Friday 30 June 2017

शायद आपको लोगों पता नहीं की कारगिल के युद्ध में सऊदी अरब भी पाकिस्तान के साथ था और इंडोनेशिया ने तो अपना पोत भी भेज दिया था वो तो इजराइल ने बिना कहे युद्ध में कूद पड़ा था जिसकी वजह से इंडोनेशिया को अपनी सेना वापिस बुलानी पड़ी थी क्योंकि अगर वो पाकिस्तान की तरफ से लड़ता तो इजराइल की वजह से अमेरिका और यूरोप को भी भारत का साथ देना पड़ता तब सिर्फ इजराइल की वजह से दुनिया एक भयानक परमाणु युद्ध से बच गयी |
भारत का कोई भी प्रधानमंत्री इजराइल नहीं गया क्यूंकि इस से भारत में मुस्लिम नाराज हो सकते है क्यूंकि मुस्लिमो की आस्था फिलिस्तीन में है, भारत के मुस्लिम इजराइल से घृणा करते है, हमारे वोट बैंक वाले प्रधानमंत्रियों ने इसी कारण कभी इजराइल की यात्रा की ही नहीं |
हमारे देश के नेताओं ने भारत का लाभ नहीं बल्कि वोटबैंक देखा | देशहित से अधिक वरीयता तुष्टिकरण को दी |
हम एक बात आज पक्के दावे से कह सकते है नरेंद्र मोदी जी भारत के आज तक के सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं | जिन्होंने तुष्टिकरण नहीं बल्कि देशहित को वरीयता दी |
भारत के लिए +Israel ही सबसे अच्छा मित्र राष्ट्र है |
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आज मेरी प्रतिबंधित पुस्तक ,जो पूज्य रामस्वरूप जी की पुस्तक का अनुवाद है .प्रकाशित होकर मुझे मिली है इच्छुक पाठक इसे वौइस् ऑफ़ इंडिया ,२/१८, अंसारी रोड ,नयी दिल्ली से खरीद सकते हैं ३० साल पहले इसे छपते ही प्रतिबंधित कर दिया गया था जबकि इसमे सभी बातें पूर्ण प्रामाणिक लिखी गयी हैं
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#वाह क्या कहने हैं --- 💐#जय माँ भारती💐
#देवी देवता और महापुरुष भी भाजपाई और कांग्रेसी !!💐
🎭 👉🏻 राजस्थान में अकबर की जगह महाराणा प्रताप के बारे में पढाने की बात पर कांग्रेस नेता सचिन पायललट ने ये कह के ऐतराज जताया है, कि ये शिक्षा का भगवाकरण कर रहे है ये सब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) वालो की चाल है, वो अपने करीबियो के बारे में ही पढाना चाहते है। *आज पता चला कि महाराणा प्रताप RSS के करीबी थे - ओर अकबर काग्रेस का करीबी था ।* 
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विदेशी सहायता की जानकारी नहीं दे रहे 3,768 NGOs को नोटिस......!!!
गृह मंत्रालय ने विदेशी सहायता से संबंधित बैंक खातों का ब्योरा नहीं दे रहे गैरसरकारी संगठनों को नोटिस जारी कर कानूनी कारवाई का सामना करने की चेतावनी दी है। साथ ही सरकार ने देश भर में पंजीकृत उन 3,768 गैरसरकारी स्वयंसेवी संगठनों (NGO) को मिल रही विदेशी सहायता को एक ही बैंक खाते में जमा कराने और इसका ब्योरा सरकार को मुहैया कराने का निर्देश दिया है। मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि नियमानुसार विदेशी सहायता प्राप्त कर रहे एनजीओ को विदेशी सहायता नियमन कानून (FCRA) के तहत पंजीकरण कराना, एक ही बैंक खाते में विदेशी सहायता प्राप्त करना और इस खाते को प्रमाणित कराना अनिवार्य होता है।
मंत्रालय के संयुक्त सचिव मुकेश मित्तल ने बताया कि सभी संगठनों को उनके विदेशी सहायता खातों को प्रमाणित कराने, खाते का विवरण, बैंक शाखा और खाता नंबर आदि जानकारी देने को कहा गया है। मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार फेरा नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करते हुए पिछले 3 साल में 10 हजार एनजीओ का पंजीकरण रद्द कर चुकी है। ये सभी संगठन फेरा के तहत अपने सालाना आय-व्यय के ब्योरे को सरकार को मुहैया कराने में नाकाम रहे जबकि फेरा के उल्लंघन के दोषी पाए गए 1,300 से अधिक एनजीओ के पंजीकरण का नवीनीकरण आवेदन खारिज कर दिया गया है।
इसके अलावा करीब 6,000 एनजीओ को मंत्रालय ने कोर बैंकिंग सुविधा वाले बैंक खाते खुलवाने का निर्देश देते हुए इन्हें बैंक खातों का विवरण देने का निर्देश दिया है। मंत्रालय ने यह कार्रवाई उस रिपोर्ट के आधार पर की है, जिसमें कहा गया है कि अधिकांश संगठनों ने सहकारी या ऐसे सरकारी बैंकों में खाते खुलवाए हैं जिनमें इंटरनेट आधारित कोर बैंकिंग सुविधा नहीं है। सभी एनजीओ को खाते प्रमाणित कराने का निर्देश देते हुए मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि ऐसा नहीं कर पाने वाले संगठनों के खिलाफ जुर्माना भी लगाया जाएगा। मंत्रालय ने विदेशी सहायता प्राप्त कर रहे संगठनों से अपनी ऑडिट रिपोर्ट भी जमा कराने को कहा है। ऐसे सभी संगठनों को हर वित्तीय वर्ष में 1 अप्रैल से 9 महीने के भीतर आय-व्यय के ब्योरे के साथ ऑडिट रिपोर्ट देना अनिवार्य होता है।

इंदिरा गांधी और बाबर का रिश्ता?

इन्टरनेट पर इन दिनों एक मुद्दा काफी तेजी से टूल पकड़ रहा है जो कि इंदिरा गांधी और बाबर के बीच में क्या रिश्ता है ? तो किसी भी पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है लेकिन लोगो ने अपने ही मतलब से काफी जुदा जुदा से जवाब बना लिए है जो काफी अटपटे भी है तो चलिए फिर जानते है इसका गहरा विश्लेष्ण कि नेहरू परिवार की जड़े कहाँ तक फ़ैली है ? कुछ समय पहले जब भारत आजाद हुआ तो इतिहासकारों ने नेहरू परिववारो के बारे में जानने की कोशिश की लेकिन उन्हें लगातार दबाया गया इसके बाद लोगो में जानने की इच्छा और जागी तो और खोदा गया
तो जानने में आया  कि नेहरू परिवार असल में मुस्लिम है हालांकि Hindicircle इसकी पूरी पुष्टि नही कर सकता है ये सिर्फ विभिन्न पोर्टल्स से जुटाए गये डाटा का निष्कर्ष है जिनके मुताबिक़ नेहरू परिवार पहले मुस्लिम थे और बादमे उन्होंने खुदको कश्मीरी पंडित बना लिया और बादमे नहर के करीब रहने का कारण उनका सरनेम नेहरू हो गया इसका उल्लेख उनके खुदके करीबी करते है और इसकी पुष्टि पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के सुनाये एक वृतांत से हो जाता है...नटवर सिंह बताते है कि जब इंदिरा गांधी अपने विदेश दौरे पर थी तो उन्होंने अफगानिस्तान में बाबर की मजार देखने की इच्छा जाहिर की लोगो के मना करने के बावजूद वो उस सुनसान जगह पर गयी और काफी लम्बे वक्त तक वहां श्रद्धा से सर झुकाए खडी रही, उस वक्त के बाद वो वापिस लौटी और अभिभूत होकर नटवर सिंह से बोली आज मैं अपने इतिहास मिलकर आयी हूँ इस कथन से काफी हद तक तस्वीर साफ हो गयी कि नेहरू परिवार का एक वो इतिहास भी है जो सिर्फ वही जानते है और दुनिया से काफी लम्बे समय से छुपाके रखा गया है हालांकि देश की जनता को आज भी ये जानने का हक़ है

आज भी हर साल उन शरणार्थीयो के वंशज जामनगर आते है

-जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण करके द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की थी तो उस समय पोलैंड के सैनिको ने अपने 500 महिलाओ और करीब 200 बच्चों को एक शीप में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया और कैप्टन से कहा की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ,जहाँ इन्हें शरण मिल सके अगर जिन्दगी रही हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे।
पांच सौ शरणार्थी पोलिस महिलाओ और दो सौ बच्चो से भरा वो जहाज ईरान के सिराफ़ बंदरगाह पहुंचा, वहां किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नही मिली,फिर सेशेल्स में भी नही मिली, फिर अदन में भी अनुमति नही मिली।अंत में समुद्र में भटकता-भटकता वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया।
जामनगर के तत्कालीन महाराजा "जाम साहब दिग्विजय सिंह" ने न सिर्फ पांच सौ महिलाओ बच्चो के लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कूल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यस्था की।ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे।
उन्ही शरणार्थी बच्चो में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना आज भी हर साल उन शरणार्थीयो के वंशज जामनगर आते है और अपने पूर्वजों को याद करते है।
पोलैंड की राजधानी वारसा में कई सडकों का नाम महराजा जाम साहब के नाम पर है,उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनायें चलती है।हर साल पोलैंड के अखबारों में महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह के बारे में आर्टिकल छपता है।
प्राचीन काल से भारत,वसुधैव कुटुम्बकम,सहिष्णुता का पाठ दुनिया को पढ़ाते आया है और आज कल के नवसिखिये नेता आदि लोग,भारत की सहिष्णुता पर प्रश्न चिह्न लगाते फिरते हैं!!

