Sunday 30 December 2018

patr-vishesh

बाप बोफोर्स चोर,
माँ अगस्ता चोर,दोनों माँ बेटे नेशनल हेराल्ड चोर और
फेसबुक पे भौंकने वाले
उनके चमचें चिंदीचोर..!!  -  n k sharma
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,सुप्रीम कोर्ट जितना राममंदिर मसले जो खींच रहा है..उतना ही भारतीय न्याय व्यवस्था का नंगापन उजागर हो रहा है..,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जो प्रचंड पंडे ये धमकी देते है की अगर मोदी ने मंदिर नही बनाया तो मोदी की खैर नही //
.ऐसे उत्तंड झंडे पंडे .स्पाक्स नोटा वाले ये बताये की क्या राहुल गांडी मंदिर बनवायेगे.या हिन्दुओ पर गोली चलवाने वाला मुलायम .या उसका लौंडा अखिलेश या जेहादी ममता बानोया फिर देश विरोधी कम्युनिस्ट मंदिर बनवा देंगे प्यारे झंडे पंडो उत्तर अवश्य देना ! - पवन अवस्थी
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कोर्ट का फैसला…और जीत…
मुक़दमे का सिर्फ फैसला आना बाकी है ..........मुक़दमाँ जीतने लायक जो तथ्य मुलायम . माया तथा अखिलेश की इस्लामी सरकारों ने कोर्ट से छिपाए थे उन तथ्यों को मोदी और योगी की टीम ....कोर्ट के रिकार्ड पर रख चुकी है ...........ये रिकार्ड है आर्कियोलाजी विभाग द्वारा की गयी खुदाई और अंग्रेजो तथा मुगलकाल के उर्दू में लिखे दस्तावेज जिनकी संख्या हजारो में .इन दस्तावेजो को मोदी और योगी सरकार ने इंग्लिश में अनुवाद करा के सुप्रीम कोर्ट में जमा कराया है ...........
..ये लड़ाई बस इतनी ही बची है…हम जीत चुके हैं…रेफरी के हाथ उठाने भर की देरी है…लेकिन क्या करें…रेफरी भी तो उन्हीं की टीम का है…देरी बस इस बात की हो रही है…कि मोदी को 2019 के चुनाव में राममंदिर का फायदा ना मिले…भाजपा जिसने शुरू से आखिर तक इस लड़ाई को लड़ा…उसे इस लड़ाई के जीतने का फायदा ना मिले…समझदार श्रेणी के हिन्दू इस बात को समझ रहे है लेकिन कट्टर हिन्दू और फर्जी टाईप के लाल पीले पाखंडी पंडे अपनी अज्ञानता और अपने घमंड के कारण अपडेट ना होने के कारण इस तथ्य को समझ ही नहीं पा रहे ............और दुश्मन का काम आसान कर रहे है .फिर चाहे तोगडिया हो या और कोई पाखंडी !


Manish Keshari
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इन दो हरामि रंडीयों ने हमारी 1500, वर्ष पुरानी परंपरा को तोड दिया इन्हें जीने का अधिकार नहीं है

रात के तीन बजे इन दो रंडीयों ने पुलिस के संरक्षण में सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने में सफल हुईं .

मेरे जहन में कई सवाल उभर रहे हैं .
(१) आखिर ये महिलाएं येन केन प्रकारेण मंदिर में क्यों घुसना चाहती थीं . क्या आस्था के कारण . अगर आस्था होती तो इस बात के प्रति भी होती कि किसी मंदिर की मान्यता के विरुद्ध कोई धर्मावलम्बी नहीं जाना चाहता . अगर आस्था है तो .


(२) क्या सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ये आदेश दिया था कि किसी भी स्थिति में मंदिर में महिलाओं को प्रवेश कराकर रिपोर्ट करें . भले उनकी आस्था न हो या वे विधर्मी हों .

(३) अगर गुरुद्वारे में सर ढककर जाने की परंपरा है या मंदिर में जूते न पहनकर जाने की आस्था है तो क्या इस सम्बन्ध में कोई कानून है . अगर मैं नंगे सर गुरुद्वारे में घुसकर या जूते सहित मंदिर में जाकर मीडिया के सामने अपनी कीर्तिगान करूं तो ये मेरी बदतमीजी है या बहादुरी .

(४) जिस देश में महिलाएं अनहोनी या अपने इष्ट के भय या आस्था से बृहपतिवार में कपड़े नहीं ढोती मांग में सिन्दूर लगाए बिना कोई उत्सव नहीं मानतीं , करवाचौथ को जल तक ग्रहण नहीं करती उस धर्म कि महिलाएं यदि विशवास है या आस्था है तो मंदिर के हजारों साल से बनाये गए नियम व परंपरा तोड़कर जबरदस्ती मंदिर में प्रवेश करेंगी क्या .

(५) एक मजहब की सामाजिक कुरीति तीन तलाक को समाप्त करने के लिए पूरी विपक्षी पार्टियां, न्याय व्यवस्था, मीडिया उनके धर्म में दखल मानता है और बहुसंख्यक हिन्दू धर्म के अत्यंत निजी विषय पर अदालत कानून बनती हैं . जरा मुस्लिम या ईसाई धर्म की किसी धार्मिक परंपरा के विरुद्ध कानून बनाकर या इम्प्लीमेंट करके दिखाइए मी लार्ड .

समझ लीजिये . ( भाषा के लिए क्षमा ) ये हरामखोर मार्क्सवादियों का हिन्दू धर्म को चिढ़ाने , अपमानित करने और मजाक उड़ाने का विषय है जिस में कबरंडी प्रेश्याएँ शामिल हैं . इसके आलावा कुछ भी नहीं .
Sanjay Dwivedy
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देश_के_सामने_एकबार_फिर_नंगा_हुआ_राहुल_गांधी_का_झूठ_फ़रेब
राफेल पर हो रही बहस में राहुल गांधी एक रिकॉर्डेड वार्तालाप सुनाने की जिद्द पर अड़ गया। इसपर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सदन की नियमावली का सन्दर्भ देते हुए उससे कहा कि वो जिम्मेदारी ले और लिख कर दे कि "जिस रिकॉर्डिंग को वो सदन में सुनाने जा रहा है उसके सत्य होने की जिम्मेदारी वो लेता है तथा यदि यह रिकॉर्डिंग झूठी फ़र्ज़ी पायी जाए तो उसके खिलाफ विशेषाधिकार का मामला चलाकर उसका निष्कासन किया जाए।"
जेटली द्वारा सदन की नियमावली की यह शर्त रखते ही रिकॉर्डिंग की सत्यता की जिम्मेदारी लेने से राहुल गांधी गिरगिट की तरह मुकर गया और रिकॉर्डिंग के फ़र्ज़ी नहीं होने तथा सत्य होने की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हुआ। उसने देश की संसद को शायद देसी दारू का अड्डा बनाने की ठान ली है। जहां बेधड़क झूठ फ़रेब जालसाज़ी का खुला कांग्रेसी खेल खेलने की खुली छूट चाहता है राहुल गांधी।
दरअसल सदन में झूठ बोलने पर इस पर मानहानि का मुकदमा नहीं चलता। झूठ फ़रेब जालसाज़ी करने के कुकर्म पर किसी भी प्रकार का आपराधिक केस नहीं चल सकता। सदन के बाहर कुछ भी अनर्गल बकता तो सीधे जेल जाता क्योंकि मनोहर पर्रिकर पहले ही इस कांग्रेसी जालसाज़ी धोखाधड़ी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर चुके हैं।
वैसे अरुण जेटली आज जिस बेरहमी से मां-बेटे की धुलाई कर रहे हैं। सरकारी खजाने की खानदानी लूट का बेशर्म इतिहास उनको बता रहे हैं। राहुल गांधी को याद दिला रहे हैं कि जब तुम बोफोर्स दलाल लुटेरे क्वात्रोचि की गोद मे खेला करते थे... वह भी लाजवाब है।
सच के अंगारों की जेटली द्वारा की जा बरसात से मां-बेटे के चेहरे पर मातम की सुनामी चल रही है। कांग्रेसी गुर्गों ने जमकर नंगई कर के कार्रवाई फिलहाल रोक दी है।


Satish Chandra Mishra
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जो कौम खून देख नही सकती है वो नर पिशाचो से लड़ेगी कैसे ?? सिर्फ 10-15 साल और अय्याशी कर लो शाहरुख,सलमान की फिल्मे देख लो,होली,दिवाली,शिव रात्री तो तुम्हारा कोर्ट और लोक तंत्र बंद करवा ही देगा बाकी बचा काम शरियत और इस्लामिक कानून पूरी कर देगा
हिंदुओं तुम्हारे पास तो ना लड़ने वाले हाथ बचे है हम दो हमारे दो बस और नाही लड़ने का कलेजा है ना तुम्हारे साथ देश का कानून है ना तुम्हारी बिकाऊ और चार जालीदार टोपी देख कर पेशाब कर देने वाली पुलिस तुम्हारे साथ है ना सेना तुमको बचा पाएगी
तुम्हारी हालत गली के आवारा कुत्ते जैसी होना निश्चित है जानते होना क्यूँ ?? क्यूकि तुम डरपोक और कायर होने के साथ साथ पलायनवादी हो चुके हो ! हर मुद्द्दे से भागना ,अपनो के दुख मे साथ ना देना , राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल करना ,सत्ता मिलते ही तुम्हारे नेता सैकुलर बन कर धर्म भूल जाते है मेरी बातों का प्रत्यक्ष प्रमाण है मतलब हर एक नेता और पार्टी यह समझ चुकीं है की आने वाले वक्त मे हर हिन्दू का पालतु कुता होना निश्चित है
80 करोड़ हिंदुओं पर शासन करने और सभी हिंदुओं की सु्न्नत करवाने के लिए सिर्फ 8 लाख ट्रेंड जेहादियो और एक करोड़ जालीदार टोपी वालो की अनियन्त्रित भीड़ की आवश्यकता पड़ेगी
जो उन लोगो के पास है और एक लाख आस्मानी किताब पढ़ाने वाला सेनापती चाहिए वो भी उनके पास है उनकी ताकत उनका अपने धर्म के प्रति समर्पण है ऐसा जुनून और हौसला या जिगर क्या तुम हिंदुओं मे है ?? क्या तुम धर्म का अपमान करने वाले का गला काट पाओगे ??कभी नही तुम मीट खा सकते हो लेकिन बकरे की गर्दन हलाल नही कर पाओगे क्यूँ की तुमको उल्टी आ जाएगी चक्कर खा कर गिर पड़ोगी , क्या तुम्हारे घर की कोई भी महिला मे इतना कलेजा है की वो मीट की दुकान पर स्वयं जाकर मीट खरीद कर ले आए या अपने सामने बकरा कटवा कर घर तक ले आए
नही एक भी नही मिलेगी ,
अपनी आंखो से हिन्दुओ अपने सम्पूर्ण वंश का सर्वनाश देखने के लिए माइंड मेकअप कर लो और जीभर कर एैश कर लो कल तुम्हारी औलादे भी पांच वक्त की नमाज भी पढ़ेंगी और पंचर भी जोड़ेंगी यदि तुम नही सुधरे तो....
व्यथित मन से - वन्देमातरम🙏😔

mediya-feb

अंग्रेजोंने 1818 मे जारी किया यह राम दरबार सिक्का , 1947 मे कॉँग्रेसने बंद करवाया
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मोदी जी जब तक आप 2 करोड बेघरो को घर बनाकर देंगे 10 करोड बेघर और पैदा हो जायेंगे "जनसंख्या नियंत्रण कानून" देश के लिये जरूरी है
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सोचनीय प्रश्न:-
जिस कोंग्रेस ने वंदे मातरम बोलने पर प्रतिबंध लगाया है ,क्या इन्होंने अंग्रेजो के सामने वंदे मातरम के नारे लगाये होंगे...?
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इन सिंटेक्स की टँकीयो को भी सबरीमाला जाना है ..अरे दोगलियो पहले किसी मस्जिद में जाकर पिछवाड़ा तो उठाओइन बुर्का बीवी को ब्राह्मण की बहुत चिंता हो रही है .. पूरी जिंदगी काले टेंट में बिताती है ..सिंटेक्स की टंकी बन कर घूमती है किसी मस्जिद में पिछवाड़ा तक नहीं उठा सकती और अपने पति के बैड को तीन महिलाओं के साथ शेयर करती हैं और जब चाहे तब तीन तलाक पाकर फिर ससुर या देवर से हलाला करवाती हैंऔर उन्हें सबरीमाला की चिंता हो रही है ? वह रे बुर्खा बीबी  ..Jitendra Pratap Singh 

Friday 28 December 2018

srijan-feb





विपक्ष का चोला ओढ़े अभिजात्य वर्ग झूठ, छल और कपट का सहारा ले रहा है.
अधपकी, बेमेल खिचड़ी विपक्ष की रणनीति अब स्पष्ट हो चुकी है. चूंकि इन्हे पता है की ये प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा बनायी हुई नीतियां और किये जाए कार्यो से उनका रचनात्मक विनाश  हो जायेगा.
स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के शासकों ने एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें जनता की भलाई और सेकुलरिज्म के नाम पर अपने आप को, अपने नाते रिश्तेदारों और मित्रों को समृद्ध बना सकें. अपनी समृद्धि को इन्होंने विकास और सम्पन्नता फैलाकर नहीं किया, बल्कि जनता के पैसे को धोखे और भ्रष्टाचार से अपनी ओर लूट कर किया. यह समझ कई देशो की राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था के अध्ययन और भ्रमण से समझ में आयी.
 ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था की संरचना जानबूझकर कर की गयी थी, ना कि नासमझी में. उनका पूरा ध्यान अपने आप को और अपने मित्रों को समृद्ध करना था और उन्हें धनी बनाना था. जनता को जानबूझकर गरीब रखना था, क्योंकि गरीब जनता को वह बहला-फुसलाकर, लॉलीपॉप देकर वोट पा सकते थे.
शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग अक्सर आर्थिक प्रगति के खिलाफ खड़े हो जाते है, क्योकि वह अपने हित को - अपनी constituency - जैसे कि अपनी सीट, अपना उद्योग, अपना NGO - सुरक्षित रखना चाहते है. उन्हें डर है कि आम जनता अगर सशक्त हो गयी तो उनका रचनात्मक विनाश हो जायेगा. उनकी आर्थिक स्थिति खो जाएगी. उन्हें अपने विशेषाधिकार खोने का डर है. और इसीलिए "वे" ग्रोथ या विकास पे बांधा डाल देते है, और हमारी आँखों पे पट्टी.
अतः बेमेल विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी से निपटने के लिए चार रणनीतियों का सहारा ले रहा है.
प्रथम,
 सफ़ेद झूठ बोलकर मोदी सरकार पे भ्रष्टाचार का ठप्पा लगाना या फिर उनकी विश्वसनीयता पे चोट पहुंचना. इस रणनीति के तहत रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद पे जान-बूझकर झूठ का सहारा लेना और बेबुनियाद आरोप लगाना कि इस डील में भ्रष्टाचार हुआ है. इसी प्रकार, जस्टिस लोया की हृदयगति से निधन को षड्यंत्र बताना, जबकि हार्ट अटैक के समय उनके साथ दो सहयोगी जज उपस्थित थे. इसी श्रेणी में अमित शाह के पुत्र, अजित डोवाल के पुत्र, अरुण जेटली पे दिल्ली क्रिकेट में भ्रष्टाचार के झूठे आरोप भी आते है.
द्वितीय,
 भारत के लोकतान्त्रिक संस्थानों की विश्वसनीयता पे प्रश्नचिन्ह लगाना और यह कहना कि इन संस्थानों की मिलीभगत से ही एक गरीब, अति सामान्य परिवार का पुत्र सत्ता में आया. इस श्रेणी में सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीशों की प्रेस कांफ्रेंस, EVM को हैक करने का असत्य आरोप, सीबीआई निदेशक की नियुक्ति और फिर हटाने पे प्रश्नचिन्ह जबकि इस प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी सम्मिलित है, RBI पे फ़ालतू का बखेड़ा खड़ा करना, GST की मीटिंग में कर प्रस्तावों पे सहमति देना, लेकिन बाहर आकर मोदी सरकार को बदनाम करना इत्यादि आते है.
एक तरह से विपक्ष चाहता है कि संवैधानिक संस्थाए घबरा कर समर्पण कर दे और उन्हें कागजी बैलट पेपर के द्वारा वोटो की लूट या फिर सुप्रीम कोर्ट में किसी फर्जी केस में सरकार को शर्मिंदा या कमजोर करने का अवसर मिले. नोट करिये कि राम मंदिर, EVM की विश्वसनीयता पे प्रश्नचिन्ह, रफाल, आधार कार्ड, सीबीआई निदेशक, क्रिस्चियन मिशेल, लोया इत्यादि केसो में कांग्रेस के वकील ही सामने क्यों है?
तृतीय,
बेमेल, पारस्परिक विरोधी और अनैतिक गठबंधन बनाना और यह आशा करना कि गठबंधन वाली पार्टियों का कुल वोट भाजपा के वोट से अधिक होगा.
चतुर्थ,
 भाजपा के कोर समर्थको को विभाजित करना या उनके मन में हृदय से प्रिय मुद्दों के बारे में मोदी सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में संदेह उत्पन्न करना. इस श्रेणी में राम मंदिर निर्माण की कोर्ट द्वारा सुनवाई में जानबूझकर अड़चन पैदा करना, तीस वर्ष पुराने SC एक्ट पे सुप्रीम कोर्ट की मदद से कटुता फैलाना, सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सबूत मांगना, सबरीमाला में विशेष आयु की महिलाओ का प्रवेश करवाना (जिससे कोर समर्थको के आत्मसम्मान पे चोट लगे जिसके लिए वे मोदी सरकार को दोषी ठहराएंगे), JNU में भारत के टुकड़े की मांग करने वालो का समर्थन करना (जिससे कोर समर्थको को तुरंत कार्रवाई ना होने पे निराश होना पड़े) जैसी करतूते शामिल है.
यह चुनाव विपक्ष का चोला ओढ़े अभिजात्य वर्ग के आस्तित्व का सवाल है. न कि चुनाव जीतने के लिए तभी वे झूठ, छल, कपट का सहारा ले रहे है. वे यह बतलाये कि उनकी नीतिया क्या होगी.
इनसे सतर्क रहिये और प्रधानमंत्री मोदी पे विश्वास बनाये रखिये
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●प्रधान सेवक की शानदार चौकीदारी
और कांग्रेस का अब तक का सबसे बड़ा चुहाड़पन-देशद्रोह

