Thursday 30 November 2017

vivek agnihotri ---on --mediya

https://www.facebook.com/TheAjitDoval/videos/1967357176810083/

Wednesday 29 November 2017

विहिंप उडुपी धर्म संसद का ३ रा दिन २६ नवंबर २०१७: प्रचंड जनसभा ! कर्नाटक से और आस पास से १,५०,००० हिन्दू उडुपी में आएँ पूजनीय संतों को और विहिंप को सुनने दूर दूर से आएँ। उत्साहभरा प्रतिसाद मिला। उडुपी, मंगलुरु और कर्नाटक के सभी क्षेत्रों के विहिंप कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम से इतनी बढ़िया जनसभा करवायी , अचूक आयोजन किया! बढ़िया! 
भारत भर के २५०० संतों को उडुपी लाने में विहिंप के सभी राज्यों के कार्यकर्ता लगें। धन्य हो सभी कार्यकर्ता और जनसभा में आएँ सभी हिन्दुओं को भी धन्यवाद ! उडुपी की यह ३ दिन चली विहिंप की धर्म संसद भारत के और हिन्दुओं के इतिहास में सुवर्णाक्षरों में लिखी जाएगी और इस धर्म संसद में किएँ गएँ निर्णय देश को फिर से खोया हुआ सुवर्णयुग लौटा देगा ऐसा दृढ़ विश्वास है। 
सभी राजनीतिक लोगों और पक्षों को चेतावनी: विहिंप के लाखों कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से उडुपी में हिन्दुओं की प्रचंड जनसभा हुयी, हजारों युवा भगवे झंडे श्रद्धा से लहराते बाइक्स पर अनेकों स्थानों से आएँ। इनमें से किसी भी फोटो, न्यूज़, वीडियो का उपयोग अपने राजनीतिक प्रचार के लिए ना करें। बहुत कर लिया हिन्दुओं का उपयोग, अब समय आया है कि हिन्दू जागें और सभी से अपने अधिकार मांगें।
Top 10 Most Corrupt Political Party In The World 2017
RankParty NameCountry
1Pakistan Muslim League Nawaz PML(N)Pakistan
2National Resistance MovementUganda
3Progressive Action PartyCuba
4Indian National CongressIndia
5Vietnam’s Communist partyVietnam
6KuomintangChina
7Nationalist Fascist PartyItaly
8Nazi PartyGermany
9Communist Party of ChinaChina
10Communist Party of the Soviet UnionRussia

हिन्दू परम्पराओं से जुड़े है ये वैज्ञानिक तथ्य...

एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं
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वैज्ञानिक कारण –
एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम था
उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो इसका एक ही इलाज है और वो है “सेपरेशन ऑफ़ जींस” मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए
क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की 100% चांस होती है.
फिर बहुत ख़ुशी हुई जब उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया की आखिर “हिन्दूधर्म” में हजारों-हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया है ?
हिंदुत्व में गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर सकते ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.
उस वैज्ञानिक ने कहा की आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की “हिन्दूधर्म ही” विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है
जो “विज्ञान पर आधारित” है !
हिंदू परम्पराओं से जुड़े कुछ और वैज्ञानिक तर्क:
1- कान छिदवाने की परम्परा:
भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क-
दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।
2- माथे पर कुमकुम/तिलक :
महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं
वैज्ञानिक तर्क-
आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है।
माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है।
इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता !
3- जमीन पर बैठकर भोजन :
भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है
वैज्ञानिक तर्क-
पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही
खुद-ब-खुद दिमाग से 1 सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये !
4- हाथ जोड़कर नमस्ते करना –
जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।
वैज्ञानिक तर्क-
जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है,
ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते।
अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।
5- भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से –
जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।
वैज्ञानिक तर्क-
तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं इससे पाचन तंत्र ठीक से संचालित होता है
अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है इससे पेट में जलन नहीं होती है
6- पीपल की पूजा –
तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।
वैज्ञानिक तर्क-
इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है
7- दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना –
दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे भूत प्रेत का साया आयेगा, आदि इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें !
वैज्ञानिक तर्क-
जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है।
शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है
यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है
8- सूर्य नमस्कार –
हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते नमस्कार करने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क-
पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है
9- सिर पर चोटी –
हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे आज भी लोग रखते हैं
वैज्ञानिक तर्क-
जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं
इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता सोचने की क्षमता बढ़ती है।
10- व्रत रखना – कोई भी पूजा-पाठ, त्योहार होता है तो लोग व्रत रखते हैं।
वैज्ञानिक तर्क-
आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं
शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है हृदय संबंधी रोगों,मधुमेह,आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते !
11- चरण स्पर्श करना –
हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें तो उसके चरण स्पर्श करें यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं ताकि वे बड़ों का आदर करें !
वैज्ञानिक तर्क-
मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं
इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक !
12- क्यों लगाया जाता है सिंदूर –
शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं
वैज्ञानिक तर्क-
सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है
इससे स्ट्रेस कम होता है।
13- तुलसी के पेड़ की पूजा –
तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है सुख शांति बनी रहती है।
वैज्ञानिक तर्क-
तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है लिहाजा अगर घर में पौधा होगा तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।
भीष्म क्षत्रिये थे, तो उनके भाई वेद व्यास ब्राह्मण कैसे
 इसे समझना है बहुत जरुरी है ...
अब हम आपको इतिहास के कुछ उदाहरण देते है जिसपर आप गौर कीजिये, दशरथ और विश्वामित्र भाई लगते थे, जी हां, विश्वामित्र भी एक राजा ही थे, आधी उम्र वो क्षत्रिय ही थे, पर आज हम विश्वामित्र को ब्राह्मण कहते है, वो ऋषि हो गए, कैसे ? भला कोई क्षत्रिये बाद में ब्राह्मण कैसे हो सकता है
अब दूसरा उदाहरण देखिये, वेद व्यास जिन्होंने महाभारत श्री गणेश के हाथों से लिखवाई, वो ब्राह्मण है, पर उनके भाई भीष्म क्षत्रिय, जी हां वेद व्यास और भीष्म जिनका असली नाम देवव्रत था, वो दोनों ही भाई थे, पर एक भाई ब्राह्मण और दूसरा क्षत्रिये, ऐसा कैसे ?
और उदारहण लीजिये, एकलव्य आदिवासी बालक था, पर आगे चलकर सेनापति बना, और क्षत्रिये कहलाया, कर्ण शूद्र के घर में बड़े हुए, पर आगे चलकर राजा बने और वो भी क्षत्रिये कहलाये, भैया ये सब इसलिए क्यूंकि जाति व्यवस्था कर्म के आधार पर बनाई गयी थी, हमारे पूर्वजो ने कर्म के आधार पर ये व्यवस्था बनाई थी , पर समाज द्रोहियों ने जाति को धर्म के आधार पर घोषित कर दिया
विश्वामित्र क्षत्रिये तबतक थे जबतक वो क्षत्रिये कर्म करते थे, जब उन्होंने पूजा पाठ शुरू कर दिया, लोगों को शिक्षा देना शुरू कर दिया तो वो ब्राह्मण हो गए, और आज हम विश्वामित्र को ब्राह्मण ही कहते है, उन्होने अपना काम, अपना कर्म बदला और उनकी जाति भी बदल गयी, जाति कर्म के आधार पर होती है जन्म के आधार पर नहीं, इसलिए समाज को जाति का भेद छोड़ कर एकजुट रहना चाहिए, ताकि समाज ताकतवर बना रहे ।
इस्लामिक हमलावरों, फिर अंग्रेजो और फिर अब सेकुलरों और वामपंथियों ने मिलकर हिन्दू समाज और भारत को बर्बाद किया है, इन लोगों ने हिन्दुओ में जातिवाद भरा है, और ये बड़े षड्यंत्र के तहत भरा गया है ताकि हिन्दू समाज रहे ही न, जातियों में बंटकर हमेशा कमजोर बना रहे
अब हिन्दू एकजुट रहेगा तो हिन्दू ही जीतेगा, पर हिन्दुओ को जातियों में तोडा जायेगा तभी तो दुश्मनो के लिए रास्ता खुलेगा, स्कोप बनेगा, उदाहरण के तौर पर गुजरात, हिन्दू एकजुट रहे तो कांग्रेस का कोई स्कोप नहीं, जहाँ हिन्दू टुटा वहीँ कांग्रेस का स्कोप शुरू----विट्ठलव्यास
शिवांश के इस निर्णय को सहस्त्र प्रणाम
एक ये युवा जो आज के युवाओं के लिए मिसाल है वो युवा है उत्तराखंड के रामनगर कस्बे का शिवांश जोशी.अपनी बारहवीं की परीक्षा 96.8%मार्क्स से साथ पास की उसके बाद शिवांश ने NIT और JEEE की परीक्षा भी उच्चाक से पास की और IIT ने चयनित हुए.यहां एक बात का उल्लेख आवश्यक है ये सब परीक्षाएं शिवांश ने बिना कोचिंग के पास की है.
लेकिन शिवांश ने इसके बाद जो किया वो आज की पीढ़ी के सामने एक आदर्श मिसाल है.24 अपैल 17 को शिवांश ने NDA(राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी)परीक्षा दी और पूरे देश से 371 चयनित युवाओं में 97%मार्क्स लाकर सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और IIT में चयनित होने के बावजूद आराम की नौकरी के बजाय देश को तरजीह दी और NDA के माध्यम से भारतीय थल सेना में जाने का निर्णय लिया.
शिवांश के इस निर्णय को सहस्त्र प्रणाम.शिवांश के ये निर्णय देश की युवा पीढ़ी को भारतीय सेना में जाने की प्रेरणा देगा.
शिवांश को देखकर लगता है कि हमारे देश का युवा देश के प्रति कितना सन्मान और प्रेम रखता है.
काउंसलिंग - *मेरी उम्र 17+ है, मैं स्कूल बस के 25+ के ड्राइवर से प्रेम करती हूँ। मेरे माता पिता मेरा विरोध कर रहे हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?क्या प्रेम करना गुनाह है? क्या मुझे मेरी जिंदगी मेरे हिसाब से जीने का अधिकार नहीं? मैं अमीर घर की हूँ तो क्या प्रेम ग़रीब अमीरी सोच के तो नहीं कर सकते। मुझे उससे शादी करनी है, वो और उसका परिवार तैयार है।*
बेटा प्रेम करना बिल्कुल गुनाह नहीं है। युगऋषि कहते हैं क़ि प्रेम संकुचित नहीं होना चाहिये, प्रेम तो जीव मात्र से करना चाहिए।
अभी आप 12वीं में हो, और एग्जाम पास होने के लिए पढ़ाई पर ध्यान नहीं दोगे तो फ़ेल हो जाओगे।
निम्नलिखित काम करो, जिससे विवाह के बाद सुखी रहो और सांसारिक वस्तुओं के आभाव में झगड़ा न हो, तलाक़ न हो:-
1- तुम्हारे होने वाला पति ग़रीब है, पिता की मर्जी के ख़िलाफ़ शादी करने पर वो तुम्हें कोई हेल्प करेंगे नहीं। तुम्हें पति के घर की परिस्थिति के अनुसार रहने की आदत डालनी चाहिए।
2- उसके घर में AC नहीं है, बिना AC के सोने की आदत डालो।
3- उसके पास तुम्हारी मन पसन्द चीज़े ख़रीदने के पैसे नहीं होंगे, अतः ख़र्च को कण्ट्रोल करो।
4- बिना गाड़ी के पैदल चलने की आदत डालो, जिससे गाड़ी का आभाव तुम्हें न खले।
5- मॉल जाओ लेकिन बिना कुछ ख़रीदे वापस कई बार आओ।
6- ऑनलाइन शॉपिंग की वेबसाईट विजिट करो लेकिन कुछ मत ख़रीदो।
7- पैसे के आभाव को महसूस करो और अत्यंत कम ख़र्च में एक वर्ष निकालो।
8- शादी के बाद बच्चा अवश्य होगा, तुम माँ बनोगी ही। ईश्क की रोटी खा के और ईश्क के घर में प्रेमी रह सकते हैं, लेकिन बच्चा नहीं रहेगा। उसे घर भी चाहिए, अच्छा खाना भी चाहिए, अच्छा स्कूल चाहिए और वो समस्त फैसिलिटी चाहिए जो आज आप एन्जॉय कर रहे हो। अग़र तुम यह सब उन्हें न दे पाओ तो क्या तुम दुःखी होगी? या स्वयं को सम्हाल लोगी।
9- तुम शाकाहारी हो, और वो मांसाहारी है। अतः पहले यह तय करो क़ि तुम मांसाहारी बनोगे या वो शाकाहारी बनेगा? यदि तुम उसके प्रेम में स्वयं को बदलने की सोच रही हो तो कसाई की दुकान जाओ और वहां पशुओं को अपनी आँखों के सामने कटते देख़ो। पशुओं का आर्त नाद, दर्द भरी कराह चीख़ पुकार सुनकर भी स्वयं को सम्हाल लो। क्यूंकि किचन में जब यह बने तो मन मजबूत हो।
10- विवाह जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं होता, यह मात्र एक जीवन की गाड़ी का स्टेशन है जहाँ एक हमसफ़र आपके साथ गाड़ी पर बैठता है। जो सुख दुःख में आपका साथ निभाता है। जीवन का सफ़र बहुत लम्बा है, आगे इसी गाड़ी में आपके बच्चे भी बैठेंगे।
आगे जो भी होगा देखा जाएगा, ऐसा बेवकूफ़ बोलते हैं। मेरे पास मेरे भविष्य का प्लान ऑफ़ एक्शन है ऐसा बुद्धिमान् बोलते हैं।
🙏🏻 तुम्हारे पास दो रास्ते हैं, पहला माता पिता का विरोध करो, और स्वेच्छा से बस ड्राइवर से शादी कर लो।
🙏🏻दूसरा रास्ता, सुनहरे भविष्य के लिए स्वयं पढ़ाई करो और उसे भी पढ़ने या बिज़नेस के लिए प्रेरित करो। कुछ बड़ा बनने और करने के लिए प्रेरित करो। सफ़ल व्यक्तियों की कहानियां सुनाओ। युगऋषि की लिखी पुस्तक - 📚 *सफ़ल जीवन की दिशा धारा* और *आगे बढ़ने की तैयारी* तुम दोनों पढ़ो।
🙏🏻इस रिलेशनशिप को पकने के लिए वक़्त दो, स्वयं को किसी बड़े लक्ष्य से जोड़कर एक उच्च पद प्रतिष्ठा तक पहुंचा दो। जो जिंदगी तुम्हारे पिता ने तुम्हे दी, उससे बेहतर जिंदगी अपने बच्चों को दे सको ऐसा संकल्प लो।
🙏🏻फ़िर शान से तुम दोनों सफ़ल व्यक्ति बनकर शादी करो और देश समाज के लिए प्रेरक उदाहरण बनो।
अभी तुमने कहा, क़ि तुम उसके लिए जान दे सकती हो, जान तो कोई भी दे सकता है। उसके और स्वयं के सुनहरे भविष्य के लिए पढ़ाई कर लो, उसके और उसके होने वाले बच्चे के लिए घर और शानदार जीवन की व्यवस्था कर दो। जिसकी तुम पत्नी बनो उसे अपने पिता से भी ज्यादा सफ़ल और सुखी बना दो।
निर्णय तुम्हारे हाथ में है क़ि तुम क्या चाहती हो, जल्दबाज़ी में ग़लत निर्णय या सोच समझकर धैर्य के साथ सही निर्णय। मरना बहुत आसान है ईश्क में, जीना बहुत मुश्किल है। वो सही तरीके से मैच्योर निर्णय के साथ तो मुश्किल है। कायर मरते हैं, और बहादुर अपनी अच्छी तक़दीर लिखते हैं। तुम बहादुर हो, ऐसा मेरा विश्वास है।
अधिकार और सम्मान भीख़ में नहीं मिलता, इसे अर्जित करना पड़ता है। सुखी जीवन स्वयं के हाथ की लकीरों में मत ढूँढो, इस हाथ और दिमाग़ का सही उपयोग कर सुखी जीवन अपना बनाओ।
ईश्वर तुम्हे सही राह दे, सफ़ल सुखी बनकर विवाह करना और अपने जोड़े के साथ सम्मान मुझसे मिलने जरूर आना।
तुम्हारी बहन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