Thursday 29 June 2017

#इमरजेंसी और #नसबंदी की एक कथा :-

#इमरजेंसी और #नसबंदी की एक कथा :-
सैफअली की exबीबी (रुखसाना सुल्ताना की बेटी और मशहूर अंग्रेजी लेखक खुशवंत सिंह की भतीजी) अमृता सिंह #अमृतासिंह(नाम से हिन्दू )....
इसकी माँ थी #डाक्टर_रुखसाना_सुल्ताना (अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ) को #संजय_गांधीने मुस्लिम समुदाय को ज्यादा से ज्यादा तादाद में नसबंदी के लिए राजी करने का काम सौंपा था.
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1975 में एक तरफ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल का ऐलान किया था तो दूसरी तरफ उनके बेटे संजय गांधी के राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई थी. इस सफर ने इस तेजी से रफ्तार पकड़ी कि जल्द ही संजय गांधी को समानांतर सत्ता केंद्र कहा जाने लगा.
उन्होंने आपातकाल के दिनों में एक पांच सूत्री कार्यक्रम लागू किया. साक्षरता, सौंदर्यीकरण, वृक्षारोपण, दहेज प्रथा व जाति उन्मूलन और परिवार नियोजन इसका हिस्सा थे. लेकिन इनमें भी संजय गांधी के लिए सबसे अहम था #परिवारनियोजन.
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दिल्ली में नसबंदी कार्यक्रम कैसे चलेगा, इसकी जिम्मेदारी जिन चार लोगों को दी गई थी वे थे लेफ्टिनेंट गवर्नर किशन चंद, नवीन चावला, विद्याबेन शाह और रुखसाना सुल्ताना.
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रुखसाना को सामाजिक कार्य का कोई अनुभव था या वे डॉक्टर थीं. इससे पहले वे दिल्ली में अपना एक बुटीक चलाती थीं. उनकी मां #जरीना बीकानेर रियासत के #मुख्यन्यायाधीश#मियांअहसानउलहक की बेटी और चर्चित अभिनेत्री #बेगमपारा की बहन थीं. रुखसाना ने एक सैन्य अधिकारी #शिविंदरसिंह से शादी की थी जो दिग्गज पत्रकार और लेखक #खुशवंतसिंह के भतीजे थे. उनकी बेटी का नाम अमृता सिंह है जो हिंदी फिल्मों की चर्चित अभिनेत्री हैं.
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#आपातकाल के दौरान जामा मस्जिद के आसपास चलने वाले नसबंदी कैंपों का प्रभाव यह था कि स्थानीय लोग खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे. बताते हैं कि इन कैंपों को चलाने की जिम्मेदारी जिस महिला को सौंपी गई थी उसे देखते ही डर के मारे लोगों के हलक सूख जाते थे. उस समय के सत्ता प्रतिष्ठान से गहरी नजदीकी रखने वाली इस महिला का नाम था रुखसाना सुल्ताना. सरकारी अधिकारी उन्हें #रुखसानासाहिबा कहा करते थे.
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संजय गांधी मानना था कि जिस आबादी को देश की सारी समस्याओं की जड़ बताया जा रहा है उस पर अगर वे लगाम लगा सकें तो तुरंत ही देश और दुनिया में वे एक प्रभावशाली नेता के तौर पर स्थापित हो जाएंगे. माना जाता है कि इसके चलते उन्होंने सारी सरकारी मशीनरी को इस काम में झोंक दिया.
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संजय गांधी इस काम की शुरुआत राजधानी और उसमें भी पुरानी दिल्ली से करना चाहते थे. तब भी नसबंदी के बारे में कई भ्रांतियां थीं. मुस्लिम समुदाय में यह अफवाह उड़ती थी कि यह उसकी आबादी कम करने की साजिश है. संजय गांधी को लगता था कि अगर उन्होंने शुरुआत में ही इस अभियान को सफल बना दिया और वह भी मुस्लिम समुदाय के बीच तो पूरे देश में एक असरदार संदेश जाएगा.
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संजय गांधी से प्रभावित रुखसाना एक आयोजन में उनके पास आईं और पूछा कि वे उनके लिए क्या कर सकती हैं? संजय ने उनसे कहा कि वे मुसलमानों को नसबंदी के लिए राजी करें.इस तरह रुखसाना संजय गांधी की टीम में शामिल हो गईं. जल्द ही उन्होंने अपना काम भी शुरू कर दिया. वे पुरानी दिल्ली में घर-घर जाकर लोगों को परिवार नियोजन के फायदों के बारे में समझाने लगीं.
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उन्होंने इस इलाके में छह नसबंदी कैंप भी शुरू कर दिए.लेकिन जल्द ही पुरानी दिल्ली में नसबंदी के बारे में जागरूकता से कहीं ज्यादा उसका आतंक फैल गया. खबरें आने लगीं कि महीने का टारगेट पूरा करने के लिए लोगों को जबरन पकड़कर उनकी नसबंदी की जा रही है और इसमें 60 साल के बुजुर्गों और 18 साल के नौजवानों को भी बख्शा नहीं जा रहा.रुखसाना की कार देखकर लोगों की रूह सूख जाती थी.
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जब नसबंदी के चलते मुजफ्फरनगर, मेरठ, गोरखपुर और सुल्तानपुर जैसे कई शहरों में दंगे होने लगे तो उन्होंने उसी दौरान दो #इमामों को #नसबंदी कराने के लिए तैयार कर लिया. जब मुसलमान नसबंदी को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध कर रहे हों तो मुस्लिम धर्मगुरुओं का नसबंदी करवाना अपने आप में बहुत बड़ी बात थी. रुखसाना ने यह ऐलान करके इस कामयाबी को और भी वजन दे दिया कि शरीफ अहमद और नूर मोहम्मद नाम के ये दो इमाम उसी मुजफ्फरनगर के हैं जहां नसबंदी के मुद्दे पर बड़ा दंगा हुआ है.
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उस समय ये भी खबरें आईं कि बाकी लोगों की तरह इमाम भी पहले नसबंदी के खिलाफ थे. लेकिन अपनी वाकपटुता और कुरान की कुछ आयतों का उदाहरण देते हुए रुखसाना ने उन्हें मनाने में कामयाबी हासिल कर ली. संजय गांधी इससे बहुत खुश हुए. उन्होंने खुद इन दोनों इमामों को नसबंदी का सर्टिफिकेट दिया और साथ ही दोनों को 101 रु का नकद ईनाम भी. शरीफ अहमद और नूर मोहम्मद ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे दूसरे धार्मिक नेताओं को मनाने की भी हरमुमकिन कोशिश करेंगे. अगले दिन अखबारों में संजय गांधी के अगल-बगल खड़े इन दोनों इमामों की तस्वीरे छपीं.
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#संजय गांधी को तब #समानांतर_सत्ता_केंद्र कहा जाने लगा था अगर वो जीवित रहते तो आज भारत के हालात शायद और ही होते. सरकार को अब कोई #रुखसाना जैसा खोजना ही होगा, #जनसँख्या_विस्फोट रोकना ही होगा, #सर्वधर्मों के लिए एक जैसा कानून लागू करना ही पड़ेगा और सिर्फ लागू नहीं उसकी पालना भी करवानी होगी. अगर भारत का भला करना है तो वरना इस देश का भगवान् भी कुछ नहीं कर सकते.
 घूंघट  हरियाणा की महिलाओं की  परम्परा , ये सभ्यता का प्रतीक है ...

अगर कांग्रेस ईमानदारी से शाशन चलती तो सोने का चिड़िया कहे जाने वाला देश आज गरीबी और बेरोजगारी का मार नहीं झेल रहा होता! कांग्रेस में मुख्य रूप से नेहरू-गांधी परिवार का दबदबा रहा है और सुरु से लेकर अब तक कांग्रेस ने सिर्फ और सिर्फ देश को लूटने का काम किया है ! कांग्रेस सरकार ने देश को बाँटने का काम भी किया है। धर्म जाति के नाम और बस अपनी वोटबैंक की राजनीति की।
लाज , ह्या , सभ्यता , संस्कार ये सब हिन्दू नारियों की परिपाटी रहे हैं . आज भी बड़े से बड़े विकसित घरों में भी शादी , शुभकर्म , पूजा पाठ आदि के समय महिलायें घूंघट प्रथा में रहती हैं पर इस पावन और पवित्र परम्परा पर यदि कोई सवाल करे , इसको अच्छा बुरा बताये , इसका मजाक उड़ाए या इसे पुरानी विचारधारा घोषित कर दे तो यकीनन वो विषय पीड़ा का होगा और साथ ही भावनाओं के दमन का भी .
इस बार कांग्रेस ने मजाक उड़ाया है हिन्दू नारियों की घूंघट प्रथा का . यह मुद्दा है हरियाणा का जहाँ हरियाणा सरकार की मैगजीन पर एक घूंघट से खुद को ढकी महिला का फोटो छपा है . बस इसी फोटो को विवादित बना दिया कांग्रेस ने और मचा दिया हंगामा . 
कांग्रेस के तमाम योद्धा जो तीन तलाक को इस्लामिक भावनाओं के कारण चलते रहने देने की वकालत कर रहे थे अचानक ही हिन्दुओं की भावनाओं से खेलने चले आये .स बार कांग्रेस ने इस मुद्दे पर हिन्दुओं का मजाक उड़ाने के लिए मैदान में उतारा अपने हरियाणा के ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जिन्होंने सीधे सीधे भाजपा की सोच को पिछड़ी सोच माना है . वहीँ इसी मामले में एक दूसरे कांग्रेसी रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा को घिसी पिटी और पिछड़ी सोच वाली सरकार बताया है और कहा है कि घूंघट पिछले जमाने की बाते हैं . भाजपा के मंत्री श्री अनिल विज जी ने इन सभी कांग्रेसी नेताओं को हरियाणा का इतिहास ठीक से पढ़ कर आने की सलाह दी है उन्होंने कहा है कि घूंघट करना हरियाणा की महिलाओं की सदा से परम्परा रही है और ये सभ्यता का प्रतीक है ना कि पिछड़ी या पुरानी सोच का .
बो दौर दूसरा था ये दौर दूसरा है ..याद करिए मनमोहन सरकार के समय में सेनाओं से कहा गया था की भारत की सेनाये फ्यूल की मद में किये जाने वाले खर्चो में कटौती करे ................जबकि मनमोहन सरकार के समय में सीमाओं पर सुरक्षा की स्थिति काफी जर्जर हुआ करती थी ..जिसे मोदी सरकार दिन रात मेहनत के जरिये सुधार रही है ...................ये पिक भारत चीन सीमा से है और मोदी के दौर की .......इन इलाको में कांग्रेस द्वारा विरासत में दिए जर्जर ढांचे को लगातार ठीक करने में लगी मोदी सरकार ने चीन सीमा पर लम्बी गस्त के लिए सुरक्षा वलो को महंगी और अत्याधुनिक SUB उपलब्ध कराई है ..ये सिर्फ एक बानगी भर है .इन इलाको में मिलिट्री ढाँचे के तीव्र विकास के साथ वेहतरीन हथियार प्रणालियाँ स्थापित की जा रही है !!!
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कड़वे प्रवचन के लिए मशहूर जैन मुनि तरुण सागर ने कहा है कि पाकिस्तान में जितने आतंकवादी नहीं है, उससे ज्यादा हमारे देश में गद्दार हैं. जैन मुनि ने सीकर जिले के पिपराली के वैदिक आश्रम में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए यह बयान दिया.