रॉ..RAW भारत का एक सर्वोच्च प्रतिष्ठित संस्था है,अपेक्षाकृत सीबीआई से बहुत आगे है,रॉ में देशभक्तों का एक कॉलेजियम है जो बहालियां करती है।इसकी बहुत सारी बातें विज्ञापित नहीं होती है क्योंकि ये अति गोपनीयता से काम करती है।
ये विदेशों में कार्यरत खुफिया एजेंसी है जिसके घर वाले भी इनसे नहीं मिल पाते हैं,ये खुद जाकर मिलते हैं परिजनों से।
मेरा एक चचेरा भाई रॉ में है,मैं ये सचाई जानता हूँ। बचपन से लेकर 17 साल की उमर तक हम साथ खेले कूदे पर 52 साल से उससे मिल नहीं पाया हूँ।
रॉ वालों का रिश्ता परिवार से भी नहीं रह जाता। वे अपने निवास का पता परिजनों को भी नहीं देते। रॉ से सबसे ज्यादे पाकिस्तान डरता है,इसके एजेंट बतौर अजित डोभाल भी पाकिस्तान में हड़कंप मचा चुके हैं।
●मोदीजी बहुत पहले ये जान चुके थे कि सीबीआई चीफ आलोक वर्मा सोनिया-राहुल के एजेंट के बतौर काम कर रहे हैं,लालू, बाड्रा, चिदंबरम, बिजय माल्या,नीरव मोदी,मेहुल चौकसी और शिवशंकरन(आईडीबीआई बैंक में आर्थिक अपराधी) के आर्थिक अपराधों को ढ़क बचा रहे हैं।
सरकार की लुक आउट नोटिश और गिरफ्तारी के आदेश की अनदेखी करते हुए आलोक वर्मा ने फर्जीवाड़ा करते हुए गिरफ्तारी की जगह# सूचना #शब्द प्लांट करते हुए विजय माल्या और नीरव मोदी आदि को भागने दिया।

●दो बजे रात की वह हाहाकारी घटना जिस कारण आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया वह जानने योग्य है।रॉ के चीफ भागे भागे पीएम के पास पहुंचे, बहुत सारी गोपनीय बातें बतायी.....
1)हमें अपने रॉ डिपार्टमेंट को बंद करना पड़ सकता है क्योंकि विदेशों में हमारे कार्यरत सभी अधिकारियों सूचि आलोक वर्मा ने संबद्ध देश को दे दी है।

2)विशेष कर सऊदी अरब से कांग्रेसी दलाल ,मिशेल जो अगस्तावेस्टलैंड मामले में गवाह है के प्रत्यर्पण को रोकने के लिए हमारे सारे अधिकारियों की सूचि सऊदी अरब को अभी अभी ई-मेल कर दिया है। इनकी योजना है कि हमारे खुफिया एजेंटो के नाम जाहिर कर भारत और सऊदी अरब का संबंध ऐसा बिगाड़ा जाय कि मिशेल का प्रत्यर्पण रोका जा सके और जिससे सोनिया- राहुल-कांग्रेस को लाभ पहुँचाया जाय।
उल्लेखनीय है कि सऊदी में वहाँ खुफियागिरी की सजा तुरंत सीधे मौत है। इस तरह हमारे सारे देशभक्त रॉ के अधिकारी वहाँ मारे जाते। इसीतरह का देशद्रोह एक बार# हामिद अंसारी# ने भी अफगानिस्तान में करके हमारे देशभक्त रॉ के अधिकारियों को मरवा डाला था। उस समय वे वहाँ अफगानिस्तान में भारत के राजदूत थे। बाद में पुरस्कार स्वरूप कांग्रेस ने उसे उपराष्ट्रपति पद से नवाजा था।
●शांत चित्त बल्कि स्थिरप्रज्ञता से मोदीजी ने सब सुना। तुरंत सऊदी अरब के चीफ या सुलतान को फोन किया....एक बेहद जरुरी काम आ गया है,इसलिए आपको कष्ट दिया है।हमने सीबीआई चीफ से एक आवश्यक ई-मेल भिजवाया है जिसे आपने अभी नहीं देखा होगा, वैसे मैं आपके ई-मेल पर भी फिर सूचि प्रेषित कर रहा हूँ।ये अवांछित लोग हैं।हमारे यहाँ मिशेल के साथ इन्हें भी भेज दे। ताकि तुरंत कारवाई की जा सके।

इसतरह हमारे चौकीदार ने रॉ के देशभक्ति अधिकारियों की जान भी बचा ली और वाक्पटुता से आलोक वर्मा की जूती आलोक वर्मा के सर पर दे मारी।इस देशद्रोही विफलता से कांग्रेस पागल हो गया,तुरंत सऊदी अरब षड्यंत्र करने फिर राहुल गांधी पहुंच गया, ऐसा संयोग कहाँ देखने को मिलेगा कि राहुल खान भी दुबई में है और पाकिस्तान का आर्मी चीफ भी दुबई में
मतलब देश के ऊपर कोई बड़ा खतरा है

प्रियंका चौबाईन ने ट्वीट किया कि क्रिकेट मैच देखने झूठमुँहा गाँधी वहां गया है,तीन लाख की भीड़ राहुल के दर्शन के लिए स्टेडियम में उमड़ी। इस मूर्ख कांग्रेसी प्रवक्ता को ये भी जानकारी नहीं कि स्टेडियम की क्षमता मात्र पैतीस हजार है।

●कांग्रेस ये झूठा प्रचार कर रही है कि राफेल मामले में आलोक वर्मा जाँच करने वाले थे इसलिए मोदीजी ने हटाया जबकि सीबीआई चीफ रक्षा सौदे की जाँच के लिए अधिकृत नहींं होते हैं।सुप्रीम कोर्ट जब राफेल में क्लीन चिट दे चुकी है तो देशद्रोही-हिन्दूद्रोही कांग्रेस का ये थेथरपन ही है।

●आलोक वर्मा आपराधिक कृत्य करते हुए मोदीजी, रॉ चीफ, सेनाध्यक्ष, अजित डोभाल और अमित शाह आदि का फोन टेप भी कर रहे थे।
इस कांड में जस्टिस सिकरी,सीवीसी और रॉ चीफ की भूमिका प्रशंसनीय रही।विशेषकर जस्टिस सिकरी एक निष्पक्ष और ईमानदार जस्टिस माने जाते हैं। दलित मानसिकता वाला मलिकार्जुन खड़के बहुत खड़का पर चला नहीं।

●अगर मोदीजी की जगह इंदिरा रहती तो तुरंत ईमरजेंसी लगा देती,संविधान स्थगित कर सभी संबद्ध को थर्ड डिग्री से निपट लेती।ये इसी लायक हैं भी।

●अब देखना है मोदीजी निकृष्टतम देशद्रोही मोईन कुरेशी से कैसे निपटते हैं जो सबसे बड़ा आर्थिक अपराधी है,कांग्रेसी दलाल है और जिसने तीन सीबीआई चीफ को निगल लिया है,ब्लैकमेल किया है।

●उल्लेखनीय है कि भारतीय मीडिया इस गंभीरतम मामले
को साफ निगल गयी, बस कांग्रेसी अनर्गल प्रलाप का रिपोर्टिंग किया।
एक भारतीय ईमानदार पत्रकार हरीश गुप्ता के रिपोर्ट पर ये खबरें सऊदी अरब और विदेशों में प्रकाशित हुई।
देश इस देशद्रोह से अनजान है।

Nitin shukla योगेंद्र जायसवाल की वाल से
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 जैसे जैसे आम चुनाव करीब आ रहा है। मुख्यधारा मीडिया का एक धड़ा अपने कार्य में जुट गया है। पहले इस दौड़ में एनडीटीवी, आल्ट न्यूज, द वायर, द क्विंट, अमर उजाला, आदि शामिल थे। अब अंग्रेजी मीडिया का जाना माना मीडिया हाउस ‘द हिंदू’ भी इस दौड़ में शामिल हो गया है।
 ‘द हिंदू’ के संपादक ‘एन. राम’ ने इसी अखबार के हवाले से एक रिपोर्ट छापी थी कि वर्तमान की राजग सरकार ने पिछली संप्रग सरकार की तुलना में राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 41 फीसदी ज्यादा पैसे खर्च किए।

‘द हिंदू’ के रिपोर्ट में कहा गया है, “यह लेख, द हिंदू को विशेष रूप से उपलब्ध जानकारी के आधार पर, F3-R मानक के राफेल फाइटर जेट के मूल्य के बारे में दिलचस्प सवाल पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे और क्यों 2007, 2011 और 2016 में समान क्षमता और विन्यास के बावजूद प्रति राफेल जेट के दाम में परिवर्तन हो गया।”

अब ये लोग किस संस्थान से पत्रकारिता की डिग्री लिए हैं, वह तो ईश्वर ही जानते हैं। लेकिन इसमे किसी संस्थान की गलती नहीं। दरअसल, इन्हें सिर्फ राजग सरकार के हर फैसले का विरोध करना है। इन्हें ये नहीं मालूम कि राफेल के F3 मानक और F3-R मानक, दोनों अलग अलग हैं। 2007 में विमान के जिस मानक की बात हुई थी, वह F3 था और F3-R का निर्माण पिछले वर्ष पुरा हुआ है। तो फिर 2007 में F3-R की बात कैसे हो सकती है।

F3-R के बारे में फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने 31 अक्टूबर, 2018 को प्रेस रिलीज जारी कर कहा, “फ्रांसीसी रक्षा खरीद एजेंसी (डीजीए) द्वारा राफेल के F3-R मानक को योग्य बनाया गया। 2013 के अंत में लॉन्च किए गए इस नए मानक का विकास, डसॉल्ट एविएशन और इसके साझेदारों द्वारा संविदात्मक प्रदर्शन, अनुसूची और बजट के पूर्ण अनुपालन में सफलतापूर्वक पूरा किया गया।”

यह फ्रेंच कंपनी का आधिकारिक बयान है। एक विमान मानक, जिसका विकास 2013 में शुरू हुआ था और 2018 के अंत में पूरा हुआ, तो वो विमान 2007 या 2011 में कैसे हो सकता था? फ्रांस सरकार ने डसॉल्ट एविएशन को राफेल का F3-R मानक विकसित करने के लिए 1 बिलियन यूरो का भुगतान किया था। इसका मतलब-
1 F3-R राफेल= 1€ बिलियन + 1 F3 राफेल!

F3-R में और क्या शामिल है-

1.F3-R मानक राफेल F3 मानक का एक अपग्रेडेड वर्जन है, जिसमें असाधारण बहुमुखी प्रतिभा को और प्रबलित किया गया है। यह परिचालन आवश्यकताओं और पायलटों के अनुभव से प्रतिक्रिया के अनुरूप विमान में लगातार सुधार करने के लिए चल रही प्रक्रिया का हिस्सा है।

2. यह MBDA द्वारा निर्मित यूरोपीय उल्का लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है। यह उच्च-प्रदर्शन मिसाइल “सक्रिय सरणी” रडार के लिए अधिकतम प्रभावशीलता प्राप्त करती है, जो 2013 के मध्य में वितरित किए गए सभी उत्पादन राफेल विमानों से लैस है।

3. जीपीएस प्राथमिक मार्गदर्शन और एक अतिरिक्त बूस्टर के साथ हथियारों का यह समूह बेजोड़ है। यह राफेल को मीट्रिक सटीकता के साथ कई किलोमीटर की सीमा में लक्ष्य को नष्ट करने में सक्षम बनाता है।

ऊपर जिस उल्का एयर-टू-एयर मिसाइल के बार में बताया गया है, वह आज दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयर-टू-एयर मिसाइल के रूप में माना जाता है। यह मिसाइल इतनी शक्तिशाली मानी जाती है कि यूके ने अपने F-35 स्टील्थ विमान बेड़े पर मिसाइल को एकीकृत करने के लिए MBDA (मिसाइल के निर्माता) को एक अनुबंध दिया है।

खैर, ये सब राफेल के F3-R मानक के गुणों का संक्षिप्त वर्णन हुआ। हम यहां बात कर रहे हैं एन. राम के झूठ का। इनके झूठ का पर्दाफाश फ्रेंच कंपनी ने अक्टूबर, 2018 में ही कर दिया है। जो लोग ‘द हिंदू’ के खबर को आधार बनाकर सरकार पर फिर से निशाना साधने किया तेयारी कर रहे हैं, उन्हें पहले फ्रेंच कंपनी का अक्टूबर, 2018 का आधिकारिक बयान पढना चाहिए। कुछ दिन पहले खुद को राजनीतिक विश्लेषक कहने वाले आशुतोष ने भी अपने ‘सत्य खबर’ नामक वेबसाइट पर राफेल को लेकर झूठ फैलाया था। फिर आजतक के पत्रकार रोहित सरदाना के झूठ पकड़ने पर उन्होंने खबर को अपडेट करने की बात कही थी।
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षड्यंत्र
चर्च ओर वामपन्थी ये भलीभांति जानता था कि हिन्दू की मूल ताकत आस्था सन्त है क्यो की यही सन्त हजारो वर्षो से हड्डियां गलाकर इस धर्म को हर काल के थपेड़ों से निकाल के लाए है,,इसी लिए चर्च वामपन्थी ने सबसे पहली चाल ये चली की हिन्दू युवाओ के मन मे सन्तो के प्रति ग्रहणा भरी जाए इसके लिए चर्च वामियो ने ,फ़िल्म,मीडिया और अखबारों मंचो का सहारा लिया तरीके से छोटी छोटी घटनाओं को सन्तो ओर धर्म से जोड़कर हिन्दू सन्तो को दुराचारी बताया और चर्च के फादर ओर मौलवियों को नेक बन्दे बताया ,,लगातार केम्पेन से कुछ हद तक चर्च वामपन्थी सफल भी हुए ,आज जैसे ही कोई सन्त गांव में गली में या दुकान पर आता है तो हिन्दू के बच्चे चरण स्पर्श तो छोड़ो उन्हें भिखारी जैसा व्यवहार करते देखा है मेने ,,हिन्दू की वो समझ ही मार डाली चर्च वामपन्थी प्रचार ने की आखिर जिस सन्त ने घर बार परिवार सबकुछ धर्म के लिए त्याग दिया वो पेट भरने के लिए हिन्दू के द्वार नही जाएगा तो कहा जाएगा,,हिन्दुओ में बढ़ती सन्तो के प्रति बेरुखी चर्च ओर वामपन्थीयो की जीत है और सनातन धर्म की हार है,,,में सभी हिन्दू नोजवानो से करबद्ध निवेदन करता हु अपने गांव घर या दुकान पे आने वाले सन्त को चाहे एक रुपिया मत दो पर जैसे ही आए पहले उनका चरण स्पर्श जरूर करो उन्हें सम्मान से कुर्सी पे बिठाकर एक ग्लास पानी का जरूर पूछो अरे मूर्खो तुम ही अगर अपने सन्तो की कद्र नही करोगे तो कोंन ईसाई जेहादी करेंगे क्या,,ईसाई चर्च के फादर को बाप की तरह सम्मान देता है मुस्लिम मौलवी की कपड़े भोजन की चिंता करता है तो नोजवान हिन्दुओ तुम भी अपने सनातन धर्म के रक्षक सन्तो का सम्मान करो यही सन्त तो हजारो वर्षो से सनातन धर्म की ज्योत जलाए हुए है उस जोत को बुझने मत दो ,चर्च वामपन्थी षड्यंत्र में उलझ कर अपने ही सन्तो का तिरस्कार मत करो,,,,ये सन्त हमारी जड़ है जड़ से जो कटा वो सुख जाएगा ये बात याद रखना नोजवाओ ,,,,इस लिए सन्तो का सम्मान करो
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कुम्भ मेला 2019, अमेरिका, रूस व जर्मनी के पर्यटक भी हर-हर गंगे बोलकर मेले में घूम रहे है.

शाही स्नान के लिए संगम की ओर जाता नागा साधुओं का जुलूस और उसे देखने के लिए बैरीकेडिंग के पीछे खड़ी भक्तों की भारी भीड़। इनके बीच में विदेशी पर्यटक जुलूस की एक झलक पाने को जद्दोजहद करते नजर आए। नागा साधुओं की टोली देख विदेशी अचंभित रह गए। मंगलवार की सुबह तीखी सर्दी में सिर्फ भभूति लपेटे सैकड़ों नागा साधुओं को जाता देख गर्म कपड़ों और जैकेट में लिपटे स्पेन के जोस का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

विदेशी बोले कि नागाओं को देख एक पल के लिए सांसें थमी रह गईं। जोस आठ हजार किमी दूर स्पेन से आए 30 विदेशी सैलानियों के दल का हिस्सा हैं। टीम की अगुवाई कर रहे इग्नीसियो क्यूएस्टा ने बताया कि कुम्भ मेले के लिए प्रयागराज आने से पहले उनकी टोली ने दिल्ली और काशी का भ्रमण किया। उन्हें प्रयागराज में तीन दिन ठहरना था लेकिन प्रथम शाही स्नान का अद्भुत नजारा लेने के लिए पूरे दल ने अपने दौरे को दो दिन और बढ़ा दिया। यह पूरा अनुभव हमारे लिए अकल्पनीय और बहुत प्रभावित करने वाला रहा.

रातभर जगने के बाद किया संगम में स्नान.
कुम्भ क्षेत्र में साधुओं के शिविर में पहुंचे देशी-विदेशी भक्तों ने सोमवार को रातभर जगने के बाद मंगलवार को संगम में डुबकी लगाई। शाही सवारी के साथ संगम पहुंचे जर्मनी, अमेरिका, रूस आदि देशों के नागरिकों ने गंगा मईया का पैर छूकर उनकी गोद में पैर रखा और पुण्य की डुबकी लगाकर धन्य-धन्य हो गए। जुलूस में इन विदेशियों का उत्साह किसी भी तरह से भारतीय भक्तों से कम नहीं था। कई विदेशी सैलानी गंगा स्नान के बाद जय-जय और हर-हर महादेव का उद्घोष करना सीख रहे थे।.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

भारतीयों को संविधान सेना और RSS ने ही सुरक्षित रखा हुआ है
- के टी थॉमस रिटायर्ड जज (सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया)

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व ईसाई जज केटी थॉमस ने की RSS की प्रशंसा, कहा- संघ के कारण सुरक्षित हैं भारतीय


केटी थॉमस ने कहा कि आपातकाल से देश को उबारने का अगर किसी संस्था को जाता है तो वो आरएसएस है। आपातकाल से आजादी आरएसएस ने ही लोगों को दिलाई थी।

केटी थॉमस का ये भी मानना है कि सेक्युलरिज्म का विचार धर्म से अलग नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सांपो में विष हमले करने के लिए हथियार के तौर पर होता है, इसी तरह मानव की शक्ति का मतलब हमलों से खुद को बचाने के लिए है। ऐसा बताने और विश्वास करने के लिए में आरएसए की तारीफ करता हूं

उन्होंने स्वयंसेवकों को शारीरिक प्रक्षिक्षण दिए जाने के लिए संगठन की तारीफ करते हुए कहा कि इससे हमले के वक्त देश की सुरक्षा में मदद मिलेगी.

इस दौरान थॉमस ने कहा कि सेना, संविधान और लोकतंत्र के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही भारतीयों को सुरक्षित रखे हुए है.

उन्होंने कहा, "अगर पूछा जाए कि भारतीय कैसे सुरक्षित हैं तो मैं कहूंगा कि देश में संविधान है, लोकतंत्र है, सेना है और यहां आरएसएस भी है."

थॉमस ने आपातकाल से बाहर निकालने के लिए भी आरएसएस की तारीफ की. उनके मुताबिक, धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का मतलब सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि हरेक व्यक्ति की रक्षा करना है. उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए आयोग बनाए जाने को लेकर भी सवाल उठाए.

बता दें कि केटी थॉमस का लंबे समय से आरएसएस के प्रति झुकाव रहा है. वे उस कैंपेन को खत्म करने की अपील भी कर चुके हैं, जिसमें महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहराए जाने की बात कही जाती रही है.

आरएसएस द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में थॉमस कह चुके हैं कि 1979 में उनका झुकाव आरएसएस के प्रति हुआ. उस दौरान कोझीकोड़े बतौरा डिस्ट्रिक जज उन्होंने संगंठन की 'सादा जीवन-उच्च विचार' शैली को नजदीक से देखा.

उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था, "मैं ईसाई हूं. मैं ईसाई पैदा हुआ और इसी धर्म को मानता हूं. मैं चर्च भी जाता हूं. लेकिन मैंने आरएसएस से कई चीजें सीखी हैं."
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काँग्रेस की हिंदुओं के प्रति कुदृष्टि
दिसम्बर, 2013 में मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम (Commun and Target Violence Bill) विधेयक पर मुहर लगाई थी।। लेकिन फरवरी 2014 में भाजपा के घोर विरोध और राज्यसभा के हंगामे के बीच काँग्रेस को यह विधेयक स्थगित करना पड़ा। इस बिल को याद करना अत्यंत आवश्यक है।
2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर मनोनीत किया गया था। साथ ही एक नई समानांतर व्यवस्था बनी। इसे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council- NAC) कहा गया।इसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी थीं।
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद या एनएसी का गठन सरकार को सलाह देने के लिए हुआ था, लेकिन यह बात आम थी कि एनएसी सलाह कम और आदेश अधिक देती थी और यह सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने भी अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल पीएम’ में एनएसी के हस्तक्षेपों की चर्चा की है.
एनएसी के सदस्यों में हर्ष मन्दर, फराह नक़वी, अरुणा रॉय और रामनाथ मुंडा जैसे लोग थे। जबकि सलाहकारों में तीस्ता जावेद सीतलवाड़, जॉन दयाल, अबुसलेह शरीफ, राम पुनियानी, अनु आगा जैसे लोग थे। इन्ही लोगों की मदद से ड्राफ्ट किया हुआ कम्युनल वॉइलैंस बिल पहली बार सन 2005 में संसद में पेश हुआ।
यह बिल इतना सख्त था कि लाठी तक को हथियार माना गया था। शायद एनएसी के सदस्य लाठी को संघ के गणवेश के साथ जोड़कर देखने के आदी थे और उसके दूसरे उपयोग उनकी समझ के बाहर की बात थी।
फिर भी ऑल इंडिया क्रिस्चियन कौंसिल को यह बिल यथेष्ठ सख्त नही लगी और उन्होंने इस कानून को और भी सख्त बनाने की बात की। मुस्लिम समाज को भी कानून में कमी दिख रही थी।
मुस्लिम और ईसाई समाज की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए एनएसी ने सन 2011 में अंतरिम ड्राफ्ट बिल तैयार किया जिसके कुछ सुझाव बेहद खतरनाक और विवादास्पद थे।
कम्युनल वॉइलैंस बिल हर राज्य की जनसंख्या को दो समूहों बहुसंख्यक (dominant) और अल्पसंख्यक (non-dominant) में विभाजित करता है। इस विभाजन का आधार धर्म था।
इस विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू समूह (group) की परिभाषा है। इस विधेयक का पहला पारा ही एक तरह से घोषणा करता है कि दंगे हमेशा ही बहुसंख्यकों की तरफ से किये जाते हैं।
पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों और जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त पूरे देश में हिन्दू ही बहुसंख्यक समुदाय है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कश्मीर, जहाँ हिंदुओं पर सबसे अधिक अन्याय हुआ, वहाँ यह कानून लागू ही नही होना था।
बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक तय करने के लिए राज्य को इकाई माना गया। उत्तरप्रदेश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं लेकिन रामपुर जिले में अल्पसंख्यक। लेकिन कानून की मान्यता थी कि दंगा रामपुर में भी हुआ तो दंगाई हिन्दू होगा और पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति होगा।
यह विधेयक स्पष्ट कहता है कि पीड़ित प्रत्येक परिस्थिति में अल्पसंख्यक ही होगा। ऐसी मान्यता अपने आप मे क्रूरतापूर्ण और संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
इस विधेयक में साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा की परिभाषा भी बेहद खतरनाक है. यह कहता है कि अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति द्वेषपूर्ण भावना रखना, अल्पसंख्यक समुदाय के व्यापार का बहिष्कार करना भी इस कानून में अपराध था।
अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति को शारीरिक, आर्थिक, मानसिक और भावनात्मक हानि या पीड़ा भी इस कानून के अंतर्गत आता है। कानून यह नहीं बताता कि भावनात्मक और मानसिक पीड़ा में कौन सी घटनाएं आएंगे।
आइए, हम इसे समझने की कोशिश करते हैं।
== मान लीजिये सड़क पर चलते हुए आपकी साइकिल किसी कार से टकरा गई और आपका कार वाले से झगड़ा हो गया और दुर्योग से वह कार वाला एक अल्पसंख्यक हुआ तो आप इस कानून के अंतर्गत दोषी होंगे।
== यदि आपने एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को घर किराए पर देने से मना कर दिया तो वह मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाकर आपको जेल भेज सकता है।
== कक्षा में इतिहास पढ़ाते हुए आप इस्लामिक अत्याचार की कहानी बताएं तो अल्पसंख्यक समुदाय के किसी छात्र की भावना आहत हो सकती है और आप जेल के अंदर पहुँच सकते हैं।
== यहाँ तक कि तीन तलाक की आलोचना भी आपको जेल की रोटी चबाने पर मजबूर कर देगी।
== लेकिन किसी दंगे में एक हिन्दू महिला का बलात्कार हो जाये तो यह कानून उसे पीड़ित नही मानेगा क्योंकि इस कानून का आधार ही यह मान्यता है कि अल्पसंख्यक ही पीड़ित होगा।
== इस विधेयक का आर्टिकल 56 कहता है कि इस कानून में परिभाषित सभी अपराध गैर जमानती होंगे। यही नही, आर्टिकल 70, 71 और 72 कहते हैं कि स्वयं को निर्दोष साबित करने का दायित्व आरोपी पर होगा।
== पीड़ित का बयान ही आरोपी के विरुद्ध प्रमाण होगा। यदि आरोपी स्वयं को निर्दोष साबित न कर सका तो वह अपराधी माना जाएगा।
यह कानून देश के संघीय ढाँचे को भी चुनौती देता है क्योंकि इस कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार को अधिकार होगा कि वह किसी भी राज्य के किसी क्षेत्र को साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील घोषित कर इस कानून की धाराएं लागू कर दे।
भारत मे दंगों का इतिहास बहुत पुराना है और यह इतिहास बताता है कि दंगे शायद ही कभी बहुसंख्यक समुदाय के उकसावे पर हुआ हो।
राजीव गाँधी के शासनकाल में केंद्र सरकार ने जब साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील जिलों के पहचान का काम किया तो अधिकतर ऐसे जिले जहाँ हिन्दू समाज अल्पसंख्यक है, वे ही सामने आए।
लेकिन इस इतिहास को भुलाकर तत्कालीन सरकार जैसे हिंदुओं को दंडित करने पर ही तुली थी।
यदि यह कानून लागू हो जाता तो हिंदुओं की हालत देश मे दोयम दर्जे के नागरिक की हो जाती।
हिन्दुओं की संपत्ति कब्जाने के लिये, उनका व्यपार नष्ट करने के लिए, उनके परिवार की महिलाओं पर बुरी नजर रखने वाले इस कानून का जमकर दुरुपयोग करते।
भाजपा और संघ परिवार के तीव्र विरोध और काँग्रेस की गिरती राजनीतिक सेहत ने इस कानून को फरवरी 2014 में स्थगित करवा दिया। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद यदि राजनीतिक हालात बदले तो इस काले कानून के बोतलबंद जिन्न के बाहर आने की आशंका के बादल फिर मँडराने लगेंगे।
 पढ़ने के बाद आप को काँग्रेस की हिंदुओं के प्रति कुदृष्टि समझ आ गई होगी।अनिल ठाकुर
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एक_महत्वपूर्ण_जानकारी
1973 से 1985 तक इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान प्रेम नाथ बहल नाम का एक IAS अधिकारी प्रधानमंत्री सचिवालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत था। पीएन बहल नाम का यह अधिकारी अक्टूबर 1984 में हुई इंदिरा गांधी की हत्या तक राजनीतिक मामलों में इंदिरा गांधी के निजी सलाहकार की ड्यूटी निभाता था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ महीनों तक राजीव गांधी के साथ भी वो यही ड्यूटी निभाता रहा था। जनवरी 1985 में राजीव गांधी ने संसद में एक सनसनीखेज खुलासा किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय में जासूसों के एक गिरोह को चिन्हित किया गया है। इस गिरोह में ज्वाइंट सेक्रेटरी रैंक के कई IAS अधिकारी शामिल हैं। आईबी इस सन्दर्भ में आगे की जांच कर रही है। राजीव गांधी ने तब संसद से अनुरोध किया था कि इस सन्दर्भ में अभी ज्यादा कुछ बताने का दबाव मुझ पर मत डालिये क्योंकि इससे जांच प्रभावित हो जाएगी। अपने इस खुलासे के कुछ दिनों बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कई अधिकारियों को हटा दिया था। हटाये गए अधिकारियों में पीएन बहल भी शामिल था।
राजीव गांधी के उस सनसनीखेज खुलासे और प्रधानमंत्री कार्यालय से अधिकारियों के हटाये जाने की कार्रवाई के मध्य कोई सम्बन्ध था या नहीं.? यह कभी स्पष्ट नहीं हो सका। लेकिन राजीव गांधी के जीवनकाल तक पीएन बहल को फिर कभी किसी जिम्मेदार पद पर नहीं नियुक्त किया गया। किन्तु राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात 1991 में कांग्रेस की सत्ता में हुई वापसी के साथ ही पीएन बहल पुनः महत्वपूर्ण हो गया था और आश्चर्यजनक रूप से गांधी परिवार का भी करीबी हो गया था।
इसके बाद ही अगले 5-6 वर्षों में उसके लड़के के मीडिया हाउस TV18 ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करना प्रारम्भ किया था।
इस पीएन बहल का लड़का है राघव बहल। यह वही राघव बहल है जिसने अपनी वेबसाइट पर तीन दिन पहले ही यह रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें यह दावा किया गया है कि कुलभूषण जाधव पाकिस्तान में रॉ के लिए काम करता था।
ज्ञात रहे कि भारत इस पाकिस्तानी आरोप को झुठलाता रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में स्वयं पाकिस्तान भी ऐसा एक भी सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे उसके आरोप की पुष्टि हो। किन्तु राघव बहल की वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार कुलभूषण जाधव को लेकर पाकिस्तान सच बोल रहा है, भारत झूठ बोल रहा है। इसकी वेबसाइट की उस रिपोर्ट को पाकिस्तान पिछले 3 दिनों से अंतरराष्ट्रीय मंचों और मीडिया में एक सबूत के रूप में प्रस्तुत कर के स्वयं को सच्चा और भारत को झूठा, कुलभूषण जाधव को आतंकवादी तथा उसको सुनाई गई फांसी की सज़ा को न्यायोचित सिद्ध करने में जुटा हुआ है।
इससे पहले बीते वर्ष मार्च 2017 में इसी राघव बहल की वेबसाइट में प्रकाशित एक खबर के कारण सेना के जवान रॉय मैथ्यू ने आत्महत्या कर ली थी। उस सम्बन्ध में केस भी दर्ज है।
और थोड़ी जानकारी यह भी क़ि ये वही राघव बहल है जो कुछ वर्षों पूर्व तक TV18 मीडिया हाउस का मालिक हुआ करता था। इसने अपने न्यूजचैनल IBN7 द्वारा किये गए 2008 के वोट फ़ॉर कैश के स्टिंग ऑपरेशन को नहीं दिखाया था।
राघव बहल ने अपनी वेबसाइट पर भारत को झूठा, पाकिस्तान को सच्चा तथा कुलभूषण को आतंकवादी सिद्ध करने की खबर क्यों प्रकाशित की.? यह आसानी से समझा जा सकता है।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
देश बचाना है तो जरुर पढ़े

2019 में मोदी क्यूँ है जरुरी इसको समझने के लिए भारत की जनता को Ashwini Upadhyay जी की ये पोस्ट पढनी चाहिए

