Friday 22 September 2017

.इस्लाम की शीर्ष संस्था है उम्माह... जिसका सार है कि  मुसलमानो  को किसी देश के प्रति ईमानदार नहीं होना चाहिए, क्योंकि मुसलमान के लिए केवल इस्लाम का महत्व है...
अगर किसी भी देश के मुसलमान के लिए अपने देश के काफिरों को मारना पड़े, तो मुसलमान को एक पल भी नहीं सोचना चाहिए..., जी हां यही है इस्लाम में राष्ट्रवाद न होने का सार।
इस्लाम के अनुसार जहां तक मुसलमानों की बहुसंख्यक जनता के प्रभाव से देश चलते हैं, शासन चलते हैं वह सब दार-अल-इस्लाम हैं। +जो नही हैं वह दार-अल-हर्ब की भूमि कही जाती है।
भारत, बर्मा, श्रीलँका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन आदि को "उम्माह" के अनुसार दार-अल-कब्ज़ा की स्थिति में माना जाता है, हालांकि इसका कोई लिखित concept नही है जैसे दार-अल-इसलाम और दार-अल-हर्ब का है।
 बौद्ध राजाओं ने "Rakhine" में रहने वाले मुसलमानो को इज़्ज़त, दौलत दी... लेकिन स्वभाव से मजबूर बर्मा के मुसलमानो, ने इन सारी इज़्ज़तों को लात मार के "उम्माह" के concept पे चलने का फैसला किया।
परन्तु DNA की विकृति से मजबूर रोहिंग्या मुसलमानो ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय, गुप-चुप तरीकों से Britian से setting कर ली कि बर्मा के मुसलमान अपने ही बौद्ध भाइयों के खिलाफ (जो द्वित्य विश्व युद्ध में जापान की तरफ थे) विश्व युद्ध में England का साथ देंगे और बदले में England उनको एक मुस्लिम राष्ट्र देने में मदद करेगा।
तो रोहिंग्या मुसलमानो ने इंग्लैंड के साथ मिल कर के अपने ही बौद्ध भाइयों को काटना शुरू किया, और खूब काटा, जी भर जाने तक काटा.... लेकिन जैसा होता आया है विश्व युद्ध जीत जाने के बाद England ने रोहिंग्या मुसलमानो को कोई इस्लामिक राष्ट्र देने में मदद नहीं की, अर्थात अपना काम बना कर निकल गए।
 , भोले-भाले बौद्ध भी हिन्दूओं की भांति इस इस्लामिक शीर्ष संस्था "उम्माह" के concept को जानते भी नहीं थे... इन सब को भुला कर बौद्धों ने रोहिंग्या मुसलमानो को शान्ति से और मिल-जुल कर रहने का प्रस्ताव दिया, पर रोहिंग्या मुसलमान उस प्रस्ताव को ठुकरा के MAY, 1946 में जिन्नाह के पास चले गए, खुद को पाकिस्तान में मिलवाने का प्रस्ताव लेकर...
नरमदिल बौद्ध लोगों ने बड़ी दरियादिली दिखा कर रोहिंग्या मुसलमानो के सब गलती को माफ़ करके अपने Parliament में बुलाया, और रोहिंग्या मुसलमानो से उनकी परेशानी बताने को कहा ताकि मिल-जुल कर दोनों समुदाय ख़ुशी से रह सकें... पर रोहिंग्या ने भाईचारे के इस पेशकश को मानने से इंकार कर दिया 
फिर रोहिंग्या ने वही किया, जो दुनिया भर के मुसलमान करते हैं, गुप्त रास्तों से रोहिंग्या मुसलमानो ने RAKHINE में लाखों बांग्लादेशियों की घुसपैठ कार्रवाई, और RAKHINE के जन्मसंख्या का ढांचा बदल दिया।
अधिक आबादी के जोश में रोहिंग्या मुस्लमानो ने फिर से बर्मा के बौद्धों पर हमला शुरू कर दिया और 1954 में 100 से अधिक बौद्धों का क़त्ल किया, जिसके जवाब में बर्मा सरकार को मजबूरन रोहिंग्या पे attack करना पड़ा, जिसमे काफी रोहिंग्या भी मारे गए।

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केरल के एक मुस्लिम  धर्मगुरु अब्दुल मुहसिन एडिड ने बयान दिया है कि वह जो कुछ कह रहा है वह उसका निजी बयान नहीं, बल्कि उसका बयान इस्लाम और सऊदी अरब के मुस्लिम धर्मगुरु की विचारधारा के हवाले से दिया गया है: मुहसिन एडिड ने कहा है कि मुसलमानो के लिए देशभक्ति हराम है क्योंकि इस्लाम में देशभक्ति हराम है।
 धर्मगुरु ने यह भी कहा है कि भारत के मुसलमानो को इस्लामिक देशों (पाकिस्तान, सऊदी इत्यादि) से प्यार करना चाहिए, भले ही वो उसके निवासी हो न हो, या उन देशों से कोई सम्बन्ध भी न हो। उन्हें तो सिर्फ मुसलमान होने के कारण इस्लामिक देशों से प्यार करना चाहिए। उनके प्रति ईमानदारी रखनी चाहिए। मुसलमानो के लिए इस्लाम पहले है, और भारत की जगह उन्हें उन देशों को प्यार करना चाहिए जो की इस्लामिक देश हो, जैसे की पाकिस्तान, सऊदी अरब, बांग्लादेश, अफगानिस्तान -इत्यादि..
उमा शंकर सिंह

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