उन्‍होंने कहा कि देश में रहता हो, देश का खाता हो और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता हो वो गद्दार नहीं तो और क्या है. आतंकवादी शेर की तरह सामने से वार नहीं करता है, वह तो भेड़िये की तरह पीछे से हमला करता है.

जैन मुनि ने देश में व्याप्त विसंगतियों पर चोट करते हुए कहा, 'लोग कहते हैं भारत गरीब देश है, जबकि भारत गरीब नहीं है. मेरा मानना है कि देश में गरीबी नहीं गैर बराबरी है.'

उन्होंने अपने कड़वे प्रवचनों के सवाल पर कहा, 'कड़वाहट उनके प्रवचनों में नहीं, हमारे समाज और लोगों के आपसी संबंधों में घुल गई है. इसलिए उनके प्रवचन कड़वे लगते हैं.'
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इस वक्त मोदी सरकार चीन की भी दुश्मन है और कांग्रेस की भी दुश्मन है, मोदी सरकार को ना तो चीन देखना चाहता है और ना ही कांग्रेस देखना चाहती है, जिस प्रकार दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है उसी प्रकार से चीन ने भी कांग्रेस से दोस्ती करने की योजना बनायी है,
अब चीन भारत की कांग्रेस पार्टी से दोस्ती करके उसे बताएगा कि मोदी सरकार का विरोध कैसे करना है। इसी मकसद से चीन ने कांग्रेस को निमंत्रण भेजा है और कांग्रेस भी चीन जाने के लिए तैयार हो गयी है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के निमंत्रण पर 15 जनवरी से एक सप्ताह के लिए चीन के दौरे पर जाएगा।पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कुमारी शैलजा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजीव शंकरराव सातव और सुष्मिता देव सहित कई नेता इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे।
पहले कांग्रेस पाकिस्तान से खुला मदद मांग चुकी है की भारत की सत्ता से नरेन्द्र मोदी को हटाने में मदद करो अब कांग्रेस चीन से मोदी को हटाने के लिए गुरुमंत्र लेगी पाकिस्तान हो, चीन हो या हो कांग्रेस, भारत के सारे दुश्मन नरेन्द्र मोदी से परेशान है
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गौ मांस के साथ पकड़ा गया कांग्रेस का कार्यकर्ता अहमदाबाद मैं मंदिर ले जा रहा था दंगा कराने के लिए अब तो आंखें खोलिए यह सिर्फ कांग्रेस का एजेंडा है यह हम सब भाइयों को आपस में लड़ा कर राज करना चाहते हैं शान से बोलो हम भारतीय हैं
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भगवान परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक मुनि थे। उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज
इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और
शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
राजा रवि वर्मा द्वारा परशुराम जी का चित्र।
वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने
भीष्म , द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया,
अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।
पौरोणिक परिचय

महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से २१ बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे। उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है नाकि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
यह भी ज्ञात है कि परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीँ (वह शिक्षा जो ८ वर्ष से कम आयु वाले बालको को दी जाती है)। वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँख्वार वनैले पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।
उन्होंने सैन्यशिक्षा केवल ब्राह्मणों को ही दी। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं जैसे भीष्म और कर्ण ।
उनके जाने-माने शिष्य थे -
1. भीष्म
2. द्रोण , कौरव-पाण्डवों के गुरु व
अश्वत्थामा के पिता एवं
3. कर्ण।
कर्ण को यह ज्ञात नहीं था कि वह जन्म से क्षत्रिय है। वह सदैव ही स्वयं को शुद्र समझता रहा लेकिन उसका सामर्थ्य छुपा न रह सका। उन्होन परशुराम को यह बात नही बताई की वह शुद्र वर्ण के है। और भगवान परशुराम से शिक्षा प्राप्त कर ली। किन्तु परशुराम वर्ण व्यवस्था को अनुचित मानते थे। यदि कर्ण उन्हे अपने शुद्र होने की बात बता भी देते तो भी भगवान परशुराम कर्ण के तेज और सामर्थ्य को देख उन्हे सहर्ष शिक्षा देने को तैयार हो जाते। किन्तु जब परशुराम को इसका ज्ञान हुआ तो उन्होंने कर्ण को यह श्राप दिया की उनका सिखाया हुआ सारा ज्ञान उसके किसी काम नहीं आएगा जब उसे उसकी सर्वाधिक आवश्यकता होगी। इसलिए जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने सामने होते है तब वह अर्जुन द्वारा मार दिया जाता है क्योंकि उस समय कर्ण को ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान ध्यान में ही नहीं रहा।
इतिहास
जन्म
प्राचीन काल में कन्नौज में गाधि नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्चात् वहाँ भृगु ऋषि ने आकर अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करना और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो उसने अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्ति से भृगु को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने भृगु से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुए जिनके नाम थे - रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम।
माता पिता भक्त परशुराम
श्रीमद्भागवत में दृष्टान्त है कि गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी।
अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद एवं उन्हें बचाने हेतु आगे आये अपने समस्त भाइयों का वध कर डाला। उनके इस कार्य से प्रसन्न जमदग्नि ने जब उनसे वर माँगने का आग्रह किया तो परशुराम ने सभी के पुनर्जीवित होने एवं उनके द्वारा वध किए जाने सम्बन्धी स्मृति नष्ट हो जाने का ही वर माँगा।
पिता जमदग्नि की हत्या और परशुराम का प्रतिशोध
Parasurama killing Sahasrarjuna.jpg सहस्त्रार्जुन से युद्धरत परशुराम का एक चित्र
कथानक है कि हैहय वंशाधिपति कार्त्तवीर्यअर्जुन (सहस्त्रार्जुन) ने घोर तप द्वारा भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाएँ तथा युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया था। संयोगवश वन में आखेट करते वह जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुँचा और देवराज इन्द्र द्वारा उन्हें प्रदत्त कपिला कामधेनु की सहायता से हुए समस्त सैन्यदल के अद्भुत आतिथ्य सत्कार पर लोभवश जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया।
कुपित परशुराम ने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएँ काट डालीं व सिर को धड़ से पृथक कर दिया। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप परशुराम की अनुपस्थिति में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। रेणुका पति की चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस काण्ड से कुपित परशुराम ने पूरे वेग से महिष्मती नगरी पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे इक्कीस बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया। यही नहीं उन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के रुधिर से स्थलत पंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर भर दिये और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका।
इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।
हैहयवंशी क्षत्रियों का विनाश
माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार हैहयवंशी क्षत्रियों को समूल नष्ट किया था। क्षत्रियों का एक वर्ग है जिसे हैहयवंशी समाज कहा जाता है यह समाज आज भी है। इसी समाज में एक राजा हुए थे सहस्त्रार्जुन। परशुराम ने इसी राजा और इनके पुत्र और पौत्रों का वध किया था और उन्हें इसके लिए 21 बार युद्ध करना पड़ा था।
कौन था सहस्त्रार्जुन ?: सहस्त्रार्जुन एक चन्द्रवंशी राजा था जिसके पूर्वज थे महिष्मन्त। महिष्मन्त ने ही नर्मदा के किनारे महिष्मती नामक नगर बसाया था। इन्हीं के कुल में आगे चलकर दुर्दुम के उपरान्त कनक के चार पुत्रों में सबसे बड़े कृतवीर्य ने महिष्मती के सिंहासन को सम्हाला। भार्गव वंशी ब्राह्मण इनके राज पुरोहित थे। भार्गव प्रमुख जमदग्नि ॠषि (परशुराम के पिता) से कृतवीर्य के मधुर सम्बन्ध थे। कृतवीर्य के पुत्र का नाम भी अर्जुन था। कृतवीर्य का पुत्र होने के कारण ही उन्हें कार्त्तवीर्यार्जुन भी कहा जाता है। कार्त्तवीर्यार्जुन ने अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था। भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन या सहस्रबाहु कहा जाने लगा। सहस्त्रार्जुन के पराक्रम से रावण भी घबराता था।
युद्ध का कारण: ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्त्रार्जुन की मति मारी गई थी। सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की सभी भुजाएँ कट गईं और वह मारा गया।
तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया-"मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूँगा"। उसके बाद उन्होंने अहंकारी और दुष्ट प्रकृति के हैहयवंशी क्षत्रियों से 21 बार युद्ध किया। क्रोधाग्नि में जलते हुए परशुराम ने सर्वप्रथम हैहयवंशियों की महिष्मती नगरी पर अधिकार किया तदुपरान्त कार्त्तवीर्यार्जुन का वध। कार्त्तवीर्यार्जुन के दिवंगत होने के बाद उनके पाँच पुत्र जयध्वज, शूरसेन, शूर, वृष और कृष्ण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे।
दन्तकथाएँ
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथानक मिलता है कि कैलाश स्थित भगवान शंकर के अन्त:पुर में प्रवेश करते समय गणेश जी द्वारा रोके जाने पर परशुराम ने बलपूर्वक अन्दर जाने की चेष्ठा की। तब गणपति ने उन्हें स्तम्भित कर अपनी सूँड में लपेटकर समस्त लोकों का भ्रमण कराते हुए गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन कराके भूतल पर पटक दिया। चेतनावस्था में आने पर कुपित परशुरामजी द्वारा किए गए फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दाँत टूट गया, जिससे वे एकदन्त कहलाये।
रामायण काल
एक पौरोणिक चित्र: श्रीराम (दायें) और परशुराम (बाएँ)
उन्होंने त्रेतायुग में रामावतार के समय शिवजी का धनुष भंग होने पर आकाश-मार्ग द्वारा मिथिलापुरी पहुँच कर प्रथम तो स्वयं को "विश्व-विदित क्षत्रिय कुल द्रोही" बताते हुए "बहुत भाँति तिन्ह आँख दिखाये" और क्रोधान्ध हो "सुनहु राम जेहि शिवधनु तोरा, सहसबाहु सम सो रिपु मोरा" तक कह डाला। तदुपरान्त अपनी शक्ति का संशय मिटते ही वैष्णव धनुष श्रीराम को सौंप दिया और क्षमा याचना करते हुए "अनुचित बहुत कहेउ अज्ञाता, क्षमहु क्षमामन्दिर दोउ भ्राता" तपस्या के निमित्त वन को लौट गये। रामचरित मानस की ये पंक्तियाँ साक्षी हैं- "कह जय जय जय रघुकुलकेतू, भृगुपति गये वनहिं तप हेतू"। वाल्मीकि रामायण में वर्णित कथा के अनुसार दशरथनन्दन श्रीराम ने जमदग्नि कुमार परशुराम का पूजन किया और परशुराम ने रामचन्द्र की परिक्रमा कर आश्रम की ओर प्रस्थान किया।
जाते जाते भी उन्होंने श्रीराम से उनके भक्तों का सतत सान्निध्य एवं चरणारविन्दों के प्रति सुदृढ भक्ति की ही याचना की थी।
महाभारत काल
भीष्म द्वारा स्वीकार न किये जाने के कारण अंबा प्रतिशोध वश सहायता माँगने के लिये परशुराम के पास आयी। तब सहायता का आश्वासन देते हुए उन्होंने भीष्म को युद्ध के लिये ललकारा। उन दोनों के बीच २३ दिनों तक घमासान युद्ध चला। किन्तु अपने पिता द्वारा इच्छा मृत्यु के वरदान स्वरुप परशुराम उन्हें हरा न सके।
परशुराम अपने जीवन भर की कमाई ब्राह्मणों को दान कर रहे थे, तब द्रोणाचार्य उनके पास पहुँचे। किन्तु दुर्भाग्यवश वे तब तक सब कुछ दान कर चुके थे। तब परशुराम ने दयाभाव से द्रोणचार्य से कोई भी अस्त्र-शस्त्र चुनने के लिये कहा। तब चतुर द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं आपके सभी अस्त्र शस्त्र उनके मन्त्रों सहित चाहता हूँ ताकि जब भी उनकी आवश्यकता हो, प्रयोग किया जा सके। परशुरामजी ने कहा-"एवमस्तु!" अर्थात् ऐसा ही हो। इससे द्रोणाचार्य शस्त्र विद्या में निपुण हो गये।
परशुराम कर्ण के भी गुरु थे। उन्होने कर्ण को भी विभिन्न प्रकार कि अस्त्र शिक्षा दी थी और ब्रह्मास्त्र चलाना भी सिखाया था। लेकिन कर्ण एक सूत का पुत्र था, फिर भी यह जानते हुए कि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही अपनी विधा दान करते हैं, कर्ण ने छल करके परशुराम से विधा लेने का प्रयास किया। परशुराम ने उसे ब्राह्मण समझ कर बहुत सी विद्यायें सिखायीं, लेकिन एक दिन जब परशुराम एक वृक्ष के नीचे कर्ण की गोदी में सर रखके सो रहे थे, तब एक भौंरा आकर कर्ण के पैर पर काटने लगा, अपने गुरुजी की नींद में कोई अवरोध न आये इसलिये कर्ण भौंरे को सेहता रहा, भौंरा कर्ण के पैर को बुरी तरह काटे जा रहा था, भौरे के काटने के कारण कर्ण का खून बहने लगा। वो खून बहता हुआ परशुराम के पैरों तक जा पहुँचा। परशुराम की नींद खुल गयी और वे इस खून को तुरन्त पहचान गये कि यह खून तो किसी क्षत्रिय का ही हो सकता है जो इतनी देर तक बगैर उफ़ किये बहता रहा। इस घटना के कारण कर्ण को अपनी अस्त्र विद्या का लाभ नहीं मिल पाया।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार गुरु परशुराम कर्ण की एक जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे। तभी एक बिच्छू कहीं से आया और कर्ण की जंघा पर घाव बनाने लगा। किन्तु गुरु का विश्राम भंग ना हो, इसलिये कर्ण बिच्छू के दंश को सहता रहा। अचानक परशुराम की निद्रा टूटी और ये जानकर की एक ब्राम्हण पुत्र में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती कि वो बिच्छू के दंश को सहन कर ले। कर्ण के मिथ्याभाषण पर उन्होंने उसे ये श्राप दे दिया कि जब उसे अपनी विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, तब वह उसके काम नहीं आयेगी।
विष्णु अवतार
भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज
इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को विश्ववन्द्य महाबाहु परशुराम का जन्म हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे।
कल्कि पुराण
कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम,
भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे।
मार्शल आर्ट में योगदान
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली
वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। [1] वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है।
बाहरी स्रोत
सुखसागर के सौजन्य से
आदर्श ब्रह्मचारी, अतुल पराक्रमी श्री परशुराम अमर उजाला पर
भारत और पाकिस्तान के बीच पेचीदा रिश्ते पिछले कुछ सालों में और भी तल्ख हुए हैं। दो साल यानी 1 जनवरी 2014 से 31 दिसंबर 2015 के बीच जितने भी पाकिस्तानी नागरिकों को विभिन्न श्रेणियों में भारत का वीजा दिया गया था, उनमें के 28 फीसद इसके खत्म होने के बाद भी अवैध रूप से भारत में रुके रहे। यह आंकड़े केंद्र सरकार ने बुधवार को राज्यसभा में सबके सामने रखे।
कुल संख्या की बात करें तो 48,510 पाकिस्तानी नागरिक जो पिछले दो साल में वीजा खत्म होने के बाद भी भारत में रुके रहे, उनमें से 25 फीसद यानी 12,200 को साल 2015 के अंत में जबरन स्वदेश भेजा गया। राज्यसभा में तारांकित प्रश्न के जवाब में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि 36,310 पाकिस्तानी नागरिक अब भी ऐसे हैं, जिनका वीजा खत्म हो गया है और वे अब भी भारत में रह रहे है
2014 में भारत ने 94,993 पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा जारी किया, जबकि 2015 में यह संख्या घटकर 77,543 रह गई। दूसरी तरफ रिजिजू ने बताया कि साल 2014 में 6,52,919 बांग्लादेशी नागरिकों को वीजा जारी किया गया था, जबकि साल 2015 में 7,51,044 बांग्लादेशियों को वीजा जारी किए गए।
उन्होंने बताया कि 1 जनवरी 2014 से 31 दिसंबर 2014 के बीच 20,870 बांग्लादेशी नागरिक वीजा खत्म होने के बाद भी गैरकानूनी तरीके से भारत में रुके। इस दौरान 8387 बांग्लादेशियों को वापस उनके देश भेजा गया।
रिजिजू ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां वीजा खत्म होने के बाद भी गैरकानूनी तरीके से भारत में रह रहे विदेशी नागरिकों पर नजर बनाए रखती हैं। ऐसे मामले जहां वीजा खत्म होने के बाद भी रुकना बिना किसी पूर्व योजना के हो या गलती से ऐसा हुआ हो, उन स्थितियों में फीस वसूलकर वीजा अवधि बढ़ा दी जाती है
बता दें की भारत में बहुत से पाकिस्तानियों को भारतीय  कट्टरपंथियों ने भी शरण दी हुई है
और ये लोग भारत के खिलाफ गतिविधियां भी करते है, ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है