हमारे दादा जी स्वर्गीय नेहरु जी को देशभक्त समझते थे लेकिन मुझे लगता है कि नेहरूजी सत्ता भक्त थे I
मेरे पिताजी स्वर्गीय इंदिरा जी को को देशभक्त मानते थे लेकिन अब मुझे लगता है कि वह भी गलत थे I
2014 तक मैं केजरीवाल जी को देशभक्त समझता था, लेकिन अब लगता है कि मैं भी गलत था I
कुछ दिन पहले तक जो लोग राम-रहीम और निर्मल बाबा को संत मानते थे अब वे भी अपनी गलती स्वीकार करते हैं I
नेहरु जी के सेकुलरिज्म को समझने में हमें 50 साल लगा और मुलायम सिंह के समाजवाद को पहचानने में 25 साल लेकिन युवा पीढ़ी ने केजरीवाल की ईमानदारी और राहुल जी की जनेऊगीरी को बहुत जल्दी पहचान लिया इससे स्पस्ट हैं कि आज का युवा बहुत समझदार है और उसे बेवकूफ बनाना बहुत मुश्किल हैI
आने वाली पीढ़ियाँ यह जरुर तय करेंगी कि कौन सच्चा राष्ट्रवादी है और कौन झूंठा, कौन असली समाजवादी है और कौन नकली, कौन ईमानदार है और कौन नटवरलाल, कौन वास्तव में पंथनिरपेक्ष है और कौन पंथनिरपेक्षता का पाखंड करता है, कौन देशभक्त है और कौन देशभक्त भाषणबाज I
अयोध्या का विषय सुप्रीम कोर्ट में है और अधिकतम 6 महीने में इसका फैसला भी आ जायेगा और मुझे 100% विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी हिंदुओं के पक्ष में ही होगा लेकिन जिन विषयों पर संसद में कानून बनाना है उस पर बहस क्यों नहीं हो रही है?
आखिर राष्ट्रवाद के विषयों पर संसद में चर्चा करने से हमारे सांसद क्यों डरते हैं?
हमारी आने वाली पीढ़ियां हमसे पूंछेंगी कि राष्ट्रवादी मुद्दों पर संसद में चर्चा करने से किसने रोका था? हमारे बच्चे पूंछेंगे कि अंग्रेजों का कानून समाप्त करने तथा घूसखोरों, जमाखोरों, मिलावटखोरों, तस्करों, कालाबाजारियों, हवाला कारोबारियों, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति के मालिकों की शत-प्रतिशत संपत्ति जब्त करने और आजीवन कारावास की सजा देने के लिए कानून बनाने से किसने रोका था?
 राष्ट्रवाद के मुद्दों पर ईमानदारी से चर्चा करें
1. कांग्रेस ने पूजा स्थल (विशेष अधिनियम) कानून, 1991, बनाकर धार्मिक स्थलों की 15.8.1947 की यथा स्थिति कायम कर दिया अर्थात मुगलों द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गयी मस्जिदों को कानूनी मान्यता दे दिया! भाजपा और अन्य दलों के भारी विरोध के बावजूद कांग्रेस सरकार ने 1991 में यह कानून बनाया था I
यदि 1991 में एक विशेष कानून बनाकर 1947 की यथास्थिति बहाल की जा सकती है तो 2019 में भी एक कानून बनाकर धार्मिक स्थलों की 8वीं शताब्दी की यथास्थिति भी बहाल की जा सकती है और सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में एक आयोग बनाकर काशी, मथुरा, जौनपुर, विदिशा, भद्रकाली सहित अन्य सभी विवादित धार्मिक स्थलों का भी स्थाई समाधान किया जा सकता है और यह कार्य संसद को ही करना है I
2. बाबा साहब अंबेडकर और अधिकांश संविधान निर्माता सबके लिए एक समान नागरिक संहिता चाहते थे, इसीलिए विस्तृत विचार-विमर्श के बाद संविधान में आर्टिकल 44 जोड़ा गया लेकिन आज भी हिंदू के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, मुसलमान के लिए मुस्लिम मैरिज एक्ट तथा इसाई के लिए क्रिस्चियन मैरिज एक्ट लागू है I
देश के एकता-अखंडता को मजबूत करने तथा सभी महिलाओं को सम्मान और न्याय दिलाने के लिए बाबा साहब का समान नागरिक संहिता का सपना साकार करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
3. श्यामा प्रसाद जी का सपना था- “एक देश,एक विधान और एक संविधान” लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी “एक देश, दो विधान और दो संविधान” जारी है I संविधान में गलत तरीके से जोड़ दिए गए आर्टिकल 35A और अंशकालिक समय के लिए संविधान में रखे गए आर्टिकल 370 को आजतक समाप्त नहीं किया गया तथा कश्मीर में अलग संविधान भी लागू है I
देश की एकता-अखंडता तथा आपसी भाईचारा को मजबूत करने के लिए श्यामा प्रसाद जी का “एक देश,एक विधान और एक संविधान” का सपना साकार करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
4. लोहिया जी कहते थे कि जबतक मंत्री और संतरी, क्लर्क और कलेक्टर, सिपाही और कप्तान तथा पार्षद और सांसद के बच्चे एक साथ नहीं पढ़ेंगे तबतक समता, समानता और समान अवसर की बात करना एक पाखंड है I संविधान का आर्टिकल 16 भी सबके लिए समान अवसर की बात करता है और समान पाठ्यक्रम लागू किये बिना सभी बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराना नामुंकिन है I
पठन-पाठन का माध्यम भले ही अलग हो लेकिन पाठ्यक्रम तो पूरे देश में एक समान होना चाहिए लेकिन “एक देश-एक कर” की भांति “एक देश-एक शिक्षा बोर्ड” लागू करने के लिए आजतक गंभीर प्रयास नहीं किया गया I गरीब बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए देश के प्रत्येक विकास खंड में एक केंद्रीय विद्यालय या नवोदय स्कूल खोलना भी बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
5. सरदार पटेल का सपना था “एक देश, एक नाम, एक निशान और एक राष्ट्रगान” लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी दो नाम (भारत और इंडिया), दो निशान (तिरंगा और कश्मीर का झंडा) और दो राष्ट्रगान (जन-गन-मन और वंदेमातरम) जारी हैI संविधान या कानून में राष्ट्रगीत का कोई जिक्र नहीं है और संविधान सभा के 24.1.1950 के प्रस्ताव के अनुसार “वंदेमातरम” भी हमारा राष्ट्रगान है I
देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए सरदार पटेल का का सपना साकार करना तथा“वंदेमातरम” को “जन-गन-मन” के बराबर सम्मान देना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
6. दीनदयाल जी धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक वर्गीकरण के खिलाफ थेI भारतीय संविधान या किसी भी भारतीय कानून में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं है फिर भी लक्षदीप के 96% मुसलमान अल्पसंख्यक और 2% हिंदू बहुसंख्यक कहलाते हैंI
भारत को छोड़ दुनिया के किसी भी सेक्युलर देश में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक - बहुसंख्यक वर्गीकरण नहीं किया जाता है और दुनिया के सभी देशों में 5% से कम जनसँख्या वाले समुदाय को ही अल्पसंख्यक माना जाता हैंI धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक - बहुसंख्यक का विभाजन समाप्त करने के लिए संविधान के आर्टिकल 25-30 में संशोधन करना जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
7. गांधीजी का सपना था शराब-मुक्त और नशा-मुक्त भारत I संविधान का आर्टिकल 47 भी यही कहता है अर्थात संविधान निर्माता भी शराब-मुक्त और नशा-मुक्त भारत चाहते थेI शराब और नशे के कारण अपराध और रोड एक्सीडेंट बढ़ रहा है, बीमारी और बेरोजगारी बढ़ रही है, लाखों परिवार बर्बाद हो चुके हैं तथा महिलाओं और बच्चों की जिंदगी नर्क बन गयी है,
इसलिए भारत को शराब-मुक्त और नशा-मुक्त देश घोषित करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
8. बहुमत के अभाव में जस्टिस वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को अटल जी लागू नहीं कर पाये और कांग्रेस ने मनरेगा जैसे चुनिंदा लोकलुभावन सुझावों को ही लागू कियाI
दो साल तक विस्तृत विचार-विमर्श के बाद आयोग ने 248 सुझाव दिया था लेकिन इन पर संसद में चर्चा ही नहीं हुयीI आयोग के 24वें सुझाव के अनुसार जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
9. संविधान के आर्टिकल 312 के अनुसार जजों के चयन के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)की तर्ज पर भारतीय न्यायिक सेवा (IJS) शुरू करना चाहिएI सुप्रीम कोर्ट ने स्पस्ट कहा है कि विशिष्ट सेवाओं में आरक्षण नहीं होना चाहिए और केवल योग्यता के आधार पर ही चयन होना चाहिए I जज भी विशिष्ट सेवा में ही आते हैं और यदि जज अयोग्य होगा तो लोगों के साथ न्याय नहीं कर पायेगाI
वर्तमान समय में निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए राज्य स्तर पर परीक्षा का आयोजन होता है जिससे प्रत्येक राज्य में जजों की क्षमता और गुणवत्ता अलग-अलगहोती है और न्यायिक फैसले में अत्यधिक अंतर होता है इसलिए IJS शुरू करना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
10. आर्टिकल 343 के अनुसार हिंदी हमारी राजभाषा है अर्थात लोकसेवकों को हिंदी का ज्ञान होना जरुरी है इसलिए नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में हिंदी का एक प्रश्नपत्र अनिवार्य होना चाहियेI 90% भारतीय हिंदी समझते हैं इसलिए हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करना चाहिए और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
11. संविधान के आर्टिकल 348 के अनुसार जबतक संसद एक कानून नहीं बनायेगी तबतक सुप्रीम कोर्ट का सभी कार्य अंग्रेजी में होगा I लगभग 90% भारतीय अपने दैनिक जीवन में हिंदी का उपयोग करते हैं और देश को आजाद हुए 70 साल बीत गया है
लेकिन एक कानून बनाकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य नहीं किया गया जबकि यह कार्य भी संसद को ही करना है I
12. संविधान के आर्टिकल 351 के अनुसार हिंदी-संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है इसलिए शिक्षा अधिकार कानून में संशोधन कर 6-14 साल के सभी बच्चों के लिए हिंदी-संस्कृत विषय का पठन-पाठन अनिवार्य करना चाहिए I
देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने तथा भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए हिंदी-संस्कृत भाषा का पठन-पाठन सभी बच्चों के लिए बहुत जरुरी है लेकिन शिक्षा अधिकार कानून में आजतक संशोधन नहीं किया गया जबकि यह कार्य भी संसद को ही करना है I
13. अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गयी भारतीय दंड संहिता, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और कई अन्य कानून आज भी लागू हैं इसीलिए लोगों को बहुत देर से न्याय मिल रहा हैI
25 साल से अधिक पुराने सभी कानूनों की समीक्षा तथा अपराधियों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेनमैपिंग टेस्ट अनिवार्य करने के लिए एक कानून की अत्यधिक जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
14. घुसपैठ हमारे देश की एक प्रमुख समस्या हैI भारत में रहने वाले चार करोड़ बंगलादेशी और एक करोड़ रोहिंग्या घुसपैठिये बहुत तेजी से जनसँख्या विस्फोट कर रहे हैं इसलिए पूरे देश में इनकी पहचान करना तथा स्वदेश भेजने तक इन्हें जेल में रखना बहुत जरुरी हैI
घुसपैठियों और उनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त करने तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए तत्काल एक कठोर और प्रभावी कानून की जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
15. अलगाववाद और कट्टरवाद की फंडिंग हवाला के जरिये कैश में होती हैं इसलिए इसे जड़ से समाप्त करने के लिए 100 रुपये से बड़े नोट तत्काल बंद करना चाहिए और 10 हजार रुपये से महँगी वस्तुओं के कैश लेन-देन पर प्रतिबंध लगाना चाहिएI
अलगाववादियों, चरमपंथियों और उनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त करने तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक कठोर और प्रभावी कानून की तत्काल आवश्यकता है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
16. घूसखोरी, कमीशनखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी और कालाबाजारी को समाप्त करने के लिए एक लाख रूपये से महंगी वस्तुओं और संपत्तियों को आधार से लिंक करना चाहिए तथा बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति के मालिकों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए तत्काल एक कठोर और प्रभावी कानून बनाना जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
17. अंधविश्वास, कालाजादू और चमत्कार के सहारे सनातन धर्म को अलग-2 पंथों में तोड़ा जा रहा है और धर्म-परिवर्तन भी किया जा रहा हैI धर्मांतरणद्वारा विदेशी शक्तियां हिंदुओं को अल्पसंख्यक बना रही हैंI
लक्षदीप-मिजोरम में हिंदू 2%, नागालैंड में 8%, मेघालय में 11%, कश्मीर में 28%, अरुणाचल में 29% और मणिपुर में 30% बचे हैं इसलिए अंधविश्वास, कालाजादू और पाखंड फ़ैलाने वालों तथा धर्मांतरण कराने वालों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक कठोर केंद्रीय कानून की जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
18. जब तक हवाला कारोबारियों, नशे के तस्करों तथा मानव तस्करों और इनके मददगारों की 100% संपत्ति जब्त कर आजीवन कारावास नहीं दिया जायेगा तब तक इन समस्याओं पर भी नियंत्रण असंभव है
इसलिए इन कानूनों में तत्काल संशोधन की जरुरत है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
19. चुनाव सुधार के लिए वेंकटचलैया आयोग, विधि आयोग और चुनाव आयोग के सुझावों को लागू करना चाहिए I सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना तथा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण करना भी बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
20. पुलिस सुधार पर सुप्रीम कोर्ट का 2006 का ऐतिहासिक फैसला आजतक लागू नहीं किया गया I जबतक अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाया गया पुलिस एक्ट समाप्त नहीं किया जाएगा और सोराबजी समिति द्वारा 2006 में बनाया गया
मॉडल पुलिस एक्ट लागू नहीं किया जाएगा तब तक पुलिस प्रभावी और स्वतंत्र रूप से अपना कार्य नहीं कर पायेगी और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
21. मौलिक कर्तव्य के प्रचार-प्रसार के लिए वेंकटचलैया आयोग और जस्टिस वर्मा समिति के सुझावों को आजतक लागू नहीं किया गया जबकि देश की एकता-अखंडता और आपसी भाईचारा मजबूत करने के लिए सभी नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्य का ज्ञान होना बहुत जरुरी है और यह कार्य भी संसद को ही करना है I
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जनसँख्या धर्मांतरण और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, चुनाव सुधार पुलिस सुधार और न्यायिक सुधार तथा भारतीय संविधान और वेंकटचलैया आयोग के सुझावों को शत-प्रतिशत लागू किये बिना रामराज्य अर्थात स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, साक्षर भारत, सबल भारत, समृद्ध भारत, सुरक्षित भारत, समावेशी भारत, स्वावलंबी भारत, स्वाभिमानी भारत, संवेदनशील भारत तथा अलगाववाद और अपराध-मुक्त भारत का सपना साकार नहीं हो सकता है और इन विषयों पर कानून बनाना संसद के ही अधिकार क्षेत्र में आता है I
विकास जरूरी है और विकास खूब किया भी गया लेकिन राष्ट्रवाद भी बहुत जरूरी है, इसलिए माननीय सांसदों को राष्ट्रवाद से संबंधित उपरोक्त विषयों पर संसद में विस्तृत चर्चा करना चाहिएI
याद रखें - महात्मा गांधी, लोहिया, दीनदयाल, पटेल, आंबेडकर और श्यामाप्रसाद जी के सपनों को साकार किये बिना भारत माता की जय नहीं हो सकती है
 : अश्वनी उपाध्याय, सुप्रीमकोर्ट अधिवक्ता
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न्यायालय के इस रुख को देखकर आम जनमानस सरकार से अध्यादेश लाने के लिए कह रहा है। पर अदालत में उसे भी चुनौती दी जा सकती है। लेकिन जहां रामलला विराजमान हैं वहां मंदिर ही था, इसके अकाट्य साक्ष्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई के दौरान मिले। इसलिए सिर्फ गुम्बद के नीचे ही नहीं, वहां की पूरी भूमि आराध्य और पूज्य है। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा खारिज किया जाता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा भी खारिज किया जाता है। अब जीता कौन? विजयी हुए सिर्फ रामलला विराजमान। मुकदमे के पक्षकार देवकी नंदन अग्रवाल, जो ‘नेक्स्ट फ्रेंड आॅफ रामलला’ के तौर पर पक्षकार थे। उनका ही पक्ष विजयी हुआ। लेकिन मुकदमे का फैसला करते समय पंचायत बैठा दी गई। इसलिए सभी पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय गए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह तो भूमि विवाद का मुकदमा था, इसमें बंटवारा क्यों किया गया।


सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई पर उस सुनवाई को लगातार टलवाने का प्रयास हुआ। पहले यह कहा गया कि 7 जजों की बेंच में सुनवाई की जानी चाहिए। फिर यह हुआ कि यह 14 हजार पेज का फैसला है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद करने में बहुत समय लगेगा। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मात्र 4 महीने में 14,000 पन्नों का अनुवाद करा दिया। और फिर 29 अक्तूबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह मुकदमा उसकी प्राथमिकता में नहीं है।

समस्या यह है कि हमारे पास साक्ष्य हैं। हम लगातार कह रहे हैं कि वहां पर मंदिर होने के प्रमाण मिल चुके हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में यह साबित भी हो चुका है। फिर किस बात की देरी है? हम लोग यही प्रार्थना कर रहे हैं कि केवल आप सुनवाई कर लीजिये मगर किसी ना किसी बहाने सुनवाई टलवा दी जा रही है। एक बार जब सुनवाई शुरू हुई तो अदालत में यह कहा गया कि इस मुकदमे की सुनवाई को लोकसभा चुनाव 2019 तक टाल दी जाए। आखिर दूसरे पक्षकार सुनवाई से भाग क्यों रहे हैं? हम सभी को मालूम है कि वे सुनवाई से क्यों भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें फैसले में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि जनवरी के महीने से सुनवाई शुरू हो जायेगी।

(मोनिका अरोड़ा उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठतम अधिवक्ता)
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आतंकियों के आका “प्रशांत भूषण” पर भड़के वकील L.N. पाराशर
राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA छापेमारी केस में पकडे गए ISIS मोड्यूल के संदिग्ध आतंकियों का सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने समर्थन किया है, जबकि NIA पर सवाल खड़ा कर दिया है.
क्या था प्रशांत भूषण का बयान
वकील प्रशांत भूषण ने NIA पर आरोप लगाते हुए कहा – लगता है फिर से एनआईए अपने पुराने खेल खेल रही है। बेकसूर मुसलमानों को पकड़कर आईएस आईएस का एजेंट बताकर बड़ी आतंकी साजिश कह रही है।गांव के लोगों का आरोप है कि इनके सब आईडेंटिटी कार्ड जला दिए। ट्रैक्टर के पाइप को रॉकेट लॉन्चर और लोहे के चूरे को बारूद बना दिया.
वकील प्रशांत भूषण के इस शर्मनाक कृत्य को देखकर दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एल. एन. पाराशर ने भूषण पर  बोलते हुए कहा – मुझे ऐसा लगता है कि कुछ लोग पैसे के लिए देश बेंच सकते हैं। आतंकियों का साथ दे सकते हैं। उनकी वकालत कर सकते हैं। लेकिन मुझे कोई एक करोड़ या उससे ज्यादा भी दे तो भी मैं कभी किसी आतंकी का साथ नहीं दे सकता क्यू कि मैं अपने देश की सेना और पुलिस से प्यार करता हूँ. मुझे वकालत करते हुए तीन दशक से ज्यादा हो गए। कई केस ऐसे भी आये जिनमे मैं करोड़ों कमा सकता था लेकिन मैंने ऐसे केस नहीं लिए क्यू कि ऐसे केस देश विरोधी लोगों के थे। पाराशर ने कहा कि देश के तमाम युवा देश को आजाद करवाने के लिए फांसी पर चढ़ गए। और आज कुछ पैसे कमाने के लिए जेहादियों का साथ दे रहे हैं.
 दिल्ली और यूपी की 17 जगहों पर NIA ने छापे मारकर 10 संदिग्ध आतंकियों को अरेस्ट कर लिए. NIA ने 25 किलो बारूद, 112 अलार्म क्लॉक, 12 पिस्टल, रॉकेट लॉंचर, बुलेट प्रूफ़ जैकेट, 90 मोबाइल फ़ोन, फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों से लिए 134 सिम कॉर्ड, 7.5 लाख कैश बरामद किए गए. लेकिन देश के तथाकथित लोग इसे मानने से इंकार कर रहे हैं, NIA ने सभी संदिग्ध आतंकियों को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, इस दौरान पटियाला हाउस कोर्ट ने आरोपियों को 12 दिन के लिए एनआईए के रिमांड में सौंप दिया है.

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जैसलमेर में विदेशी पैसों के दम पर और खासकर सालेह मोहम्मद के दम पर मुसलमानों ने ऐसे तमाम आलीशान हवेली टाइप होटल्स बना दी है और मजे की बात यह विभाग के आदेश के अनुसार जैसलमेर के किले के 100 मीटर के अंदर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता फिर भी मुसलमानों ने यहां पर ऐसे तमाम आलीशान होटल बना दिए हैं और अभी भी होटल का निर्माण करा भी रहे हैं क्योंकि उनके पास सालेह मोहम्मद जैसा व्यक्ति है जो अपने पैसे आपने गुंडागर्दी या अपने जनसमर्थन के दम पर कुछ भी करवा सकता है


जैसे गुजरात महाराष्ट्र राजस्थान में चेलिया मुसलमानों ने हाईवे पर होटल का पूरा बिजनेस अपनी एकता के दम पर हिंदुओं से छीन लिया और आज गुजरात महाराष्ट्र में हाईवे पर 99.99% होटल्स चेलिया मुसलमानों की है उसी तरह अब यह मुसलमान पश्चिमी राजस्थान के होटल बिजनेस भी हिंदुओं से छीनते जा रहे हैं ।। क्योंकि हिंदू जातिवाद के जहर से बिखरता जा रहा है जिसका फायदा मुसलमान उठा रहे हैं

सालेह मोहम्मद का पिता गाजी फकीर एक धर्मगुरु है और कांग्रेस से विधायक था .. वह जाना माना तस्कर था और उसकी हिस्ट्री शीट खुली हुई थी और एक पुलिस अधिकारी पंकज चौधरी ने जब उस पर शिकंजा कसना शुरू किया तब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पंकज चौधरी का ट्रांसफर कर दिया .. और अब अशोक गहलोत दुबारा मुख्यमंत्री बने हैं और गाजी फकीर का बेटा सालेह मोहम्मद केबिनेट मंत्री बनाया गया है

और लोग कहते हैं कि उसके पास एक लाख वोट है और उस वोट बैंक की ताकत से वह पश्चिमी राजस्थान में अपनी गुंडागर्दी और अपनी स्मगलिंग की दुकान चलाता है और अब सबसे दुखद बात यह है कि पोखरण सीट पर साले मोहम्मद के सामने हिंदू धर्म के महान धर्म गुरु प्रताप पुरी स्वामी जी लड़े थे वही प्रताप पुरी स्वामी जी जो सीमा से सटे इलाकों में हिंदुओं के लिए काम कर रहे हैं लेकिन वह मात्र 800 वोट से हार गए और साले मोहम्मद को कांग्रेस सरकार ने राजस्थान में कैबिनेट मंत्री बना दिया अब जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर और सीमा पर धर्म परिवर्तन खूब बढ़ेगा स्मगलिंग खूब होगी मुसलमानों की गुंडागर्दी खूब होगी

और एक और जरूरी बात मैं आपको बता दूं अगर आप कभी भी जैसलमेर चाहिए तो होटल करने के लिए लपकाओं के चक्कर में मत पड़िए क्योंकि यह सभी मुसलमान टूरिस्टो को फंसाने के लिए लपका रखते हैं और उन्हें झूठ बोल कर अपने होटल में लाते हैं फिर डेजर्ट सफारी या कैमल सफारी के नाम पर टूरिस्टो को जमकर लूटते हैं और यदि कोई टूरिस्ट पुलिस में शिकायत करता है तो भी कुछ नहीं होता आपको वहां हर मुस्लिम होटल के काउंटर पर चक चक और लड़ाई सुनाई देगी क्योंकि ये टूरिस्टों को 5000 बोल कर लाते हैं और उनसे ₹50000 वसूलते है .. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इनके अंदर जमीर या मानवता या इंसानियत नहीं होती

इसलिए आप जैसलमेर जाइए तो किसी धर्म विशेष यानी शांति दूत के होटल में मत रुकिए-jitendra pratap singh
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भीड़भाड़ वाले इलाके, बड़े नेता और 26 जनवरी को धमाके की साजिश कैसे रची गई ?
अमरोहा के गांव सैदपुर इम्मा में एक गांव वाले के घर एनआईए के अफसर बतौर नौकर बनकर रह रहे थे। इन अफसरों ने आतंकी नेटवर्क की पल-पल की जानकारी आला अफसरों तक पहुंचाई। एनआईए की टीम की नजर सबसे ज्यादा अमरोहा के आईएस मॉडयूल पर थी। इसके लिए एनआईए के अधिकारी अमरोहा में पालिका की सर्वे टीम में शामिल होकर मुफ्ती सुहैल के घर के आसपास जानकारी जुटाई। सर्वे टीम में ही शामिल होकर एनआईए के अधिकारी दो हफ्ते पहले मुफ्ती सुहैल के घर पहुंचे थे।
इसकी भनक स्थानीय पुलिस और स्थानीय खुफिया एजेंसियों को भी नहीं लगने दी। जब छापेमारी की पूरी तैयारी कर ली गई तो स्थानीय पुलिस को घेराबंदी के लिए एन वक्त पहले जानकारी दी गई।देसी रॉकेट लॉन्चर, 25 किलो पोटैशियम नाइट्रेट, 12 पिस्टल, 150 गोलियां, 135 सिम, 91 फोन, 3 लैपटॉप, चाकू, तलवार, 120 अलार्म घड़ियां, बम बनाने के 51 पाइप और एक वीडियो जिसमें बम बनाने का तरीका बताया जा रहा है ।

Monday 17 December 2018

sanskar- feb

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पिता को याद करने का तरीका: रोज 500 भूखे लोगों को भोजन कराता है बेटा