Tuesday 28 November 2017

tarik fatah on islam ,history gazwa-e-hind

https://www.facebook.com/hindapna/videos/400994597001473
सुप्रीम कोर्ट की मक्कारी देख भड़के राष्ट्रपति कोविंद
 हक्के-बक्के रह गए मी-लार्ड ...
 केवल हिन्दुओं के खिलाफ बड़े-बड़े फैसले सुना रहे व् अन्य फैसलों को लगातार ताले जा रहे सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति कोविंद ने जबरदस्त लताड़ लगाई है. विधि दिवस की पूर्व संध्या को आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायपालिका को खरी-खरी सुनाई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी खुद को सरकार से भी ऊपर समझने वाले जजों के दिमाग ठिकाने लगा दिए.
 दिवाली पर पटाखे बैन जैसे फैसले फ़टाफ़ट लेने वाले कोर्ट भ्रष्टाचारी नेताओं के फैसलों को सालों-साल तारीख पर तारीख देते जाते हैं. अमीर तो गरीबों को अपनी गाडी से कुचल कर भी साफ़ बच निकलते हैं और गरीबों को न्याय मिलना नामुमकिन ही हो चुका है 
 प्रीम कोर्ट में जजों के नाम पर रिश्वतखोरी ,भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी अदालतों को फटकार लगाते हुए माननीय राष्ट्रपति ने गरीबों को न्याय मिलने में कठिनाई, देरी और न्यायिक व्यवस्था में निचले वर्ग के कम प्रतिनिधित्व खासतौर से महिलाओं के प्रतिनिधित्व का उल्लेख किया और कहा हर चार न्यायाधीशों में से केवल एक महिला होती है. उन्होंने कहा कि तीनों अंगों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अच्छे व्यवहार का मॉडल बनना होगा.
वहीं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कोलेजियम सिस्टम को बदलने की जरूरत बताई, जिसका कोर्ट बहुत सख्ती से बचाव करता रहा है. दरअसल अंग्रेजों द्वारा कोलेजियम सिस्टम इसलिए बनाया गया था, ताकि गुलाम भारत में अपनी मर्जी के लोगों को आसानी से जजों के पद पर नियुक्ति दिलवा सकें.  पिछले 60 सालों में कांग्रेस ने इस सिस्टम को नहीं बदला और  दुरूपयोग करके अपने पालतू चाटुकारों को सुप्रीम कोर्ट व् हाई कोर्ट्स में जज बनवाते रहे.यही वजह है कि कभी देश में किसी भ्रष्टाचारी नेता को शायद ही सजा होती हो. जज बनवाने के लिए रिश्वत देने तक के मामले सामने आते रहे हैं.
मोदी सरकार  इसकी जगह और भी पारदर्शी सिस्टम लाने के पक्ष में है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट  ऐसा करने नहीं दे रही है. सुमित्रा महाजन और कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के कोलेजियम सिस्टम और न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठाए. देश में जहाँ एक ओर लाखों-करोड़ों केस पेंडिंग हैं, वहीँ सुप्रीम कोर्ट सरकार के कामों में हस्तक्षेप में ही व्यस्त रहता है. जबसे मोदी सरकार आयी है, तब से सरकार को क्या-कैसे करना चाहिए, इसमें अदालतों के जज अपनी राय जबरदस्ती ही थोपते आये हैं. न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि नियुक्तियों पर बारीकी से काम हो. वहीँ सम्मेलन में मौजूद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बात समझने की जगह उलटा अपनी ही सफाई देना शुरू कर दिया.