sanskar

श्री उमा माहेश्वर मंदिर कुरनूल आंध्र प्रदेश ....15 वी शताब्दी में विजयनगर के महाराजा द्वारा निर्मित यह मंदिर पहाड़ों को काटकर बनाया गया है और बेहद खूबसूरत मंदिर है इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि हर 20 साल में मंदिर के नंदी का साइज 2 इंच बढ़ जाता है और इसका सबूत यह है कि मात्र 80 साल पहले तक इस मंदिर में लोग परिक्रमा करते थे लेकिन अब नंदी का साइज इतना बड़ा हो गया है अब परिक्रमा पथ को नंदी ने ढक लिया है जिसकी वजह से परिक्रमा नहीं हो सकती
वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके यह बताया कि नंदी जिस पत्थर से बना है वह खास पत्थर है जिसके मॉलिक्यूल्स रिएक्शन करके साइज में बढ़ते जा रहे हैं...
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रसूलन बाई की अमर कहानी

1965 में पाकिस्तान के पास ऐसी ताकत थी जिसका मुकाबला करना भारत की थल सेना के लिए लगभग असंभव सा माना जाता था

पाकिस्तान के पास थी पैटन टैंक जिसको हराना नामुमकिन था

लेकिन लड़ाई शुरु हो चुकी थी भारत की शुरवीर सेना को इस राक्षस का सामना करना ही था ऐसे में 32 साल के एक नवयुवक ने रणभूमि में ऐसा कारनामा कर दिखाया कि पैटन टैंकों की धज्जियां उड़ गई

उसने अकेले ही रणभूमि में हथगोले से पैटन टैंकों का सामना किया और 8टैंको को तोड़ दिया दुनिया के थल सेना के इतिहास में ऐसी घटना अभूतपूर्व थी और हैं

इससे न सिर्फ पाकिस्तान की सेना का मनोबल गिर गया लेकिन पैटन टैंक की अपनी प्रतिष्ठा भी धूल में मिल गई

इस जवान की पत्नी रसूलन बाई उसके घर पर बैठी इंतजार करती रही और यह नौजवान रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गया

देश ने इस जवान को परमवीर चक्र से नवाजा लेकिन समय के साथ इस जवान के पराक्रम को देश भूलता चला गया आज की पीढ़ी को शायद ही इस शुरवीर का नाम मालूम हो

उसका नाम था अब्दुल हमीद

लेकिन रसूलन बाई अपने पति को कैसे भूलती? हर साल के माफिक इस साल भी वह अपने पति को श्रद्धांजलि देने पहुंची

अगर आप सच्चे देशभक्त है तो अमर शहीद हमीद की यह कहानी अपने सारे दोस्तों को और खासकर बच्चों को जरूर बताएं।

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एकता बिष्ट.. !! 10 ओवर, 18 रन, 5 विकेट ..! 

भारतीय वुमन टीम ने वर्ल्डकप में पाक को कुचल दिया !