लखनऊ में रहने वाले विशाल सिंह अस्पताल में इलाज करा रहे गरीब मरीजों के साथ आए तीमारदारों को मुफ्त में भोजन कराते हैं। इस सेवा के प्रेरणास्रोत दरअसल उनके पिता हैं। विशाल के पिता 15 वर्ष पहले गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे। इलाज कराने के लिए विशाल के पास पैसे कम होने की वजह से वे एक वक्त बिना कुछ खाए ही रह जाते थे। वे बताते हैं कि उन्होंने उस वक्त दूसरों का दिया हुआ बासी समोसा भी खाया। उनके साथ ही कई अन्य तीमारदार ऐसे हुआ करते थे जो एक वक्त बिना कुछ खाए ही सो जाया करते थे। हालांकि विशाल के पिता की तबीयत सही नहीं हो पाई और उनका देहांत हो गया। इसके बाद विशाल अपने शहर लखनऊ वापस चले आए। अपने पिता को खो चुके विशाल लखनऊ एक सीख और प्रतिज्ञा लेकर आए थे। उन्होंने ठान लिया था कि ऐसे गरीब और नि:शक्त मरीजों के लिए कुछ बेहतर करना है। विशाल को इसके लिए हजरतगंज में चाय के ठेले से लेकर साइकिल स्टैंड पर टोकन लगाने का काम किया। लेकिन हार नहीं मानी। इसके बाद विशाल को पार्टियों में खाना बनाने का काम मिल गया। लेकिन इस मुफलिसी के दौर में भी वह अपने घर से भोजन बना कर अस्पताल में जरूरतमंदो को भोजन कराने जाया करते था। इसके बाद विशाल कंस्ट्रक्शन क्षेत्र से जुड़ गए। यहां उनके करियर को तरक्की मिली और उनकी जिंदगी सही रास्ते पर चल निकली। इसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के नाम पर विजय श्री फाउंडेशन प्रसादम सेवा नाम के एक एनजीओ की स्थापना की। जो कि मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के तीमारदारों को भोजन उपलब्ध करवाने का काम करता है। लखनऊ के केजीएमसी में प्रतिदिन ढाई सौ लोगों को निशुल्क भोजन सेवा कराई जाती है इसके लिए प्रतिदिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा एक अधिकारी नियुक्त किया गया है जो प्रसादम सेवा में आकर प्रतिदिन ढाई सौ टोकन ले जाकर अस्पताल के विभिन्न वार्डों में निशक्तजनों को बांटता है और वह लोग अपराह्न 1:00 बजे आकर प्रसादम हॉल के बाहर बैठ जाते हैं और फिर उन लोगों को उन टोकन पर एक व्यक्ति क्रमांक देता है और अपने क्रमांक पर बुलाए जाने पर वह व्यक्ति अंदर आकर भोजन ग्रहण करता है। प्रतिदिन खाने का मेन्यू अलग रहता है। खाने में दाल चावल रोटी सब्जी सलाद अचार आदि की व्यवस्था होती है और खाना काफी पौष्टिक होता है। विशाल इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। खास बात यह भी है कि वे किसी भी तरह का नकद चंदा नहीं लेते हैं। इसके बजाय लोगों से आवश्यक वस्तुएं देने या श्रमदान के लिए कहा जाता है। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

चटगांव (वर्तमान में बंगलादेश का जनपद) के नोआपारा में कार्यरत एक शिक्षक श्री रामनिरंजन के पुत्र के रूप में 22 मार्च 1894 को जन्में सूर्यसेन की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा चटगांव में ही हुई थी। जब वह इंटरमीडिएट में थे तभी अपने एक राष्ट्रप्रेमी शिक्षक की प्रेरणा से वह बंगाल की प्रमुख क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति के सदस्य बन गए और क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे लगे। इस समय उनकी आयु 22 वर्ष थी। आगे की शिक्षा के लिए वह बहरामपुर गए और उन्होंने बहरामपुर कॉलेज में बी.ए. में दाखिला ले लिया। यहीं उन्हें प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन “युगांतर” के बारे में पता चला और वह उससे अत्यधिक प्रभावित हुए। युवा सूर्य सेन के हृदय में स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना दिन-प्रति-दिन बलवती होती जा रही थी और इसीलिए 1918 में चटगांव वापस आकर उन्होंने स्थानीय स्तर पर युवाओं को संगठित करने के लिए “युगांतर पार्टी ” की शाखा की स्थापना की।
अपने देशप्रेमी संगठन के कार्य के साथ ही साथ वह नंदनकानन के सरकारी स्कूल में शिक्षक भी बन गए और अपनी कर्त्तव्यपरायणता और उत्तम शिक्षण के चलते यहीं से वह अपने विद्यार्थियों में “मास्टर दा” के नाम से विख्यात हो गए। नंदनकानन के बाद में वह चन्दनपुरा के उमात्रा स्कूल के भी शिक्षक रहे। मास्टर सूर्यसेन न केवल निर्भीक बल्कि आदर्शवादी भी थे, जिसका परिचय उनके जीवन में घटी एक घटना से मिलता है। हुआ ये कि स्कूल में वार्षिक परीक्षा चल रही थी और जिस परीक्षा भवन में उन्हें नियुक्त किया गया था, उसी भवन में उस स्कूल के प्रधानाचार्य का पुत्र भी परीक्षा दे रहा था। यह संयोग ही था कि उन्होंने प्रधानाचार्य के पुत्र को नकल करते हुए पकड़ लिया तथा परीक्षा देने से वंचित कर दिया। परीक्षाफल निकला तो वह लड़का अनुत्तीर्ण हो गया। दूसरे दिन जब सूर्यसेन स्कूल में पहुंचे, तो प्रधानाचार्य ने उन्हें अपने कक्ष में बुलाया। यह जानकर अन्य सभी शिक्षक कानाफूसी करने लगे कि अब सूर्यसेन का पत्ता साफ हुआ समझो। इधर जब सूर्यसेन प्रधानाचार्य के कक्ष में पहुंचे तो उन्होंने आशा के विपरीत उनका न केवल सम्मान किया, बल्कि स्नेहवश बोले, ‘मुझे गर्व है कि मेरे इस स्कूल में आप जैसा कर्तव्यनिष्ठ व आदर्शवादी शिक्षक भी है, जिसने मेरे पुत्र को भी दंडित करने में कोताही नहीं बरती। नकल करते पकड़े जाने के बावजूद यदि आप उसे उत्तीर्ण कर देते, तो मैं आपको अवश्य ही नौकरी से बर्खास्त कर देता। मास्टर दा ने जवाब दिया ‘यदि आप मुझे अपने पुत्र को उत्तीर्ण करने के लिए विवश करते तो मैं स्वयं ही इस्तीफा दे देता, जो इस समय मेरी जेब में पड़ा है।’ मास्टर सूर्यसेन का जवाब सुनकर प्रधानाचार्य बहुत खुश हुए और उनकी दृष्टि में सूर्यसेन की इज्जत दोगुनी हो गई और साथ ही विद्यार्थियों में के बीच भी। 1923 तक मास्टर दा ने चटगांव के कोने-कोने में क्रांति की अलख जगा दी और अपने विद्यार्थियों में उग्र राष्ट्रवाद की भावना को बलवती किया। साम्राज्यवादी सरकार क्रूरतापूर्वक क्रांतिकारियों के दमन में लगी थी। साधनहीन युवक एक और अपनी जान हथेली पर रखकर निरंकुश साम्राज्य से भिड़ रहे थे तो वहीँ दूसरी और उन्हें धन और हथियारों की कमी भी सदा बनी रहती थी। ऐसे में मास्टर दा ने उन्हें गुरिल्ला पद्धति से लड़ने को प्रशिक्षित किया क्योंकि वो समझते थे कि कम संसाधनों के चलते शक्तिशाली अंग्रेजी सरकार से आमने सामने की लड़ाई करना असंभव है। उनका पहला बड़ा सफल अभियान 23 दिसंबर 1923 को चिटगांव में बंगाल आसाम रेलवे के ट्रेजरी आफिस में दिन दहाड़े डाका था परन्तु उनका सबसे बड़ा क्रांतिकारी अभियान था-18 अप्रैल 1930 को चटगांव शस्त्रागार पर हमला जिसने अंग्रेजी सरकार को हिला कर रख दिया, जिसने अंग्रेजी सरकार को खुला सन्देश दिया कि भारतीय युवा मन अब अपने प्राण देकर भी दासता की बेड़ियों को तोड़ देना चाहता है और जिसने मास्टर सूर्यसेन का नाम सदा के लिए इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज कर दिया। मास्टर दा ने मंत्र दिया—‘करो या मरो’ नहीं ‘करो और मरो’। इस हमले के लिए मास्टर दा ने युवाओं को संगठित कर ‘भारतीय प्रजातान्त्रिक सेना’ (Indian Republican Army, Chittagong Branch) नामक सेना बनायी। उनके नेतृत्व में क्रांतिकारियों के इस दल में गणेश घोष, लोकनाथ बल, निर्मल सेन, अम्बिका चक्रवर्ती, नरेश राय, शशांक दत्त, अरधेंधू दस्तीदार, तारकेश्वर दस्तीदार, हरिगोपाल बल, अनंत सिंह, जीवन घोषाल, आनंद गुप्ता जैसे वीर युवक और प्रीतिलता वादेदार व कल्पना दत्त जैसी वीर युवतियां भी शामिल थीं। यहां तक कि एक 14 वर्षीय किशोर सुबोध राय उर्फ़ झुंकू भी अपनी जान पर खेलने गया था। योजना के अनुसार 18 अप्रैल 1930 को सैनिक वस्त्रों में इन युवाओं ने दो दल बनाये, एक गणेश घोष के नेतृत्व में और दूसरा लोकनाथ बल के नेतृत्व में। गणेश घोष के दल ने चटगांव के पुलिस शस्त्रागार (Police Armoury) पर और लोकनाथ बल के दल ने चटगांव के सहायक सैनिक शस्त्रागार (Auxiliary Forces Armoury) पर कब्ज़ा कर लिया किन्तु दुर्भाग्यवश उन्हें बंदूकें तो मिलीं पर उनकी गोलियां नहीं मिल सकीं। क्रांतिकारियों ने टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट दिए और रेलमार्गों को अवरुद्ध कर दिया। एक प्रकार से चटगांव पर क्रांतिकारियों का ही अधिकार हो गया। तत्पश्चात यह दल पुलिस शस्त्रागार के सामने इकठ्ठा हुआ जहां मास्टर दा ने अपनी इस सेना से विधिवत सैन्य सलामी ली, राष्ट्रीय ध्वज फहराया और भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की। इस लोमहर्षक घटना का प्रभाव यह हुआ कि इसके बाद बंगाल से बाहर देश के अन्य हिस्सों में भी स्वतंत्रता संग्राम उग्र हो उठा। इस घटना का असर कई महीनों तक रहा। पंजाब में हरिकिशन ने वहां के गवर्नर की हत्या की कोशिश की। दिसंबर 1930 में विनय बोस, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता ने कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया और स्वाधीनता सेनानियों पर जुल्म ढ़हाने वाले पुलिस अधीक्षक को मौत के घाट उतार दिया। दल को अंदेशा था कि इतनी बड़ी साहसिक घटना पर सरकार तिलमिला उठेगी और इसीलिए वह गोरिल्ला युद्ध हेतु तैयार थे और इसी उद्देश्य के लिए यह लोग शाम होते ही चटगांव नगर के पास की पहाड़ियों में चले गए। किन्तु स्थिति दिन पर दिन कठिनतम होती जा रही थी। बाहर अंग्रेज पुलिस उन्हें हर जगह भूखे कुत्तों की तरह ढूंढ रही थी और वहीँं पहाड़ियों पर उन्हें भूख-प्यास व्याकुल किए हुए थी। अंतत: 22 अप्रैल 1930 को हजारों अंग्रेज सैनिकों ने जलालाबाद पहाड़ियों को घेर लिया जहां क्रांतिकारियों ने शरण ले रखी थी। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी समर्पण के बजाय क्रांतिकारियों ने हथियारों से लैस अंग्रेज सेना के विरुद्ध गोरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। उनकी वीरता और गोरिल्ला युद्ध-कौशल का अंदाजा इसी से लग जाता है कि इस जंग में जहां 80 से भी ज्यादा अंग्रेज सैनिक मारे गए, वहीँ मात्र 12 क्रांतिकारी योद्धा ही शहीद हुए। इसके बाद मास्टर दा किसी प्रकार अपने कुछ साथियों सहित पास के गांव में चले गए, उनके कुछ साथी कलकत्ता चले गए लेकिन दुर्भाग्य से कुछ पकड़े भी गए।
पुलिस किसी भी सूरत में मास्टर दा को पकड़ना चाहती थी और हर तरफ उनकी तलाश कर रही थी। मास्टर दा पर 10,000 रु. का इनाम घोषित कर दिया परन्तु जिस व्यक्ति को सभी चाहते हों तो उसका सुराग भला कौन देता? जब मास्टर दा पाटिया के पास एक विधवा स्त्री सावित्री देवी के यहां शरण लिए थे, तभी 13 जून 1932 को कैप्टेन कैमरून ने पुलिस व सेना के साथ उस घर को घेर लिया। दोनों तरफ से जबरदस्त गोलीबारी हुई जिसमें कैप्टेन कैमरून मारा गया और मास्टर दा अपने साथियों के साथ इस बार भी सुरक्षित निकल गए। इतना दमन और कठिनाइयां भी इन युवाओं को डिगा नहीं सकीं और जो क्रांतिकारी बच गए उन्होंने फिर से खुद को संगठित कर लिया और दोबारा अपनी साहसिक घटनाओं द्वारा सरकार को छकाते रहे। ऐसी अनेक घटनाओं में 1930 से 1932 के बीच 22 अंग्रेज अधिकारियों और उनके लगभग 220 सहायकों को मौत के घाट उतारा गया। इस दौरान मास्टर दा ने अनेक संकट झेले, उनके अनेक प्रिय साथी पकड़े गए और अनेकों ने यातनाएं सहने के बजाय आत्महत्या कर ली। स्वयं मास्टर दा सदैव एक स्थान से दूसरे स्थान बदलते रहते और अपनी पहचान छुपाने के लिए नए-नए वेश बनाया करते जैसे कभी किसान, कभी दूधिया, कभी पुजारी, कभी मजदूर तो कभी मुस्लिम बन जाते। न खाने का ठिकाना था न सोने का पर इस अप्रतिम योद्धा ने कभी हिम्मत नहीं हारी। परन्तु 16 फरवरी 1933 को नेत्र सेन नामक व्यक्ति, जिसके यहां सूर्यसेन छिपे हुए थे, उसने दस हजार रूपये के इनाम के लालच में विश्वासघात किया। मास्टर दा पकड़े गए। नेत्रसेन भी जिसने उनकी मुखबिरी की थी उसे मास्टर दा के साथियों ने घर में घुसकर मार दिया। नेत्रसेन की पत्नी ने अपने विश्वासघाती पति के हत्यारे की पहचान करने से इनकार करते हुए कहा कि ऐसे गद्दार की सधवा होने से अच्छा है विधवा होना। जब पुलिस जांच करने आई तो उसने निडरता से कहा ‘तुम चाहो तो मेरी हत्या भी कर सकते हो किन्तु तब भी मैं अपने पति के हत्यारे का नाम नहीं बता सकती क्योंकि मेरे पति ने सूर्यसेन जैसे भारत माता के सच्चे सपूत को धोखा दिया था।
मास्टर दा के अभिन्न साथी तारकेश्वर दस्तीदार जी ने अब युगांतर पार्टी की चटगांव शाखा का नेतृत्व संभाल लिया और मास्टर दा को अंग्रेजों से छुड़ाने जेल पर हमले की योजना बनाई लेकिन योजना पर अमल होने से पहले ही यह भेद खुल गया और तारकेश्वर, कल्पना दत्त एवं अन्य कई क्रांतिकारी पकड़े गए और सब पर मुक़दमे चलाए गए।
अंग्रेजी सरकार ने मास्टर सूर्यसेन, तारकेश्वर दस्तीदार और कल्पना दत्त पर मुकद्दमा चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की और 12 जनवरी 1934 को सूर्यसेन जी को तारकेश्वर जी के साथ फांसी दे दी गयी। पर फांसी देने के पहले अंग्रेजी सरकार ने मास्टर सूर्यसेन पर भीषण अत्याचार किये और उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएं दी गयीं कि रूह कांप जाती है। हथौड़ों के प्रहार से उनके सभी दांत, सभी जोड़ और हाथ-पैर तोड़ दिए गये और सारे नाखून उखाड़ दिए गए, रस्सी से बांध कर उन्हें मीलों घसीटा गया और जब वह बेहोश हो गए तो उन्हें अचेतावस्था में ही खींच कर फांसी के तख्ते तक लाया गया। क्रूरता और अपमान की पराकाष्टा यह थी कि उनकी मृत देह को भी उनके परिजनों को नहीं सौंपा गया और उसे धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। 11 जनवरी को उन्होंने अपने मित्र को अपना अंतिम पत्र लिखा ”मृत्यु मेरा द्वार खटखटा रही है और मेरा मन अनंत की और बह रहा है। मेरे लिए यह वो पल है जब मैं मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करूं। इस सौभाग्यशील, पवित्र और निर्णायक पल में मैं तुम सबके लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूँ? सिर्फ एक चीज —मेरा स्वप्न, मेरा सुनहरा स्वप्न, स्वतंत्र भारत का स्वप्न। प्रिय मित्रों, आगे बढ़ो और कभी अपने कदम पीछे मत खींचना। उठो और कभी निराश मत होना। सफलता अवश्य मिलेगी। ” अंतिम समय में भी इस अप्रतिम सेनानी की आंखें स्वर्णिम भविष्य का स्वप्न देख रही थीं। इस महान हुतात्मा की स्मृति में भारत सरकार ने 1977 में और बंगलादेश सरकार ने 1999 में डाक टिकट भी जारी किये। आडंबरहीन और निर्भीक नेतृत्व के प्रतीक थे मास्टर दा। ” इस महान क्रांतिकारी, हुतात्मा और अमर बलिदानी को कोटि कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

हम्मीर सिंह सिसोदिया: वह राजपूत योद्धा जिसने समूचे राजपुताना के गौरव को पुनर्स्थापित किया
एक महान राजपूत योद्दा था जो बहुत बहादुर भी था और चतुर भी। उसने ना केवल मेवाड़ और उसकी राजधानी चित्तौड़ के सम्मान की रक्षा की, बल्कि वह पहला ऐसा योद्दा था जिसने दिल्लीमें शासन करते हुए तुर्की सल्तनत का खात्मा किया।आज के स्वार्थी बुद्धिजीवी, जो स्वंय को भारत के प्रबुद्ध इतिहासकार होने का दावा करते हैं, उन्होंने इस महान योद्धा द्वारा किए गए कार्यों, सफलताओं और सम्मान को कभी भी भारतीय इतिहास में उल्लेखित नहीं किया। इसका कारण यह है कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और अपने दुर्भावनापूर्ण एजेंडा को अत्यधिक महत्व देने के लिए भारतीय इतिहास के कुछ सुनहरे पन्नों के साथ छेड़-छाड़ की, जिसके परिणाम स्वरुप हमारा इतिहास आज नष्ट होने की कगार पर पहुँच गया। इन बुद्धिजीवियों ने जिस महान योद्धा को इतिहास के पन्नों से नष्ट करने का प्रयास किया, उस योद्धा ने भारत के दक्षिणी क्षेत्र की दो अन्य प्रतिष्ठित शक्तियों के साथ मिलकर तुर्की सल्तनत के पतन में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिस तुर्की सल्तनत का उद्देश्य भारत को तुर्की सल्तनत में शामिल करना और भारतीयों को इस्लाम के अधीन लाना था।
यह योद्धा अपने समय का एक महान समाज सुधारक भी था। आज के समय में कोई भी वामपंथी व्यक्ति ये नहीं चाहेगा कि देश को इस योद्धा के बारे में पता चले। इस पुरुष सिंह का नाम हम्मीर सिंह सिसोदिया था, जो सिसोदिया वंश के संस्थापक थे, उन्होंने मेवाड़ राज्य पर शासन करने के साथ-साथ राजपूताना राज्य की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुन: प्राप्त करने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसे वर्तमान समय में राजस्थान राज्य के नाम से जाना जाता है।