एक गोरे विदेशी ने जो कुछ लिखा है
 वह हिन्दुओं की आँखें खोलनेवाला है :
प्रत्येक मन्दिर पर एक IAS मुखिया बनकर बैठा हुआ है । पर किसी भी मस्जिद या चर्च पर नहीं ......The Hindu Religious and Charitable Endowment Act, 1951 राज्य सरकारों तथा नेताओं को यह अधिकार देता है कि वह हजारों हिन्दू मंदिरों पर अधिकार कर सकते हैं तथा उनपर एवं उनकी सम्पत्ति पर पूरा नियंत्रण रख सकते हैं। कहा गया है कि वे मंदिरों की सम्पत्ति को बेच सकते हैं और उन पैसों का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं...
यह आरोप किसी मंदिर के पदाधिकारी ने नहीं, बल्कि एक विदेशी लेखक , Stephen_Knapp ने अपनी किताब (Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition) में लगाया है, जो अमेरिका से छपी है। इसे पढ़ने पर आप चौंक जाएंगे।http://www.stephen-knapp.com/crimes_against_india.htm

नोट करनेवाली बात है कि जिन भक्त राजाओं ने ये मन्दिर बनवाए उनमें से किसी ने भी उन मन्दिरों पर कोई अधिकार नहीं जताया। कइयों ने तो अपना नाम तक नहीं छोड़ा है। मन्दिरों और उनके धन पर नियंत्रण की तो बात ही छोड़िये, इन राजाओं ने भूमि तथा अन्य संपत्तियों को इन मन्दिरों के नाम कर दिया, जिनमें इनके आभूषण भी शामिल हैं। उन्होंने मंदिरों की सिर्फ सहायता की, उनपर किसी प्रकार का दावा नहीं ठोका। और होना भी यही चाहिये।
आज की सरकारों ने कोई भी बड़ा मन्दिर नहीं बनवाया (कुछेक को छोड़कर) और उन्हें इनमें से किसी भी मन्दिर -- उनके धन, प्रशासन अथवा पूजा पद्धति पर कोई अधिकार नहीं है। इन मंदिरों का धन सिर्फ इन मन्दिरों के प्रशासन, उनके रखरखाव, पारिश्रमिक, उनसे जुड़ी आधारभूत संरचनाओं तथा सुविधाओं पर खर्च होना चाहिये तथा जो बच जाय अन्य गौण मन्दिरों, खासकर पुराने मन्दिरों की मरम्मत पर खर्च होना चाहिये।
परंतु , एक Temple Endowment Act के तहत, आंध्रप्रदेश में 43000 मंदिर सरकार के नियंत्रण में आ गए हैं, और इन मंदिरों का सिर्फ 18% राजस्व इन मंदिरों को लौटाया गया है, शेष 82% को अज्ञात कार्यों में लगाया गया है।
यहाँ तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मंदिर को भी नहीं बख्शा गया । Knapp के अनुसार, इस मंदिर में प्रतिवर्ष 3100 करोड़ से भी अधिक रूपये जमा होते हैं और राज्य सरकार ने इस आरोप का खण्डन नहीं किया है कि इस राशि का 85% राजकोष में जमा हो जाता है, और इसमें से अधिकतर उन मदों में व्यय होता है जो हिन्दू समुदाय से संबद्ध नहीं हैं।
एक और आरोप जो लगाया गया है वो ये कि आंध्र सरकार ने कम से कम 10 मंदिरों को गोल्फ कोर्स बनाने के लिये तोड़ने की अनुमति दी है। Knapp लिखते हैं, कल्पना कीजिये अगर 10 मस्जिद तोड़ दिये जाते तो कितना बवेला मचता?
ऐसी आशंका है कि कर्नाटक में जो लगभग 2 लाख मंदिरों से 79 करोड़ वसूले गए, उनमें से मंदिरों को सिर्फ 7 करोड़ मिले , मुस्लिम मदरसों और हज सब्सिडी में 59 करोड़ दिये गए और चर्चों को लगभग 13 करोड़ दिये गए।
Knapp लिखते हैं कि इसके कारण 2 लाख मंदिरों में से 25% यानि लगभग 50,000 मंदिर संसाधनों के अभाव में कर्नाटक में बंद कर दिये जाएंगे और उनके अनुसार सरकार के इस कृत्य के लिये सिर्फ हिंदुओं की लापरवाही और सहिष्णुता ही जिम्मेदार है।
Knapp फिर केरल का उल्लेख करते हैं जहाँ, वो कहते हैं, गुरुवयूर मंदिर के फण्ड को दूसरी सरकारी योजनाओं में लगा दिया गया है जिससे 45 हिन्दू मंदिरों का विकास रुक गया है। #अयप्पा_मन्दिर की भूमि पर कब्ज़ा कर लिया गया है तथा चर्च, विस्तृत वन क्षेत्र को -- सबरीमाला के निकट हजारों एकड़ भूमि को -- अतिक्रमण से दबाकर बैठी है।
केरल की कम्युनिस्ट राज्य सरकार एक अध्यादेश पारित करना चाहती है ताकि वह Travancore & Cochin Autonomous Devaswam Boards (TCDBs) को समाप्त कर दे तथा 1800 हिन्दू मंदिरों पर उनके सीमित स्वतंत्र अधिकारों को हथिया ले। अगर लेखक का कहना सही है, तो महाराष्ट्र सरकार भी राज्य में 450,000 मन्दिरों पर कब्ज़ा करना चाहती है जो राज्य के दिवालियेपन को हटाने के लिये विशाल राजस्व जुटाएंगे।
और इससे भी बढ़कर, Knapp कहते हैं कि उड़ीसा में राज्य सरकार #जगन्नाथ_मन्दिर की 70,000 एकड़ से भी अधिक दान में मिली भूमि को बेचना चाहती है, जिसकी राशि से इसके अपने ही मन्दिर कुप्रबंधन से उपजे वित्तीय घाटे को पूरा किया जाएगा।
Knapp के अनुसार, इन बातों की जानकारी इसलिये नहीं हो पाती क्योंकि भारतीय मीडिया, खासकर इंग्लिश टेलीविज़न और प्रेस, हिन्दू विरोधी हैं और हिन्दू समुदाय को प्रभावित करनेवाली किसी भी बात को न तो कवरेज देना चाहती हैं, और न ही उनसे कोई सहानुभूति रखती हैं। अतः, सरकार के सभी हिन्दू विरोधी कार्य बिना किसी का ध्यान खींचे चलते रहते हैं।
संभव है कि कुछ लोगों ने पैसे कमाने के लिये मन्दिर खड़े कर लिये हों। पर सरकार को भला इससे क्या सरोकार होना चाहिये? सारी आमदनी को हड़प लेने की बजाय, सरकार मंदिरों को फण्ड के प्रति जवाबदेह बनाने के लिये कमिटियों की स्थापना कर सकती है -- ताकि उस धन का सिर्फ मन्दिर के उद्देश्य से समुचित उपयोग हो सके।
Knapp का कहना है कि: स्वतंत्र लोकतान्त्रिक देशों में कहीं भी धार्मिक संस्थाओं को सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता और देश के लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाता।
पर भारत में ये हो रहा है। सरकारी अधिकारियों ने हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथों में ले रखा है, क्योंकि उन्हें इसमें पैसों की गंध लगती है, वे हिंदुओं की लापरवाही से परिचित हैं, वे जानते हैं कि हिन्दू हद दर्जे के सहिष्णु और धैर्यवान हैं, वे ये भी जानते हैं कि सड़कों पर प्रदर्शन करना , संपत्ति का नुकसान करना, धमकी, लूट, हत्या, ये सब हिंदुओं के खून में नहीं है ।
हिन्दू चुपचाप बैठे अपनी संस्कृति की हत्या देख रहे हैं। उन्हें अपने विचार स्पष्ट और बुलंद आवाज में व्यक्त करने चाहिये। समय आ गया है कि कोई सरकार से कहे कि सभी तथ्यों को सामने रखे ताकि जनता को पता चले कि उसकी पीठ पीछे क्या हो रहा है। पीटर को लूट कर पॉल का पेट भरना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। और मंदिर लूटने के लिये नहीं हैं।
हम तो समझ रहे थे कि महमूद ग़ज़नवी मर चुका है, पर कहाँ ?