Tuesday 27 June 2017

जिस युसुफ_शाह उर्फ सैय्यद सलाहुद्दीन (हिजबुल मुजाहिदीन का चीफ और यूनाईटेड जेहाद काऊंसिल का चीफ) को वैश्विक इस्लामिक आतंकवादी घोषित किया जा रहा है, वो पहले कांग्रेस पोषित मुस्लिम यूनाईटेड़ फ्रंट के उम्मीदवार के तौर पर 1987 का चुनाव लड चुका है ...
 सैय्यद सलाहुद्दीन उधर पाकिस्तान में फंड इकट्ठा करते पल रहा है, और यहाँ भारत में उसके पांचों बेटे सरकारी नौकरी करते मजे से पल रहे हैं। सबसे बड़ा बेटा शकील युसुफ श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंस में मेडिकल सहायक है। दूसरा बेटा जावेद युसुफ शिक्षा विभाग में कम्यूटर ऑपरेटर है। तीसरा बेटा शाहिद युसुफ शेर-ए-कश्मीर एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय में शोधार्थी(? ) है। चौथा बेटा वाहिद युसुफ शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंस में डॉक्टर है। वहीं सबसे छोटा बेटा मुईद युसुफ कश्मीर के उद्यमिता विकास संस्थान में नौकरी करता है।
 ईरान व पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद निर्माता - सैय्यद अलीशाह गिलानी, मीरवाईज उमर फारूख, सैय्यद सलाहुद्दीन जैसे गलीज लोग खुलेआम सरकारी सुविधाऐं पाते , सरकारी सुरक्षा में, सरकारी पैसों पर ऐश करते हुऐ पाकिस्तान जिन्दाबाद, कश्मीर की आजादी के नारे लगाते हुऐ इंडिया और इंडियन डॉग्स को गालियाँ देते होटलों में घूमते व इलाज कराते रहते हैं।
मामला जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित है ...
 भारत को दो भागों में बांटकर एक को भारत तो दूसरे को पाकिस्तान नाम दिया गया था। पाकिस्तान के बनते ही पाकिस्तान के कायदे आज़म के इशारों पर कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला बोल दिया था जिसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में पहली जंग लड़ने की इज़ाज़त दे थी और भारतीय सेना ने एक के बाद एक कई बड़ी विजयों को हासिल करते हुए लगातार कश्मीर में पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों की टुकड़ियों को पीछे धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी।

लेकिन तभी जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने किया था उसने न केवल सरदार वल्लभभाई पटेल को स्तब्ध कर दिया था बल्कि बाद में कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम का प्रमुख कारण बना और हिन्दुस्तान के लिए पिछले 69 सालों से भारत के लिए एक सर दर्द।सरदार वल्लभभाई पटेल आज़ादी के बाद असम का दौरा करना चाहते थे असम के आस-पास के कई जिलों को पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश में मिला दिया गया था ।ऐसे में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द कर सबसे पहले अपना असम का दौरा तय किया और वे वहां पहुंचे। असम में सरदार लगातार 4 दिनों तक रहे 
सरदार की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर नेहरु संयुक्तराष्ट्र पहुँच गए –
 इसी समय अच्छा अवसर जानकार प्रधानमंत्री नेहरु ने जम्मू-कश्मीर की समस्या को लेकर संयुक्तराष्ट्र संघ चले गए। नेहरु को यह अच्छी तरह से पता था कि यदि सरदार को इस बात की भनक भी लग गयी थी वे कभी भी इसकी न ही इज़ाज़त देंगे और न ही इसका वे समर्थन ही करेंगे और उनके (सरदार वल्लभभाई पटेल) के समर्थन के बगैर नेहरु के लिए केंद्र सरकार में पत्ता भी हिला पाना असंभव था। अतः उन्होंने ने सरदार की अनुपस्थित का फायदा उठाते हुए जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर संयुक्तराष्ट्र संघ की अदालत पहुँच गए।
जब सरदार अपने 4 दिनों के असम के प्रवास को ख़त्म कर दिल्ली वापस आये और उन्हें यह पता चला कि कि जवाहरलाल नेहरु ने उनकी अनुपस्थित का लाभ उठाते हुए ऐसा किया है तो वे एकदम स्तब्ध रह गए मानों उनके पैरों के नीचे से किसी जमीन ही खींच ली हो।
पूरी दुनिया में लौहपुरुष के नाम से प्रसिद्द ब्यक्ति जिसने दुनिया दारी के हर तूफ़ान का डट कर सामना किया था अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के हर नापाक इरादे को नाकाम किया था आज वह सरदार एक दम हताश हो चुके थे। हताशा से भरे हुए गमगीन और दुखी मुद्रा में सरदार ने कहा कि, ‘जिले स्तर का एक सामान्य वकील भी यह जानता है कि यदि फरियादी के रूप में आप अदालत में जाकर खड़े होते है तो समग्र मुकदमा सिद्ध करने की जिम्मेदारी आपकी ही हो जाती है, आरोपी को तो बस इसे केवल नकार देना होता है।
सरदार ने आगे कहा कि, ‘जवाहरलाल ने इतनी जबरदस्त गलती की है कि है कि एक दिन वे बहुत पछतायेंगे और खून के आँशु रोयेगा।
फोटो मे जो सैनिक दिख रहें हैं, इनका नाम है डी.रामाकृष्ण..!! मेरे साथ अभी दिल्ली से चेन्नई जा रही तमिलनाडु एक्सप्रेस मे यात्रा कर रहें हैं..!! इनकी तैनाती कश्मीर के “तंगधार" मे है..!!
जहां बी एस एफ का हैड-क्वार्टर है.. लेकिन इनकी ड्यूटी वहां से चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर है..!!
जहां सांस लेने के लिये , ऑक्सीजन भी तोल कर मिलती है..!!
राम-कृष्ण जी घर जा रहे हैं ... छुट्टी पर..!! जो कि आन्ध्र-प्रदेश के ईस्ट-गोदावरी जिले मे है...!!
तीन दिन पहले निकले थे, छुट्टी पर..!! एक दिन की पैदल यात्रा कर तंगधार हैड-क्वार्टर पहुंचे..!! हैड-क्वार्टर से श्री नगर ..श्री नगर से जम्मू होते हुए नई-दिल्ली स्टेशन पहुंचे..गाड़ी डिपार्चर से एक घंटा पहले..!!!
इनका रिजर्वेशन नहीं था..तो नई दिल्ली स्टेशन पर किसी ऐजेंट के झांसे मे आ गए..!! वो इनको “अजमेरी गेट" साईड , नजदीक के ऑफिस मे ले गया..!! उसने पहले तो इनको थर्ड एसी का टिकिट दो-चार सौ एक्स्ट्रा चार्ज पर उपलब्ध कराने की बात कही..!!
ये कहकर हजार रुपये लिये.. फिर इनसे इनका आईडेंटिटि कार्ड लिया.. रिजर्वेशन के बहाने..!!
थौड़ी देर के बाद , वो इनसे साढ़े बारह हजार रूपये की डिमांड करने लगा..!!
जो कि राम-कृष्ण जी ने सिरे से खारिज कर दिया..ये कहकर कि इतनी तो फ्लाईट की टिकिट भी नहीं होती..!! आप मुझे स्लीपर की टिकिट अरेंज कर दीजीये..!!
फिर उसने , एक सैकंड-स्लीपर की टिकिट थमा दी..!! और टोटल छ:हजार मांगने लगा..!!
इन्होने कहा.. मुझे नहीं चाहिये टिकिट..!!
लेकिन फिर वो और उसके चेले (जो पहले से वहां मौजूद थे) इन्हे धमकी देने लगे कि, आपका आई-कार्ड नहीं देंगे..!!
उधर, गाड़ी छूटने का समय हुआ जा रहा था..!!
राम-कृष्ण जी, बुरी तरह फंस चुके थे.. लड़ाई-झगड़ा करते तो भी कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा था..!! रात का समय था, अकेले थे, ढेर सारा लगेज भी था..हिंदी भी काम-चलाऊ बोल पीतें हैं..!!
ऐसा नहीं है कि ये उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे, लेकिन गाड़ी के समय और हालात ने इन्हे लाचार कर दिया..!!
छुट्टी पर घर लौटते सैनिक की मनो-स्थिति आप अच्छी तरह समझ सकतें हैं, और खास कर उस सैनिक की, जो तंगधार जैसी दुनिया की सबसे दुर्गम परिस्थितियों मे तैनात हो..!!
तीन दिन की लगातार यात्रा ने राम-कृष्ण जी को पहले ही पस्त कर रखा था, ऊपर से आई-कार्ड जाने के डर से हालात से समझोता करना पड़ा..!!
बहरहाल.. राम-कृष्ण जी ने रुपये देकर , पीछा छुड़ाना ही मुनासिब समझा..!! उस हरामखोर ने इनका कार्ड पड़ोसी की स्वाईप मशीन मे स्वाईप किया..!! जिस पर “श्री बाला जी टेलिकोम” का नाम छपा है (आप सलग्न फोटो मे रशीद देख सकतें हैं)
(अब , दिल्ली के मित्रों को ये पता लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा कि वो कौन था..!!
जैसा कि राम-कृष्ण जी बता रहें हैं, नई-दिल्ली स्टेशन पर अजमेरी गेट साईड CRPF की चोकी के नजदीक ही उसकी कोई दुकान नुमा ऑफिस है...!!!)
दो हजार रुपये कैश लिये और कार्ड ट्रांजैक्शन हुआ..3820का..!!
टोटल 5820 रूपये देश के उस वीर सैनिक के ठग लिये गये, जिसकी बदौलत वो हरामखोर, चैन की नींद सोता है..!!
ये स्लीपर की टिकिट लेकर, जैसे तैसे...गाड़ी छूटने से दो मिनिट पहले पहुंचे..!!
टी टी ई ने जब इनका टिकट चैक किया तो बोला कि ये सीट तो किसी महिला के नाम से बुक है..!!
अब राम-कृष्ण जी पूरी तरह सदमे मे आ गये..!! हम-आप भी ऐसी परिस्थिति मे, ऐसे ही डिप्रेशन मे जा सकतें हैं..!!
किसी तरह टी टी ई से बात करके इनको वो सीट मिल पाई..!!
इस पोस्ट से मेरा उद्देश्य एक तो ये है कि …
आप कभी भी ऐजेंटों के चक्कर मे ना फंसे...!! अपना एडवांस रिजर्वेशन करवा कर चलें, क्योंकि आप तंगधार जैसी जगह पर नहीं रहते,..आपके हाथ मे स्मार्ट फोन है..उसका अधिकाधिक उपयोग कीजीये...!!
रेलमंत्री के अथक प्रयासों से रेल यात्रा दिनो-दिन सुगम होती जा रही है..!!
और दूसरा उद्देश्य ..उस हरामखोर को किसी तरह दबोचा जाये ,जो हराम की कमाई के लिये, देश के सैनिक को भी नहीं छौड़ता..!! जबकि वर्तमान मे देश की जनता के मन मे इनके लिये अथाह सम्मान और आदर पनप रहा है..!! किसी तरह ये सूचना विभिन्न मंत्रालयों तक पहुंचे..!! हो सके तो प्रधान सेवक जी तक भी.. तांकि ऐसे लोगों की गांव कूटी जा सके..!!
हालांकि, राम-कृष्ण जी ने भी , मन बना लिया है कि घर से वाप स लौटने पर वो अपनी विकराल स्वरूप अवश्य दिखाऐंगे..!!
आप भी थौड़ा कर्तव्य निभाएं..देश के सैनिक को न्याय दिलवाएं..!!
बात छोटी नहीं है..उठी है तो दूर तक जायेगी..!!
लगाओ जोर..
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राम-कृष्ण जी का मोबाईल नंबर 9002473389

घुटने हाथ एड़ी और कमर के दर्द में आराम दिया आक ने ...

