Monday 1 May 2017

युगों बाद भारतीय सिनेमा में भारत दिखा है



बाहुबली की सफलता के पीछे अगर सब से बड़ी कोई बात है तो वो है, उसमे किया गया हिंदुत्व का सम्मान !
 फिल्म शुरू होते ही गणेश जी की पूजा, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और भजन, जय भवानी का नारा, महादेव जी को किया गया रक्ताभिषेक और जलाभिषेक, संस्कृत में किया गया राज्याभिषेक, महिष्मति साम्र्याज्य का संस्कृत में राष्ट्रगान आदि कई प्रकार से हिंदुत्व का सम्मान किया गया है फिल्म में.

आज बॉलीवुड में pk जैसी घटिया मानसिकता से ग्रसित फिल्मे बनाकर पैसा कमाने का जैसे फैशन बन गया है. परन्तु साउथ की सभी फिल्मों में आज भी हिंदुत्व का, हमारी संस्कृति का सम्मान किया जाता है, जिन परम्पराओं का बॉलीवुड मजाक उड़ाकर लोगों की भावनाओं के साथ खेलता है, उन्ही हमारी महान परम्पराओं का सम्मान साउथ की हर फिल्म में बड़े आदर से दिखाया जाता है.
यानि साउथ की फिल्मों ने एक प्रकार से बॉलीवुड को करारा तमाचा मारा है और बता दिया है की लोगों की भावनाओं का सम्मान कर के भी पैसा कमाया जा सकता है.

एक और महत्वपूर्ण बात  अलग अलग प्रकार की युद्ध की रणनीतियां, व्यूह-रचनाए और एक्शन सीन्स... और ये सब रणनीतियां, एक्शन सीन्स आदि कभी किसी फिल्म में नहीं दिखाया गया था. मतलब हमें ये कही भी नहीं लगता की ये कही से कॉपी किया गया है... सभी बातों में बाहुबली फिल्म अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल होती है.दर्शक इस फिल्म से कनेक्ट हो जाता है. जैसे जैसे दृश्य हमारे सामने से गुजरते है वैसे वैसे कभी हमारे हाथों की मुठ्ठिया कस जाती है तो कभी हम क्रोध में दांत चबाने लग जाते है... मतलब कुल मिलकर हम कहानी में खो जाते है... और फिल्म शुरू होते है हम ये बात भूल ही जाते है की हमें ये जानना था की कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? जब वो सीन हमारे सामने आता है तब भी हमें आगे क्या होगा इसकी उत्सुकता लगी रहती है...  मतलब कुल मिलकर दर्शक इस फिल्म से जुड़ जाता है.. और जिस फिल्म के साथ दर्शक जुड़ जाता है उसे किसी रिव्यु की जरुरत नहीं रहती...

 फिल्म देखते समय आदमी सोचने लगता है कि निर्देशक ने भारतीय इतिहास का कितना गहन अध्ययन किया है। अगर
 भव्यता की बात करें तो बाहुबली भारतीय सिनेमा की अबतक की सबसे भव्य फिल्म ‘मुगलेआजम’ को बहुत पीछे छोड़ 
देती है। तीन घंटे की फिल्म देखते समय आप तीन सेकेण्ड के लिए भी परदे से आँख नही हटा सकते।
 नायक के रणकौशल को देख कर आपके मुह से अनायास ही निकल पड़ता है- वाह! यही था हमारा इतिहास। ऐसे ही रहे होंगे
 समुद्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ऐसे ही रहे होंगे प्रताप और शिवा, ऐसा ही रहा होगा बाजीराव। एक साथ धनुष से चार चार बाण चलाते 
बाहुबली और देवसेना का शौर्य आपको झूमने पर विवश कर देता है। 
तक्षक और पुष्यमित्र की कहानियां लिखते समय मेरे दिमाग में जो अद्भुत योद्धा घूमते रहते हैं, वे इस फिल्म में साक्षात् दीखते 
हैं। युद्ध के समय हवा में उड़ते सैनिकों का कौशल अकल्पनीय भले लगे, पर अतार्किक नही लगते बल्कि उसे देख कर आपको
 पुराणों में बर्णित अद्भुत युद्धकला पर विश्वास हो जाता है। युगों बाद भारतीय सिनेमा के परदे पर कोई संस्कृत बोलता योद्धा
 दिखा है। युगों बाद परदे पर अपने रक्त से रुद्राभिषेक करता योद्धा दिखा है। युगों बाद भारतीय सिनेमा में भारत दिखा है।
आपने विश्व सिनेमा में स्त्री सौंदर्य के अनेकों प्रतिमान देखे होंगे, पर आप देवसेना के रूप में अनुष्का को देखिये, मैं दावे के
 साथ कहता हूँ आप कह उठेंगे- ऐसा कभी नही देखा। 
 भारतीय फिल्मोद्योग के इतिहास की यह पहली फिल्म है जिसमे स्त्री अपनी पूरी गरिमा के साथ खड़ी दिखती है। यह पहली
 फिल्म है जिसमे प्रेम के दृश्योँ में भी स्त्री पुरुष का खिलौना नही दिखती। 
यहां महेश भट्ट जैसे देह व्यपारियों द्वारा परोसा जाने वाला प्रेम नहीं, बल्कि
 असित कुमार मिश्र की कहानियों वाला प्रेम दीखता है। यह पहली फिल्म है जिसने एक स्त्री की गरिमा के साथ न्याय किया है।
 यह पहली फिल्म है जिसने एक राजकुमारी की गरिमा के साथ न्याय किया है। देवसेना को उसके गौरव और मर्यादा की रक्षा
 के वचन के साथ महिष्मति ले आता बाहुबली जब पानी में उतर कर अपने कंधों और बाहुओं से रास्ता बनाता है और उसके
 कंधों पर चल कर देवसेना नाव पर चढ़ती है, तो बाहुबली एक पूर्ण पुरुष लगता है और दर्शक को अपने पुरुष होने पर गर्व
 होता है। देवसेना जब पुरे गर्व के साथ महिष्मति की सत्ता से टकराती है तो उसके गर्व को देख कर गर्व होता है।
प्रभास के रूप में फिल्मोद्योग को एक ऐसा नायक मिला है जो सचमुच महानायक लगता है, और राजमौली तो भारत के सर्वश्रेष्ठ
 फ़िल्मकार साबित हो ही चुके और अनुष्का, उसे यह एक फिल्म ही अबतक की सभी अभिनेत्रियों की रानी बना चुकी है।
 बाहुबली में यदि कुछ कमजोर है, तो वह है संगीत। पर इसमें राजमौली का कोई दोष नहीं, फ़िल्मी दुनिया में आज कोई ऐसा
संगीतकार बचा ही नहीं जो इस फिल्म लायक संगीत बना पाता। मैं सोच रहा हूँ कि काश! नौशाद या रवि जी रहे होते पर
 सबके बावजूद मैं इस फिल्म को दस में ग्यारह नम्बर दूंगा।
बाहुबली सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की गौरव गाथा है। आपको समय निकाल कर बड़े परदे पर यह फिल्म देखनी ही चाहिए।

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