Wednesday 6 September 2017

आखिर गौरी लंकेश का पुरा नाम मिडिया ने क्यों छुपाया?

गौरी लंकेश का पुरा नाम गौरी लंकेश पैट्रिक है, जो एक ईसाई है। मरने के बाद इसे कब्रिस्तान में दफनाया गया। मिडिया ने इसका पुरा नाम इसलिए छुपाया जिससे लोगों को पता नहीं चले ये एक कट्टर ईसाई थी इसलिए हिंदुत्व का विरोध करती थी। इस विरोध के लिए इसे मिशनरीज से फंड मिलता था उसी फंड से ये पंपलेट संघ/भाजपा के विरोध में निकालती थी अपने प्रभु यीशु को खुश करने के लिए।
मिशनरीज सपोर्टेड संपूर्ण मिडिया जब एक स्वर से हुवा हुवा करना शुरू की तभी समझ में आ गया था इसका कनेक्शन पत्रकारिता से कम हिंदुत्व विरोध से ज्यादा है। और जब इसके दफनाने की खबर आई तो सब कुछ स्पष्ट हो गया....

 कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के बचाव में NDTV और ABPन्यूज खुलकर आ गये हैं। ये जांच से पहले ही भाजपा, पीएम मोदी, संघ और हिंदू विचारधारा के लोगों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट बनकर फैसले सुना रहे हैं!
कांग्रेस की सरकार लंकेश के शव को राजकीय सम्मान क्यो दे रही है, ये दोगले पत्रकार इस पर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं! कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी सरकार के राज्य में हुयी हत्या का दोष संघ/भाजपा पर क्यों मढ़ रहे हैं, इस पर बकैत रवीश का कोई सवाल नहीं है? सवाल तो वह केवल पीएम से पूछ रहा है, जैसे कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी मोदी हों?
इन दोगलों के कारण ही आज पत्रकारों के पक्ष में आम जनता खड़ी नहीं दिखती है! इन लुटियंस दलालों ने ही पत्रकारिता की हत्या की है! लंकेश के हत्यारे ये दोगले वामपंथी पत्रकार हैं, जो साफ-साफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं!
कर्नाटक की कॉंग्रेस सरकार ने अपराधी पत्रकार ( कोर्ट द्वारा ) गौरी लंकेश की अन्तेष्टि मे उसे 21तोपों की सलामी दी।
एंटी हिन्दू, एंटी भारत, एंटी विकास, totally नक्सल वामपंथी और झूठी बेबुनियाद अफवाहों को परम कर्तव्य समझने का ये इनाम।
दूसरी तरफ सीधे-सादे हिन्दू जिनकी हत्या इसलिये कि गई कि वो भारत और उसकी संस्कृति की रक्षा मे लगे थे।
बाकी अब कर्नाटक की जनता को सोचना है।
 गौरी लंकेश ह्त्या मामले में कुछ संकेत ऐसे भी है की नक्सल एंगल के अलाबा गौरी लंकेश कर्नाटक के भ्रष्ट अफसरों तथा गांघी परिवार के करीबी भ्रष्ट मंत्री डीके शिव कुमार के खिलाफ भी कुछ मामले खोलने वाली थी  ..राहुल गांघी और सोनिया का करीबी फंसने वाला था अगर हुरी ज़िंदा रहती तो ...
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एक प्रश्न जो गौरी नक्सली हिंसा में मारे गए सैनिकों के बलिदान पर ख़ुशी की मिठाई बांटती थी ...जो कश्मीर में सैनिक के आतंकवादियोँ के हाथो बलिदान पर पार्टी देकर जाम छलकाती थी  जिसका अजेंडा कश्मीर मांगे आजादी  बस्तर मांगे आजादी  जिसका हर कदम राष्ट्र विरोध हिन्दू विरोध सनातन परम्परा विरोध की धुरी पर फिसलता था  उसकी हत्या पर शोक क्यों ? ख़ुशी क्यों नहीं ? ------ पंडित मधु सूदन व्यास 
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 मरने के बाद तो असलियत सामने आ ही जाती है...