आक जिसको मदार, आकड़ा, अर्क, अकद, इत्यादि नामो से जाना जाता है, भारतीय चिकित्सा विज्ञान में अति प्राचीन काल से यह एक दिव्य औषिधि रही है. इसके बारे में एक बात प्रचलित है के यह सूर्य के तेज़ के साथ बढ़ता है और सूर्य के तेज़ कम होते होते इसका प्रभाव भी कम होता जाता है. और बारिश के दिनों में इस पौधे का प्रभाव बिलकुल खत्म जैसा हो जाता है. सूर्य के जितने नाम हैं उतने नाम ही आक के भी हैं.
इसकी वैसे तो 4 प्रजातियाँ हैं मगर मुख्यतः दो प्रजातियाँ ही पायी जाती है. दो प्रजातियाँ अति दुर्लभ हैं.
Calotropis procera इसको इंग्लिश में swallow wort कहते हैं. Calotropis giginata इंग्लिश में इसे giant milk weed कहते है. यह Asclepidaceae परिवार से है सामान्य भाषा में इनके नाम ऊपर बता ही दिए गए हैं.
वैसे तो आक ऐसा कोई रोग नहीं है जिसमे इसका उपयोग ना हो, यह भयंकर से भयंकर रोग में भी अपना विशेष असर दिखाता है. मगर हम आज इसके एक गुण जो के शरीरक दर्द को हरने का है, उस पर चर्चा करेंगे, के इसमें ऐसे क्या गुण पाए जाते हैं जिस कारण से ये अति विशेष है. आइये जानते हैं.
आक में पाए जाने वाले प्राकृतिक Steroid, Alkaloid, Triterpenoids, Cardenolides और Saponin glycoside पाए जाते हैं. आक में ये सब रसायन होने के कारण इसमें शरीर में हर हिस्से में दर्द को हरने की क्षमता पायी जाती है, Specially गठिया का दर्द, Arthritis का दर्द, कमर दर्द, एड़ी का दर्द, अर्थात Musculoskeltan यानी कोई भी मांस पेशियों और हड्डियों से सम्बंधित कैसा भी दर्द हो उसमे इसके निरंतर इस्तेमाल करने से आश्चर्यजनक परिणाम मिलते हैं.

सावधानी.

इन प्रयोग को करने से पहले आप ये ध्यान दें के इसके दूध की बूँद आँखों में नहीं जानी चाहिए अन्यथा आँखों में अंधापन आ सकता है.
आइये जानते हैं अभी विभिन्न दर्दों में विभिन्न प्रयोग.

एड़ी के दर्द में.

  1. आक के 15 फूलों को एक कटोरी पानी में उबाल लीजिये, इसको उबालने के बाद फूलों को और पानी को अलग अलग कर लीजिये, अभी इस पानी से जितना गर्म सह सके एड़ी को अच्छे से धुलाई करें. अभी इन फूलों को अच्छे से निचुड़ जाने के बाद कोई सूती कपडे की सहायता से एड़ी पर बाँध लों. और इसके ऊपर से जुराब और जूते पहन लें. ये प्रयोग आपको 10 से 15 दिन करें. काफी फर्क दिखने पर अगर ज़रूरत लगे तो इसको और भी continue कीजिये.
  2. आक के पत्ते को तवे पर गर्म कर लीजिये, इस पर हो सके तो तिल का तेल लगायें, आगर तिल का तेल ना मिले तो सरसों का तेल लगायें, अभी इस पत्ते को किसी कपडे की सहायता से एड़ी पर बाँध दीजिये, अभी इसको किसी चीज से गर्म सिकाव कीजिये, किसी ईंट या पत्थर को चूल्हे पर गर्म कर लीजिये, इतना गर्म कीजिये जितना आप सहन कर सको, इस को अभी पत्ते के ऊपर से ऐड़ी पर सिकाव कीजिये. इस से पत्ते के अन्दर के रसायन एड़ी के दर्द वाली जगह के अन्दर तक जायेंगे. और वहां पर तुरंत ही आराम का अहसास होगा ये प्रयोग भी आप 10 से 15 दिन करें. काफी फर्क दिखने पर अगर ज़रूरत लगे तो इसको और भी continue कीजिये.
  3. तीसरा सहज प्रयोग ये है के आक का दूध निकाल कर इसको एड़ी पर अच्छे से रगड़ें, इतना रगड़ें, के ये अन्दर तक अवशोषित हो जाए. थोड़े दिन ऐसा करने से इसमें आराम आ जायेगा. एक बार तो तुरंत भी असर दिखायेगा.

घुटनों के दर्द में.

  1. घुटनों के दर्द में दोपहर में आक की ताज़ी डंडी से दूध निकाल  कर इसको हलके हाथ से circular motion में मालिश करनी है जब तक ये पुरा अवशोषित न हो जाये . ऐसा दिन में दो बार करे ये प्रयोग भी आप 10 से 15 दिन करें. काफी फर्क दिखने पर अगर ज़रूरत लगे तो इसको और भी continue कीजिये.
  2. आक की ताजे पत्तो को तवे पर हल्का गर्म करे और उसके ऊपर सरसों या तिल का तेल लगाये और अब आप इसको घुटनों पर किसी सूती कपडे की सहायता से बांध ले और फिर इसका गर्म सिकाव करे

कमर के दर्द में .

आक के दूध को थोड़े काले तिलो के साथ खूब खरल कर लें. (खरल रसोई में पड़ी हुयी मसाला कूटने वाली को बोलते हैं) जब यह पतला लेप सा हो जाए तो उसे गर्म कर के दर्द वाले स्थान पर लगा कर अच्छे से मालिश करे जिस से ये तेल अब्सोर्ब हो जाए और इसके बाद आक के पत्ते पर तिल का तेल या सरसों का तेल चुपड कर तवे पर गर्म करके इसको दर्द वाले स्थान पर बाँध लें. इस से शीघ्र ही लाभ होगा.

इनमे कम करेगा काम.

  • अगर दर्द एनीमिया की वजह से हो.
  • फ्रैक्चर की वजह से दर्द हो – तो ये बहुत धीरे धीरे असर करेगा.
  • Osteoporosis – इसके लिए आपको इसके साथ में कैल्शियम का भी सेवन करना होगा. उसके बाद ही आपका दर्द आराम होगा.
  • Uncontrolled diabetes
उपरोक्त नुस्खे हमने खुद 4 मरीजों पर आजमाए और उन सबको 10 मिनट में सकारात्मक परिणाम मिलें हैं.

हिन्दुओ पर हो रहा अत्याचार, भारतीयों को तो नहीं पता पर अमरीका में पेश की गयी रिपोर्ट

