाया। घिसट कर ग्राउंड फ्लोर पर आया, और बैठ गया। आज इसके साथ कोई नहीं। यह बेसिकली एक कुली है। क्योंकि इसका वेट 150 kg है। यह हर समय 80 किलो extra वजन ढोता फिर रहा है। मेरे सूबे में भी एक cs ऐसा ही था। वह इतना मोटा तो न हुआ, पर कर्म उसके भी ऐसे ही थे। लास्ट में एक cm के पैसे लेकर भागा। अब कोढ़ी की तरह अकेला रहता है।
वरिष्ठ पत्रकार विष्णु गुप्त और राजीव नयन बहुगुणा की एफबी वॉल से
कासगंज मामले में ऐसी चर्चा तेज है की घटना को करने के लिये गुंडा मजहब ने दो तरफा तैयारी कर रखी थी।
घटना का मास्टरमाइंड मोहम्मद मुनाजिर रफी नामक एक वकील है। जिसने कासगंज में तिरंगा यात्रा पर हमला करने के लिये 500 लङकों को तैयार कर रखा था। और अपना पक्ष मजबूत दिखाने के लिये तिरंगा यात्रा के रास्ते में ही गणतंत्र दिवस मनाने का नाटक किया।
उसे यह पता था की इस घटना के बाद हिन्दू ध्रुवीकरण हो सकता है। अतः मिडिया में पुरा दोष हिन्दू पक्ष पर डालने की भी तैयारी कर लिया। इसमें उसने गुंडा मजहब के प्रभावशाली पत्रकार जावेद मंसुरी को साथ लिया। जिसने घटना के बाद विभिन्न चैनलों को गलत जानकारी दिया।
जावेद मंसुरी नामक पत्रकार ने गलत जानकारी देकर कुछ मिडिया चैनलों यथा एबीपी न्यूज़ इत्यादि को गुंडा मजहब का स्पोकपर्सन बना दिया।
पत्रकार जावेद मंसुरी एवं वकीव मुनाजिर रफी की साठगांठ से गुंडा मजहब ने हिन्दुओं की हत्या भी कर दी, गणतंत्रदिवस मनाने का नाटक करके देशभक्त भी बन गये और तमाम चैनलों को मिसलीड करके पीङीत पक्ष भी बन गये।


चीन ने कहा, मोदी सरकार के आने के बाद से बढ़ रही भारत की जोखिम लेने की क्षमता !
डोकलाम में भारत के दबाव में पीछे हटने को मजबूर हुए चीन ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। चीन ने कहा है कि मोदी सरकार में भारत की विदेश नीति काफी जीवंत और मुखर हुई है। चीन के एक प्रमुख सरकारी थिंक-टैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत की जोखिम लेने की क्षमता बढ़ रही है। चाइना इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज (CIIS) के उपाध्यक्ष रोंग यिंग ने कहा कि पिछले तीन साल से ज्यादा समय में भारत की डिप्लोमैसी काफी दृढ़ हुई है।
चीन के विदेश मंत्रालय से संबद्ध थिंक-टैंक के अधिकारी ने कहा कि भारत ने काफी अलग और अद्वितीय 'मोदी डॉक्ट्रीन' बनाई है। नए हालात में एक महाशक्ति के तौर पर भारत के उभार की यह एक रणनीति है। CIIS जर्नल में लिखे एक लेख में ये बातें कही गई हैं। मोदी सरकार पर किसी भी चीनी थिंक-टैंक द्वारा इस तरह की यह पहली टिप्पणी है। रोंग बतौर चीनी राजनयिक भारत में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
उन्होंने काफी गहराई से भारत के चीन, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंधों और अमेरिका व जापान के साथ घनिष्ठ रिश्तों की समीक्षा की है। उनका कहना है कि मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति काफी मुखर होती जा रही है, हालांकि इससे पारस्परिक लाभ हो रहा है। भारत-चीन संबंध पर रोंग ने कहा कि जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, दोनों देशों के बीच संबंध स्थिर बने हुए हैं।

रोंग ने मोदी द्वारा शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशिया के सभी पड़ोसी देशों के नेताओं को बुलाने की उनकी नीति की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि पुराने प्रशासन की तुलना में मोदी डॉक्ट्रीन ने अपनी अथॉरिटी के साथ ही पड़ोसियों को लाभ पहुंचाने पर फोकस किया। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव बढ़ाने की भी कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को लेकर भारत सख्त है। मोदी सरकार को पीओके से भारत के खिलाफ काम कर रहे आतंकियों के बेस पर हमला करने में थोड़ी भी हिचकिचाहट नहीं हुई। उन्होंने म्यांमार सीमा पर भारतीय सैनिकों की कार्रवाई का भी जिक्र किया।

बचपन की एक सीख याद आ गयी .. जब कभी रोते हुए घर के बाहर आते थे तो दरवाजे पर बैठे बड़े बुजूर्ग कहते थे .. बेटा घर के बाहर नही रोते .. वरना शैतान तुम्हारे पास आकर रोने लगता है .. शैतानो को इंसानों के रोने की आवाज आकर्षित करती है ..