Monday 27 November 2017

जानते हैं, अपने पूर्वजों के बारे,हजारों साल पहले हमारे पूर्वजों ने किए थेआविष्कार..
‪हिन्दुत्व की महानता‬ हजारों साल पहले ऋषियों के आविष्कार, पढ़कर रह जाएंगे हैरान। भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है।
सनातन धर्म वेद को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
अगले पृष्ठों पर जानिए ऐसे ही असाधारण या यूं कहें कि प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्यों को जिनसे आप भी अब तक अनजान होंगे –
महर्षि दधीचि – महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए।
देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
आचार्य कणाद –कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
भास्कराचार्य – आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया।
भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
आचार्य चरक – ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की।
भारद्वाज –आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
कण्व,,,वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
कपिल मुनि –भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि ‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया।
इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया।
तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
पतंजलि –आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
शौनक : वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
महर्षि सुश्रुत –ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
वशिष्ठ : वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
विश्वामित्र : ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
महर्षि अगस्त्य –वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
गर्गमुनि –गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
बौद्धयन –भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।

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https://www.facebook.com/SamaChoudharyRj2/videos/1390697397660384/

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https://www.facebook.com/CyberSipahis/videos/1652088658189054/


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Sunday 26 November 2017

आस पास नजर रखिये की पढ़ाई कर रही बहिन बेटियाँ ...
Jitendra Pratap Singh

आस पास नजर रखिये की पढ़ाई कर रही बहिन बेटियाँ तथाकथित प्रोग्रेसिव वामपंथी विचारधारा की गलत सोहबत में पड़ कर खुद और परिवार वालो की जिंदगी ना खराब कर दे !अंत में रोने के सिवा कुछ नहीं मिलेगा ! परिवार के अचार विचार शिक्षा संस्कार इतने सनातनी और मजबूत रखिये की कोई दूसरे विचारो का मुलम्मा दिलो दिमाग पर चढ़े ही नहीं !एक ऐसे ही लव जिहाद के मामले में केरल हाईकोर्ट आज फैसला सुनाएगा सुनाएगा जिसमे हॉस्टल कर पढ़ाई कर रही लड़की ISIS के चुंगल में फंस कर लव जिहाद हो गई और अंत में धर्म परिवर्तन कर लिया !
केरल के वाइकोम की रहने वाली अखिला तमिलनाडू के सलेम में होम्योपैथी की पढ़ाई कर रही थी. ISIS के एजेंडे के तहत हॉस्टल में उसके साथ रहने वाली 2 मुस्लिम लड़कियों ने उसका जबरदस्त ब्रेन वाश किया और अंत में उसे धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया. फिर साजिश के तहत एक कुख्यात मुस्लिम अपराधी से उसका प्रेम प्रसंग शुरू करवाया । उस मुस्लिम अपराधी के प्यार में डूबी अखिला आज अपने माँ और बाप को भूल चुकी है । अखिला ने इस्लाम कबूल कर अपना नाम हदिया रख लिया. जनवरी 2016 में वो अपने परिवार से अलग हो गई. हदिया के पिता ने दिसंबर 2016 में केरल हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. उन्होंने कोर्ट में रो रो कर गुहार लगाई की कि उनकी बेटी गलत हाथों में पड़ गई है. उसे IS का सदस्य बना कर सीरिया भेजा जा सकता है. उन्होंने बेटी को अपने पास वापस भेजने की मांग की.
हाई कोर्ट ने हदिया को कोर्ट में पेश होने को कहा. 19 दिसंबर को वो शफीन जहां के साथ कोर्ट में पेश हुई और बताया कि दोनों ने कुछ दिन पहले निकाह किया है. दोनों पक्ष के वकीलों की दलील के बाद कोर्ट ने शादी के हालात को शक भरा माना. हदिया को उसके पिता के पास भेज दिया गया.
हाई कोर्ट ने शादी की परिस्थितियों को भी देखा. कोर्ट ने पाया कि अशोकन की नयी याचिका के बाद जल्दबाज़ी में शादी करवाई गई. ये साफ हुआ कि हदिया को अपने पति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. पति और हदिया का धर्म परिवर्तन कराने वाली महिला की संदिग्ध और आपराधिक गतिविधियों की बात भी कोर्ट के सामने आई.इसके अलावा कोर्ट ने हदिया की मानसिक स्थिति जानने की भी कोशिश की. सुनवाई कर रहे दोनों जज उससे व्यक्तिगत रूप से मिले. जजों का निष्कर्ष था कि उसका दिमाग अपने काबू में नहीं है. उस पर कट्टरपंथ का इतना असर है कि वो सही-ग़लत सोचने की स्थिति में नहीं है. इस साल 25 मई को हाई कोर्ट ने निकाह को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया. कोर्ट ने माना कि इस शादी की कानून की नज़र में कोई अहमियत नहीं है. जजों ने अपने आदेश में लिखा है कि अगर कोई सोचने-समझने की स्थिति में न हो तो उसके अभिभावक की भूमिका निभाना हमारी कानूनी ज़िम्मेदारी है. इसी के तहत हम लड़की को उसके पिता के पास वापस भेज रहे हैं.
हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA से भी पूरे मसले पर रिपोर्ट मांगी. NIA ने बताया कि केरल में कट्टरपंथी समूह लोगों के धर्म परिवर्तन की कोशिश में लगे हैं. साथ ही वो ताज़ा मुसलमान बने लोगों को जिहाद के नाम पर अफगानिस्तान और सीरिया भी भेज रहे हैं. हदिया के मामले में भी NIA ने ऐसा होने की आशंका जताई.
अभी कुछ दिन पहले प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर ने अपने मां बाप के घर रह रही अखिला उर्फ हदिया का इंटरव्यू लिया ... अखिला के मां बाप इतना रो रहे थे लेकिन अखिला बदतमीजी से हिजाब पहने अल्लाह हू अकबर और मैं मुस्लिम हूं के नारे लगा रही थी और अपने मां और बाप पर चिल्ला रही थी ...सोचिए आखिर यह कैसे संस्कार हैं कि जिस मां ने अपनी बेटी को 9 महीने तक अपने पेट में रखा उसे पाला-पोसा उच्च शिक्षा दिया आज वह बेटी इस नीचता पर उतर आई है कि उसे अपनी मां बाप की इज्जत का भी सवाल नहीं है फिर से उसे पुलिस सुरक्षा में सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के लिए लाया जा रहा था तब वह कोच्चि एयरपोर्ट पर भी चिल्ला-चिल्लाकर बोल रही थी कि मैं मुस्लिम हूं मैं हिंदू नहीं हूं आप मुझे कोई भी हिंदू नहीं बना सकता मुझे मेरे शौहर के पास वापस जाना है
ऐसी लड़कियां पैदा होने के पहले मर क्यों नहीं जाती
हिंदू इतिहास की भूमिका !!

हिन्दू सनातन धर्म का इतिहास अति प्राचीन है।

दरअसल हिंदुओं ने अपने इतिहास को गाकर,रटकर और सूत्रों के आधार पर मुखाग्र जिंदा बनाए रखा।

यही कारण रहा कि वह इतिहास धीरे-धीरे काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे आज का आधुनिक मन इतिहास मानने को तैयार नहीं है।

वह दौर ऐसा था जबकि कागज और कलम नहीं होते थे। इतिहास लिखा जाता था शिलाओं पर, पत्थरों पर और मन पर।

यह परम्परा वेदकाल से पूर्व की मानी जाती है, क्योंकि वैदिककाल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है।

सदियों से वाचिक परंपरा चली आ रही है फिर इसे लिपिबद्ध करने का काल भी बहुत
लंबा रहा है।

जब हम इतिहास की बात करते हैं तो वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई।

विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है।

अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन
भागों में संकलित किया गया-
ऋग्‍वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था।

मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में
हुआ था।

बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया।

दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है कि कृष्ण के समय में वेद व्यास ने वेदों का विभाग कर उन्हें लिपिबद्ध किया था।

इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद।

यह भी तथ्‍य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5300 वर्ष पूर्व होने के
तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं।

हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो 4500 ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय तक फैले थे।

आर्यों की ही एक शाखा ने पारसी धर्म की स्थापना भी की।

इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म दो हजार ई.पू., बौद्ध धर्म पाँच सौ ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ
दो हजार वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से 14 सौ वर्ष पूर्व हुआ।

लेकिन धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म की कुछ और धारणाएँ हैं।

मान्यता यह भी है कि 90 हजार वर्ष पूर्व इसकी शुरुआत हुई थी।

रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख मिलता है।

इसके अलावा भी अनेक वंश की उत्पति और परम्परा का वर्णन है।

उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि
पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके
कारण इसके सूत्रों में बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है किंतु जानकारों के
लिए यह भ्रम नहीं है।

दरअसल हिंदुओं ने अपने इतिहास को गाकर, रटकर और सूत्रों के आधार पर मुखाग्र जिंदा बनाए रखा।

यही कारण रहा कि वह इतिहास धीरे-धीरे काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे आज का आधुनिक मन इतिहास मानने को तैयार नहीं है।

वह दौर ऐसा था जबकि कागज और कलम नहीं होते थे। इतिहास लिखा जाता था शिलाओं पर, पत्थरों पर और मन पर।

जब हम हिंदू धर्म के इतिहास ग्रंथ पढ़ते हैं तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म में कुलकर कहा गया है।

ऐसे क्रमश: 14 मनु माने गए हैं जिन्होंने समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न
बनाने के लिए अथक प्रयास किए।

धरती के प्रथम मानव का नाम स्वायंभव मनु था और प्रथम ‍स्त्री थी शतरूपा।

महाभारत में आठ मनुओं का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत
की ही संतानें हैं।

आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।

पुराणों में हिंदू इतिहास की शुरुआत सृष्टि उत्पत्ति से ही मानी जाती है।

ऐसा कहना कि यहाँ से शुरुआत हुई यह ‍शायद उचित न होगा फिर भी हिंदू इतिहास ग्रंथ महाभारत और पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक का उल्लेख मिलता है।
ब्रिटिश शासन से पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी
(ईसाइयों) ने भारत को भर पूर लूटा। 

भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था,ये देश का सारा सोना लूट कर ले गए।
ब्रिटिश शासन में भी लूट का क्रम अनवरत बना रहा। 

★ईस्ट इंडिया कंपनी ने जाते जाते 1887
में हमारे देश में अपना एक प्रतिरूप मुथूट
फाइनेंस के रूप स्थापित कर दिया जिसके मलिक भारतीय ईसाई हैं।★

देश में स्थित इनकी चार हजार से अधिक शाखाओं में हमारे देश का स्वर्ण भण्डार
बंधक के रूप में रखा हुआ है।

बंधक के लिए देश वासियों का ही धन इस कंपनी में ''BOND'' के रूप में निवेशित है।

आकर्षक व्याज दरों पर निवेश कराकर स्वर्ण आभूषण बंधक रखते हैं तथा BOND
की राशि को ऋण के रूप में उपलब्ध कराते हैं।