बहुत तेज़ी से किया जा रहा है हिन्दुओं का दमन…!
सेकुलर हिन्दुओं की आँखें खोलने के लिए विश्व की सबसे पहली हिन्दू मानवाधिकार रपट जारी…!
हिन्दुओं के खिलाफ विधर्मियों के दमन, शोषण, अत्याचार और नरसंहार का एक लंबा इतिहास रहा है। विशेष रूप से उन मुल्कों में, जो इस्लामी छत्रछाया में पल रहे हैं या मजहबी राष्ट्र हैं। पाकिस्तान, बंगलादेश सहित भारत के जम्मू-कश्मीर प्रदेश में हिन्दुओं के विरुद्ध अत्याचार की मानो सभी हदें पार हो चुकी हैं।
अमरीका में बसे भारतवंशियों की संस्था हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन ने दुनियाभर में कार्यरत विभिन्न मानवाधिकार समूहों की उन तार्किक रपटों का अध्ययन किया है जिनमें हिन्दू नरसंहार, नस्लीय परिमार्जन, आतंकवाद और इस्लामी मजहबी कानूनों का शिकार हुए हैं। दक्षिण एशिया पर खास गौर किया गया है। इन विश्वसनीय और दस्तावेजी रपटों के गहन अध्ययन और विश्लेषण के बाद 71 पृष्ठ की एक विस्तृत रपट जारी की गई है।
विश्व में अपनी तरह की यह सबसे पहली रपट 13 जुलाई को अमरीका में एक कार्यक्रम में जारी की गई। रपट में पाकिस्तान, बंगलादेश और भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में हिन्दुओं के दमन का सिलसिलेवार विवरण दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि अमरीका में भारतवंशियों ने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में जिस तरह से अपनी एक खास जगह बनाई है उसी का परिणाम है कि अमरीकी नीति-निर्धारक हिन्दुओं की बातों और आकांक्षाओं की अनदेखी न करके उनके निराकरण का रास्ता तलाशने लगे हैं। हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन अमरीका में बसे 20 लाख हिन्दुओं का मंच है। यह दुनियाभर में हिन्दुओं से जुड़े मुद्दों पर नजर रखता है। हिन्दू अमरीकन फाउंडेशन के निदेशक मण्डल के सदस्य हैं मिहिर मेघानी, असीम आर.शुक्ला, निखिल जोशी और संजय गर्ग।
इस रपट पर पहली बार अमरीकी सांसदों ने भी खुलकर स्वीकारा है कि हिन्दुओं के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। भारत और अमरीकी भारतीयों के संसदीय “काकस” की अध्यक्ष इलियाना रोस लेहटिनन ने रपट पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि हिन्दुओं के विरुद्ध मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं की अब और अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। हिन्दू अन्य मत-पंथों व उनके अनुयायियों के प्रति हमेशा से ही मैत्रीभाव रखते आए हैं, फिर भी हिन्दू दशकों से तकलीफें और दर्द सहते आए हैं, दुनिया का भी उनकी पीड़ा की ओर कभी ध्यान नहीं गया।
सांसद गैरी एकरमन का कहना था कि यह रपट दुनियाभर में हिन्दुओं के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करेगी। यह रपट ऐसा वार्षिक प्रकाशन है जिसमें वे सब मानवीय त्रासदियां दस्तावेज के रूप में होंगी जिन पर अमरीकी विदेश विभाग, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्रूमन राइट्स वाच जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं गौर नहीं करतीं या अनदेखा कर देती हैं। हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन के कार्यकारी परिषद सदस्य रमेश राव के अनुसार, पिछले एक साल में ही बंगलादेश, पाकिस्तान और भारत के जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या, बलात्कार, यातनाओं आदि के 600 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं। हिन्दुओं के विरुद्ध अत्याचारों की अब और अनदेखी नहीं की जा सकती। यह संतोष की बात है कि अमरीकी संसद के नेता इस त्रासदी की असलियत जान गए हैं और इसके विरुद्ध आवाज बुलंद करने का मन बना चुके हैं।
रपट में बंगलादेश पर विशेष रूप से टिप्पणी की गई है जहां हिन्दू विरोधी कार्रवाइयों का लंबा इतिहास रहा है, जो बंगलादेश नेशनल पार्टी और जमाते-इस्लामी गठबंधन के उभार के बाद और बढ़ गई हैं। 1947 में वहां 30 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी, आज महज 10 प्रतिशत है। रपट आरोप लगाती है कि लगभग 2 करोड़ बंगलादेशी हिन्दुओं का कम होना वहां जारी नरसंहारों और बलात् पलायन को मजबूर करने का ही परिणाम है। हिन्दू अमरीकन फाउंडेशन के निदेशक मंडल के सदस्य डा. असीम शुक्ला कहते हैं कि बंगलादेश के हिन्दुओं के लिए यातना, भेदभाव और प्रत्यक्ष हिंसा एक भयानक वास्तविकता बन गई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बंगलादेश सरकार से वहां जारी पांथिक परिमार्जन और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के दमन पर जांच कराने की मांग करनी चाहिए।
इस हिन्दू मानवाधिकार रपट में पाकिस्तान और अल कायदा द्वारा प्रायोजित आतंकवाद पर खास चर्चा की गई है। भारत के जम्मू-कश्मीर प्रदेश में इस आतंकवाद ने हजारों हिन्दुओं का जीवन लील लिया है, लाखों को बेघरबार किया है और घाटी को हिन्दूविहीन कर दिया है। पाकिस्तान को भारत में आतंकवाद प्रायोजित करने का दोषी ठहराते हुए उसकी भत्र्सना की गई है। वहां लम्बे-चौड़े कुफ्र-विरोधी कानूनों के जरिए हिन्दुओं से मजहबी भेदभाव करने के सरकारी रवैए की चर्चा है। वहां गुलाम जैसी परिस्थितियों में हिन्दुओं से बंधुआ मजदूर की तरह व्यवहार करने की असंख्य घटनाओं की अनदेखी का पाकिस्तान सरकार पर आरोप लगाया गया है।
फाउंडेशन की कार्यकारी परिषद सदस्य और रपट तैयार करने में सहभागी शीतल डी. शाह का कहना है, हालांकि फाउंडेशन भारत-पाकिस्तान के बीच स्थाई शांति के प्रयासों का समर्थन करता है। लेकिन कश्मीर घाटी में हाल ही में हिन्दुओं के विरुद्ध हुईं घटनाओं के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है। वहां जुलाई में ही हिन्दुओं के एक प्रमुख मंदिर पर हमला निदंनीय है।
अमरीकी सांसदों से मिले समर्थन को लेकर फाउंडेशन में उत्साह है। रपट के पहलुओं पर अमरीकी संसद में प्रस्ताव लाने पर भी विचार किया गया है। सांसद लेहटिनन और सांसद एकरमन ने कहा कि इन मानवाधिकार के मुद्दों पर वे फाउंडेशन का सहयोग करते रहेंगे। सांसद लेहटिनन ने इस मुद्दे पर फाउंडेशन द्वारा गुंजाए गए आह्वान की प्रशंसा की। आइए अब एक नजर डालते हैं रपट में उल्लिखित उन चंद घटनाओं पर जो हिन्दुओं के विरुद्ध बर्बर, जिहादी मानसिकता की असलियत बताती हैं।
बंगलादेश में आतंक:
जनवरी से नवम्बर, 2004 के बीच यहां बंगलादेशी हिन्दुओं पर हमले की 400 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें हत्या, बलात्कार, अपहरण, मंदिर तोड़ने और शारीरिक हमले की वारदातें शामिल हैं। बंगलादेश में हिन्दुओं को “दुश्मन” की संज्ञा दी गई है। 1965 के शत्रु सम्पदा आदेश-2, जिसके तहत हिन्दुओं की सम्पदा को शत्रु सम्पदा के रूप में चिन्हित किया गया है, का नाम बदलकर 1972 में निहित सम्पदा कानून कर दिया गया, जिसके अंतर्गत बंगलादेश सरकार ने खुद में कथित शत्रु सम्पदा निहित कर ली है। यह आदेश आज भी लागू है और राष्ट्रपति द्वारा आदेशित इस कानून पर अभी तक न्यायिक पुनर्समीक्षा नहीं की गई है।
1947 में वहां कुल आबादी में 30 प्रतिशत हिन्दू थे। 1961 आते-आते हिन्दुओं की आबादी घटकर 19 प्रतिशत हो गई। 1974 के आंकड़ों में मात्र 14 प्रतिशत हिन्दू थे। 2002 की जनसंख्या में हिन्दुओं का प्रतिशत कुल जनसंख्या में महज 9 रह गया था। भारत में मुस्लिम जनसंख्या से अगर इसकी तुलना करें तो देखेंगे कि 1947 में जहां भारत में 10 प्रतिशत मुस्लिम थे, 2001 में उनका प्रतिशत बढ़कर 13.2 हो गया था। बंगलादेश में सन् 1991 तक 2 करोड़ हिन्दुओं का कोई रिकार्ड नहीं था या उन्हें “लापता” कह दिया गया था। बंगलादेश में सत्ता पर जबसे बी.एन.पी. और जमाते इस्लामी गठबंधन काबिज हुआ है तब से हिन्दुओं के विरुद्ध यातनाओं का एक अंतहीन सिलसिला चल रहा है। चूंकि बी.एन.पी. की प्रमुख विपक्षी पार्टी शेख हसीना की आवामी लीग को हिन्दू मत ज्यादा मिलते थे। अत: हिन्दुओं को राजनीतिक विद्वेष का शिकार भी होना पड़ा। बी.एन.पी. आवामी लीग पर “भारत की एजेंट” होने का आरोप लगाती रही है और इसी वजह से वह हिन्दुओं को निशाना बनाने को सही ठहराती रही है। उसका मानना है कि हिन्दुओं के अपने धार्मिक तीज-त्योहार मनाने से बंगलादेश के इस्लामी चरित्र पर खतरा मंडराने लगा है। बी.एन.पी. के नेतृत्व वाले गठबंधन में चार में से दो-जमाते इस्लामी और इस्लामी एक्य जोट-कट्टर मजहबी तंजीमें हैं। जैसा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने पाया है, ये तंजीमें ओसामा बिन लादेन की समर्थक हैं और बंगलादेश में तालिबान की तर्ज पर शासन चलाने की पैरवी करती रही हैं। बेगम खालिदा जिया की बी.एन.पी. का इनको सीधा समर्थन और इस्लामी कट्टरवाद की पैरवी और हिन्दू समाज पर उसके दुष्परिणाम, आज बंगलादेश में खुलेआम दिखते हैं।
बी.बी.सी. ने खबर दी थी कि मुस्लिम मजहबी स्कूल, जिन्हें मदरसा कहते हैं, दूसरे मत-पंथों के खिलाफ बच्चों के दिमाग में जहर भरते हैं। इसकी रपट में कहा गया, “हालांकि प्राइमरी स्तर पर अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे विषय तो रखे गए हैं, पर पाठक्रम में अब भी कुरान और मध्य एशियाई भाषाएं ही प्रमुख हैं। “पुराने छात्र तो बस यही पढ़ते हैं। पंद्रह साल का मोहम्मद जकारिया कुछ अलग ही किस्म का है। उसके पिता नारायणगंज के बाजार में कमीजें बेचते हैं और परिवार के पास पेट भरने लायक पैसा ही होता है।
मोहम्मद की तमन्ना मौलवी बनने की है। अपने एक कमरे के घर के बाहर बैठा मोहम्मद कहता है, “मैं इस्लाम का प्रचार करना चाहता हूं, मैं हिन्दुओं को मुसलमान बनाना चाहता हूं।”
8 सितम्बर, 2004 को द स्टेट्समैन ने भारतीय गुप्तचर संस्था “रॉ” के पूर्व अधिकारी बिभूति भूषण नंदी का एक लेख छापा था, जिसमें लिखा था, “2001 में बंगलादेश में चुनाव के बाद बी.एन.पी. और जमात के लोगों ने हिन्दुओं को खदेड़ बाहर करने का अभियान चलाया था। हत्या, लूट, फिरौती, दंगे और सामूहिक बलात्कार के रूप में दहशत फैलाई गई और बड़ी संख्या में हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया।”