आज ये फोटो देखा तो बचपन के बड़े बुजुर्गो की सीख याद आ गयी ... सोचिये ..इन्हें सैकड़ो इस्लामिक देशो में चल रहे मारकाट गलत नही गलते .,. इन्हें आईएसआईएस द्वारा शियाओ, कुर्दों, यजीदीयो का नरसंहार गलत नही लगता .. ये १००० लोगो के हत्यारे याकूब मेमन को फ़ासी दिए जाने का विरोध करते है ... ये कमलेश तिवारी को सरेआम फांसी देने के लिए सैकड़ो शहरों में दंगे करते है ... फिर रोहित वेमुला पर घडियाली आंसू बहाते है ...
इसलिए हे इंसानों ... घर के बाहर मत रोआ करो .. वरना शैतान तुम्हारे पास आकर घडियाली आंसू रोयेगा और फिर तुम्हारे अंदर प्रवेश कर जायेगा ..
Jitendra Pratap Singh
जब तक आप इसे साझा नहीं करते, तब तक केवल आप ही इसे देख सकते हैं

Tuesday 30 January 2018




चापलूसों_भांडों_विदूषकों....मोदी गया....तो देश तुम्हे माफ नहीं करेगा.....

मोदीजी को शपथ लिए महज़ एक पखवाड़ा हुआ था, जिओ टीवी,पाकिस्तान की एक डिबेट में एक रिटायर्ड पाकी जनरल कह रहा था,"संभल जाओ,पाकिस्तानियों, दहशतगर्दी को लगाम दो, अब भारत की गद्दी पर मनमोहन सिंह नहीं,मोदी बैठा है,छोड़ेगा नहीं" मोदी की उस वक्त भारतीय उपमहाद्वीप में छवि ऐसी थी कि पाकिस्तानियों, भारत मे सेकुलर गद्दारों को भी सांप सूंघा हुआ था ....
आह भारत ! तेरी किस्मत ! आज एक योद्धा को सत्ता-पिपासु-धर्मनिरपेक्ष बनते और सर्वत्र समझौते करते देखना एक दुःस्वप्न के साकार होने जैसा है ! #आपने बड़ी मेहनत और ईमानदारी से बनाई अपनी 12 साल की तपस्या को क्यों तिरोहित होने दिया ?....
दरअसल नरेंद्र भाई नहीं हारे,भारत और हिंदुत्व हार गया ! वह हिंदुत्व,जिसने तुम्हे खड़ा किया था,सर्वोच्च शक्तियां दी थी......तुम्हे न्यायालयों,मीडिया और कश्मीरी भेड़ियों से समझौते करते और उनके हिसाब से चलते देखना, तुम्हारा #अटल_बिहारी-'देवेगौड़ा' बन जाना है ! मनमोहन सिंह जैसे निकम्मों तक ने कभी जजों,मीडिया और अपने विरोधियों के आगे समर्पण नहीं किया,बेशक यूपीए सरकार धूर्त्तम-भ्रष्टतम सरकार थी......
उस शासन व्यवस्था को क्या कहा जाये जो हर रोज़ शाम को होने वाली राजनीतिक टीवी बहसों से निर्देशित होती हो...मुल्ले-मौलवी,कश्मीरी,पाकिस्तानी और तमाम देश के दुश्मन, मीडिया घरानों के माध्यम से 'राष्ट्रवादी सरकार' को परिचालित करते हों .....किसी भी संस्थान पर आपका नियंत्रण क्यों नही है,मोदी साहेब ? आपका सूचना प्रसारण मंत्री देश के दुश्मनों को इतना बड़ा मंच क्यों प्रदान करता है ?.....
नरेंद्र भाई ,आपको ज्ञात होना चाहिए था कि सत्ता के सिंघासन के नीचे हमेशा चापलूस,भाट और झूठी तारीफ करने वाले भांड छुपे होते हैं,जो कभी राजा को उसकी त्रुटियों , विद्रोही हो रही प्रजा की भावनाओं से अवगत नहीं होने देते ! दुर्भाग्य से आपके मंत्रिमंडल से लेकर फेसबुक तक मे ऐसे भांड छुपे बैठे हैं जो आपकी छुटपुट सफलताओं को नमक-मिर्च लगाकर आपके गौरव गीत गाकर आपको खुश करते रहते हैं ! जब तक धधकती सीमाएं हैं,देशद्रोही कश्मीरी,रोहिंग्या और भारत मे बैठे पाकिस्तान समर्थक ,प्रतिवर्ष 3-4 करोड़ की दर से बढ़ती जनसंख्या और घुसपैठ पर अंकुश करने के प्रयास नहीं दिखते......आपका गद्दी पर बैठना उतना ही निररुद्देश्य है जितना मनमोहन का गद्दी पर दस साल तक डटे रहना था......
कल श्रीनगर के डिप्टी ग्रांड मुफ़्ती ने मुस्लिमों के 17 करोड़ हो जाने के आधार पर पुनः भारत के विभाजन की मांग रखी ! कोई बात नहीं,कश्मीरी भेड़ियों से आप इससे ज़्यादा उम्मीद कर भी नहीं सकते....मगर जिस तरह इस मांग पर टीवी चैनलों पर खुल के डिबेट होने लगी,डिबेटों में पाकिस्तानी,कश्मीरी अलगाववादी और विभाजन के समर्थकों को खुल कर स्थान दिया गया ....यह आपके और सूचना प्रसारण मंत्री का एक बार पुनः फेल्योर और निकम्मापन है ! इसे खुलेपन का नाम मत दीजिए.....
