Tuesday 17 October 2017

kahani

*रात के दो बजे थे।*🕑
*एक श्रीमंत को निंद नहीं आ रही थी, चाय पी, सिगरेट पी, घर में कई चक्कर लगाये पर चैन नहीं पड़ा।*
*आखिर मैं थक कर नीचे आया कार निकाली और शहर की सड़कों पर निकल गया। रास्ते में एक मंदिर दिखा सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में भगवान के पास बैठता हूं प्रार्थना करता हूं तो शायद शांति मिल जाय।*
*वह आदमी मंदिर के अंदर गया तो देखा, एक दूसरा आदमी भगवान की मूर्ति के सामने बैठा था, उदास चेहरा, आंखों में करूणता।*
*श्रीमंत ने पूछा " क्यों भाई इतनी रात को?"*
*आदमी ने कहा " मेरी पत्नी अस्पताल में है, सुबह यदि उनका आपरेशन नहीं हुआ तो मर जायेगी और मेरे पास आपरेशन का पैसा नहीं है" ।*
*इस श्रीमंत ने पाकिट में जीतने रूपए थे उसको दे दिये। गरीब आदमी के चहरे पे चमक आ गयी।*
*श्रीमंत ने कार्ड दिया और कहा इस में फोन नं. और पता भी है और जरूरत हो तो निसंकोच बताना।*
*वह गरिब आदमी ने कार्ड वापीस दिया और कहा "मेरे पास एड्रेस है" यह एड्रेस की जरूरत नहीं है सेठजी।*
*आश्चर्य से श्रीमंत ने कहा "किसका एड्रेस है" उस गरीब आदमी ने कहा: "जिसने रात को साढ़े तीन बजे आपको यहां भेजा,*
*"उनका"*

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