Thursday 21 September 2017

नेहरू ने आजादी मिलने के बाद अपने नाम के आगे जानबूझकर पं. लगाना शुरू कर दिया और खुद को कश्मीरी बताने लगे

जो सर्वविदित तथ्य हैं उनके अलावा जो कुछ ध्यान देने वाली बातें हैं-
नेहरू ने आजादी मिलने के बाद अपने नाम के आगे जानबूझकर पं. लगाना शुरू कर दिया और खुद को कश्मीरी बताने लगे ताकि कश्मीर के प्रति उनके रूख को लोग पक्षपाती न कह सकें।
 आजाद भारत का सेनाध्यक्ष ये किसी अंग्रेज जनरल को बनाना चाहते थे परन्तु तत्कालीन भारतीय सेना के तीन सबसे अनुभवी भारतीय अधिकारियों के विरोध के कारण फील्ड मार्शल करियप्पा को प्रथम सेनाध्यक्ष बनाया गया लेकिन फिर भी अपने मंसूबों को सफल करने के लिए कश्मीर युद्ध में जानबूझकर अंग्रेज जनरल रोचर को भारतीय सैना का सर्वेसर्वा बनाकर भारतीय सैनाध्यक्ष को प्रभावहीन कर दिया। 
फिर भी जब भारतीय सेना कश्मीर में सफल होने लगी और जनरल करियप्पा बार बार नेहरू से अनुरोध करते रहे कि हमे बस 13 दिन का वक्त और दे दीजिए 3 दिन में हम मुजफ्फराबाद जीत लेंगे और 13 दिनों में पूरा कश्मीर उसी वक्त नेहरू का संयुक्त राष्ट्र भागना और सीज फायर की घोषणा आखिर क्या साबित करती है?
 हैदराबाद प्रकरण से आप सब वाकिफ हैं ही। 
              अब बात करते हैं चीन युद्ध की हम सबको बताया जाता है कि चीन ने हमें धोका दिया, नेहरू को चीन के रूख का अंदेशा नहीं था। क्या सच में? हमें सिर्फ चीन ने धोखा दिया? सन् 1951 भारतीय सेना ने कुछ घुसपैठिये चीनी सैनिकों को गिरफ्तार किया, उनके पास से ऐसे नक्शे मिले जिनमें भारतीय क्षेत्रों जैसे अक्साई चिन, लद्दाख, अरूणांचल आदि को चीन का हिस्सा दिखाया गया था। भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल करियप्पा ने तुरंत नेहरू को सूचित किया और चीन को भारत के लिए खतरा बताते हुए तैयार रहने और तिब्बत पर चीन के कब्जे का विरोध करने को कहा लेकिन नेहरू ने उन्हें लताड़ दिया और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सेना को बेज्जत करते हुए कहा कि सेना हमें ना सिखाए कि कौन देश का शत्रु है और कौन मित्र। 1953 में जनरल करियप्पा रिटायर हो गए उन्हें वो सम्मान कभी नहीं मिला जिसके वो अधिकारी थे। अब बात करते हैं दूसरे फील्ड मार्शल श्री सैम बहादुर मानेकशॉ जी की। लेकिन पहले कुछ और बातों पर ध्यान देते हैं भारत के रक्षामंत्री और नेहरू के लाडले कृष्णा मेनन की। जनाब ने ना जाने किसके निर्देश पर सन् 1957-58 में अचानक अॉर्डिनेन्स फैक्ट्रीज में रक्षा उत्पादन बंद करवा कर कप प्लेट और कॉस्मेटिक बनवाना शुरू कर दिया। सन् 1961 में ईस्टर्न कमांड के कमांडिंग अॉफीसर जनरल मानेकशॉ पर यह कहकर इन्क्वायरी बैठा दी की आपकी कार्यशैली पर अंग्रेजों का प्रभाव है जबकी स्वयं मि.मेमन अधिकांश समय लंदन में ही रहते थे। यानी एक अनुभवी और कुशल जनरल को हटाकर एक सप्लाई कोर के ब्रिगेडियर को कमांडिंग अॉफीसर बनाया गया जिसे कांबैट प्लानिंग और टैक्टिक्स का कोई अनुभव नहीं था या यूं कहें कि ये ब्रिगेडियर सहगल मेनन और नेहरू के यस मैन थे। चीनी मोर्चों की कहानी हम सब जानते हैं लेकिन एक बात कुछ अजीब सी नहीं लगती कि जिन भी मोर्चों पर भारतीय सेना मजबूत थी उन पर चीन की विजय से पहले 2-3दिनों से एम्यूनेशन और रसद की सप्लाई रूकी होती थी? हमसे कहा गया कि भारतीय सेना तैयार नहीं थी, अच्छा!! और इतनी बुरी तरह हारने के बाद जब सेना के संसाधनो और देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से डूब जाती है ठीक 3 साल के बाद ही चीन से भी अधिक इन्टैन्सिटी से किये गये हमले को भारतीय सेनाऐं कुचल के रख देतीं हैं! बदलाव क्या हुआ था इन 3 सालों में? नेतृत्व! ताशकंद में शास्त्री जी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाये जाते हैं आखिर उनका जीवित