याद रखिए,1946 के पूर्वार्ध तक कांग्रेसी, प्रथक पाकिस्तान की मांग का उपहास करते थे..... बाद में 30 लाख हिंदुओं की लाशों पर पाकिस्तान बना ......आज कश्मीर से त्रिपुरा,मणिपुर,उत्तराखंड और पुडुचेरी तक मुस्लिम बेहद सक्षम रूप से देश के चारों कोनों में मौजूद हैं .....
मोदी साहेब ! हमे विकास नहीं....भारत का अस्तित्व चाहिए,भारत माता की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा अक्षुष्ण चाहिए ,जो फिर खतरें में दिख रही है....
Pawan Saxena
ओशो
रेगिस्तान में कई ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया।
निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया मगर एक ऊंट के लिए खूंटी और रस्सी कम पड़ गई। सराय में खोजबीन की, पर व्यवस्था हो नहीं पाई।
तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ।
यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था, इसलिए उसने वैसा ही किया। झूठी खूंटी गाड़ी गई , चोटें की गईं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया।
सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं, सभी ऊंट उठकर चल पड़े, पर एक ऊंट बैठा रहा। मालिक को आश्चर्य हुआ – अरे, यह तो बंधा भी नहीं है, फिर भी उठ नहीं रहा है।
सराय के मालिक ने समझाया– तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है। जैसे रात में व्यवस्था की, वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ। मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं, अभिनय किया और रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा।
न केवल ऊंट बल्कि मनुष्य भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता।
मनुष्य बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से, मिथ्या सोच से, विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। वह दोहरा जीवन जीता है। उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है।
इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे, लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे। बिना उद्देश्य मीलों तक चलना सिर्फ थकान, भटकाव और नैराश्य देगा, मंज़िल नहीं।

mediya

देश में, उल्टी सोच वाले वामपंथियों की संख्या में निरंतर इज़ाफ़ा हो रहा है। कारण है गलत बातों का प्रचार प्रसार, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया औऱ फिल्मों के माध्यम से, सरकार की कुछ गलत नीतियों से, गुंडों को खुली छूट देने से, हिंसा और अनैतिकता फैलाने वाले धारावाहिकों से और मोटी धनराशि से अधिकारियों, संस्थान प्रमुख, वकीलों और पत्रकारों की खरीद फरोख्त से। जिस देश मे ईमान का सौदा होता हो, वहाँ अच्छाई, सच्चाई और विकास का बाधित हो जाना लाज़मी है।
आज इसी दूषित वातावण का परिणाम है कि कन्हैय्या, शहला, उमर खालिद, स्वरा भास्कर, सरदेसाई, शोभा डे, भंसाली, अंजना कश्यप, और नेक नामचीन नेता और मंत्री प्रतिदिन पैदा हो रहे हैं।
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हिंदुस्तान में दंगा शुक्रवार (जुम्मा) को ही क्यों होता है..?
कुमार अवधेश सिंह
उनके घर की तलाशी में बम मिलते है तुम्हारे घर की तलाशी में
 शंख घण्टे !!...अब बजाते रहो...
कुमार अवधेश सिंह
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Sujeet Sharma
मैं गीता को ग्रंथ ही नहीं हिन्दुओं का संविधान मानता हूँ, जिसमे स्पष्ट लिखा है जब शांति के सारे मार्ग बंद हो जाये,*
*तब युद्ध करो।
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आश्चर्य हुआ सुनकर कि हिंदुस्तान के अंदर केवल मोहल्ले नहीं हैं बल्कि "मुस्लिम मुहल्ले" हैं। DM साहब का वक्तव्य है ये।
ऐसे ऐसे DM होंगे तो पहले मुस्लिम मोहल्ला, फिर मुस्लिम शहर फिर मुस्लिम राष्ट्र हो जाएगा और DM साहब अपनी सैलरी लेकर रिटायर हो जाएंगे। भुगतेंगी आने वाली पीढ़ियाँ। 56 इस्लामिक देश इसी अकर्मण्यता से ही बने हैं।
Divya Srivastava
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 अपने देश मे मुस्लिम मोहल्ले होते हैं जिसे पुलिस प्रसासन सेंसिटिव इलाका मानते हैं...कारण ये लोग संगठित हो कर रहते है....ठीक है अब हिन्दू इलाकों में मुस्लिमों की जो मस्जिद बगैरह हैं उसे कम से कम अपने मोहल्ले में लें जाएं नहीं तो हिन्दू एक हो कर उन्हें ढहा दें...तभी उनको समझ मे आये गा-----Shyamsunder Gupta
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अगर आज़ादी के 70 साल बाद भी इस देश में इन्हें(शांतिदूत) राष्ट्रगान नहीं गाना, राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराना, देश के संविधान को नहीं मानना, वन्दे मातरम से नफरत करना है...तो फिर इन्हें मतदान का अधिकार क्यो, क्या ये देश की जनता से धोखा नही...?
कुमार अवधेश सिंह
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इंजीनियरो से अनुरोध हैं कि
कोई ऐसी तकनीक विकसित करें
जिससे TV में हाथ डालकर कुछ पत्रकारों को खींचकर झापड मारा जा सके...Shersingh Rajput
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#वैसे एक बात तो है, 50 करोड़ लोगों को 5 लाख तक हेल्थ इंश्योरेंस और लगभग 60 करोड़ किसानों की फसल पर डेढ़ गुना कीमत की चर्चा कोई नहीं करना चाहता.......