बहुत से बड़े नेता, लेखक अपना नाम तो हिन्दू रखे हुए है,...खासकर कांग्रेस के आधे से ज्यादा नेता हिन्दू धर्म त्याग कर ईसाई बन चुके है...और मरने के बाद तो बदले धर्म के अनुसार ही उनका अंतिम संस्कार हुया। जैसे एम के नारायणन नाम से तो हिन्दू लगता है लेकिन असलियत में वो ईसाई था जिसकी कब्र आज भी दिल्ली के एक ईसाई कब्रिस्तान में दफन है।

बिल्कुल इसी तरह गौरी_लंकेश अपनी जिंदगी में तो हिन्दू नाम रखकर हिन्दू धर्म के खिलाफ ही लिखती रही। लेकिन अब मारने के बाद अंतिम संस्कार की क्रिया से पता चला कि वो तो ईसाई थी। ये जो नाम धर्म छिपा कर हिन्दू धर्म के खिलाफ लिखते हैं इसे रोकने के लिए कभी भारत की मीडिया में कोई डिबेट नहीं होती है। न ही कोई सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कोई कार्यवाही करती है...क्या ये दफा 420 के तहत नहीं आता है?
Vithal Vyas
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बहस का विषय गौरी नहीं हत्या है ,पहले तो यह धंधा कम्युनिष्ट बौद्धिक बंद करें कि हत्या होते ही उसे विचार से जुडा दर्शाया जाने लगे क्योंकि स्वयं उन्होंने रूस और चीन में जो हत्याएं की हैं ,उनका विचार से सम्बन्ध नहीं था ,मारे गए लोगों में ७० प्रतिशत कम्युनिष्ट थे पर शासकों के विरोधी थे. १० करोड़ कम्युनिष्ट समर्थक विगत ७५ वर्षों में कम्युनिष्टों ने मारे हैं ,जबकि कम्युनिस्म के विरोधी १ करोड़ माँरे हैं कम्युनिष्टों ने , अतः कम्युनिष्ट हत्याओं का कोई सम्बन्ध विचार से नहीं है ,नियोजित ढंग से विरोधी के सफाए से इसका सम्बन्ध है ,इस प्रकार ये हत्यारों के झुण्ड हैं जो हत्या को ढंकने के लिए Ideology का cover ओढते हैं
Rameshwar Mishra Pankaj
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खबरों से पता चल रहा है को गौरी लंकेश की हत्या करने वाले तीन लोग एक साथ एक ही बाइक पर सवार हो कर आये थे। वो anti हिन्दू थी,  वो नक्सलियो का साथ देती थी,  वो फ़र्ज़ी न्यूज़ के चक्कर में जेल की हवा कहा चुकी थी....
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कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर में वरिष्ठ महिला पत्रकार गौरी लंकेश की कल उन्ही के घर के एंट्रेंस पर हत्या कर दी गई जिसे लेकर सस्पेंस बना हुआ है। वामपंथी पत्रकार गौरी लंकेश बीजेपी और केंद्र सरकार की कट्टर विरोधी मानी जाती थीं। हत्या के फौरन बाद कई पत्रकारों और संपादकों ने केंद्र सरकार और RSS को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया बल्कि कहना तो ये चाहिए कि दोषी करान देना ही शुरू कर दियाl लेकिन अब मामले की जो सच्चाई सामने आ रही है वो चौंकाने वाली है।