भारतीय बाजारों में जब जब स्वर्ण
का घटता है तब तब इनके द्वारा बांटे
गए ऋणों की वसूली ठहर जाती है।

फलतः निवेशकों का धन भी ये नही
लौटा पाते हैं।

मंदी के दौर में एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि निवेशकों को अपना पैसा वापस पाने के लिए अन्य चिट फंड कंपनियों की भांति रोना पड़ेगा।

ये कंपनी भी ईसाइयत का प्रचार करती है,इसके कार्यालयों में ईसाई देवी देवताओं
के फोटो लगे हुए हैं।

प्रातः नौ बजे समस्त कर्मचारियों को सामूहिक रूप से अंग्रेजी में GOD की प्रार्थना करनी पड़ती है।

कर्मचारियों को ईसाईयों जैसा ही आचरण करना पड़ता है।

इनका अलग ''Dress Code'' है जो कि भारतीयता के विरुद्ध है।

सभी पुरुषों को पैंट शर्ट ही पहनना है,
शर्ट पैंट के निचे दबा होना चाहिए।

अंगूठी पहनना पूर्णतया वर्जित है।
टीका भी नही लगा सकते हैं।

कार्यालयों में ईश्वर की प्रार्थना पूर्णतया वर्जित है।

स्त्रियों को साड़ी,मंगल सूत्र,अंगूठी आदि धारण करना भी पूर्ण तया वर्जित है।

संक्षेप में कोई भी हिंदू आचार विचार कर्मचारियों के लिए पूर्ण तया वर्जित है।

इस कंपनी का लूट और धर्मान्तरण का कार्य साथ साथ इसी प्रकार चलता
रहता है।
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कैसे रोथ्स्चाइल्ड ने बैंकों के माध्यम से भारत पर कब्जा किया !!

भारत इतना समृद्ध देश था कि उसे `सोने की चिडिया ‘ कहा जाता था ।

भारत की इस शोहरत ने पर्यटकों और लुटेरों – दोनों को आकर्षित किया ।

यह बात तब की है जब ईस्ट इन्डिया कम्पनी को भारत के साथ व्यापार करने का
अधिकार प्राप्त नहीं हुआ था ।

उसके बाद क्या हुआ यह नीचे पढिये -

सन् १६०० – ईस्ट इन्डिया कम्पनी को भारत के साथ व्यापार करने की स्वीकृति मिली

१६०८ – इस दौरान कम्पनी के जहाज सूरत की बन्दरगाह पर आने लगे जिसे व्यापार
के लिये आगमन और प्रस्थान क्षेत्र नियुक्त किया गया ।.

अगले दो सालों में ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने दक्षिण भारत में बंगाल की खाडी के
कोरोमन्डल तट पर मछिलीपटनम नामक नगर में अपना पहला कारखाना खोला ।

१७५० – ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने अपने २ लाख सैनिकों की निजी सेना के वित्त
प्रबन्ध के लिये बंगाल और बिहार में अफीम की खेती शुरु कर दी ।
बंगाल में इसके कारण खाद्य फसलों की जो बर्बादी हुई उससे अकाल की स्थिति पैदा
हुई जिससे दस लाख लोगों की मृत्यु हुई ।

कैसे और कितनी भारी संख्या मे लोगों की मृत्यु हुई यह जानने के लिये पढिये-
Breakdown of Death Toll of Indian Holocaust caused during the
British (Mis)Rule

१७५७ – बंगाल के शासक सिराज-उद-दौला के पदावनत हुए सेना अध्यक्ष मीर
जाफर,यार लुत्फ खान,महताब चन्द,स्वरूप चन्द,ओमीचन्द और राय दुर्लभ के
साथ षडयन्त्र करके अफीम के व्यापारियों ने प्लासी की लडाई में सिराज-उद-दौल
को पराजित करके भारत पर कब्जा कर लिया और दक्षिण एशिया में ईस्ट ईन्डिया
कम्पनी की स्थापना की ।

जगत सेठ, ओमीचन्द और द्वारकानाथ ठाकुर ( रबिन्द्रनाथ ठाकुर के दादा) को
`बंगाल के रोथ्चाईल्ड’ का नाम दिया गया था (द्वारकानाथ ठाकुर, भारत के
`ड्रग लार्ड’ की गाथा अलग से एक लेख में लिखी जाएगी)

१७८० – चीन के साथ नशीली पदार्थों का व्यापार करने का खयाल सर्वप्रथम भारत
के पहले गवर्नर जेनरल वारेन हेस्टिंग्स को आया ।

सन् १७९० — ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने अफीम के व्यापार पर एकाधिकार बनाया
और खस खस उत्पादकों को अपनी उपज सिर्फ ईस्ट इन्डिया कम्पनी को बेचने
की छूट थी ।
हजारों की संख्या में बंगाली,बिहारी और मालवा के किसानों से जबरन अफीम
की खेती करवायी जाती थी ।

उस दौरान योरोप में व्यापार में मन्दी और स्थिरता चल रही थी ।
कम्पनी के संचालक ने पार्लियामेन्ट से आर्थिक सहायता मांगकर दिवालियापन से
बचने की कोशिश की ।
इसके लिये `टी ऐक्ट’ बनाया गया जिससे चाय और तेल के निर्यात पर शुल्क लगना
बन्द हो गया ।

ईस्ट इन्डिया कम्पनी की करमुक्त चाय दुनिया के हर ब्रिटिश कोलोनी में बेची जाने
लगी,जिससे देशी व्यापारियों का कारोबार रुक गया ।

अमेरिका में इसके कारण जो विरोध शुरु हुआ,उसका समापन मस्साचुसेट्स में
`बोस्टन टी पार्टी ‘ से हुआ जब विरोधियों के झुन्ड ने जहाजों में रखी चाय की
पेटियों को समुद्र में फेंक दिया |

इसके पश्चात् बगावत बढती गयी और अमेरिकन रेवोल्युशन का जन्म हुआ
जिसके कारण १७६५ से १७८३ के बीच तेरह अमरीकी उपनिवेश ब्रिटिश साम्राज्य
से स्वतन्त्र (नाम के स्वतंत्र ,जैसे भारत को नकली आज़ादी मिली,आज भी नागरिको
पर कंट्रोल पावर इल्लुमिनाती की है )हो गये ।

ब्रिटेन अब चाँदी देकर चीन से चाय खरीदने में समर्थ नहीं रहा ।
अफीम जो कि आसानी से और मुफ्त में हासिल था,अब उनके व्यापार का माध्यम
बन गया ।

उन्नीसवीं सदी — ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया नशीले पदार्थों की सबसे बडी
व्यापारी थीं ।

वह खुद भी अफीम ( लौडनम, जो कि अफीम को शराब में मिलाकर बनाया जाता है)
का सेवन करती थीं ।
इस बात के रिकार्ड बाल्मोरल पैलेस के शाही औषधखाने में हैं कि कितनी बार अफीम
शाही घराने में पहुँचाया गया ।
कई ब्रिटिश कुलीन जन समुदाय के लोग भी अफीम का सेवन करते थे ।

अब कुछ जरूरी बातें …

ईस्ट इन्डिया कम्पनी के मालिक कौन थे ?

यह सभी को मालूम है कि इस कम्पनी ने भारत से भारी मात्रा में सोना और हीरे –
जवाहरात लूटे थे ।

उसका क्या हुआ ???

सच तो यह है कि भारत से लूटा गया यह खजाना आज तक बैंक आफ इंगलैन्ड के
तहखाने में रखा है |
यह खजाना अप्रत्यक्ष रूप से भारत में लगभग सभी बैंकिन्ग संस्थानो के निर्माण
के लिये इस्तेमाल किया गया,साथ ही विश्व में और भी कई बैंकों की स्थापना का
आधार बना ।

१७०८ — मोसेस मोन्टेफियोर और नेथन मेयर रोथ्स्चाइल्ड ने ब्रिटिश राजकोष को
३,२००,००० ब्रिटिश पाऊन्ड कर्ज दिया (जिसे रोथ्स्चाइल्ड के निजी बैन्क ओफ
इंगलैन्ड का ऋण चुकाने के लिये इस्तेमाल किया गया) ।
यह कर्ज रोथ्स्चाइल्ड ने अपनी ईस्ट इन्डिया कम्पनी को (जिसके वह गुप्त रूप से
मालिक थे) केप होर्न और केप आफ गुड होप के बीच स्थित इन्डियन और पैसेफिक
महासागर के सभी देशों के साथ व्यापार करने के विशिष्ट अधिकार दिलाने के
लिये दिया – अर्थात् रिश्वत्खोरी की सहायता ली ।

रोथ्स्चाइल्ड हमेशा संयुक्त पूँजी द्वारा स्थापित संस्थाओं के जरिये काम करते हैं
ताकि उनका स्वामित्व गुप्त रहे और वह निजी जिम्मेदारी से बचे रहें ।

नेथन रोथ्स्चाइल्ड ने कहा, `' तब ईस्ट ईंडिया कम्पनी के पास बेचने के लिये आठ
लाख पाउन्ड का सोना था ।
मैंने नीलामी में सारा सोना खरीद लिया ।
मुझे पता था कि वेलिंग्टन के ड्यूक के पास वह जरूर होगा,चूंकि मैंने उनके ज्यादातर
बिल सस्ते दाम पर खरीद लिये थे।
सरकार से मुझे बुलावा आया और यह कहा गया कि इस सोने की (उन दिनों चल रही
लडाईयों की आर्थिक सहयता के लिये ) उन्हें जरूरत है ।
जब वह उनके पास पहुँच गया तो उन्हें समझ नहीं आया कि उसे पुर्तगाल कैसे
पहुँचाया जाए ।
मैंने सारी जिम्मेवारी ली और फ्रान्स के जरिये भिजवाया ।
यह मेरा सबसे बढिया व्यापार था । '‘