#देश के 3% टैक्स पेयर के प्रति माह 150 - 200 रुपए कम क्यों नहीं किए गए, उसके लिए वह पंचर लगाने वाले भी चिंतित दिखे जो टैक्स से बचने के लिए सिगरेट बीड़ी ना पीकर, टायर फूंक कर नशा करते हैं......
#अभी हेल्थ स्कीम की तस्वीर स्पष्ट नहीं है कि कौन-कौन इसके दायरे में आएगा लेकिन सोचें कि हम में से कितने लोग हैं जो बीमार होने पर ₹ 5 लाख तक खर्च कर सकते हैं......
#यह भी देखें कि यदि किसी फसल की लागत एक लाख रुपए आती है और उस पर डेढ़ लाख रुपए तक मिलने की सुरक्षा मिलती है, तो अमूमन साल में दो या तीन बार फसल तैयार होती है मतलब आपके लगाए एक लाख रुपए साल के अंत में मानकर चलें कि दो लाख तो हो ही जाएंगे......
#सही तरह से इस स्कीम ने काम किया तो यह कितनी बड़ी सुरक्षा है, और किसानों के लिए तो पूंजी की भी समस्या नहीं है किसान क्रेडिट कार्ड से लोन मिल जाता है.......
#अब सोचिए यदि कोई किसान भी नहीं है तो भी अगला आदमी मजदूरी कर रहा है, पकोड़े बेच रहा है, टिंडे बेच रहा है, या रिक्शा खींच रहा है, तो भी उसे सरकारी दुकानों से सस्ता राशन मिल रहा है या उसके बदले में पैसे उसके अकाउंट में ट्रांसफर हो रहे हैं.......
#उसके लिए भी नई खुशखबरी यह है कि उसे इलाज के लिए भी सरकार की तरफ से ₹500000 तक का बीमा मिलेगा.......
#कुल मिलाकर यह तय है कि आपके बारे में सरकार सोच लेगी, आप अपने काम धंधे के बारे में सोचिए....
Ashish Tiwari
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· भाजपा को भी राजस्थान में शर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाणपत्र मिल गया। बधाई हो ....शम्भूलाल रेगर....DeshDeepak Singh

















ज्ञान-विज्ञान और ईश्वर का ध्यान
गीता के सातवें अध्याय का शुभारम्भ करते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे पार्थ! मुझ में मन को आसक्त करके अर्थात कर्मफल की आसक्ति के भाव को छोडक़र और संसार के भोगों या विषय वासनाओं को त्यागकर जिस प्रकार तू मुझे जान सकता है-अब उस विषय में सुन।
इस स्थान पर श्रीकृष्ण जी कह रहे हैं कि अब अर्जुन मैं तुझे वह रहस्य की बात बताता हूं- जिसके माध्यम से तू मुझे असन्दिग्ध रूप से और पूर्णत: जान सकता है। यदि तू मेरे बताये अनुसार चलेगा और ईश्वर को जानने का प्रयास करेगा, तो उसे जानकर फिर कुछ और जानने के लिए तेरे पास शेष नहीं रहेगा। उसे जानकर सब कुछ जान जाएगा। संसार के सारे शास्त्र और उनमेें निहित ज्ञान ठीक है कि उसे बताने वाले हो सकते हैं, और उनके पठन-पाठन में आनन्द की प्राप्ति होती है, परन्तु जो आनन्द उसके सीधे दर्शन करने से मिलता है, उससे साक्षात्कार करने से मिलता है, वह आनन्द इस प्रकार के आनन्द से बहुत अधिक है। इसलिए मैं तुझे 'विज्ञान सहित ज्ञान' बतलाऊंगा। तू उसे ध्यान से सुन
आत्मा का परिष्कार कर सुन मानव मतिमन्द।
मोक्ष मिलै ऊंचा चढ़ै मिल जाए दिव्यानन्द।।
शंकराचार्य जी ने शास्त्रगत ज्ञान को ज्ञान तथा आत्मसाक्षात्कार से प्राप्त ज्ञान को विज्ञान कहा है। इसी ज्ञान-विज्ञान को श्रीकृष्णजी यहां स्पष्ट करने लगे हैं। वह कहते हैं कि इस संसार में हजारों मनुष्यों में से कोई एक व्यक्ति ऐसा होता है-जो योग की सिद्घि करता है। श्रीकृष्ण जी के समय यह संख्या हजारों में से एक थी और आज इसे आप लाखों में से एक कह सकते हैं। इससे पता चलता है कि ज्ञान-विज्ञान की श्रेणी को पाने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आयी है। हमारे ऋषियों ने भौतिक विज्ञान को ज्ञान-विज्ञान की श्रेणी में नहीं माना है। इसलिए आज के भौतिक विज्ञान को ज्ञान-विज्ञान मानकर गर्व में फूले हुए व्यक्ति ज्ञानी-विज्ञानी नहीं कहे जा सकते और ना ही योगसिद्घ महापुरूष ही कहे जा सकते हैं। आज की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को महापुरूष या योगसिद्घ महामानव बनाना न होकर बड़ा 'बिजनैसमैन' बना देना है। यही कारण है कि हर क्षेत्र में आज 'बिजनैस' घुस गया है। तथाकथित योगसिद्घ बाबा भी 'बिजनैस' कर रहे हैं। जिससे भारत के अध्यात्म को भी बदनामी झेलनी पड़ रही है। श्रीकृष्ण जी ऐसे योग के विरूद्घ हैं, वे उस योग को मानव जीवन के लिए उपयोगी मानते हैं जो मनुष्य को मोक्ष अभिलाषी बनाकर अर्थात मुमुक्षु बनाकर परमपद की प्राप्ति कराता है।