हम्मीर सिंह सिसोदिया का जन्म १३०३ में हुआ था,वही वर्ष जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण करके उसे अपने कब्जे में कर लिया। जैसा कि हम जानते हैं कि राजपूत ज्यादातर रक्षात्मक प्रवित्ति वाले और इस्लामिक आक्रमणकारी आक्रान्ता होते थे। परन्तु हम्मीर सिंह सिसोदिया अलग मिटटी के बने थे।

रावल रतन सिंह, जिन्हें रत्नासिम्ह के नाम से भी जाना जाता है, वे राजपूतों के प्रसिद्ध गहलोत वंश के अंतिम शासक थे, जिन्होंने मेवाड़ राज्य की स्थापना की और अपनी राजधानी के रूप में चित्तौड़ के किले का चुनाव किया। जैसा कि इतिहास में बताया गया है कि रावल रतन सिंह के एक दूर के रिश्तेदार थे, जो कि कैडेट सेना के एक सेनापति (कमांडर) थे, यदि आधुनिक सैन्य शब्दों में कहें तो वे एक जूनियर कमीशन ऑफिसर थे। इनका नाम लक्ष्मण या लक्षा सिंह था, जिनके सात पुत्र थे और जोकि प्रसिद्ध योद्धा बप्पा रावल के वंशज भी थे, वही बप्पा रावल जिन्होंने ७१२ ईसवी में इस्लामिक शासकों को एक करारी मात देने के साथ-साथ भारतीय उपमहाद्वीप को तीन शताब्दियों तक बाहरी आक्रमणों से बचाए रखा।

लक्षा सिंह सिसोद गांव से थे, इसलिए उनके उत्तराधिकारियों ने अपना उपनाम सिसोदिया रखा। उनके बड़े बेटे का नाम अरि था, जिसने उन्नाव के निकटवर्ती गांव की एक महिला उर्मिला से शादी की, जो कि चन्दन राजपूतों के एक गरीब कबीले की रहने वाली थी। उनके केवल एक ही पुत्र हुआ, जिनका जन्म शायद १३०३ से १३१३ के मध्य [सटीक जन्म वर्ष अभी भी विवादित है] हुआ था। उनके पुत्र का नाम हम्मीर हुआ, जिन्होंने जल्द ही पूरे देश का मानचित्र बदलकर रख दिया।

इस युगल को एक पुत्र के रुप में मिले आशीर्वाद के कुछ महीने बाद ही लक्षा और उसके पुत्र को, उन दंगाईयों की भीड़ से अंतिम युद्ध लड़ने के लिए तलब किया गया, जिसने तानाशाह सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। रावल रतन सिंह के नेतृत्व में लक्ष्मण सिंह और उनके सातों बेटों ने अन्त तक बड़ी बहादुरी के साथ युद्ध किया और एक-एक करके, अपनी मातृभूमि को दुष्ट आक्रमणकारियों के हाथों से बचाते हुए, शहीद हो गए। हार को निकट देख महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में हजारों राजपूत महिलाओं ने आग में कूद कर सामूहिक आत्मदाह किया। यह घटना बाद में चित्तौड़ के प्रथम जौहर के रूप में प्रसिद्ध हुई जिसमें हजारों राजपूत महिलाओं ने, सुल्तान खिलजी और उसके हवशी कातिलों के हाथो में न आते हुए अपने सम्मान की रक्षा की।

दस्तावेजों में इसका वर्णन उचित तरीके से नहीं किया गया है लेकिन अन्य स्रोतों और मेवाड़ में प्रसिद्द लोककथाओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जिन स्त्रियों ने जौहर किया था, उर्मिला भी उन्हीं में से एक थीं। इस जौहर ने हम्मीर को अनाथ कर दिया था, हालाँकि ये बाद में पता चला कि अरि के छोटे भाई और सात भाइयों में दूसरे अजय सिंह गंभीर चोटों के साथ युद्ध में जीवित बच गये थे। अगले कुछ वर्षों तक अजय सिंह के नेतृत्व में युवा हम्मीर को ढूँढा गया और जल्द ही उनकी मेहनत रंग लायी।

वहीं, जब से अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की थी तबसे ही मेवाड़ दंगाइओं और आक्रमणकारीओं की दया पर पल रहा था। डाकू अपनी मर्ज़ी से घरों को लूटते थे, लुटेरे इच्छानुसार मंदिरों और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर हमले करके पवित्र मूर्तियों को तोड़ते और सच्चे सनातनियों को बलपूर्वक अपने अधीन कर लेते थे। पुरे मेवाड़ राज्य में अराजकता फ़ैल चुकी थी। यहाँ एक ऐसे रक्षक की अत्यंत आवश्यकता थी जो उन्हें कभी महान रहे राज्य की खोई हुई शान को वापस लाने के लिए आगे बढ़कर लड़ने के लिए प्रेरित कर सके। इसी अराजकता के बीच में कंटालिया के कुख्यात डकैत राजा मुंजा बलेचा ने कदम रखा।

मुंजा सुल्तान खिलजी का तुच्छ सा चापलूस था, जो कि अपनी ख़ुशी के लिए मेवाड़ के लोगों को आतंकित करता था। मात्र दस वर्ष की आयु में जब उन्होंने पाया की मुंजा दुखिया लोगों को आतंकित कर अपना आतंक का साम्राज्य फैला रहा है तो हम्मीर ने सामने से हमला करके अपने तेज और निपुण धनुषकौशल से उसे मौत के घाट उतार दिया। ये वो समय था जब अजय सिंह ने पहली बार हम्मीर को चिन्हित किया उनकी वंशावली के बारे में पता लगाया।

हम्मीर को अपने सरंक्षण में लेते हुए अजय सिंह, जो कि प्राचीन शस्त्र-शास्त्रों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ थे, ने रणनीतिक द्रष्टिकोण से चित्तौड़ और दिल्ली की सड़कों के बीच स्थित छोटे लेकिन अच्छे से किलाबन्द एकांत स्थान पर हम्मीर को युद्ध कला के साथ साथ कई अन्य विषयों की शिक्षा दी। अन्य राजपूत राजाओं के विपरीत, जो दुश्मन को आमने सामने टक्कर देने में दूसरी बार नहीं सोचते थे, उन्होंने इस पर विचार किया कि ऐसा क्या है जो हमें इस्लामिक सुल्तानों को सबक सिखाने में सफल नहीं होने देता। अजय ने हम्मीर को ये सिखाया कि हर युद्ध सिर्फ ताकत से ही नहीं जीता जा सकता बल्कि कुछ युद्ध बुद्दि के सही इस्तेमाल से जीते जाते हैं।

पाठकों के लिए एक छोटी सी प्रश्नोत्तरी:- किसने भारत में विधवा पुनर्विवाह प्रथा को पुनः प्रारंभ किया? तुरंत एक उत्तर आयेगा:- इश्वर चन्द्र विद्यासागर। लेकिन अगर आप ऐसा सोचते हैं तो मुझे माफ़ कीजिये क्यूंकि आप गलत हैं। विधवा पुनर्विवाह प्रथा को चित्तौड़ में राणा हम्मीर के संरक्षण में १४वीं शताब्दी में पुनः शुरू किया गया था। इससे कोई भी वामपंथी उदारवादी सहमत नहीं होगा। हालाँकि इस सच्चाई को कोई भी झुठला नहीं सकता है कि राणा हम्मीर ने विधवा पुनर्विवाह प्रथा को पुनः शुरू करवाया था जैसा कि वे भविष्य में मेवाड़ का राणा बनने के पद को अपने लिए सुनिश्चित कर रहे थे। इसके पीछे एक बहुत ही मजेदार और छोटी सी कहानी है।

चित्तौड के पतन के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर के शासक, राजा मालदेव को कब्ज़ा किये हुए किलों और राजपूताना में जीते हुए प्रदेशों के साथ चित्तौड़ का नायक नियुक्त कर दिया। मालदेव, जो की चित्तौड़ पर एक मालिक की तरह राज करने की इच्छा रखता था, उसने हम्मीर को अपने रास्ते में उभरते हुए अवरोध की तरह पाया। हम्मीर को अधीन करने के लिए उसने अपनी खुद की बेटी, एक विधवा राजकुमारी जिसका नाम सोंगरी था, को हम्मीर से विवाह करवा के एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय लिया।

उन दिनों विधवा से विवाह करवाना राजपूतों में बेईज्जती करने का सबसे बुरा रूप माना जाता था। हालांकि, हम्मीर ने न केवल एक युवा विधवा को खुले मन से अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया, बल्कि राजा मालदेव के खिलाफ तख्तापलट करने की योजना भी बनाई, और अपनी खोई हुई मातृभूमि चित्तौड़ पर दावा करने के लिए उन्होंने उनकी ही रणनीति का प्रयोग किया। विश्वास करना मुश्किल है पर अगर कोई गहराई से इस पर चर्चा करता है, तो यह तथ्य एक अन्य तथ्य का भी समर्थन करता है कि सती प्रथा ऊंची जाति के हिंदुओं द्वारा थोपी गई कोई बुरी प्रथा नही थी। यह अपनी इच्छा से किया जाने वाला एक कृत्य था, हालांकि १९वीं शताब्दी की शुरुआत में इसका दुरुपयोग भी किया गया था। यदि सती प्रथा और जौहर करना मजबूरी थी, तो हम्मीर ने एक विधवा जो एक बच्चे की माँ थी, को अपनी पत्नी के रूप में कैसे स्वीकार किया?

एक तरह से वो सिसोदिया राजपूत राणा हम्मीर था, न कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर, जिन्होंने विधवा पुनर्विवाह की प्रक्रिया शुरू की।१३२६ में, २२-२३ की एक छोटी उम्र में, हम्मीर सिंह सिसोदिया अपनी पत्नी सोंगरी के साथ मेवाड़ के सिंहासन पर बैठे, और खुद को मेवाड़ के प्रथम महाराणा हम्मीर के रूप में घोषित किया। हालांकि हम्मीर के चाचा अजय उस दिन को देखने के लिए जीवित नहीं रह सके, वह निश्चित रूप से इस पर गर्व महसूस करते कि उनके शिष्य उनकी शिक्षाओं का पालन इतनी अच्छी तरह से कर रहे हैं।

लेकिन यह अंत नहीं था। सालों के प्राचीन शास्त्र सीखने और अभिनव युद्ध के प्रशिक्षण से अप्रत्याशित परिणाम भी सामने आए। चूंकि हम्मीर अब मेवाड़ का शासक था, इसीलिए उसने दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के आधिपत्य को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मुहम्मद बिन तुगलक यथार्थ रूप से सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी का एक सटीक प्रतिरूप था, जिसने अपने ही पिता गयासुद्दीन तुगलक को मार डाला और दिल्ली के सिंहासन पर चढ़ बैठा। मुहम्मद बिन तुगलक और सुल्तान खिलजी के बीच फर्क केवल इतना था कि वह तुगलक स्वभावतः धैर्यवीहीन पुरुष था। हां, सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक बहुत अधीर था, इसी अधीरता ने उसे पतन की ओर आगे बढ़ाया और बाद में राणा हम्मीर के हाथों उसकी हार हुई।

हम्मीर और सुल्तान तुगलक के बीच की लड़ाई के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि इतिहास यह कहता है कि राजा मालदेव कारागार से भाग गए और शरणागत बन मुहम्मद बिन तुगलक से मदद मांगी। सुल्तान पहले से ही हम्मीर की अवज्ञा से कुपित था, उसने दोनों तरफ से इस अवसर का लाभ उठाया।

जबकि यह अनिश्चित है कि किस वर्ष में हम्मीर ने मोहम्मद बिन तुगलक को गुमनामी में ढकेला, लेकिन यह निश्चित है कि यह लड़ाई १३३३ और १३३६ के बीच में हुई थी। यहीं पर अलाउद्दीन खिलजी और तुगलक के बीच का अंतर निहित है, जबकि खिलजी चतुर, बर्बर और निर्लज्ज था जिसने अंतिम कदम उठाने से पहले अच्छे से सोचता समझता था, उसके बाद के शासक निर्दयी और महत्वाकांक्षी तो थे परन्तु उनमे शान्ति और बुध्दिमत्ता से लड़ने का कौशल नहीं था। विश्व का शासक बनने के उद्देश्य से तुगलक ने हिमालय होते चीन तक पर आक्रमण करने का फैसला कर लिया था। चीन तो खैर दूर था, भरतखंड में कटोच ने उसे भरपूर मज़ा चखाया, जहाँ तुगलक कटोच सेना से परस्त हुआ वह क्षेत्र वर्त्तमान का हिमाचल प्रदेश है।

मेवाड़ और दिल्ली की सेनाओं के बीच का युद्ध राणा हम्मीर के प्रभुत्व की आखिरी परीक्षा थी चाहे वो मैदान के अंदर या मैदान के बाहर हो। हम्मीर गुरिल्ला युद्ध में काफी कुशल थे। हालांकि उनकी सेना काफी छोटी थी परन्तु गुरिल्ला युद्ध के रणकौशल के कारण वे दुश्मनों के दांत खट्टे करने में माहिर थे, पृथ्वीराज चौहान या रावल रतन सिंह जैसे वीरो ने कभी भी इस कौशल को जानने की परवाह नहीं की थी।
राणा हम्मीर को मौत का डर नहीं था, लेकिन वह जानते थे कि अगर वह मेवाड़ और राजपुताना, दोनों की प्रतिष्ठा को वापस पाना चाहते हैं, तो उन्हें दुश्मन को मारने और जीत हासिल करने की जरूरत थी।

स्थानीय कहावतों से हमें पता चला कि राणा हम्मीर ने अपनी सेना के केवल एक सैन्य-दल के साथ आधी रात को दुश्मन शिविर पर अचानक हमले किये। दुश्मनों को अचानक गाजर की तरह काट दिया गया। कोई भी राजा मालदेव के बारे में नहीं जानता, लेकिन यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जालौर के विश्वासघाती राजा मालदेव को मेवाड़ सेना के हाथों एक मौत मिली थी। शीघ्र ही राणा हमीर ने न केवल युद्ध जीता, बल्कि असंभव को संभव कर दिया और उन्होंने दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक को अपना कैदी बना लिया।
हां केवल 30-32 वर्ष की उम्र का राजपूत राजा दिल्ली के सुल्तान के घमण्ड को धूल में मिलाकर अपने चित्तौड़ को अपमानित करने का बदला लेने में कामयाब रहा था।

सुल्तान को बंधक रखा गया, और तभी छोड़ा गया जब उसने मेवाड़ सहित राजपूताना के पूरे क्षेत्र की आजादी के लिए लिखित रूप में सहमति दी। यद्यपि वह जीवित बच गया लेकिन मुहम्मद बिन तुगलक को ऐसा आघात पंहुचा कि वह फिर से मेवाड़ पर हमला करने की हिम्मत नहीं कर सका। यद्यपि हम्मीर ने 1364 में मेवाड़ के सिंहासन को छोड़ दिया, पर राजपूताना में कई राजपूतों को उनकी महिमा के दिनों ने आने वाले सैकड़ों वर्ष तक प्रेरित किया।