इस प्रकार नेथन रोथ्स्चाइल्ड ब्रिटिश सरकार के विश्वसनीय बन गये जो कि उनके
लिये मुद्रा क्षेत्र में अपना कारोबार और हुकूमत बढाने में फायदेमन्द साबित हुआ,
जैसा कि आप आगे पढेंगे ।

यह ध्यान रहे कि वह रोथ्स्चाइल्ड घराना ही था जिसने आदम वाईशौप के जरिये
इलुमिनाटी ग्रूप की शुरुआत की ।
योजना यह थी कि खुद को संसार में सबसे ज्यादा सुशिक्षित मानने वाले इस वर्ग
के लोग अपने शिष्यों के जरिये मानव समाज के सभी महत्वपूर्ण सन्स्थाओं में
मुख्य स्थानों पर अधिकार जमाकर `न्यु वर्ल्ड आर्डर’ अर्थात् `नयी सुनियोजित
दुनिया’ की स्थापना करेंगे जिसके नियम वह बनाएँगे ।

१८४४ – राबर्ट पील के शासन में बैन्क चार्टर ऐक्ट पास हुआ जिससे ब्रिटिश बैंकों की
ताकत कम कर दी गयी और सेन्ट्रल बैंक आफ इंगलैंड (जो कि रोथ्स्चाइल्ड के अधीन
था) को नोट प्रचलित करने का एकमात्र अधिकार दिया गया ।

इससे यह हुआ कि रोथ्स्चाइल्ड अब और भी शक्तिशाली हो गये चूँकि अब कोई भी
बैंक अपने नोट नहीं बना सकता था,उन्हें जबरन रोथ्स्चाइल्ड नियन्त्रित बैंक के नोट
स्वीकार करने पडते थे ।
और आज यह स्थिति है कि संसार में मात्र तीन देश बच गये हैं जहाँ के बैंक
रोथ्स्चाइल्ड के कब्जे में नहीं हैं

दुनिया मे हो रही लडाइयों का लक्ष्य है उन देशों के सेन्ट्रल बैंक पर कब्जा ।
मेयर ऐम्शेल रोथ्स्चाइल्द ने बिल्कुल सच कहा था जब उन्होंने यह कहा था कि
'`मुझे बस देश के धन/पैसों के सप्लाई पर नियन्त्रण चाहिये,उस देश के नियम
कौन बनाता है इसकी मुझे परवाह नहीं।''

जार्ज वार्ड नोर्मन १८२१ से १८७२ तक बैंक आफ इंगलैन्ड के निदेशक थे और १८४४
के बैंक चार्टर ऐक्ट के निर्माण में उनकी बडी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी ।
उनका सोंचना था कि रेवेन्यू सिस्टम को पूरी तरह से बदल उसे बहुग्राही सम्पत्ति
टैक्स (कंप्रिहेन्सिव प्रापर्टी टैक्स) सिस्टम बनाकर मानव के आनन्द को बढाया
जा सकता है ।

१८५१ – १८५३ – महारानी विक्टोरिया से शाही अधिकार पत्र मिलने के पश्चात्
जेम्स विल्सन ने लन्दन में चार्टर्ड बैंक आफ इन्डिया, औस्ट्रेलिया और चाइना
की स्थापना की ।

यह बैंक मुख्य रूप से अफीम और कपास के दामों पर छूट दिलाने का कार्य करते थे ।
हालाँकि चीन में अफीम की खेती में वृद्धि होती गयी,फिर भी आयात में बढोतरी हुई थी ।

अफीम के व्यापार से चार्टर्ड बैंक को अत्यधिक मुनाफा हुआ ।

उसी वर्ष (१८५३) कुछ पारसी लोगों के द्वारा (जो कि अफीम के व्यापारी थे और ईस्ट
ईंडिया कम्पनी के दलाल थे) मुम्बई में मर्केन्टाइल बैंक आफ ईन्डिया,लन्दन और
चाईना की स्थापना हुई ।

कुछ समय बाद यही बैंक शांघाई (चीन) में विदेशी मुद्रा जारी करने की प्रमुख संस्था
बन गया ।
आज हम उसे एच-एस-बी-सी बैंक के नाम से जानते हैं ।

१९६९ में चार्टर्ड बैंक आफ ईन्डिया और स्टैन्डर्ड बैंक का विलय हो गया और इन दोनों
के मिलने से स्टैन्डर्ड चार्टर्ड बैंक बना ।
उसी वर्ष भारत की सरकार ने इलाहाबाद बैंक का राष्ट्रीयकरण किया । .

स्टेट बैंक आफ ईन्डिया

एस-बी-आई की शुरुआत कोलकाता ( ब्रिटिश इन्डिया के समय में भारत की राजधानी )
में हुई,जब उसका जन्म २ जून १८०६ को बैंक आफ कल्कत्ता के नाम से हुआ।

इसकी शुरुआत का मुख्य कारण था टीपू सुल्तान और मराठाओं से युद्ध कर रहे जेनेरल
वेलेस्ली को आर्थिक सहयता पहुँचाना ।
जनवरी २, १८०९ को इस बैंक को बैंक आफ बंगाल का नया नाम दिया गया ।
इसी तरह के मिश्रित पूँजी (जोइन्ट स्टौक ) के अन्य बैंक यानि बैंक आफ बम्बई
और बैंक आफ मद्रास की शुरुआत १८४० और १८४३ में हुई ।

१९२१ में इन सभी बैंकों और उनकी ७० शाखाओं को मिलाकर इम्पीरियल बैंक
आफ ईन्डिया का निर्माण किया गया ।
आजादी के पश्चात् कई राज्य नियन्त्रित बैंकों को भी इम्पीरियल बैंक आफ ईन्डिया
के साथ मिला दिया गया और इसे स्टेट बैंक आफ ईन्डिया का नाम दिया गया ।
आज भी वह इसी नाम से जाना जाता है ।

१८५९ – १८५७ की बगावत के पश्चात् जेम्स विल्सन (चार्टर्ड बैंक आफ इन्डिया,
औस्ट्रेलिया और चाइना के निर्माता ) को टैक्स योजना और नयी कागजी मुद्रा
की स्थापना और भारत के वित्तीय प्रणाली (फाईनान्स सिस्टम) का पुनः निर्माण
करने के लिये भारत भेजा गया ।

उन्हें भारतीय टैक्स सिस्टम के पितामह का दर्जा दिया गया है ।

रिजर्व बैंक आफ इन्डिया

आर –बी-आई की नींव हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष डाक्टर अम्बेड्कर के बताये
निदेशक सिद्धान्त और सन्चालन रीति पर रखी गयी ( जैसा के हमें बताया जाता है,
मगर असली प्रारम्भ कहीं और ही हुआ,जिसके बारे एक दूसरा लेख हम प्रस्तुत करेंगे )।

जब यह कमीशन `रायल कमीशन आन इन्डियन करेन्सी एन्ड फाईनान्स’ के नाम
से भारत आयी तब उसके हरेक सदस्य के पास डाक्टर अम्बेड्कर की किताब
'` द प्राब्लेम आफ द रुपी- इट्स ओरिजिन एन्ड इट्स सोल्यूशन ‘' मौजूद थी ।

डाक्टर अम्बेड्कर की किताब ` द प्रोब्लेम आफ द रुपी- इट्स ओरिजिन एन्ड इट्स
सोल्यूशन ‘ से उद्धृत –

अध्याय ५ – स्वर्ण मान से स्वर्ण विनिमय तक (from a Gold Standard To a
Gold Exchange Standard)

` जब तक मूल्यांकन धातु मुद्रा से किया जाता है तब तक अत्यधिक मुद्रा स्फीति
(इन्फ्लेशन) सम्भव नहीं है क्योंकि उत्पादन लागत उसपर रोक लगाती है ।
जब मूल्यांकन रुपयों (पेपर मनी) से होता है तो प्रतिबन्ध से इसको काबू में रखा
जा सकता है ।

लेकिन जब मूल्यांकन वैसे रुपयों से होता है जिसका मोल उसकी अपनी कीमत से
ज्यादा है और वह अपरिवर्तनीय है,तो उसमें असीमित स्फीति की सम्भावना है,
जिसका अर्थ है मूल्य मे कमी और दामों मे बढोतरी ।

इसलिये यह नहीं कहा जा सकता है कि बैंक चार्टर ऐक्ट ने बैंक रेस्ट्रिक्शन ऐक्ट से
बेहतर नहीं था ।

वाकई वह बेहतर था क्योंकि उस ऐक्ट से ऐसी मुद्रा जारी की गयी जिसमें मुद्रा स्फीति
की सम्भावना कम थी ।

अब रुपया एक अपरिवर्तनीय अपमिश्रित ( डीबेस्ड) सिक्का और असीमित वैध मुद्रा
(लीगल टेन्डर) है ।

इस रूप में वह अब उस वर्ग में है जिसमें असीमित मुद्रा स्फीति की क्षमता है ।
इससे बचाव के लिये निःसन्देह पहली योजना इससे बेहरत थी जिसमें रुपयों का
वितरण सीमित था ।
इससे भारतीय मुद्रा प्रणाली १८४४ के बैंक चार्टर ऐक्ट के अधीन ब्रिटिश प्रणाली
के अनुरूप था ।

यदि उपर्युक्त तर्कसंगत विचारों में बल है,तो फिर चेम्बर्लेन कमीशन आफ एक्स्चेन्ज
स्टैंडर्ड के विचारों से सहमत होने में आपत्ति होती है ।
इससे यह प्रश्न उठता है कि कमीशन ने जो भी कहा उसके बावजूद उस प्रणाली में कहीं
कोई कमजोरी तो नहीं जो कभी उसके पतन का कारण बन सकती है ।
ऐसी अवस्था में उस मान्य की नींव को नये द्रिष्टिकोण से जाँचना जरूरी हो जाता है ।

क्या डाक्टर अम्बेड्कर को भिन्न आरक्षन प्रणाली (फ्रैक्शनल रिजर्व बैंकिंग) और खन्ड
मुद्रा (फिआत करेंसी) के खतरों का (जिसका असर आज समस्त सन्सार पर हो रहा है )
सही अनुमान हो चुका था ?

