Wednesday 6 September 2017

" श्री नारायणी पीठ ", चेन्नई, तमिलनाडु
जैसे स्वर्ग का टुकड़ा धरती पर ला रखा हो -15000 किलो शुद्ध सोने से निर्मित मंदिर में 70 किलो की है मां लक्ष्मी की मूर्ति ।
चेन्नई से 150 किलोमीटर की दूरी पर बसा वेल्लोर शहर है। वेल्लोर से एक सुंदर रास्ता जाता है, जो 14 किलोमीटर लंबा है। इसे तिरूमलईकोढ़ी कहा जाता था। दिनभर ठंडी हवाओं से आनंदित कर देने वाले पांच हजार की आबादी वाले इस गांव का नाम अब सरकार की अनुमति से श्रीपुरम रख दिया गया है।
यह गांव अब साधारण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यहां अमृतसर स्वर्ण मंदिर जैसा मां लक्ष्मी नारायणी का मंदिर है, जो देश दुनिया के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है। देशाटन करने वाले लोग तिरूपति बालाजी आते जाते समय यहां दर्शन करके आभास करते हैं, मानो स्वर्ग से कोई टुकड़ा धरती पर लाकर रख दिया गया हो। इस गोल्डन टेम्पल के निर्माण में 15000 किलो ग्राम सोने का उपयोग किया गया है।
मंदिर के निर्माण में तो सोना ही सोना है और मां महालक्ष्मी की 70 किलो ठोस सोने की मूर्ति भी। साक्षात देवी माने जाने वाले अलौकिक से सतीश कुमार की आध्यात्मिक ताकत से यह रचना मूर्त रूप ले सकी है। गांव के लोग ही सतीश कुमार को मूल नाम से जानते हैं, अन्यथा वे देश दुनिया के लिए श्री शक्ति अम्मा हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर क्रिकेटर रविचंद्रन अश्विन तक उनके दर्शन करने पहुंचे थे।
संभवत: यह भारत का पहला मंदिर होगा, जहां राष्ट्रपति भवन, लोकसभा और अन्य सरकारी कार्यालयों की तरह तिरंगा ध्वज फहराया जाता है। इसका दर्शन कहता है कि मंदिर हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख और इसाईयों के लिए खुला है। तभी तो पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व गर्वनर डॉ. सुरजीतसिंह बरनाला और जॉर्ज फर्नाण्डीज यहां दर्शन करके जा चुके हैं।
पलार नदी किनारे बसे भव्य और दिव्य मंदिर के माध्यम से जो भी आय अर्जित होती है, उससे श्री शक्ति अम्मा गरीब बच्चों की शिक्षा, गरीब कन्याओं के विवाह और रोजगार, दीन दुखियों के इलाज और भूखों को भोजन प्रसादी के काम पर खर्च करती है। लक्ष्मी का इतना समुचित उपयोग और क्या हो सकता है भला।
श्री शक्ति अम्मा अगले साल 3 जनवरी को अपने जीवन के 40 बसंत पूरे करेंगी। उनका जीवन ही भक्ति से शुरू होता है, तभी तो प्राथमिक स्कूली शिक्षा के दिनों में वे स्कूल जाने के बजाए शिव परिवार की आराधना में लीन रहते थे। जब वे कोई 14 वर्ष के रहे होंगे, तो स्कूल बस की खिड़की से आसमान में देखने के दौरान उन्हें त्रिदेवी (लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती) के दर्शन हुए।
आकाश से रोशनी हुई और उनके मस्तिष्क, दोनों भुजाओं पर विशेष निशान उभर आए। तमिलनाडु के नामी गिरामी डॉक्टरों ने भी इसे एक चमत्कार करार दिया, जबकि ज्योतिषियों ने उस बालक को देवी का अवतार बताया। सिंगापुर के फारूख भाई के लिए श्री शक्ति अम्मा साक्षात भगवान ही हैं, क्योंकि जब उनकी पत्नी को कैंसर ने जकड़ लिया था और डॉक्टर जवाब दे चुके थे, तो शक्ति अम्मा द्वारा भेंट किया गया नींबू और हवन की विभूति माथे पर लगाने भर से मेहरून्निसा स्वस्थ्य हो गई और हर साल श्री नारायणी और श्री शक्ति अम्मा के दर्शन करने के लिए आती हैं।
श्री शक्ति अम्मा गोल्डन टेम्पल में रोजाना दोपहर श्री नारायणी लक्ष्मी की स्तुति पूजा करने के लिए आती हैं, जबकि गोल्डन टेम्पल के ठीक सामने बने उनके पैतृक घर में नाग की चमत्कारिक बांबी स्थल पर उनका टूटा फूटा झोपड़ा है, जहां वे ध्यान में तल्लीन रहने के बाद दीन दुखियों के कष्ट हरती हैं।
यह प्रेम, श्रद्धा और विश्वास की बात है कि श्री शक्ति अम्मा के दर्शन करने के लिए रोजाना कोई छह हजार श्रद्धालु भारत के चरणों में पड़े इस महाभारती और उनकी स्वर्गमयी रचना के दर्शन के लिए आते हैं। स्वर्ग की बात सब करते हैं, लेकिन उसकी एक झलक देखना है, तो श्रीपुरम चले जाईए।
दुनिया के किसी मंदिर में नहीं लगा है इतना सोना । सोने से निर्मित इस मंदिर को बनने में 7 वर्षों का समय लगा, जो लगभग 100 एकड़ जमीन पर बना हुआ है। महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण में तकरीबन 15,000 किलो शुद्ध सोने का इस्तेमाल हुआ है। स्वर्ण मंदिर के निर्माण में 300 करोड़ से ज्यादा राशि लगी थी। विश्व में किसी भी मंदिर के निर्माण में इतना सोना नहीं लगा है, जितना की इस लक्ष्मी-नारायण मंदिर में लगाया गया। रात में जब इस मंदिर में प्रकाश किया जाता है, तब सोने की चमक देखने लायक होती है।
सूर्योदय पर चमचमाता मंदिर इस स्थान को सोने की चिड़िया रूपी भारत के दर्शन कराता है और डूबते सूर्य से जन्मी सिंदूरी शाम इसे विशाल स्वर्णिम रथ सा दर्शाती है। ये दोनों नजारे आपके लिए चेन्नई की उमस को भुला देने वाले होंगे। साथ ही आपका इस धरती पर आना सुखद करेंगे, क्योंकि अब कहां इतना सोना सजावट में इस्तेमाल किया जाता है। बारहों महीने लक्ष्मीजी की सेवा पल -पल की जाती है और आप भी यहां कभी भी दीवापली मना सकते हैं।
24 अगस्त 2007 को यह मंदिर दर्शन के लिए खोला गया था।

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