श्रीकृष्ण जी कह रहे हैं कि हजारों मनुष्यों में से कोई एक व्यक्ति योगसिद्घ होता है अथवा योग सिद्घ होने का प्रयास करता है। जो व्यक्ति अपने इस प्रयास में सफल हो जाते हैं उनमें से भी कोई एक ही मेरे तात्विक रूप को जान पाता है। कहने का अभिप्राय है कि ईश्वरभक्त हो जाना भी ईश्वर के तात्विक स्वरूप को जानने के लिए पर्याप्त नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए इससे भी आगे बढऩा होता है। ईश्वरभक्त पीछे रह जाता है और वह अपने अगले स्वरूपों में प्रविष्ट होता जाता है। वह योगसिद्घ बनता है और योगसिद्घ बनकर आत्मसाक्षात्कार करता है और उसी में ईश्वर से भी साक्षात्कार कर लेता है। योग की सीढिय़ां एक ईश्वरभक्त को निरन्तर आगे ही आगे लेती जाती हैं। उसका पहला स्वरूप पीछे छूट जाता है और वह आनन्द के सागर में डुबकी लगाने के लिए आगे बढ़ जाता है।
उस आनन्द सागर में नित्य डुबकी लगाना अलग बात है और उस आनन्द सागर में लीन हो जाना अलग बात है। जो डुबकी लगा रहा है-योग सिद्घ तो वह भी हो गया, पर वह डुबकी लगा रहा है और बाहर निकल रहा है। बस, उसका यह बाहर निकलना ही उसे 'बाहर की हवा' लगा देता है। यह 'बाहर की हवा' ही वह 'ऊपरी हवा' है जो उसको ईश्वर के तात्विक रूप को प्रकट नहीं होने देती है अर्थात उसमें निरन्तर लीन नहीं होने देती है। लोग कहा करते हैं कि अमुक व्यक्ति पर 'ऊपरी हवा' है या अमुक व्यक्ति को 'बाहर की हवा' लग गयी है। लोग ऐसा कह तो देते हैं पर उसका अर्थ नहीं जानते।
कृष्ण जी कह रहे हैं कि ईश्वर का तात्विक रूप तो प्रकृति के पंचतत्वों और मन, बुद्घि व चित्त में बंटा है। पर यह मेरा ऊपरी रूप है। इसे जड़ रूप भी कहा जा सकता है। यह तो सम्भव है कि दिखायी दे जाए, पर इससे अलग भी मेरा 'पर' रूप है। जो जड़ जगत में न मिलकर चेतन जगत में मिलता है। मेरा यह 'पर' रूप मेरे अपर रूप से सर्वथा भिन्न है। मैं अपने इसी 'पर' रूप से इस संसार को धारण करता हूं। यद्यपि ईश्वर का निज स्वरूप इस 'पर' और 'अपर' से भी परे है।
श्रीकृष्णजी कहते हैं कि संसार के सब प्राणी इस 'पर' और 'अपर' से ही पैदा होते हैं। जड़ जगत और चेतन जगत अर्थात चराचर जगत की उत्पत्ति इन्हीं से होती है। प्रकृति और जीव से यह संसार चल रहा है। पर मेरा निज स्वरूप अर्थात ईश्वर इन सबसे अलग है। हां, उसके विषय में यह भी सत्य है कि वह ईश्वर ही इस जगत का मूल है।
इस मूल को श्रीकृष्ण जी 'प्रणव' कहते हैं। 'प्रणव' ही इस जगत का प्रलय है अर्थात अन्त है। इस प्रकार ईश्वर, जीव और प्रकृति के अजर-अमर होने के वैदिक मत को श्रीकृष्णजी यहां स्पष्ट कर जाते हैं। श्रीकृष्णजी को गीताकार ने वैदिक प्रवक्ता के रूप में स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली है। यहां पर यह भी ध्यान देने वाली बात है कि जैसे आत्मा का साक्षात्कार कराने में यह शरीर सहायक होता है-वैसे ही परमात्मा का दर्शन कराने में यह जड़ चेतनमयी सृष्टि सहायक होती है।
श्रीकृष्णजी कह रहे हैं कि मुझसे परे ऐसा कुछ भी नहीं है जो जानने के लिए शेष रह जाता हो। संसार के सारे ज्ञान-विज्ञान की सीमा ईश्वर में समाहित है। ईश्वर से परे कोई ज्ञान नहीं, कोई विज्ञान नहीं। जगत का सारा तामझाम उस ईश्वर में ही निहित है और उसमें ऐसा पिरोया गया है जैसे मणियां धागे में पिरोयी जाती हैं। चौथे अध्याय में श्रीकृष्णजी ज्ञान को लेकर कह आये हैं कि इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाली और कोई वस्तु नहीं है। उस ज्ञान को कालान्तर में योग के द्वारा शुद्घान्त:करण द्वारा पुरूष आत्मा से अनुभव करता है। वहीं पर यह भी स्पष्ट किया गया है कि श्रद्घावान ज्ञान प्राप्ति में लगा रहने वाला व्यक्ति और इन्द्रियों को वश में करने वाला व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करके तत्क्षण परमशान्ति को प्राप्त हो जाता है। ज्ञान-विज्ञान की बात कहकर श्री कृष्णजी विद्या प्राप्ति की बात कह रहे हैं। विद्या में शुद्घ विज्ञान ही शेष रह जाता है। इसमें अवैज्ञानिकता और अतार्किकता के लिए कोई स्थान शेष नहीं रह जाता है। जो सत्य है, वही सत्य कहा जाता है और जो असत्य है-उसे असत्य ही कहा जाता है। महर्षि दयानन्द जी महाराज 'सत्यार्थप्रकाश' के नवम समुल्लास में कहते हैं कि जिससे पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का बोध हो वह विद्या और जिससे तत्वस्वरूप न जान पड़े अथवा अन्य में अन्य की बुद्घि होवे वह अविद्या कहलाती है।''

march sanskar

ये हैं भारत की सात सबसे कठिन परीक्षाएं...