इस विषय पर रिसर्च और चर्चा की जरूरत है जिससे हकीकत सामने आ सके !

नशीले पदार्थों की तस्करी और भारत, पुर्तगाल, ब्राजील, चीन, बर्मा और अन्य देशों
से लूटे गये सोने से आज के मुद्रा प्रणाली (मोनेटरी सिस्टम ) की नींव रखी गयी ।

लेकिन क्या यह अब समाप्त हो चुका ?

यह जानने के लिये कि ओबामा ने अपने द्वितीय कार्यकाल में भारत के लिये क्या
सोंच रखा है कृपया पढें –
''Unlocking the full potential of the US-India Relationship 2013''

सार्वभौमिकता (Globalisation) सर्वव्यापी धर्मनिर्पेक्ष जीवन शैली नहीं है ….
यह उपनिवेशवाद (Colonialism) का नया रूप है जिसके जरिये समस्त संसार
को एक बडा उपनिवेश (कोलोनी) बनाने की चेष्टा की जा रही है ।

अपने दिनों में कम्पनी नें सही अर्थों में सार्वभौमिक अर्थव्यवस्था में मौजूद कमजोरियों
का धूर्तता से अपने फायदे के लिये शोषण किया ।

चीन की चाय भारत के अफीम से खरीदी गयी ।
भारत मे उपजे कपास से बने भारतीय और बाद में ब्रिटिश कपडों से पश्चिम अफ्रीका के
गुलाम खरीदे गये,जिन्हें अमेरिका में सोने और चाँदी के लिये बेचा गया,जिसे इंगलैंड में
निवेशित किया गया जहाँ गुलामों द्वारा बनाई चीनी के कारण चायना से आयात चाय
की लोकप्रियता मर्केट में बनी रही ।
विजेता विश्व के सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय केन्द्र अर्थात् फाईनेन्शियल सेन्टर `सिटी
आफ लन्दन’ में विराजमान थे और भारी संख्या में असफल व्यक्तिगण संसार के हर
कोने में मौजूद थे ।
....................
रिजर्व बैंक आफ इन्डिया

आर –बी-आई की नींव हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष डाक्टर अम्बेड्कर के बताये
निदेशक सिद्धान्त और सन्चालन रीति पर रखी गयी।
( जैसा के हमें बताया जाता है,मगर असली प्रारम्भ कहीं और ही हुआ,जिसके बारे
एक दूसरा लेख हम प्रस्तुत करेंगे )।

जब यह कमीशन `रायल कमीशन आन इन्डियन करेन्सी एन्ड फाईनान्स’ के नाम
से भारत आयी तब उसके हरेक सदस्य के पास डाक्टर अम्बेड्कर की किताब
''द प्राब्लेम आफ द रुपी- इट्स ओरिजिन एन्ड इट्स सोल्यूशन''' मौजूद थी ।

डाक्टर अम्बेड्कर की किताब ` द प्रोब्लेम आफ द रुपी- इट्स ओरिजिन एन्ड इट्स
सोल्यूशन ‘ से उद्धृत –

अध्याय ५ – स्वर्ण मान से स्वर्ण विनिमय तक (from a Gold Standard To a
Gold Exchange Standard)

` जब तक मूल्यांकन धातु मुद्रा से किया जाता है तब तक अत्यधिक मुद्रा स्फीति
(इन्फ्लेशन) सम्भव नहीं है क्योंकि उत्पादन लागत उसपर रोक लगाती है ।
जब मूल्यांकन रुपयों (पेपर मनी) से होता है तो प्रतिबन्ध से इसको काबू में रखा
जा सकता है ।
लेकिन जब मूल्यांकन वैसे रुपयों से होता है जिसका मोल उसकी अपनी कीमत से
ज्यादा है और वह अपरिवर्तनीय है,तो उसमें असीमित स्फीति की सम्भावना है,
जिसका अर्थ है मूल्य मे कमी और दामों मे बढोतरी ।

इसलिये यह नहीं कहा जा सकता है कि बैंक चार्टर ऐक्ट ने बैंक रेस्ट्रिक्शन ऐक्ट से
बेहतर नहीं था ।

वाकई वह बेहतर था क्योंकि उस ऐक्ट से ऐसी मुद्रा जारी की गयी जिसमें मुद्रा स्फीति
की सम्भावना कम थी ।

अब रुपया एक अपरिवर्तनीय अपमिश्रित ( डीबेस्ड) सिक्का और असीमित वैध मुद्रा
(लीगल टेन्डर) है ।

इस रूप में वह अब उस वर्ग में है जिसमें असीमित मुद्रा स्फीति की क्षमता है ।
इससे बचाव के लिये निःसन्देह पहली योजना इससे बेहतर थी जिसमें रुपयों का
वितरण सीमित था ।
इससे भारतीय मुद्रा प्रणाली १८४४ के बैंक चार्टर ऐक्ट के अधीन ब्रिटिश प्रणाली के
अनुरूप था ।

यदि उपर्युक्त तर्कसंगत विचारों में बल है,तो फिर चेम्बर्लेन कमीशन आफ एक्स्चेन्ज
स्टैंडर्ड के विचारों से सहमत होने में आपत्ति होती है ।
इससे यह प्रश्न उठता है कि कमीशन ने जो भी कहा उसके बावजूद उस प्रणाली में
कहीं कोई कमजोरी तो नहीं जो कभी उसके पतन का कारण बन सकती है ।
ऐसी अवस्था में उस मान्य की नींव को नये द्रिष्टिकोण से जाँचना जरूरी हो जाता है ।

क्या डाक्टर अम्बेड्कर को भिन्न आरक्षन प्रणाली (फ्रैक्शनल रिजर्व बैंकिंग) और खन्ड
मुद्रा (फिआत करेंसी) के खतरों का (जिसका असर आज समस्त सन्सार पर हो रहा है )
सही अनुमान हो चुका था ?

इस विषय पर रिसर्च और चर्चा की जरूरत है जिससे हकीकत सामने आ सके !
--★#विश्व_गुरु_भारत
मुहम्मद मरे नहीं थे,
भारत के महाकवि कालिदास के हाथों
मारे गए थे :

इतिहास का एक अत्यंत रोचक तथ्य है कि
इस्लाम के पैगम्बर (रसूल) मुहम्मद साहब
सन ६३२ में अपनी स्वाभाविक मौत नहीं
मरे थे,अपितु भारत के महान साहित्यकार
कालिदास के हाथों मारे गए थे।

मदीना में दफनाए गए (?) मुहम्मद की
कब्र की जांच की जाए तो रहस्य से पर्दा
उठ सकता है कि कब्र में मुहम्मद का
कंकाल है या लोटा।

भविष्यमहापुराण (प्रतिसर्गपर्व) में सेमेटिक मजहबों के सभी पैगम्बरों का इतिहास
उनके नाम के साथ वर्णित है।

नामों का संस्कृतकरण हुआ है I
इस पुराण में मुहम्मद और ईसामसीह का भी
वर्णन आया है।

मुहम्मद का नाम "महामद" आया है।

मक्केश्वर शिवलिंग का भी उल्लेख आया है।

वहीं वर्णन आया है कि सिंधु नदी के तट
पर मुहम्मद और कालिदास की भिड़ंत हुई
थी और कालिदास ने मुहम्मद को जलाकर
भस्म कर दिया।

ईसा को सलीब पर टांग दिया गया और मुहम्मद भी जलाकर मार दिए गए- सेमेटिक मजहब के
ये दो रसूल किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे।

शर्म के मारे मुसलमान किसी को नहीं बताते कि
मुहम्मद जलाकर मार दिए गए,बल्कि वह यह
बताते हैं कि उनकी मौत कुदरती हुई थीI

भविष्यमहापुराण (प्रतिसर्गपर्व, 3.3.1-27) में उल्लेख है कि ‘शालिवाहन के वंश में १० राजाओं ने जन्म लेकर क्रमश: ५०० वर्ष तक राज्य किया।

अन्तिम दसवें राजा भोजराज हुए।
उन्होंने देश की मर्यादा क्षीण होती देख दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया।

उनकी सेना दस हज़ार थी और उनके साथ कालिदास एवं अन्य विद्वान्-ब्राह्मण भी थे।

उन्होंने सिंधु नदी को पार करके गान्धार,
म्लेच्छ और काश्मीर के शठ राजाओं को
परास्त किया और उनका कोश छीनकर उन्हें दण्डित किया।

★उसी प्रसंग में मरुभूमि मक्का पहुँचने
पर आचार्य एवं शिष्यमण्डल के साथ
म्लेच्छ महामद (मुहम्मद) नाम व्यक्ति
उपस्थित हुआ।★

राजा भोज ने मरुस्थल (मक्का) में विद्यमान महादेव जी का दर्शन किया।

महादेवजी को पंचगव्यमिश्रित गंगाजल से स्नान कराकर चन्दनादि से भक्तिपूर्वक उनका पूजन किया और उनकी स्तुति की:
“हे मरुस्थल में निवास करनेवाले तथा म्लेच्छों से गुप्त शुद्ध सच्चिदानन्दरूपवाले गिरिजापते !
आप त्रिपुरासुर के विनाशक तथा नानाविध मायाशक्ति के प्रवर्तक हैं।
मैं आपकी शरण में आया हूँ,आप मुझे अपना
दास समझें ।
मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।”

इस स्तुति को सुनकर भगवान् शिव ने राजा
से कहा-
“हे भोजराज ! तुम्हें महाकालेश्वर तीर्थ (उज्जयिनी) में जाना चाहिए।

