Sunday 23 July 2017

 कर्ण की उदारता

एक बार भगवान श्रीकृष्ण पाण्डवों के साथ बातचीत कर रहे थे। भगवान उस समय कर्ण की उदारता की बार-बार प्रशंसा कर रहे थे। यह बात अर्जुन को अच्छी नहीं लगी। 

अर्जुन ने कहा – श्यामसुन्दर! हमारे बड़े भाई धर्मराज जी से बढ़कर उदार तो कोई है ही नहीं, फिर आप उनके सामने कर्ण की इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं?

भगवान ने कहा – ये बात मैं तुम्हें फिर कभी समझा दूँगा।

कुछ दिनों के बाद अर्जुन को साथ लेकर भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर के राजभवन के दरवाजे पर ब्राह्मण का वेश बनाकर पहुँचे।

उन्होंने धर्मराज से कहा – हमको एक मन चन्दन की सूखी लकड़ी चाहिये। आप कृपा करके मँगा दें।

उस दिन जोर की वर्षा हो रही थी। कहीं से भी लकड़ी लाने पर वह अवश्य भीग जाती। महाराज युधिष्ठिर ने नगर में अपने सेवक भेजे, किन्तु संयोग की बात ऐसी कि कहीं भी चन्दन की सूखी लकड़ी सेर-आध-सेर से अधिक नहीं मिली।

युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की – आज सूखा चन्दन मिल नहीं रहा है। आप लोग कोई और वस्तु चाहें तो तुरन्त दी जा सकती है।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – सूखा चन्दन नहीं मिलता तो न सही। हमें कुछ और नहीं चाहिये।

वहाँ से अर्जुन को साथ लिये उसी ब्राह्मण के वेश में भगवान श्रीकृष्ण कर्ण के यहाँ पहुँचे। कर्ण ने बड़ी श्रद्धा से उनका स्वागत किया।

भगवान ने कहा – हमें इसी समय एक मन सूखी लकड़ी चाहिये।

कर्ण ने दोनों ब्राह्मणों को आसन पर बैठाकर उनकी पूजा की। फिर धनुष चढ़ाकर उन्होंने बाण उठाया। बाण मार-मारकर कर्ण ने अपने सुन्दर महल के मूल्यवान किवाड़, चौखटें, पलंग आदि तोड़ डाले और लकड़ियों का ढेर लगा दिया। सब लकड़ियाँ चन्दन की थीं।

यह देखकर श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा – तुमने सूखी लकड़ियों के लिये इतनी मूल्यवान वस्तुऍ क्यों नष्ट की ?

कर्ण हाथ जोड़कर बोले – इस समय वर्षा हो रही है। बाहर से लकड़ी मँगाने में देर होगी। आप लोगों को रुकना पड़ेता। लकड़ी भीग भी जाती। ये सब वस्तुएँ तो फिर बन जायेगीं किन्तु मेरे यहाँ आये अतिथि को निराश होना पड़े या कष्ट हो तो वह दुःख मेरे हृदय से कभी दूर नहीं होगा।

भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया और वहाँ से अर्जुन के साथ चले आये।

लौटकर भगवान ने अर्जुन से कहा – अर्जुन! देखो, धर्मराज युधिष्ठिर के भवन के द्वार, चौखटे भी चन्दन के हैं। चन्दन की दूसरी वस्तुएँ भी राजभवन में है। और पांडव उन्हें देने में कृपण भी नहीं हैं लेकिन चन्दन की लकड़ी माँगने पर भी उन वस्तुओं को देने की याद धर्मराज को नहीं आयी। पर भी कर्ण ने अपने घर की मूल्यवान वस्तुएँ तोड़कर लकड़ी दे दी। दान-धर्म में जिसके प्राण बसते हैं उसी को समय पर याद आता है कि वस्तु कैसे देनी है।
कर्ण स्वभाव से उदार हैं और धर्मराज युधिष्ठिर विचार करके धर्म पर स्थिर रहते हैं। मैं इसी से कर्ण की प्रशंसा करता हूँ।

सीख 👉 इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परोपकार, उदारता, त्याग तथा अच्छे कर्म करने का स्वभाव बना लेना चाहिये। जो लोग नित्य अच्छे कर्म नहीं करते और सोचते हैं कि कोई बड़ा अवसर पर महान कार्य करेंगे उनको अवसर आने पर भी सूझता ही नहीं। और जो छोटे-छोटे अवसरों पर भी त्याग तथा उपकार करने का स्वभाव बना लेता है, वही महान कार्य करने में भी सफल होता है।

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मेवाड़ की वीरांगना पन्नाधाय के बलिदान की अमर कथा
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मेवाड़ के सिंहासन पर विराजमान विक्रमादित्य ढीठ और अभिमानी राजा था। विभिन्न प्रसिद्ध व्यक्तियों ने उसके राज्य को छोड़ना आरम्भ कर दिया था। रानी कर्णावती, विक्रमादित्य के भय से अपने पुत्र उदय को पालन पोषण के लिए पन्ना धाय के पास छोड़ दिया जिससे वो अपने छोटे शिशु के साथ उदय की देखभाल कर सके।
महाराजा राणा सांगा का देहान्त हुआ तब उनके पु्त्र उदयसिंह बहुत छोटे थे, बनवीर को सोंपा गया था काम नन्हें उदयसिंह की रक्षा व लालन पालन करके बडा करने का और समुचित शिक्षा दिलवाने का पर बनवीर के मन में कुछ ‌और ही चल रहा था। उसनें नन्हें बालक उदयस
पन्ना धाय उस समय नन्हें राजकुमार उदयसिंह की धाय मां थी और उनके लालन पालन में व्यस्त थी | साथ ही पन्ना धाय एक बहुत ही स्वाभिमानी, देशभक्त और राणा का एहसान मानने वाली महिला थी | पन्ना धाय का भी एक पुत्र था जो लगभग उम्र में उदयसिंह के जितना ही था।
जब पन्ना को बनवीर के गंदे नापाक इरादों का पता चला तो उसने नन्हें बालक उदयसिंह की जगह अपने पुत्र को सुला दिया तभी बनवीर नें नंगी तलवार लिये कक्ष में प्रवेश किया और पन्नाधाय से पूछा की कहां है उदयसिंह तो पन्ना धाय नें सिर्फ इशारा किया और तत्काल बनवीर नें पन्ना के पुत्र को मौत के घाट उतार दिया, वह समझ रहा था की मेनें मेवाड के होने वाले राजा उदयसिंह को मार डाला है पर हकीहत में पन्ना धाय नें अपने पुत्र की कुर्बानी दे दी थी और मेवाड राजवंश के चिराग को बचा लिया था।
एक गुप्त रास्ते से पन्नाधाय नें बालक उदयसिंह को झूठे पत्तल से भरे टोकरे में रखवाकर किसी विश्वासपात्र के हाथों महल से बाहर सुरक्षित जगह पहुंचा दिया | कोई महिला या नारी अपने राजा के पु्त्र की रक्षा करने के लिये इतना बडा बलिदान करे ये बहुत बडी बात है और पन्नाधाय एक बहुत बडा उदाहरण है नारी शक्ति के त्याग और बलिदान का | पन्ना नें अपने पुत्र का बलिदान करते हुए राणा के पु्त्र के जीवन को बचा लिया था और आज भी वह अपने इस अनोखे बलिदान के लिये जानी जाती है | पन्ना धाय अमर है |



🌺विट्ठलव्यास 🌺

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