छद्म बुद्धिजीवियों का उद्देश्य इस तरह के गौरवशाली योद्धाओं की कहानियों को कमतर बताना भर है, यह आवश्यक है कि हम जितना संभव हो उतने अधिक लोगों तक पहुँचाकर इस इतिहास को जीवित रखें।
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मात्र 10 सेमी गहरे पानी, बर्फ और जमीन पर दौड़ेगी एल्यूमीनियम बोट..//
वर्ष 2018 देश में आजादी के बाद गंगा में पहले मालवाहक पोत के परिचालन का साक्षी बना. इस परियोजना का शुरू में मजाक उड़ाया गया और इसके ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ तक कहा गया. चार साल की कड़ी मेहनत के बाद यह हकीकत बन चुकी है.
पोत-परिवहन, गंगा पुनर्जीवन, जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि इस साल गंगा में 80 लाख टन माल की आवाजाही हुई जिसके अगले साल बढ़कर 280 लाख टन किए जाने का लक्ष्य है.
पहला अंतर्देशीय जलमार्ग पत्तन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में नवंबर में 16 ट्रकों के बराबर का माल लेकर एक मालवाहक पोत वाराणसी के तट पर बने देश के पहले अंतर्देशीय जलमार्ग पत्तन पर पहुंचा. आजादी के बाद यह इस क्षेत्र में अपने किस्म की पहली उपलब्धि है.
देश में कुल 20,276 किलोमीटर के 111 जलमार्गों को विकसित किया जा रहा है. हल्दिया से वाराणसी का य1,390 किलोमीटर का जलमार्ग इन्हीं में से एक है.
गडकरी ने कहा, ‘शुरुआत में जब मैं देश में जलमार्गों को विकसित करने की बात करता था तो लोग मेरा मजाक बनाते थे. कुछ के लिए यह ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ थे. लेकिन सपने सच हुए, और अब वही लोग मुझे बधाई देते हैं. मैं हमेशा कहता हूं कि मैं कोरी बातों वाला आदमी नहीं हूं बल्कि मैं वह व्यक्ति हूं जो सपनों को हकीकत में बदलने की प्रतिबद्धता रखता है और जिसका दिखाए जाने वाले सपनों को वास्तविकता में बदलने का रिकॉर्ड रहा है. वह इस पूरे क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव लाना चाहते हैं और गंगा पर बहुत सारा काम और अन्य परियोजनाएं चल रही हैं. कुल 111 नदियों को जलमार्ग में बदलने की योजना है.
हाइब्रिड वाहन चलाने की तैयारी
इतना ही नहीं, इसके अलावा सरकार नए तरह के हाइब्रिड वाहनों को चलाने की संभावनाएं भी तलाश रही है. इसमें एरोबोट्स शामिल हैं जो भूमि, जल और वायुमार्ग पर चलने में सक्षम हैं और 80 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक की रफ्तार पर चल सकती हैं. गडकरी ने कहा कि कुछ प्रमुख रूसी कंपनियां कुंभ मेले के दौरान इस तरह की एरोबोट का परिचालन कर सकती हैं. वहीं 26 जनवरी से हम वाराणसी और प्रयागराज एवं दिल्ली से आगरा के बीच एक पायलट परियोजना शुरू कर सकते हैं.
एल्यूमीनियम बोट चलाने की योजना
इस तरह के वाहन बनाने वाली जिन रूसी कंपनियों ने मंत्रालय के समक्ष अपनी पेशकश रखी है. उनके वाहन मात्र 10 सेंटीमीटर की गहराई वाले पानी, बर्फ और जमीन पर चलने में सक्षम हैं. इन्हें पेट्रोल, बिजली और मेथनॉल से चलाया जा सकता है और इनकी गति भी 170 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा सकती है. इस तरह के वाहन एल्यूमीनियम के बने हैं और 11 लोगों की क्षमता वाली ऐसी नौकाओं को 15 मिनट में असेंबल किया जा सकता है.
गडकरी ने निराशा जतायी कि समुद्र में उतरने में सक्षम विमानों के लिए नियम तय किए जाने के बावजूद इस क्षेत्र में हाथ आजमाने लोग आगे नहीं आए. हो सकता है कि उन्हें इसके व्यवहारिक होने को लेकर आशंका हो लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यह क्षेत्र भारत में तेजी से बढ़ेगा.
गंगा के बारे में गडकरी ने कहा कि नदी की सफाई का 70 से 80 प्रतिशत काम मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा जबकि पूरी गंगा मार्च 2020 तक साफ हो जाएगी. उन्होंने कहा कि नदी के प्रवाह को सालभर बनाए रखने को सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अल्बर्ट आइन्स्टाइन भी मानते थे ,भारत के इस महान् वैज्ञानिक का लोहा
हमारे देश का इतिहास वैज्ञानिक अनुसंधानों का साक्षी रहा है. शून्य की खोज से लेकर दशमलव की खोज तक देश के गौरवपूर्ण इतिहास का बखान करती है. लगातार विदेशी आक्रमण और गुलामी का दंश झेल रहे भारतवासियों को मंदबुद्धि वाला देश कहा जाने लगा, खोज के मामले में अनाड़ी समझा जाने लगा, विदेशी आक्रांता भारत को पिछलग्गुओं का देश कहने लगे। गुलामी ने भले ही हमें आर्थिक रुप से कमजोर बना दिया हो लेकिन बौद्धिक रूप से हमने दुनिया में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया।अन्तराष्ट्रीय स्तर पर यूं तो कई भारतीय वैज्ञानिक जिन्होंने अपनी खोज से भारतवासियों को गौरवान्वित किया लेकिन सत्येंद्र नाथ बोस एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे जिसका लोहा स्वयं अल्बर्ट आइन्स्टाइन भी मानते थे.
सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था. इनके पिता सुरेंद्र नाथ बोस ईस्ट इंडिया रेलवे में इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे. सत्येंद्र अपने माता-पिता की सात संतानों में इकलौते बेटे व सबसे बड़े थे. वह एक स्वयंभू विद्यार्थी थे जिनकी रूचि कई सारे क्षेत्रों में थी. मैथमेटिक्स, केमिस्ट्री फिजिक्स, लिटरेचर, फिलॉसफी, आदि विषयों में पकड़ रखने वाले सत्येन्द्र को उनके गणित के अध्यापक ने उन्हें गणित विषय में 100 में से 110 नंबर दिए थे और कहा था कि “यह एक दिन बहुत बड़ा गणितज्ञ बनेगा।" इसके बावजूद उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र विज्ञान को चुना. वह कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे. विज्ञान में गहरी रुचि होने के कारण उन्होंने अध्यापन के साथ शोध कार्य जारी रखा. इसके लिए बोस ने गिब्स, प्लांट, आइन्स्टाइन जैसे वैज्ञानिकों के शोध कार्य को पढ़ना चालू कर दिया. आइन्स्टाइन ने दिखाया कि प्रकाश, तरंग और छोटे-छोटे बॉल (जिसे हम फोटोन कहते हैं) दोनों माध्यम से चलता है. जिसकी पारंपरिक विज्ञान में व्याख्या नहीं थी. लेकिन आइन्स्टाइन का यह नया सिद्धांत कहीं ना कहीं प्लांक के सिद्धांत को प्रतिपादित नहीं कर पा रहा था. जल्द ही बोस ने एक नया सिद्धांत दिया जो यह कहता है कि “फोटोन बॉल की तरह नहीं होती है, जैसा आइन्स्टाइन ने कहा था बल्कि यह बिखरे हुए होते हैं”
यह सिद्धांत नए सांख्यिकी की शुरुआत थी. अपनी इस नई खोज को बोस ने इंग्लैंड की एक पत्रिका में छपने के लिए भेजा लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. तब उन्होंने यह शोध आइन्स्टाइन को भेजा और उनसे अनुरोध किया कि इसे किसी पत्रिका में छपवाये. आइंस्टीन ने इस शोध को बहुत सराहा और इसका अनुवाद जर्मन भाषा में करके एक प्रसिद्ध जर्मन पत्रिका में प्रकाशित करवाया. साथ ही बोस को उनके कार्य की तारीफ में एक पत्र भी लिखा.
डॉ. बोस ने भारत में क्रिस्टल विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान दिया. उन्होंने शोध कार्य के लिए ढाका विश्वविद्यालय में एक्स रे क्रिस्टल लैब का निर्माण करवाया.
कुछ समय बाद उन्हें ढाका विश्वविद्यालय का संकाय अध्यक्ष बनाया गया. भारत के लोगों में विज्ञान के प्रति जागरूकता लाने और विज्ञान की जरूरत को समझने के लिए इन्होंने कई राष्ट्रीय प्रयोगशाला के निर्माण में अहम योगदान दिया.
बोस ने क्वांटम फिजिक्स को एक नई दिशा दी. पहले वैज्ञानिकों के द्वारा यह माना जाता रहा कि परमाणु ही सबसे छोटा कण होता है लेकिन जब इस बात की जानकारी पता चली कि परमाणु के अंदर भी कई सूक्ष्म कण होते हैं जो कि वर्तमान में प्रतिपादित किसी भी नियम का पालन नहीं करते हैं. तब डॉ. बोस ने एक नए नियम का प्रतिपादन किया जो “बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी सिद्धांत” के नाम से जाना जाता है. इस नियम के बाद वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म कणों पर बहुत रिसर्च किया. जिसके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्म परमाणु कण मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं जिनमें से एक का नामकरण डॉ. बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया तथा दूसरे का एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीऑन’ रखा गया.
आज भौतिकी में कण दो प्रकार के होते हैं एक बोसॉन और दूसरे फर्मियान. बोसॉन यानि फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन (फोटोन, प्रकाश की मूल इकाई) और फर्मियान यानि क्वार्क और लेप्टॉन एवं संयोजित कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन ( चार्ज की मूल इकाई). यह वर्तमान भौतिकी का आधार हैं.
जिस वैज्ञानिक की मेहनत का लोहा स्वयं आइंस्टीन ने माना हो. जिसके साथ स्वयं आइंस्टीन का नाम जुड़ा हो, जिसने सांख्यकी भौतिकी को नए सिरे से परिभाषित किया हो, जिसके नाम का आधार लेकर एक सूक्ष्म कण का नाम ‘बोसॉन’ रखा गया हो, उस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार न मिलना अपने आप मे कई प्रश्न खड़े करता हैं.
वर्तमान में अधिकांश वैज्ञानिकों का मत है की बोस- आइंस्टीन सांख्यकी सिद्धांत का जितना प्रभाव क्वांटम फिजिक्स में है उतना तो शायद हिग्स बोसॉन का भी नहीं होगा.
मां भारती के यह वीर सपूत जिसने भारत की मेधा का पूरे विश्व में लोहा मनवाया था वो आखिरकार 4 फ़रवरी 1974 को पंचतत्व में विलीन हो गया.
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भारतीय सनातन परंपरा अपने आप मे अद्भुत हैं....पेड़ो को ग्रह,नक्षत्र के प्रतिनिधि के रूप में पूजा जाता हैं....हमारी संस्कृति में अपने नक्षत्र के अनुकूल वृक्ष लगाने से,उसकी सेवा करने से,पूजा करने से,उनकी परिक्रमा करने से,प्रतिदिन दर्शन करने से नक्षत्र जनित दोष दूर होते हैं एवं भाग्य में वृद्धि होती है,ओर सुख शांति और समृद्धि का वास होता हैं... ।
1. अश्विनी : केला, आक, धतूरा
2. भरणी : केला, आंवला
3. कृतिका : गूलर
4. रोहिणी : जामुन
5. मृगशीर्ष : खैर
6. आर्द्रा : आम, बेल
7. पुनर्वसु : बांस
8. पुष्य : पीपल
9. आश्लेषा : नागकेशर, चंदन
10. मघा : बरगद
11. पू.फा. : ढाक (पलास)
12. उ.फा. : बड़, पाकड़
13. हस्त : रीठा
14. चित्रा : बेल
15. स्वाती : अर्जुन
16. विशाखा : नीम, विकंक
17. अनुराधा : मौलसिरी
18. ज्येष्ठा : रीठा
19. मूल : राल वृक्ष
20. पू.षा. : मौलसिरी, जामुन
21. उ.षा. : कटहल
22. श्रवण : आक
23. धनिष्ठा : शमी/सेमर
24. शतभिषा : कदम्ब
25. पू.भा. : आम
26. उ.भा. : पीपल, सोनपाठा
27. रेवती : महुआ
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प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन होने जा रहा है. किसी भी बड़े आयोजन में लोगों को बुलाने के लिए निमंत्रण भेजना पड़ता है मगर हमारे देश में कुम्भ के आयोजन में करोड़ों हिन्दू बिना निमंत्रण के आते हैं. कुम्भ छठे और महाकुम्भ बारहवें वर्ष लगता है लेकिन प्रयाग में माघ मेला प्रत्येक वर्ष लगता है जिसमें एक माह तक कल्पवासी कड़ाके की ठण्ड में एक कठिन जिन्दगी जी कर अपने कल्पवास को पूरा करते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद प्राप्त हुए अमृत को लेकर देवताओं और राक्षसों में विवाद हुआ था. यदि अगर राक्षस अमृत पीने में सफल हो जाते तो वह अमरत्व प्राप्त कर लेते. यही वजह थी कि देवता, राक्षसों को अमृत नहीं देना चाहते थे. जब देवता अमृत को लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे उसी समय चार जगहों पर अमृत छलक गया था. इन चार स्थानों - प्रयाग, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन -में कुम्भ का मेला लगता है. ग्रह -गोचर के अनुसार पड़ने वाली तिथि पर करोड़ों लोग संगम तट पर स्नान के लिए आते हैं. स्नान - ध्यान और दान करके अपने गंतव्य को लौट जाते हैं.
प्रयाग का अर्ध कुम्भ हुआ कुम्भ -
दिलचस्प बात यह है कि सिर्फ प्रयाग और हरिद्वार में महाकुम्भ और अर्ध कुम्भ का आयोजन होता है अन्य दो स्थानों - नासिक और उज्जैन - में केवल महाकुम्भ मेले का ही आयोजन किया जाता है. नासिक और उज्जैन में अर्ध कुम्भ नहीं लगता है. इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मत था कि कुम्भ का मतलब घड़ा होता है और घड़ा कभी आधा नहीं हो सकता है. इसलिए अर्ध कुम्भ को कुम्भ के नाम से जाना जाएगा. इसलिए इस बार प्रयाग में आयोजित हो रहे अर्ध कुम्भ को कुम्भ का नाम दिया गया है.कुम्भ मेला कब और कहां लगेगा यह ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है -
कुम्भ मेला कब और कहां लगेगा यह ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है. दरअसल कुम्भ मेले के आयोजन में बृहस्पति ग्रह की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है. प्रयाग जनपद के ज्योतिषी रमेश उपाध्याय बताते हैं कि “गोचर में जब बृहस्पति ग्रह वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं. उस वर्ष प्रयाग में अर्ध कुम्भ (वर्तमान में कुम्भ मेले) का आयोजन किया जाता है. बृहस्पति के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने के बाद जब माघ का महीना आता है. तब गंगा और यमुना के तट पर मेले की शुरुआत होती है.” अखाड़े, कुम्भ मेले का ख़ास आकर्षण है, अखाड़े सिर्फ कुम्भ और महाकुम्भ में ही प्रयाग आते हैं. माघ के महीने में मकर संक्रांति , मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के अवसर पर सभी अखाड़े शाही स्नान करते हैं. अमावस्या को कुम्भ दिवस भी कहा जाता है. अमावस्या के दिन करोड़ो की संख्या में श्रद्धालू गंगा एवं संगम में स्नान करते हैं.

बृहस्पति ग्रह जब वृष राशि में प्रवेश करते है तब प्रयाग में महाकुम्भ का आयोजन होता है. कुम्भ की ही तरह महाकुम्भ में भी मकर संक्रांति , मौनी आमवस्या और बसन्त पंचमी के अवसर पर अखाड़ों का शाही स्नान होता है.
माघ के महीने में गंगा की रेत पर एक माह तक होता है कल्पवास -
प्रयाग के मेले में एक ख़ास बात यह है कि प्रत्येक वर्ष माघ के महीने में गंगा एवं संगम के तट पर माघ मेला का आयोजन किया जाता है. प्रत्येक वर्ष लगने वाला माघ मेला , पौष पूर्णिमा के स्नान से शुरू होकर माघी पूर्णिमा तक चलता है. माघ के महीने में गृहस्थ एवं साधु – संत एक माह तक संगम की रेती पर निवास करते हैं. ऐसे गृहस्थ जो एक माह तक गंगा की रेती पर बने अस्थायी शिविरों में रह कर दोनों समय संगम स्नान करते हैं , उन लोगों को कल्पवासी कहा जाता है. कल्पवासी अपने शिविरों में रह कर दोनों समय का भोजन स्वयं बनाते हैं और शाम के समय माघ मेले में चल रहे धार्मिक प्रवचनों को सुनकर पुन्य अर्जित करते हैं.कभी - कभी ऐसा होता है कि मकर संक्रांति पहले पड़ जाती है और पौष पूर्णिमा बाद में पड़ती है. ऐसी दशा में भी कल्पवासी पौष पूर्णिमा के स्नान से ही अपने कल्पवास की शुरुआत करते हैं. यदि मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा के बाद पड़ती है तभी कल्पवासी मकर संक्रान्ति के स्नान में शामिल होते हैं. तीसरा और सबसे बड़ा स्नान मौनी अमावस्या का पड़ता है. माघ मेले का चौथा स्नान बसंत पंचमी और पांचवा स्नान माघी पूर्णिमा का होता है. माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद कल्पवासी और सभी साधु -संत अपने - अपने गंतव्य को लौट जाते हैं. मेले की प्रशासनिक व्यवस्था महाशिवरात्रि तक रहती है. महाशिवरात्रि के स्नान के बाद मेले का औपचारिक समापन हो जाता है.
ब्रिटिश सरकार ने बनाया था माघ मेला अधिनियम -
गंगा के तट पर माघ मेले की शुरुआत कब से हुई है. इसका सटीक विववरण नहीं मिल पाता है. माघ मेला भी काफी प्राचीन है. गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में लिखा है कि- “माघ मकरगत रवि जब होई / तीरथ पतिहिं आव सब कोई.” पूर्व माघ मेला अधिकारी डॉ एस के पाण्डेय कहते हैं “माघ मेला एक्ट 1938 में बना. इसलिए ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जब गंगा जी के तट पर माघ के महीने में भीड़ बढ़ने लगी होगी. तब उस समय की ब्रिटिश सरकार को इस माघ मेले के संचालन के लिए यह अधिनियम बनाना पड़ा होगा.”
प्रत्येक वर्ष जिला प्रशासन की तरफ से माघ मेला का आयोजन किया जाता है. सितम्बर माह के बाद जब बाढ़ समाप्त हो जाती है तब गंगा जी की धारा को देखते हुए जिला प्रशासन माघ मेले के लिए भूमि का समतलीकरण करा कर धार्मिक संस्थाओं को भूमि आवंटित करता है. उसके बाद धार्मिक संस्थाए एवं धर्माचार्य मेले में आकर बस जाते हैं. संत - महात्मा तो माघ मेले में आते ही हैं. काफी बड़ी संख्या में गृहस्थ माघ मेले में एक महीने कल्पवास करते हैं. ठीक इसी तरह कुम्भ मेले का भी आयोजन किया जाता है. बस फर्क इतना रहता है कि जिस वर्ष कुम्भ होता है उस वर्ष मेले का आयोजन बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. गंगा जी के कटान के बाद जो भूमि उपलब्ध रहती है उसी में माघ मेला का आयोजन हो जाता है मगर कुम्भ मेले के आयोजन के लिए आस - पास के किसानों की भूमि का अधिग्रहण करना पड़ता है.