भारत में सरकारी नौकरी, संस्था या शोध में जाने के लिए उम्मीदवारों को किसी न किसी परीक्षा का सामना करना पड़ता है. इंडिया टुडे पत्रिका ने अपनी एक रिपोर्ट में इन सात परीक्षाओं को भारत की सबसे कठिन परीक्षा कहा है.
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी)
तीन चरणों में होने वाली यूपीएससी की परीक्षा को भारत की सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है. इसमें सफल होने वाले उम्मीदवार कलेक्टर, एसपी और ग्रेड ए सेवाओं में राजपत्रित अधिकारी बनते हैं.
कॉमन एडमीशन टेस्ट (कैट)
भारत के प्रतिष्ठित बिजनेस-स्कूलों के लिए होने वाली इस परीक्षा को देश की दूसरी सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है. इसमें चयनित छात्र इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में दाखिला लेते हैं, जहां से एमबीए करने के बाद उन्हें लाखों की नौकरियां मिलती हैं.
आईआईटी-ज्‍वांइट एंट्रेंस टेस्‍ट
देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) के लिए होने वाली इस परीक्षा को भी भारत की मुश्किल परीक्षाओं में से एक माना जाता है. लगभग हर 45 पर एक उम्मीदवार का इसमें चयन होता है.
ग्रेजुएट एप्टीट्यूट टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट)
देश में पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर होने वाली इस परीक्षा के जरिए इंजीनियरिंग, तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा और अन्य सरकारी स्कॉलरशिप के रास्ते खुलते हैं. गेट में प्राप्त स्कोर तीन साल की अवधि तक मान्य होता है.
कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (क्लेट)
देश में कानून की पढ़ाई कराने वाली 16 नामी नेशनल लॉ यूनिर्सिटीज के लिए यह परीक्षा होती है. इसमें चयनित छात्र कानून में स्नातक और स्नाकोत्तर की पढ़ाई करते हैं.
यूजीसी-नेशनल एलिजिबल्टी टेस्ट (नेट)
यह परीक्षा साल में दो बार होती है. इसमें चयनित कुछ उम्मीदवारों को रिसर्च फेलोशिप और असिस्टेंट लेक्चररशिप मिलती है. यह परीक्षा देश भर में 83 विषयों में होती है.
नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए)
भारतीय रक्षा सेवाओं के लिए होने वाली यह परीक्षा भी कठिन परीक्षाओं में से एक हैं. इस परीक्षा से थल सेना, वायु सेना और नौ सेना के लिए उम्मीदवारों का चयन होता है. लिखित परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों को बाद में साक्षात्कार समेत अन्य टेस्ट भी देने होते हैं.

Monday 29 January 2018

बड़ी खबर: जामा मस्जिद में भद्रकाली हिंदू मंदिर को लेकर वास्तव में एक चौंकाने वाला सबूत सामने आया है, जो आपका मन बदल देगा !
Published on January 25, 2018 by Preeti Som
जामा मस्जिद 1424 सीई के दौरान अहमदाबाद (मूलतः कर्णावती) में अहमद शाह द्वारा बनाया गया था, मूलतः देवी भद्रकाली का एक हिंदू मंदिर है। अहमदाबाद शहर का मूल नाम भिन्न-भिन्न युगों में भद्र, कर्णावती, राजनगर और असवल था। 7 वीं सदी से 16 वीं शताब्दी के रूप में शुरू होने पर, भारत को अनगिनत इस्लामी आक्रमणकारियों पर हमला किया गया, जिन्होंने धन को लूट लिया और मध्यस्थता हॉल, हिंदू मंदिर, वैदिक अनुसंधान केंद्र, संस्कृत गुरुकुल और विश्वविद्यालयों सहित कई विरासत स्थलों को नष्ट कर दिया।
Jama Masjid was built by Ahmad Shah in Ahmedabad (originally in Karnavati) during 1424 CE, originally a Hindu temple of Goddess Bhadrakali. The original name of Ahmedabad city was Bhadra, Karnavati, Rajnagar and Asval in different eras. Upon the start of the 7th century to the 16th century, India was attacked by countless Islamic invaders, who looted money and destroyed many heritage sites including mediation halls, Hindu temples, Vedic research centers, Sanskrit Gurukul and universities. done.