रहना किसके लिए और क्यों घातक था? क्योंकि वो कश्मीर को भारत को वापस करने की शर्त पर ही संघर्ष विराम के लिए राजी थे? अगर उनको पाकिस्तान या रशिया ने मरवाया तो भारत की नयी प्रधानमंत्री ने समझौते को संदिग्ध मान कर पुनः वार्ता की मेज पर आने का दबाव क्यों नहीं डाला? बात करते हैं 1971 की आप कहेंगे इंदिरा की शौर्य गाथा, अरे जरा ठहरिए जनाब। मैं कहूंगा की वर्तमान कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे में देने और बांग्लादेश को कश्मीर की तरह नासूर बनाने के षड्यंत्र की कोशिश जिसे जनरल मानेकशॉ की अद्भुत रणनीति,जनरल जैकब की गजब की चतुरता और जनरल अरोड़ा के जुझारूपन ने धूल में मिला दिया और इस तरह बांग्लादेश का उदय हुआ और इंदिरा ना चाहते हुए भी इसके लिए जिम्मेदार बन गयीं। जी हां भारतीय सेना को दो बिल्कुल विपरीत मोर्चों पर आकस्मिक लडाई के आदेश दिये गये थे हमसे कहा जाता है कि जनरल मानेकशॉ ने पहली बार एकदम से मना कर दिया था जोकि पूरा सच नहीं है जनरल मानेकशॉ ने बड़ी चालाकी से युद्ध का आदेश अपने पास रख लिया और समय के निर्धारण के लिए स्वयं को अधिकृत कर लिया और युद्ध के आदेश के आधार पर तैयारी के लिए आकस्मिक बजट आवंटित करवा लिया जिसे तीनो सेनाओं को देकर युद्ध के लिए आवश्यक तैयारियां की गयीं ये बजट देना इंदिरा की मजबूरी थी क्योंकि हमले का लिखित आदेश जनरल मानेकशॉ के पास था और तैयारी का समय देने की मजबूरी इसलिए थी क्योंकि युद्ध की रणनीति और हमले के समय का निर्धारण सेनाध्यक्ष का विशेषाधिकार होता है। आपको मालूम है कि उस युद्ध में भी इंदिरा ने संयुक्त राष्ट्र के सुझाव के आधार पर सेना को युद्ध विराम करने का आदेश दिया था? जिसका अर्थ था बांग्लादेश का भी कश्मीर की तरह सरदर्द बनकर रह जाना लेकिन जिस समय ये आदेश जनरल जैकब के पास बांग्लादेश पहुंचा वो जनरल नियाजी से सरेंडर करदेने की बात करने निकल रहे थे उन्होंने आदेश उनके निकल जाने के बाद पहुंचना दर्ज करने को कहा। मीटिंग में नियाजी ने सीजफायर की मंशा जताई लेकिन वो सरेंडर करने को राजी नहीं था लेकिन जनरल जैकब ने उसे भारत सरकार का आदेश ना बताते हुए 30 मिनट में सरेंडर अथवा बांग्ला मुक्तीवाहिनी सर्पोटेड बाइ इण्डियन आर्मी द्वारा पाकिस्तानी सैनिकों के उनके परिवार सहित मारे जाने की धमकी दी गई। जनरल जैकब ने बहुत बड़ा रिस्क लिया था क्योंकि उन्होंने मिनट्स अॉफ मीटिंग में यह दर्ज करवा दिया की नियाजी ने इन्सट्रूमेंट अॉफ सरेंडर पर दस्तखत कर दिये जबकी नियाजी की सहमती उसके 40 मिनट बाद पहुंची थी। जिन्हें इंदिरा की भूमिका पर अब भी संदेह हो वो ये बतायें कि इतनी बड़ी जीत, दुश्मन देश के 90000 pow, दुश्मन देश की नेवी को 90%और एयर फोर्स को 60% तबाह कर देने के बाद भी, सोवियत संघ के आपके पक्ष में खड़े होने के बाद भी आप कश्मीर तो क्या 1 रुपए भी पाकिस्तान से नहीं लेतीं बल्कि हारे हुए पाकिस्तान को विजेता बनकर निकल जाने देतीं हैं क्यों?आपको पता है जनरल मानेकशॉ से बीबीसी रिपोर्टर ने एक बार ये पूछा कि अगर आप बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में ये कह दिया कि तो 71 में पाकिस्तान जीत जाता। सिर्फ इस बात के लिए सहिष्णु और सैनिकों का सम्मान करने वाली कांग्रेस ने उनकी पेंशन में कटौती कर दी, उनकी सरकारी कार, सरकारी घर और स्पोर्टिंग स्टाफ छीन लिए गए जो उन्हें असहिष्णु एवं राष्ट्रविरोधी बीजेपी के सत्ता में आने और एपीजे के राष्ट्रपति बनने के बाद ही वापस मिलीं। सोचिये सन् 2008 में इतने कद्दावर सैनिक और फील्ड मार्शल की अंत्येष्टि में ना राष्ट्रपति जाता है न प्रधानमंत्री ना रक्षामंत्री ना ही कोई सेना प्रमुख। शर्म आती है इन पर ये कहते हैं कि इन्होंने देश को आजादी दिलाई सच मे?

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