तीर्थ - पुरोहित मधु चकहा बताते है कि “ कल्पवास का संकल्प 12 वर्षों का होता है. आम तौर पर कल्पवास एक महाकुम्भ से शुरू होकर अगले महाकुम्भ तक चलता है. बारह माघ मेले का कल्पवास पूरा होने पर कल्पवासी, अपने तीर्थ - पुरोहित को दान में गृहस्थी का सारा सामान मसलन सुई , धागा , चम्मच, कटोरी , थाली , राशन समेत सभी कुछ दान करता है. उसी के बाद कल्पवास पूर्ण माना जाता है
इस तरह से गंगा एवं संगम तट पर माघ मेला हर वर्ष लगता है . हर वर्ष कल्पवासी आते हैं .जिस वर्ष कुम्भ लगता है उस वर्ष भी कल्पवासी माघ महीने में नियम संयम से कल्पवास करते हैं और फिर अपने - अपने घरों को लौट जाते हैं.
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आम्बाहल्दी
आज युवा वर्ग शायद ही आंबाहल्दी को जानता होगा.. पर हमारे बुजुर्ग इसे भली भांति पहचानते थे,ओर इसके औषधीय गुणों का लाभ भी उठाते थे...।
आम्बाहल्दी को वन हरिद्रा, आम्र निशा, आम्र गंधा, रान हळद, कस्तुरी मंजल आदि नामों से जाना जाता हैं.....।।
आंबाहल्दी नाम के साथ आम का नाम जुड़ा है...इस हल्दी में कच्चे आम जैसी गन्ध आती है.....
"आम्रवत गंध अस्ति यस्मिन कंदे" अर्थात..जिस कन्द में आम जैसी गंध हो ,,इसीलिए इसे आमा हल्दी या आम्रगन्धि हरिद्रा कहा जाता है....।
इस प्रकार की हल्दी भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में विशेष रूप से बंगाल, कोंकण, गुजरात और तमिलनाडु में उत्पन्न होती है....।
आंबा हल्दी के पौधे भी हल्दी की ही तरह होते हैं,, दोनों में अंतर यह है कि आंबा हल्दी के पत्ते लम्बे तथा नुकीले होते हैं,, आंबा हल्दी की गांठ बड़ी और भीतर से हल्की पीली लगभग सफेद होती है, आंबा हल्दी में सिकुड़न तथा झुर्रियां नहीं होती हैं....
सुगन्धित होने के कारण इसे चटनी,आचार आदि बनाने में उपयोग में लाते हैं. मिठाइयों आदि में भी आम की गन्ध लाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.... ।
आमा हल्दी शीतल, मधुर, पित्तशामक है .... यह वायु को शांत करती है, पाचक है, पथरी को तोड़ने वाली, पेशाब की रुकावट को खत्म करने वाली, घाव और चोट में लाभ करने वाली, मंजन करने से मुंह के रोगों को खत्म करने वाली है. यह खांसी, सांस और हिचकी में लाभकारी होती है....।
सुगन्धित होने के कारण इसे चटनी आदि बनाने में उपयोग में लाते हैं. मिठाइयों आदि में भी आम की गन्ध लाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है....।
छोटे बच्चो को इसके घुट्टी भी दी जाती हैं ताकि पेट साफ रहे ...चोंट मोच सूजन में इसको बांधने से काफी आराम होता हैं....।
आम्बा हल्दी का अधिक उपयोग ह्रदय के नुकसान दायक होता हैं...
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मैदा लकड़ी
मैदालकड़ी को संस्कृत में मेदा, मदिनी, मदसरा, मनिच्छद्रा, मधुरा, जीवन साध्वी, स्वल्प पर्णी आदि नामों से जाना जाता हैं ...।
मैदालकड़ी के पेड़ छत्तीसगढ़ व पूर्वी मध्यप्रदेश के जंगलों में आसानी से दिखाई पड़ते है ,पर कुछ दशकों से लकड़ी तस्करों ने इस पेड़ को दुर्लभ बना दिया हैं...।
मैदा लकड़ी की छाल ग्राही (भारी) होती है...अतिसार के रोग में इसकी छाल बहुत ही उपयोगी होती है... हड्डी टूटने वाला दर्द, चोट, मोच, जोड़दर्द, सूजन, गठिया, सायटिका और कमरदर्द में इसकी छाल के पाउडर को प्रयोग में लेते हैं...इसके अलावा चोट, मोच या हड्डी के दर्द व सूजन की स्थिति में मैदा लकड़ी व आमा हल्दी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर १-१ चम्मच दूध से १० दिन तक लेना फायदेमंद होता है....।
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इस दीवार का कर्ज हिन्दू होने के नाते 10 जन्म में भी नही चुका सकता
हिंदू धर्म की रक्षा और इस्लाम कुबूल न करने पर..दशमेश गुरु गोबिंद सिंह जी के साहबज़ादों को मुगलों ने जिस दीवार में चिनवा दिया था..उसके दर्शन करके स्वयं को धन्य करें।
सतनाम श्री वाहे गुरु
इस्लाम कबूल कर लो ..वरना …….
वरना क्या ?
मौत की सज़ा मिलेगी ……
पूस का 13वां दिन  नवाब वजीर खां ने फिर पूछा  बोलो इस्लाम कबूल करते हो ?
छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह जी आयु 6 वर्ष ने पूछा अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न ?
वजीर खां अवाक रह गया उसके मुह से जवाब न फूटा …….
तो साहिबजादे ने जवाब दिया - कि जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें ……..
दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ ।
दीवार चीनी जाने लगी । जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा ……..
फ़तेह ने पूछा , जोरावर रोता क्यों है ?
जोरावर बोला , रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर कौम के लिए शहीद तू पहले हो रहा है ……
उसी रात माता गूजरी ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए ।
गुरु साहब का पूरा परिवार 6 पूस से 13 पूस इस एक सप्ताह में कौम के लिए धर्म के लिए राष्ट्र के लिए शहीद हो गया ।
22 December पूस की 8 -9 है दोनों बड़े साहिबजादों , अजीत सिंह और जुझार सिंह जी का बलिदानी दिवस …कितनी जल्दी भुला दिया हमने इस बलिदान को ?
सुनी आपने कहीं कोई चर्चा ? किसी TV चैनल पे या किसी अखबार में 4 बेटे और माँ का बलिदान  एक सप्ताह में ……==== 22_से_28_दिसम्बर_भारत_का_गौरवशाली_इतिहास छोटे साहिबजादे बाबा #जोरावर_सिंघ (7 वर्ष) और बाबा #फतेह_सिंघ (5वर्ष) सरहन्द के नवाब ने इस्लाम कबूल न करने पर जिंदा नीव में चिनवा दिया माता #गुजरी_जी ने भी इस खबर को सुनकर अपने प्राण त्याग दिए इतिहास की चौखट पर सरहिंद के दीवान #टोडरमल का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। गुरु #गोबिंद_सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहादत के साथ साथ #टोडरमल के साहस,उदारता और समर्पण भाव का सदैव जिक्र रहता है। #टोडरमल सरहिंद का एक अमीर हिंदू जैन था। उसने अनूठी मिसाल पेश की साहिबजादों को जिंदा चिनवाने के बाद बेरहमी से शहीद करके माता #गुजरी_जी के पार्थिव शरीर सहित मौजूदा गुरुद्वारा #श्रीफतहगढ़ साहिब के पीछे जंगल में रखा गया।वजीर खान के भय से छोटे साहिबजादों और माता गुजरी के अंतिम संस्कार के लिए कोई सामने नहीं आ रहा था। शाही फरमान जारी किया गया कि शवों का दाह संस्कार मुगलों की भूमि में नहीं किया जा सकता। संस्कार के लिए स्थान खरीदने की ऐसी शर्त रखी गई जिसे पूरा करना असंभव था। शर्त यह थी कि जितना स्थान चाहिए उतनी जगह पर स्वर्ण मोहरें बिछा कर खरीद कर लिया जाए। टोडरमल जब इसके लिए तैयार हुए तब नवाब ने शर्त रखी की सोने की मोहरे लिटाकर नही खड़ी करके बिछानी होगी सरहिंद के दीवान टोडरमल की सिख गुरुओं में बड़ी आस्था थी इतिहासकारों के मुताबिक टोडरमल ने 78000 स्वर्ण मुहरें बिछा कर विश्व का सबसे महंगा स्थान खरीदा 4 वर्ग मीटर की इस दुनिया की सबसे महंगी जमीन की कीमत उस वक्त के हिसाब से 2 अरब 50 करोड़ रुपयों की आकी गई #टोडरमल ने दुनिया की सबसे महंगी जमीन खरीदकर साहिबजादों व माता गुजरी जी का अंतिम संस्कार किया।
अमरजीत सिंह छाबड़ा
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एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे!
रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा .. मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया !
अकबर ने पूछा कौन हे ये ?
बीरबल -- मेरी माता हे !
अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया और बोला .. कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की ...!
बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी! .. आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला .. बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर कहा: जय हो बाप मेरे ! !
अकबरको गुस्सा आया .. दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा .. इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला: .. बीरबल ये क्या हो गया !
बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!
अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती .. बोला: बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!
बीरबल बोला: उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है .. उससे विनती करी पड़ेगी !
अकबर बोला: जल्दी करो !
आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि ... हे माता दवाई दो..
गाय ने गोबर कर दिया .. अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई!
अकबर बोला .. बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?
बीरबलने कहा: .. नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी .. आप बोलिए हर -हर गंगे .. जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए !
नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा: .. कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं! इनको मानने वालों को ही हिन्दू कहते हैं ..!
*हिन्दू एक संस्कृति है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मेजर सोमनाथ ने आखिरी सांस तक लिया था दुश्मन से लोहा

दुश्मन हम से बस 100 गज की दूरी पर है। हम घिरे हुए हैं संख्या में कम हैं लेकिन मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटूंगा। जब तक हमारे पास एक भी गोली और एक भी सांस है मैं अपने जवानों के साथ मोर्च से पीछे नहीं हटूंगा और मरते दम तक लड़ूंगा। आर्मी हेडक्वार्टर को दिया यह मेजर सोमनाथ शर्मा का अंतिम संदेश था। 1947 में 3 नवंबर को देश के लिए मेजर सोमनाथ शहीद हुए थे। मरणोपरांत उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आजाद भारत का यह पहला परमवीर चक्र थाएक सैन्य अधिकारी होने के नाते वह जानते थे कि दुश्मन ज्यादा है और उनके सैनिकों की संख्या कम इसलिए दुश्मन को बहुत देर तक नहीं रोका जाता सकता, लेकिन वह यह भी जानते थे कि जब तक और मदद नहीं आ जाती पीछे हटना मुनासिब नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो कबाइली बिना किसी रुकावट के एयरफील्ड पर पहुंच जाएंगे और श्रीनगर पर कब्जा कर लेंगे।
उन्होंने वहीं टिकने का फैसला किया। जवानों की हौसला अफजाई करते हुए उन्होंने उन्हें अंतिम समय तक लड़ने का हुक्म दिया। उनके बाएं हाथ में प्लास्टर था लेकिन वह लगातार मोर्च पर डटे रहे। ऐसे थे शूरवीर थे मेजर सोमनाथ शर्मा। रचना बिष्ट की पुस्तक "शूरवीर परमवीर चक्र विजेताओं की कहानियां " में उन्होंने मेजर सोमनाथ शर्मा के छोटे भाई लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत सुरिंद्रनाथ शर्मा से हुई बातचीत के आधार पर विस्तार से उस युद्ध का वर्णन किया है जिसमें मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हुए थे।
मेजर जानते थे कि दुश्मन के सामने ज्यादा देर नहीं टिका जा सकता। सिपाही अपना आत्मविश्वास न खो दें इसलिए वह स्वयं खुले मैदान में आ गए। सिपाही मारे जा रहे थे। मेजर का बायां हाथ जख्मी था उन्होंने एक हाथ से लाइट मशीनगन लोड की और मोर्चा संभाल लिया। वह सिपाहियों को भी मशीनगन लोड करके देते और दुश्मन पर लगातार खुद भी फायर करते। इधर मारो, उधर मारो, वह लगातार अपने जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। 3 नवंबर दोपहर की बात है उनका गोला बारूद खत्म होने के कगार पर था। उन्होंने ब्रिगेड मुख्यालय को इसकी सूचना दी। सीनियर अधिकारियों ने उन्हें सलाह देते हुए कहा कि वह पीछे हट जाएं। लेकिन उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि दुश्मन हम से बस 100 गज की दूरी पर है। हम घिरे हुए हैं संख्या में कम हैं लेकिन मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटूंगा। जब तक हमारे पास एक भी गोली और एक भी सांस है मैं अपने जवानों के साथ मोर्च से पीछे नहीं हटूंगा और मरते दम तक लड़ूंगा। आर्मी हेडक्वार्टर को दिया यह मेजर सोमनाथ शर्मा का यह अंतिम संदेश था। कुछ ही मिनटों पर उनके खंदक में एक गोला आकर गिरा और मेजर सोमनाथ, उनका सहायक, मशीनगन चलाने वाला जवान और जेसीओ जो वहीं बगल में खड़ा था तीनों शहीद हो गए।बाद में 5 नवंबर की सुबह बडगाम पर हमला बोलकर भारतीय सेना ने वहां कब्जा कर लिया। सभी हमलावर मारे गए और भारतीय सेना ने मेजर सोमनाथ शर्मा, सुबेदार प्रेम सिंह मेहता और शहीद हुए 20 जवानों का बदला लिया।
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी, 1923 को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में हुआ था. अपनी शुरुआती शिक्षा के लिए सोमनाथ पहले नैनीताल और बाद में उच्च शिक्षा के लिए देहरादून गए। उनके परिवार में कई लोग पहले से ही सेना में थे। उनके पिता मेजर अमरनाथ शर्मा भी सेना का हिस्सा रहे, जो आर्मी मेडिकल सर्विस के डायरेक्टर जनरल के पद सेवानिवृत हुए। पिता के अलावा उनके मामा किशनदत्त वासुदेव सेना में बतौर लेफ्टिनेंट 4/19 हैदराबादी बटालियन का हिस्सा रहे।
मई 1941 में उन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में प्रवेश लिया। नौ महीने का कड़ा प्रशिक्षण लेने के बाद 22 फरवरी, 1942 को उन्हें चौथी कुमायूं रेजिमेंट में बतौर कमीशंड ऑफिसर के रूप में सेना का हिस्सा बन गए। जब वह सेकेंड लेफ्टिनेंट बने तो मात्र 19 साल के थे। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था। सेना का हिस्सा बनते ही उन्हें दूसरे विश्व युद्ध के तहत कई मोर्चों पर युद्ध लड़ा। उनकी नेतृत्व क्षमता से सभी लोग वाफिक थे, इसलिए उनके वरिष्ठ अधिकारी भी उनकी बात बहुत मानते थे।
15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो पाकिस्तान के रूप में एक देश दुनिया के नक्शे पर आ चुका था। 22 अक्टूबर, 1947 को जब पाकिस्तान सेना ने कबाइलियों, भगौड़े सैनिकों के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर पर कब्जे की नियत से आक्रमण किया।
इस दौरान मेजर अस्पताल में भर्ती थे उनके बाएं हाथ की कलाई में फ्रैक्चर था। उन्होंने उसी हालत में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से कहा कि वह मोर्च पर जाना चाहते हैं। उनके कमाडिंग अफसर ने उन्हें साफ मना कर दिया लेकिन मेजर अपनी कंपनी के साथ मोर्च पर जाना चाहते थे। सोमनाथ नहीं माने। आखिरकार वह अपने कमाडिंग अफसर को मनाने में कामयाब हो गए। जैसे ही उन्हें अनुमति मिली वह एयरपोर्ट पहुंचे और अपनी डेल्टा कंपनी में शामिल हो गए।
सोमनाथ शर्मा इसी कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे। अक्टूबर के अंत में जब सोमनाथ श्रीनगर पहुंचे तो हमलावर बरामुला पहुंचने वाले थे और फिर बडगाम। यही नियति थी। यहीं वह युद्ध होने वाला था जहां सेना के इस बहादुर अफसर को शहीद होना था और आजाद भारत का पहला परमवीर चक्र लेने का सम्मान हासिल करना था।
रानीखेत में कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर के ट्रेनिंग ग्राउंड का नाम उनके नाम पर रखा गया है। यहां लाल पत्थर से बना एक बड़ा द्वार है जिसे सोमनाथ द्वार के नाम से जाना जाता है। उनकी कहानी नए आने वाले जवानों और अफसरों को सुनाई जाती है ताकि वे उससे प्रेरणा ले सकें।

(लेख के अंश शूरवीर परमवीर चक्र विजेताओं की कहानियां पुस्तक से साभार लिए गए हैं )

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देसी गाय के गोबर से बनाते हैं वातानुकूलित घर,  खर्चा सीमेंट से 7 गुना कम
अगर आपको कम लागत का एक ऐसा घर बनाना है जो वातानुकूलित हो तो आप हरियाणा के डॉ शिवदर्शन मलिक से मिलें। इन्होंने देसी गाय के गोबर से एक ऐसा 'वैदिक प्लास्टर' बनाया है जिसका प्रयोग करने से गांव के कच्चे घरों जैसा सुकून मिलेगा। दिल्ली के द्वारिका के पास छावला में रहने वाले डेयरी संचालक दया किशन शोकीन ने डेढ़ साल पहले इस गाय से बने प्लास्टर से अपना घर बनवाया था। ये गांव कनेक्शन संवादाता को फोन पर बताते हैं, "इस तरह के बने मकान से गर्मियों में हमें एसी लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बाहर का तापमान 40 डिग्री है तो इसके अन्दर 28-31 तक ही रहता है। दस रुपए स्क्वायर फिट इसका खर्चा आता है जो सीमेंट के खर्च से छह से सात गुना कम होता है।"
भारत में 300 सौ से ज्यादा लोग देसी गाय के वैदिक प्लास्टर से घर बना रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का असर हमारे घरों में भी पड़ता है। पहले मिट्टी के बने कच्चे घरों में ऊष्मा को रोकने की क्षमता थी। ये कच्चे मकान सर्दी और गर्मी से बचाव करते थे लेकिन बदलते समय के साथ ये कच्चे मकान अब व्यवहारिक नहीं हैं। पक्के मकानों को कैसे कच्चा बनाया जाए जिसमें ऊष्मा को रोकने की क्षमता हो इसके लिए दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर रोहतक में रहने वाले डॉ शिवदर्शन मलिक ने लम्बे शोध के बाद देसी गाय का एक ऐसा 'वैदिक प्लास्टर' बनाया जो सस्ता होने के साथ ही गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रखता है।डॉ शिवदर्शन मलिक ने रसायन विज्ञान से पीएचडी करने के बाद आईआईटी दिल्ली, वर्ल्ड बैंक जैसी कई बड़ी संस्थाओं में बतौर सलाहकार कई वर्षों तक काम किया है। इस दौरान कई जगह भ्रमण के दौरान कच्चे और पक्के मकानों का फर्क महसूस किया और तभी इसकी जरूरत महसूस की।
हमारे देश में प्रतिदिन 30 लाख टन गोबर निकलता है। जिसका सही तरह से उपयोग न होने से ज्यादातर बर्वाद होता है। देसी गाय के गोबर में जिप्सम, ग्वारगम, चिकनी मिट्टी, नीबूं पाउडर आदि मिलाकर इसका वैदिक प्लास्टर बनाते हैं जो अग्निरोधक और उष्मा रोधी होता है। इससे सस्ते और इको फ्रेंडली मकान बनते हैं, इसकी मांग ऑनलाइन होती है। हिमाचल से लेकर कर्नाटक तक, गुजरात से पश्चिमी बंगाल तक वैदिक प्लास्टर से 300 से ज्यादा मकान बन चुके हैं।"
ये हैं वैदिक प्लास्टर से बने मकानों के फायदे
 इस तरह के प्लास्टर से बने मकानों में नमी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। इसमें तराई की झंझट नहीं रहती। घर प्रदूषण से मुक्त होते हैं। यह ईंट, पत्थर किसी भी दीवार पर सीधा अन्दर और बाहर लगाया जा सकता है। एक वर्ग फुट एरिया में इसकी लागत 20 से 22 रुपए आती है। डॉ शिवदर्शन का कहना है, "ये मकान हमारे सेहत के लिहाज से उपयोगी होते हैं। मकान से हानिकारक कीटाणु और जीवाणु भाग जाते हैं। अच्छी सेहत के साथ ही सकारत्मक उर्जा भी मिलती हैं, ये ध्वनिरोधक व अग्निरोधक होते हैं।"

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भगवान शिव तुरंत और तत्काल प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता है। आइए जानते हैं भगवान शिव को प्रिय ऐसी सामग्री जो अर्पित करने से भोलेनाथ हर कामना पूरी करते हैं। यह 11 सामग्री हैं : जल, बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, भांग, कर्पूर, दूध, चावल, चंदन, भस्म, रुद्राक्ष !
जल : शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है।
बिल्वपत्र : भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र। अत: तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शिव जी को अत्यंत प्रिय है। प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है। भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र।
आंकड़ा : शास्त्रों के मुताबिक शिव पूजा में एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फल देता है।
धतूरा : भगवान शिव को धतूरा भी अत्यंत प्रिय है। इसके पीछे पुराणों मे जहां धार्मिक कारण बताया गया है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। भगवान शिव को कैलाश पर्वत पर रहते हैं। यह अत्यंत ठंडा क्षेत्र है जहां ऐसे आहार और औषधि की जरुरत होती है जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे। वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है।
जबकि धार्मिक दृष्टि से इसका कारण देवी भागवत‍ पुराण में बतया गया है। इस पुराण के अनुसार शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया तब वह व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की।
उस समय से ही शिव जी को भांग धतूरा प्रिय है। शिवलिंग पर केवल धतूरा ही न चढ़ाएं बल्कि अपने मन और विचारों की कड़वाहट भी अर्पित करें।
भांग : समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन महादेव ने संसार की सुरक्षा के लिए अपने गले में उतार लिया। भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है। भगवान् शिव को इस बात के लिए भी जाना जाता हैं कि इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तों की विष से रक्षा करते हैं।
कर्पूर : भगवान शिव का प्रिय मंत्र है कर्पूरगौरं करूणावतारं.... यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं। कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है। भगवान भोलेनाथ को इस महक से प्यार है अत: कर्पूर शिव पूजन में अनिवार्य है।
दूध: श्रावण मास में दूध का सेवन निषेध है। दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक हो जाता है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।
चावल : चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। इसका रंग सफेद होता है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है। किसी भी पूजन के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। यहां तक कि पूजा में आवश्यक कोई सामग्री अनुप्लब्ध हो तो उसके एवज में भी चावल चढ़ाए जाते हैं।
चंदन : चंदन का संबंध शीतलता से है। भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है और इसकी खुशबू से वातावरण और खिल जाता है। यदि शिव जी को चंदन चढ़ाया जाए तो इससे समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है।
भस्म : इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है। जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है। इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। एक कथा यह भी है कि पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो क्रोधित शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहे।
रुद्राक्ष : भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंख बंद कीं। तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।