जामा मस्जिद विभिन्न आक्रमणकारियों द्वारा हिंदुओं की बहुत पहचान को नष्ट करने के लिए क्या किया गया है, इसका एक जीवंत सबूत है।
Jama Masjid is a vivid proof of what has been done to destroy the very identity of Hindus by various invaders.
हम किसी भी पूर्वाग्रह से नहीं कह रहे हैं, वास्तव में, हमने बहुत महत्वपूर्ण शोध कार्य एकत्र किए हैं और आपके सामने ये चौंकाने वाला सबूत लाए हैं जो जामा मस्जिद के बारे में हमेशा के लिए अपना मन बदल देगा।
We are not asking any prejudice, in fact, we have collected very important research work and have brought shocking evidence in front of you that will change your mind forever about the Jama Masjid.
इन चौंकाने वाला सबूत देखें जो जामा मस्जिद को स्पष्ट रूप से देवी भद्रकाली के एक हिंदू मंदिर के रूप में पहचानते हैं
Check out these shocking proof which clearly identify the Jama Masjid as a Hindu temple of Goddess Bhadrakali.
भद्रा का नाम देवी के बाद किया गया था, जिसका मंदिर राजपूत परमार ने मालवा (राजस्थान) के राजाओं द्वारा बनाया था, जिन्होंने इस क्षेत्र को 9वीं -14 वीं शताब्दी के बीच शासन किया था और हम किसी भी धर्म या संस्कृति के लिए किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से यह नहीं कह रहे हैं,
The name of Bhadra was done after the Goddess, whose temple was built by Rajput Parmar kings of Malwa (Rajasthan), who ruled this region during the 9th-14th century and we can not do any religion or culture for any It’s not saying by type bias,
कुंडलिनी, खगोलीय नर्तकियों और घंटियों का प्रतिनिधित्व करने वाले फूलों और पेसली रूपांकनों, कमल के फूलों और लताएं, मंडल, हाथियों, तार वाले सांपों की तंतुओं की नक्काशियां, मंदिर के परिसर की रेखा के 100 से अधिक जीवित खंभे पर उत्कीर्ण होती हैं।
The carvings of flowers and pesli motifs, lotus flowers and veneers, divisions, elephants, strings of wire snakes, representing the Kundalini, celestial dancers and bells, engraved on over 100 living pillars of the temple complex.
यदि यह मूल रूप से सामूहिक प्रार्थना के लिए एक बड़े हॉल के साथ निर्मित एक मस्जिद माना जाता है, तो बीच में इतने सारे खंभे होने का क्या उद्देश्य होगा?
If it is originally considered a mosque built with a large hall for collective prayer, then what will be the purpose of having so many pillars in between?
अधिकतर खंभे ठेठ हिंदू मंदिर शैली में बनाये गये हैं
मस्जिदों में बड़े हॉल हैं या खुले स्थान हैं जहां कई लोग नमाज (प्रार्थना) एक समय में दे सकते हैं।
Most of the pillars have been made in the typical Hindu temple style
There are large halls in the mosques or open spaces where many people can offer namaz (prayer) at one time.
नमाज की पेशकश करते समय खंभे एक रुकावट नहीं बनाते?
कई हिंदू मंदिर खण्ड आमतौर पर पुराणों, वेदों और ऐतिहासिक रामायण और महाभारत जैसे ऐतिहासिक कहानियों से बनाये जाते हैं।
मूल भद्र किला अभी भी विकृत आकृति में मौजूद है।
जामा मस्जिद भद्रा किला क्षेत्र के बाहर स्थित है, जो किशोर दरवाजा से मानेक चौको तक फैले सड़क के दक्षिण की ओर स्थित है।
Pillars do not make a blockage while offering prayers?
Many Hindu temples are usually made from historical stories such as Puranas, Vedas and historical Ramayana and Mahabharata.
अहमदाबाद को मुजफ्फरदाय वंश के अहमद शाह 1 के नाम पर रखा गया था जिन्होंने 1411 में कनवती पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने गुजरात सल्तनत की नई राजधानी के रूप में अहमदाबाद की स्थापना की और साबरमती नदी के पूर्वी तट पर भद्रा किला बनाया।
Ahmedabad was named after Ahmad Shah I of Muzaffar Dynasty who had captured Kanavati in 1411. He founded Ahmedabad as the new capital of Gujarat Sultanate and built Bhadra fort on the eastern bank of Sabarmati river.
जामा मस्जिद अहमदाबाद भद्रकाली मंदिर प्रवेश
इस्लाम सख्ती से मूर्ति पूजा पर रोक लगाता है और शारियों के कानून के तहत मना किया जाता है और उसे दंडित किया जाता है या भगवान को एक मूर्ति, आकृति, मूर्ति, पशु आदि का भौतिक प्रतिनिधित्व या स्वरूप दे सकता है। फिर, कैसे इस विस्तृत रेशों की कढ़ाई के खंभे और इस निर्माण की छत पर मौजूद हैं? मस्जिद पीले बलुआ पत्थर के साथ बनाया गया है, और जटिल एक बड़े आयताकार आंगन 75 मीटर लंबी और 66 मीटर चौड़ी पर केंद्रित है। कोई तीन प्रवेश द्वारों के द्वारा अदालत में प्रवेश करता है, प्रत्येक पक्ष के केंद्र में एक।
Jama Masjid Ahmedabad Bhadrakali Temple Entrance
Islam strictly prohibits idol worship and is forbidden under the laws of the Shariah and is punished or can give God physical representation or form of an idol, figure, idol, animal etc. Again, how are the pillars of embroidery of this elaborate fiber and on the roof of this building? The mosque is built with yellow sandstone, and the complex is centered on a large rectangular courtyard 75 meters long and 66 meters wide. One enters the court through three entrances, one at the center of each side.