नए खुलासे के मुताबिक, हत्या के पीछे कांग्रेस के लोगों पर शक है। एबीपी न्यूज के संवाददाता विकास भदौरिया ने ट्वीट किया है कि वो कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार से जुड़ी एक खबर पर काम कर रही थीं।
खुद गौरी लंकेश ने एक जगह बताया था कि वो कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक डीके शिवाकुमार के खिलाफ एक मामले में जांच कर रही हैं। डीके शिवाकुमार वही विधायक हैं, जिनके रिसॉर्ट में गुजरात के कांग्रेसी विधायक रुके थे। उन पर सीबीआई के छापे भी पड़ चुके हैं। इसके अलावा कर्नाटक सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से जुड़े मामले भी गौरी लंकेश की पत्रिका में छपने वाले थे।
वहीँ दूसरी तरफ 
गौरी के आखिरी ट्वीट्स को भी नज़र-अंदाज़ बिलकुल नहीं किया जा सकताl खुद गौरी लंकेश ने कुछ ट्वीट में ऐसी बातें लिखी हैं जिनसे उनके और उनके वामपंथी साथियों के बीच किसी विवाद का संकेत मिलता है। इस सबसे अलग गुजरात के गृह मंत्री ने कहा है कि मामले में नक्सलियों का हाथ भी हो सकता है। जिस तरह से घर में घुसकर गोली मारी गई है। उससे लग रहा है कि हत्यारे उनकी जान-पहचान के थे। सच्चाई क्या है ये तो पुलिस की जांच के बाद ही पता चल सकेगा, लेकिन जिस तरह से वामपंथी पत्रकारों ने इस मामले में आरएसएस और बीजेपी को दोषी ठहराना शुरू कर दिया उसी से शक पैदा हो गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।
इस सबके बीच एक और स्पेक्यूलेशन है,
 जिसकी तहकीकात ज़रूरी हैl गौरी लंकेश के पिता पी लंकेश भी एक पत्रकार थे जो कन्नड़ में ‘पत्रिका’ नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकालते थेl उनके निधन के बाद गौरी इसकी संपादक बनीं और उनके भाई इन्द्रजीत भी साथ में लगे रहेl फिर गौरी का उनके नक्सलियों के प्रति झुकाव के चलते भाई इंद्रजीत के साथ बड़ा विवाद हुआl विवाद बढ़ने के कारण उन्होंने ‘पत्रिका’ से नाता तोड़ लिया और अपनी खुद की कन्नड़ साप्ताहिक ‘गौरी लंकेश पत्रिका’ की शुरूआत की.गौरी और उनके भाई का एक इस ट्वीट में गौरी लंकेश के भाई और उनके बीच के विवाद की खबर है। भाई ने उन्हें नक्सली करार देते हुए कहा था कि उनके रवैये के कारण अखबार की इमेज पर बुरा असर पड़ रहा है। वहीँ गौरी ने तो इस पर भाई के खिलाफ पुलिस कम्प्लेंट दर्ज कराते हुए ये आरोप भी लगाया था कि इन्द्रजीत ने उन्हें गोली दिखाके डराने की कोशिश की lइन तमाम बातों पर तहकीकाट होनी चाहिए पर लेफ्ट-गैंग तो उससे पहले ही केंद्र सरकार और आरएसएस पर बेबुनियाद आरोप लगा उन्हें दोषी ठहराने में लग गया हैl
आपको ये भी बता दें, लंकेश को बीजेपी और हिंदुत्ववादी राजनीति का बड़ा विरोधी माना जाता था। उनका बीजेपी और हिंदुत्व विरोध इस हद तक था कि वो कई बार फर्जी खबरें छापने के आरोपों में भी घिरी रहीं। 2008 में बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी और उमेश धुसी ने उनकी पत्रिका में छपे एक लेख पर विरोध दर्ज कराया था। दोनों ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोंका। कोर्ट में गौरी लंकेश अपनी रिपोर्ट को सही साबित नहीं कर पाईं। इस पर अदालत ने उन्हें छह महीने की जेल और जुर्माने की सज़ा भी दी थी। हालांकि उन्हें कभी जेल में रहना नहीं पड़ा, क्योंकि कोर्ट से ही जमानत मिल गई।



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