Tuesday 7 November 2017

जो चित्र आप देख रहे है वह वास्तव में एक विशुद्ध #राजपूती #शैली में बना #मंदिर है जिसे सिंध के एक प्रख्यात इस्लामिक सूफी फ़क़ीर जम निजामुद्दीन की याद में बनवाया गया था ऐसा मैं नहीं पाकिस्तान की सरकार का पुरातत्व विभाग कहता है l
इस मकबरे के आसपास के क्षेत्र का दौरा करने पर आपको सैकड़ो तरह के खँडहर मिलेंगे ठीक वैसे ही खँडहर आपको इसी प्रान्त में चौखंडी मकबरे में मिल जायेंगे जो असल में मंदिरों में अवशेष है (दुसरे चित्र में छोटा सा चबूतरा चौखंडी मकबरा का है)
जब इस्लामिक आक्रान्ताओं ने इस क्षेत्र को विजित किया था तब उन्होंने यहाँ हजारो सूफी फकीरों को भी बुलाया था, क्यूंकि इस्लामिक लुटेरो के द्वारा प्रजा पर भीषण अत्याचार तो किये थे पर हिन्दुओ के प्रचंड प्रतिरोध के कारण कम ही प्रजा मुस्लिम बनती थी इसलिए प्रजा को साम दाम की निति से इस्लाम में कन्वर्ट करने के कार्य ये सूफी फ़क़ीर ही करते थे
जब ये सूफी फ़क़ीर नगरो में प्रवेश करते थे तो ये ऐसे भव्य मंदिरों में शरण लेते थे क़ुतुब मीनार का पूरा परिसर कई सूफियो ने अपने अधिकार में कर लिया था पर अंत में इल्तुतमिश को मरने के बाद वहां दफना दिया गया था,
अहमदाबाद में जुमा मस्जिद(भद्रकाली मंदिर) के सामने बने एक शिव मंदिर में अहमद शाह को दफना दिया गया था, दिल्ली के एक शक्ति मंदिर में निजामुद्दीन ने शरण ली थी, उसके मरने के बाद उसे वही दफना दिया गया था और वह मंदिर उसका मकबरा बन गया था, अजमेर में एक प्रसिद्ध शिवमंदिर में मुइनुद्दीन ने शरण ली और उसके मरने के बाद उसे भी वही दफना दिया गया था, आज वो मंदिर भारत के सबसे बड़े दरगाहो में से एक बन चुका है, MP के भोज में कमाल मौलाना को सरस्वती मंदिर के पास ही दफना दिया गया था जहाँ आज एक दरगाह है, उस दरगाह की आड़ में आज पुरे भोजशाला सरस्वती मंदिर पर मुसलमान अपना अधिकार ठोकते है l
इस्लामिक लुटेरो के लिए ये कोई नयी बात नहीं है मस्जिद बनाने से अच्छा था मंदिरों को ही लुट कर उन्हें मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया जाए और यदि आप ये जम निजामुद्दीन द्वितीय का मकबरा देखेंगे तो इसमें बने हुए कई नक्काशी जैसे सबसे निचे सूर्य जैसे चिन्ह के ऊपर बने हुए स्तम्भ जैसी आकृतियाँ मैंने रानी सीपरी की मस्जिद अहमदबाद में देखी थी, यही आकृतियाँ आपको अहमदाबाद में नए भद्रकाली मंदिर के समीप बने मंदिर में दिख जाएँगी
(इस फोटो को ज़ूम करके आप देख सकते है https://upload.wikimedia.org/…/Tomb_of_Sultan_Jam_Nizamuddi…)
इसके ठीक ऊपर दरवाजे जैसी आकृति के ठीक ऊपर पत्थर को काट कर जोड़ा गया है जो क़ुतुब मीनार में भी देखि जा सकती है आश्चर्य की बात ये है की ये वही आकृति है जो क़ुतुब मीनार में उस भाग में है जहाँ पर देवी देवताओं की मूर्तियाँ अधिकता में है
इस मकबरे की दीवारों पर भ्रम फैलाने हेतु कही कही कुरान की आयतों को गढा गया है लेकिन इसे आप आसानी से पहचान सकते है क्यूंकि ये आयते सभी
खाली जगह न होकर केवल एक दो जगह है जैसा की क़ुतुब मीनार में इल्तुतमिश के मकबरे के पास बनी दिवार पर किया गया है जहाँ पर देखने से साफ़ पता चलता है की पत्थर बाद में लगाए गए है या बनी हुई फुल पत्तियों की आकृतियाँ को तोड़ मरोड़ कर कुरान में बदल दिया गया है
वैसे इस काम में अंग्रेज काफी माहिर थे, मुसलमान इतने दक्ष नही थे, वे तो इतने असभ्य थे की उन्हें सिवाय हिन्दुओ पर अत्याचार, उनके धन को लुटने और महिलाओं से बलात्कार से ही फुर्सत नहीं थ या तो ये कार्य अंग्रेजो ने किया या मुसलमानो ने ये कार्य भारतीय शिल्पकारो से करवाया था,
केवल भारत ही नहीं, पुरे पाकिस्तान अफगानिस्तान ईरान से लेकर मिस्र तक ऐसे सहस्रों मंदिर है जो आप मस्जिदों में परिवर्तित हो चुके है, आवश्यकता है एक इच्छा शक्ति की जो इन्हें पुन: मंदिरों में परिवर्तित किया जा सके l -Arya

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