प्रार्थना कक्ष आयताकार भी है और चार गुंबदों से आच्छादित है। इसकी इंडो-सरैसेनिक वास्तुकला में, मस्जिद में कई समन्वित तत्व भी होते हैं जो दर्शकों को जरूरी नहीं दिखाते हैं: कुछ केंद्रीय गुंबद कमल के फूलों की तरह खुदा होते हैं, जैन मंदिरों के ठेठ गुंबदों से संबंधित होते हैं; और कुछ खंभे एक श्रृंखला पर फांसी की घंटी के रूप से बनाये जाते हैं, जो कि अक्सर हिंदू मंदिरों में घूमते घंटियों के संदर्भ में होते हैं।
The prayer room is also rectangular and covered with four domes. In its Indo-Saracenic architecture, there are also many integrated elements in the mosque which do not necessarily show the audience: some central dome are inscribed like lotus flowers, Jain relates to typical domes of temples; And some pillars are made in the form of a hanging bell on a chain, which are often in the context of bells roaming in Hindu temples.
सफेद खुले आंगन, सफेद संगमरमर के साथ फर्श पर, विशाल अरबी सुलेख के साथ चित्रित एक कॉलोनैड द्वारा बज है, और केंद्र में अनुष्ठान के लिए एक टैंक है।
The white open courtyard, on the floor with white marble, is ringed by a colonnade painted with a huge Arabic calligraphy, and there is a tank for ritual at the center.
मस्जिद और आर्केड खूबसूरत पीले बलुआ पत्थर के बने होते हैं और इस जटिल विवरण से नक्काशी की जाती है कि इस अवधि के मस्जिदों के लिए जाना जाता है। जबकि मुख्य धनुषाकार प्रवेश द्वार की ओर झुकते हुए दो प्रमुख मीनारों 18 9 1 में आए भूकंप में गिर गए थे, उनके निचले हिस्से अब भी खड़े हैं।
Mosque and arcade are made of beautiful yellow sandstone and carved with this complex description that it is known for mosques of this period. While the two main towers, bowing towards the main arched gateway, fell into the earthquake in 1891; the lower part of them was still standing.
मुख्य प्रार्थनालय में छत के समर्थन में 260 स्तंभ हैं, इसके 15 गुंबदों के साथ, हॉल में एक खूबसूरत भूलभुलैया और छाया के चलते चलते हैं।
The main prayer hall has 260 columns in support of the roof, with its 15 domes, walk in the hall for a beautiful maze and shadow.
प्रार्थना की दीवार, क्यूबा को सजाया गया है। छिद्रित पत्थर की स्क्रीन (‘जलीस’) केंद्रीय खुलने के दो खंभे के बीच स्थित हैं। मुख्य प्रवेश द्वार दो स्तंभों द्वारा तैयार किया गया है, दो मीनारों (‘थरथराना मीनारों’) के अवशेष जो 1819 और 1957 के भूकंपों द्वारा नष्ट किए गए थे।
The wall of prayer, Cuba is decorated. The perforated stone screen (‘jalis’) is located between the two pillars of the central opening. The main entrance is prepared by two pillars, the remnants of two towers (‘shudder miners’) which were destroyed by the earthquake of 1819 and 1957.
कुंडलिनी, खगोलीय नर्तकियों और घंटियों का प्रतिनिधित्व करने वाले फूलों और पेसली रूपांकनों, कमल के फूलों और लताएं, मंडल, हाथियों, तार वाले सांपों की तंतुओं की नक्काशियां, मंदिर के परिसर की रेखा के 100 से अधिक जीवित खंभे पर उत्कीर्ण होती हैं।
The carvings of flowers and people motifs, lotus flowers and veneers, divisions, elephants, strings of wire snakes, representing the Kundalini, celestial dancers and bells, engraved on over 100 living pillars of the temple complex.
यदि यह मूल रूप से सामूहिक प्रार्थना के लिए एक बड़े हॉल के साथ निर्मित एक मस्जिद माना जाता है, तो बीच में इतने सारे खंभे होने का क्या उद्देश्य होगा? अधिकतर खंभे ठेठ हिंदू मंदिर शैली में बनाये गये हैं
If it is originally considered a mosque built with a large hall for collective prayer, then what will be the purpose of having so many pillars in between? Most of the pillars have been made in the typical Hindu temple style
मस्जिदों में बड़े हॉल हैं या खुले स्थान हैं जहां कई लोग नमाज (प्रार्थना) एक समय में दे सकते हैं। नमाज की पेशकश करते समय खंभे एक रुकावट नहीं बनाते? कई हिंदू मंदिर खण्ड आमतौर पर पुराणों,
There are large halls in the mosques or open spaces where many people can offer namaz (prayer) at one time. Pillars do not make a blockage while offering prayers? Many Hindu temple segments are usually the Puranas