यह ‘वाह्लीक’ नाम की भूमि है,पर अब
म्लेच्छों से दूषित हो गयी है।

इस दारुण प्रदेश में आर्य-धर्म है ही नहीं।

महामायावी त्रिपुरासुर यहाँ दैत्यराज बलि
द्वारा प्रेषित किया गया है।

वह मानवेतर,दैत्यस्वरूप मेरे द्वारा वरदान पाकर मदमत्त हो उठा है और पैशाचिक कृत्य में संलग्न होकर महामद (मुहम्मद) के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।

पिशाचों और धूर्तों से भरे इस देश में हे राजन् ! तुम्हें नहीं आना चाहिए।
हे राजा ! मेरी कृपा से तुम विशुद्ध हो।''

भगवान् शिव के इन वचनों को सुनकर राजा भोज सेना सहित पुनः अपने देश में वापस आ गये।

उनके साथ महामद भी सिंधु तीर पर पहुँच गया।

अतिशय मायावी महामद ने प्रेमपूर्वक राजा से कहा-”आपके देवता ने मेरा दासत्व स्वीकार कर लिया है ।”

राजा यह सुनकर बहुत विस्मित हुए।
और उनका झुकाव उस भयंकर म्लेच्छ के प्रति हुआ ।

उसे सुनकर कालिदास ने रोषपूर्वक महामद से कहा-
“अरे धूर्त ! तुमने राजा को वश में करने के लिए माया की सृष्टि की है।

तुम्हारे जैसे दुराचारी अधम पुरुष को मैं मार डालूँगा।“

यह कहकर कालिदास नवार्ण मन्त्र(ॐ ऐं ह्रीं
क्लीं चामुण्डायै विच्चे) के जप में संलग्न हो गये।

उन्होंने (नवार्ण मन्त्र का) दस सहस्र जप करके उसका दशांश (एक सहस्र) हवन किया।

उससे वह मायावी भस्म होकर म्लेच्छ-देवता
बन गया।

इससे भयभीत होकर उसके शिष्य वाह्लीक देश वापस आ गये और अपने गुरु का भस्म लेकर मदहीनपुर (मदीना) चले गए और वहां उसे स्थापित कर दिया जिससे वह स्थान तीर्थ के
समान बन गया।

एक समय रात में अतिशय देवरूप महामद
ने पिशाच का देह धारणकर राजा भोज से कहा-
”हे राजन् ! आपका आर्यधर्म सभी धर्मों में उत्तम है,लेकिन मैं उसे दारुण पैशाच धर्म में बदल दूँगा।

उस धर्म में लिंगच्छेदी (सुन्नत/खतना कराने वाले),शिखाहीन,दढि़यल,दूषित आचरण करने
वाले,उच्च स्वर में बोलनेवाले(अज़ान देनेवाले), सर्वभक्षी मेरे अनुयायी होंगे।

कौलतंत्र के बिना ही पशुओं का भक्षण करेंगे।
उनका सारा संस्कार मूसल एवं कुश से होगा।
इसलिये ये जाति से धर्म को दूषित करनेवाले ‘मुसलमान’ होंगे।
इस प्रकार का पैशाच धर्म मैं विस्तृत करूंगा I”

‘एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ
आचार्येण समन्वितः।
महामद इति ख्यातः
शिष्यशाखा समन्वितः।।5।।

नृपश्चैव महादेवं
मरुस्थलनिवासिनम्।
गंगाजलैश्च संस्नाप्य
पंचगव्यसमन्वितैः।
चन्दनादिभिरभ्यच्र्य
तुष्टाव मनसा हरम्।।6।।

भोजराज उवाच;

नमस्ते गिरिजानाथ
मरुस्थलनिवासिने।
त्रिपुरासुरनाशाय
बहुमायाप्रवर्तिने।।7।।

म्लेच्छैर्मुप्ताय शुद्धाय
सच्चिदानन्दरूपिणे।
त्वं मां हि किंकरं विद्धि
शरणार्थमुपागतम्।।8।।

सूत उवाच;

इति श्रुत्वा स्तवं देवः
शब्दमाह नृपाय तम्।
गंतव्यं भोजराजेन
महाकालेश्वरस्थले।।9।।

म्लेच्छैस्सुदूषिता
भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता।
आर्यधर्मो हि नैवात्र
वाहीके देशदारुणे।।10।।

वामूवात्र महामायो
योऽसौ दग्धो मया पुरा।
त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः
पुनरागतः।।11।।

अयोनिः स वरो मत्तः
प्राप्तवान्दैत्यवर्द्धनः।
महामद इति ख्यातः
पैशाचकृतितत्परः।।12।।

नागन्तव्यं त्वया भूप
पैशाचे देशधूर्तके।
मत्प्रसादेन भूपाल
तव शुद्धि प्रजायते।।13।।

इति श्रुत्वा नृपश्चैव
स्वदेशान्पु नरागमतः।
महामदश्च तैः साद्धै
सिंधुतीरमुपाययौ।।14।।

उवाच भूपतिं प्रेम्णा
मायामदविशारदः।
तव देवो महाराजा मम
दासत्वमागतः।।15।।

इति श्रुत्वा तथा परं
विस्मयमागतः।।16।।

म्लेच्छधनें मतिश्चासीत्तस्य
भूपस्य दारुणे।।17।।

तच्छ्रुत्वा कालिदासस्तु
रुषा प्राह महामदम्।
माया ते निर्मिता धूर्त
नृपमोहनहेतवे।।18।।

हनिष्यामिदुराचार
वाहीकं पुरुषाधनम्।
इत्युक्त् वा स जिद्वः
श्रीमान्नवार्णजपतत्परः।।19।।

जप्त्वा दशसहस्रंच
तदृशांश जुहाव सः।
भस्म भूत्वा स मायावी
म्लेच्छदेवत्वमागतः।।20।।

मयभीतास्तु तच्छिष्या
देशं वाहीकमाययुः।
गृहीत्वा स्वगुरोर्भस्म
मदहीनत्वामागतम्।।21।।

स्थापितं तैश्च भूमध्ये
तत्रोषुर्मदतत्पराः।
मदहीनं पुरं जातं तेषां
तीर्थं समं स्मृतम्।।22।।

रात्रौ स देवरूपश्च
बहुमायाविशारदः।
पैशाचं देहमास्थाय
भोजराजं हि सोऽब्रवीत्।।23।।

आर्यधर्मो हि ते
राजन्सर्वधर्मोत्तमः स्मृतः।
ईशाख्या करिष्यामि
पैशाचं धर्मदारुणम्।।24।।

लिंगच्छेदी शिखाहीनः
श्मश्रु धारी स दूषकः।
उच्चालापी सर्वभक्षी
भविष्यति जनो मम।।25।।

विना कौलं च पशवस्तेषां
भक्षया मता मम।
मुसलेनेव संस्कारः
कुशैरिव भविष्यति।।26।।

तस्मान्मुसलवन्तो हि
जातयो धर्मदूषकाः।
इति पैशाचधर्मश्च
भविष्यति मया कृतः।।27।।’

भविष्यमहापुराणम्
(मूलपाठ एवं हिंदी-अनुवाद सहित),
अनुवादक: बाबूराम उपाध्याय,
प्रकाशक: हिंदी-साहित्य-सम्मेलन,प्रयाग;
‘कल्याण’(संक्षिप्तभविष्यपुराणांक),
प्रकाशक: गीताप्रेस,
गोरखपुर,जनवरी,1992 ई.)

कुछ विद्वान कह सकते हैं कि महाकवि कालिदास तो प्रथम शताब्दी के शकारि विक्रमादित्य के समय हुए थे और उनके नवरत्नों में से एक थे,तो हमें ऐसा लगता है कि कालिदास नाम के एक नहीं बल्कि अनेक व्यक्तित्व हुए हैं,बल्कि यूं कहा जाए की कालिदास एक ज्ञानपीठ का नाम है,
जैसे वेदव्यास,शंकराचार्य इत्यादि।

विक्रम के बाद भोज के समय भी कोई कालिदास अवश्य हुए थे।

इतिहास तो कालिदास को छठी-सातवी शती (मुहम्मद के समकालीन) में ही रखता है।

कुछ विद्वान "सरस्वतीकंठाभरण", समरांगणसूत्रधार", "युक्तिकल्पतरु"-जैसे ग्रंथों के
रचयिता राजा भोज को भी ९वी से ११वी शताब्दी में रखते हैं जो गलत है।

भविष्यमहापुराण में परमार राजाओं की वंशावली दी हुई है।

इस वंशावली से भोज विक्रम की छठी पीढ़ी में आते हैं और इस प्रकार छठी-सातवी शताब्दी (मुहम्मद के समकालीन) में ही सिद्ध होते हैं।

कालिदासत्रयी-

एकोऽपि जीयते हन्त
कालिदासो न केनचित्।
शृङ्गारे ललितोद्गारे
कालिदास त्रयी किमु॥

(राजशेखर का श्लोक-जल्हण की सूक्ति
मुक्तावली तथा हरि कवि की सुभाषितावली में)

इनमें प्रथम नाटककार कालिदास थे जो
अग्निमित्र या उसके कुछ बाद शूद्रक के
समय हुये।

द्वितीय महाकवि कालीदास थे,
जो उज्जैन के परमार राजा विक्रमादित्य के राजकवि थे।

इन्होंने रघुवंश,मेघदूत तथा कुमारसम्भव-
ये ३ महाकाव्य लिखकर ज्योतिर्विदाभरण
नामक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा।

इसमें विक्रमादित्य तथा उनके समकालीन
सभी विद्वानों का वर्णन है।

अन्तिम कालिदास विक्रमादित्य के ११ पीढ़ी
बाद के भोजराज के समय थे तथा आशुकवि
और तान्त्रिक थे-
इनकी चिद्गगन चन्द्रिका है तथा कालिदास और भोज के नाम से विख्यात काव्य इनके हैं।
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