अक्तूबर, 2004 में द डेली स्टार की रपट थी कि बागेरहाट हिन्दू वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा संचालित एक प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र में एक हिन्दू शिक्षिका का बंदूक की नोंक पर सामूहिक बलात्कार किया गया। बलात्कारी बी.एन.पी. की बागेरहाट शाखा से जुड़े थे। इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। नवम्बर, 2004 में दैनिक संगबाद अखबार ने दिनाजपुर जिले में कानन बाला की यातना का समाचार छापा था। छह लोगों ने कानन बाला को उसके घर से निकालकर पेड़ के साथ बांध दिया, उसके मुंह में कपड़ा ठूंस कर प्रताड़ित किया गया। कानन बाला ने जब पानी मांगा तो उन अत्याचारियों ने उसके मुंह पर कथित पेशाब किया। उनमें से एक को पकड़ लिया गया, पांच खुले घूमते रहे। नवम्बर 2004 में ही डेली स्टार ने एक अन्य घटना की खबर छापी जिसमें धारमाई गांव के हिन्दुओं की पीड़ा थी। जमीन पर कब्जा करने आए 30 हमलावरों ने आठ हिन्दुओं को बुरी तरह मारा। पुलिस अब तक उन्हें पकड़ नहीं पाई है। ऐसी और इसी तरह की कितनी ही घटनाएं सिलसिलेवार रूप से इस रपट में दी गई हैं।
पाकिस्तान में भेदभाव:
1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान में हिन्दू आबादी कुल आबादी की लगभग एक चौथाई थी। उदाहरण के लिए, 1947 में कराची की आबादी 4,50,000 थी जिसमें 51 प्रतिशत हिन्दू थे और 42 प्रतिशत मुस्लिम। 1951 में कराची की आबादी बढ़कर 11.370 लाख थी जिसमें भारत से पलायन करके गए 6,00,000 मुस्लिम भी शामिल थे। 1951 में वहां 96 प्रतिशत मुस्लिम थे और 2 प्रतिशत हिन्दू। 1998 आते-आते पूरे पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या 1.60 प्रतिशत रह गई। ताजा जनसंख्या सर्वेक्षण में तो हिन्दुओं की और घटी हुई संख्या दिखेगी। हिन्दुओं का अपहरण तो अब वहां लाखों डालर का उद्योग जैसा बन गया है। पाकिस्तान का संविधान पांथिक स्वतंत्रता की बात करता है। लेकिन व्यवहार में इस स्वतंत्रता पर सरकार ने सीमाएं बांधी हुई हैं। चूंकि स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान ने खुद को इस्लामी गणतंत्र घोषित किया था, इस्लाम आज उस देश की सोच का केन्द्रीय तत्व बना हुआ है। यही वजह है कि पांथिक स्वतंत्रता कानून, सार्वजनिक आदेश और नैतिकता इस्लाम के आईने में देखी जाती है। इस्लाम या इसके पैगम्बर के खिलाफ किसी भी तरह का भाषण अथवा कृत्य बर्दाश्त नहीं किया जाता। संविधान की मांग है कि कुछ कानून इस्लाम की हदों के भीतर रहें। यह बात अमरीकी विदेश विभाग की अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता पर 2004 में जारी रपट में लिखी गई है।
अक्तूबर, 2004 में द डान अखबार में अमीर जलाल ने लिखा कि पाकिस्तान के सिंध सूबे में “अपहरण आज आम चलन बन गया है, जहां सामने दिखने वाले अपराधियों की बजाय उनकी भूमिका ज्यादा संदिग्ध है जो दिखाई नहीं देते।”
नवम्बर, 2004 में प्रकाशित एक रपट “सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले विवाह समारोहों में दावत पर पाबंदी सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखी” पाकिस्तान में हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों पर काफी रोशनी डालती है। रपट में सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष था कि दावत देना और धन का बढ़-चढ़कर रुतबा दिखाना गैर-इस्लामी है। सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि ज्यादा लोकप्रिय रीति रिवाज हिन्दू मूल के हैं और निकाह के इस्लामी विचार से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इस फैसले से साफ हो गया कि पाकिस्तान में हिन्दुओं का दर्जा “विदेशी” या “बाहरी” का है और उनकी विरासत को वहां के सामाजिक रूप-रंग के आवश्यक तत्व के रूप में नकार दिया गया है।
बी.बी.सी. की रपट “लाइफ एज ए मार्डन स्लेव इन पाकिस्तान”, में कहा गया था कि दक्षिण पाकिस्तान के सिंध सूबे में करीब 20 लाख लोग “बंधुआ मजदूर” के रूप में जमींदारों से बंधे हुए हैं। यह तो तब की बात है जबकि 12 साल पहले ही पाकिस्तान इस चलन पर रोक लगा चुका था। इस चलन में था कि जमींदार अपने मजदूरों को कर्जे में बांध देते थे। यह कर्जा भी हजारों रु. का होता था जो कामगारों द्वारा असल में लिए गए उधार से कहीं ज्यादा था और इस तरह वे उनकी गुलामी के लिए मजबूर कर दिए जाते थे। आज भी वहां यही हो रहा है। ज्यादातर कामगार हिन्दू हैं।
बी.बी.सी. के “स्लेवरी टुडे” कार्यक्रम में शांति नामक महिला ने बताया, “कई लोगों के साथ मेरा भी अपहरण किया गया था। एक छोटे कमरे में मुझे बंद कर दिया। फिर उस जमींदार ने, जिसने अपहरण किया था, मुझसे जबरदस्ती की। “शांति ने बताया कि जिस जमींदार के लिए उसका परिवार काम करता था, उसी ने उसका अपहरण किया था। उसने यह भी बताया कि अपहरण के समय वह दो माह की गर्भवती थी। उसने आगे कहा, “जमींदार ने कहा था कि जब वह उसको अपने यहां रख लेगा तभी उसके (शांति के) घर वाले लौटकर यहां आएंगे। उसने मुझसे बलात्कार किया और कहा कि क्योंकि अब उसका परिवार यहां खेत पर काम नहीं करता इसलिए उसे मेरा बलात्कार करने का हक है।” पाकिस्तान में ऐसे कई कानून और कायदे हैं जिनके जरिए वहां गैर-मुस्लिमों के साथ बहुत भेदभाव किया जाता है। कुफ्र-विरोधी कानून का सहारा लेकर पैगम्बर-मोहम्मद की आलोचना के आरोप में बिना मुकदमा चलाए लम्बे समय के लिए जेल में बंद कर दिया जाता है। पासपोर्ट पर मजहब लिखना आवश्यक है। 1979 का हुदूद अध्यादेश (जिना का अपराध, कजफ का अपराध, कोड़े लगाने की सजा का अनुपालन), 1984 का कानून-ए-शहादत आदेश और 1991 का कैसास व दियात अध्यादेश (धारा 306 सी) जैसे कानून विशेष रूप से विभेदक हैं।
भारत (जम्मू-कश्मीर) में जारी है जिहाद:
कारगिल पुनर्समीक्षा समिति की रपट के अनुसार इस पूर्व रियासत का कुल क्षेत्रफल 85,807 वर्ग मील है। इसमें से 30,160 वर्ग मील पर पाकिस्तान का कब्जा है, जिसमें से शाक्सगम घाटी का 2000 वर्ग मील का हिस्सा 1963 में उसने चीन को सीमा निपटारे (जिसे भारत स्वीकार नहीं करता) के तहत दे दिया है। लद्दाख में करीब 14,500 वर्ग मील क्षेत्र आज चीन के कब्जे में है। यह पूर्व रियासत आज पांच क्षेत्रों- कश्मीर, जम्मू, लद्दाख, तथाकथित आजाद कश्मीर और उत्तरी इलाकों से मिलकर बनी है। प्रशासनिक तौर पर कश्मीर को छह जिलों में बांटा गया है, जिनका क्षेत्रफल 6,157 वर्गमील है और आबादी 40 लाख से कुछ ऊपर। जम्मू क्षेत्र भी छह जिलों और 10,151 वर्ग मील का है, आबादी है 30.6 लाख। लद्दाख के दो जिले, लेह और कारगिल हैं, क्षेत्रफल 37,337 वर्ग मील है और आबादी 1,71,000।
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने 3 लाख कश्मीरी हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया। कश्मीरी अलगाववादी मुस्लिमों द्वारा वहां किए गए नस्लीय परिमार्जन के कारण हिन्दुओं को अपने घर-बार छोड़कर दर-दर भटकना पड़ रहा है। आज ये 3 लाख कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं। दिल्ली, जम्मू आदि शहरों में विस्थापित शिविरों में जीवन बसर कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, हजारों हिन्दू कत्ल कर दिए गए हैं और हजारों अन्य हिन्दू पुलिस व सेनाकर्मी आतंकवाद में मारे गए हैं। आज घाटी में हिन्दू न के बराबर हैं, सबको बाहर खदेड़ा जा चुका है।
मानवाधिकार संगठनों का रवैया:
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2003 की अपनी रपट में बंगलादेश के हिन्दुओं के बारे में बस इतना कहा- “सन् 2001 में बंगलादेश सरकार ने हिन्दुओं के विरुद्ध हमलों, बलात्कार, आगजनी की जांच का जो वायदा किया था, उसकी कोई सूचना सार्वजनिक नहीं की गई है। हालांकि प्रशासन ने अक्तूबर में तीज-त्योहार के मौके पर हिन्दुओं की सुरक्षा के इंतजाम किए थे। “हिन्दू समाज पर हमले, संबंधी 2001 की इस संस्था की रपट में हिन्दू-पीड़ा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया था, लेकिन महज तीन साल बाद की रपट में बिगड़ते हालातों के बावजूद हिन्दुओं की स्थिति पर सरसरी टिप्पणी के सिवाय कुछ नहीं था।
अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता पर 2004 में आई अमरीकी विदेश विभाग की रपट में बंगलादेश की परिस्थितियों का तीखा विश्लेषण है। इसके अनुसार वहां हालांकि आमतौर पर नागरिकों को “अपने धर्म-पंथ पर चलने की छूट है, पर पुलिस साधारणत: कानून-व्यवस्था बनाए रखने में ज्यादातर नाकाम रहती है और पांथिक अल्पसंख्यकों, जो अपराधों के शिकार हुए हैं, की मदद में ढीली रही है। “हिन्दुओं पर हमलों के लिए यह रपट “दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कटुता” को दोषी ठहराती है। रपट में एक जगह कहा गया है कि सरकार ने “मत-पंथों के बीच समझ बढ़ाने के कुछ प्रयास किए हैं” और कि “सरकार ने दुर्गा पूजा, अक्तूबर 2003 का एक प्रमुख हिन्दू अवकाश दिन, को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने में सहयोग दिया है।”
पाकिस्तान के संदर्भ में 2003 की एमनेस्टी इंटरनेशनल की रपट में हिन्दुओं के विरुद्ध हमलों का जिक्र तक नहीं था। उसमें केवल इतना उल्लेख था कि “ईसाई और शिया मुस्लिमों सहित पांथिक अल्पसंख्यकों की महिलाओं, बच्चों के प्रति अत्याचार की घटनाओं की अनदेखी की जाती रही। “एक अन्य मानवाधिकारी संगठन यू.एन.सी.आई.आर.एफ. की रपट ने अहमदियाओं, शियाओं और ईसाइयों की पांथिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की तो चर्चा की, हिन्दुओं का कहीं जिक्र तक नहीं किया।
दक्षिण एशिया में हिन्दुओं के विरुद्ध हो रहीं घटनाओं और दमन का आलम यह है कि कोई देश उनके पक्ष में आवाज उठाने से कतराता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्रूमन राइट्स वाच या अन्य सरकारी आयोग, जैसे अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता पर अमरीकी आयोग आदि हिन्दुओं के मानवाधिकारों की कोई परवाह नहीं करते। वे हिन्दुओं के दमन की तरफ आंखें मूंदे रखते हैं।
समय की मांग:
हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन ने अपनी रपट के निष्कर्ष में कहा कि बंगलादेश में हिन्दुओं की स्थिति पर तुरंत गौर करने की आवश्यकता है। वहां उनकी संख्या घटती जा रही है। पाकिस्तान से भी हिन्दुओं को सताए जाने की खबरें पूरी तरह नहीं आ पा रही हैं। अल्पसंख्यक का दर्जा उन्हें निशाने पर बनाए हुए है। हिन्दुओं की संख्या अब हाशिए पर पहुंचा दी गई है। इसी तरह भारत (जम्मू-कश्मीर) में कश्मीर घाटी को हिन्दू-विहीन कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर का “विवादित क्षेत्र” का दर्जा कश्मीरी हिन्दुओं की स्थिति को प्रभावित करता रहेगा।