Friday 10 February 2017

|| बैतूल हिन्दू सम्मेलन का सन्देश ||
८ फरवरी २०१७ बुधवार को बैतूल में सम्पन्न विराट हिन्दू सम्मेलन इतिहास में कई स्वर्णिम पृष्ठ जोड़कर गया है | इन पृष्ठों में सैंकडों-हजारों कार्यकर्ताओं के खून-पसीने की अमिट स्याही है, बैतूल जिले के जंगल-पहाड़ों में बसे १४०० से अधिक गाँवों और छः हजार से अधिक ढानो और मोहल्लों में सितम्बर माह से निरंतर संपर्क और संबंध स्थापित करने जो क्रम प्रारम्भ हुआ उसमे एक के बाद एक अनेक कड़ियाँ जुड़ती गई | स्वच्छता अभियान, जल प्रबन्धन, पौधरोपण, रक्तदान, युवा सम्मेलन, मातृशक्ति सम्मेलन, ग्रामोत्सव और सबकी आराध्य भारत माता की आरती के द्वारा सम्पूर्ण समाज को मानो एकसूत्र में बाँध दिया | सकारात्मक कार्यक्रमों की निरंतर शृंखला ने कार्यकर्ताओं सहित समाज को भी जागृत रखा | कुछ गाँवों में तो इतना उत्साह आ गया था कि २५ जनवरी को जब में ग्राम सांईखेड़ा थाना गाँव गया तो कार्यकर्ता बोले कि “क्या हम यह सम्मेलन ८ फरवरी के पहले नहीं कर सकते” | निश्चित रूप से यह जागरण का चरम होता है और उसका परिणाम देखने को मिला ८ फरवरी २०१७ को जब पुलिस परेड मैदान पर एक लाख से अधिक का मर्यादित जनसमुद्र उमड़ पड़ा |
बैतूल के इतिहास में यह अभी तक सबसे बड़ा हिन्दू समागम था | प्रथम बार सम्पूर्ण समाज अपने सारे भेद भूलकर एक ध्वज तले एकत्र आया | सम्मेलन की विराटता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उस दिन बैतूल नगर में एक ओर बैतूल नगर समा गया था | बैतूल जिले के १४०० से अधिक गाँवों के सारे रास्ते सुबह पाँच बजे से पुलिस ग्राउण्ड बैतूल की ओर मुड़ गए थे | बैतूल से बाहर जाने वाला वाहन कोई नजर नहीं आ रहा था | पैदल यात्राएँ, साईकिल यात्राएँ, बीस हजार से अधिक मोटर साइकिलें और अन्य सैंकडों वाहनों का जो रैला गाँव-गाँव, नगर-नगर से चला वह दृश्य अद्भुत थे | स्वच्छता, पर्यावरण, सामाजिक समरसता, जल संरक्षण, भारत माता की जय के नारों साथ जब नगर के पाँच पड़ावों से हजारों-हजार लोग एक साथ चले तब ऐसा लगा मानों नदियाँ अपनी अथाह जल राशि लेकर महासगर की ओर बढ़ रही हो | जी हाँ इन शोभायात्राओं के नाम भी बैतूल जिले से निकलने वाली पवित्र नदियों के नाम पर ही थे, माँ ताप्ती यात्रा, माँ माचना यात्रा, माँ वर्धा यात्रा, माँ धाराखोह यात्रा और माँ पूर्णा यात्रा | शोभा यात्रा के पूर्व पाँचों पड़ावों के दृश्य भी अद्भुत थे | स्थान-स्थान पर चालीस से अधिक जाति समाज के द्वारा बनाए गए डेढ़ लाख से अधिक भोजन पैकेट समाज के लोग, माताएं-बहिने अपने हाथों से सम्मेलन में आने वालों को वितरित कर रहे थे | सवा लाख लोगों ने केवल एक घंटे में बिना किसी अफरातफरी के बैठकर भोजन कर लिया और मैदानों में कचरे का नामोनिशान नहीं छोड़ा | शोभायात्राओं का जिस गर्मजोशी और आत्मीयता के साथ बैतूल नगरवासियों ने स्वागत किया उसे देखकर लगा कि इसी तरह के स्वागत को पलक पांवड़े बिछा देना कहते है | अन्य मतावलम्बियों द्वारा भी शोभायात्रा का स्वागत बैतूल नगर की उदारता और सहृदयता का परिचायक है |
यह आयोजन पर्यावरण मित्र के रूप में भी सदैव याद किया जायेगा | डेढ़ लाख से अधिक भोजन के पैकेट कागज़ के लिफाफों में पैक किये गए थे, पीने के पानी के लिए नगर में केन के द्वारा घर-घर पानी पिलाने का व्यवसाय करने वाले मित्रों ने तीन हजार से अधिक केन उस दिन निशुल्क उपलब्ध करवाई जिसके कारण बैतूल शहर लाखों प्लास्टिक पाउचों को निगलने से बच गया | पानी पीने के लिए सभा स्थल मैदान पर पाँच हजार से अधिक स्टील गिलासों की व्यवस्था की गई थी |
हिन्दू महा सम्मेलन का अनुशासन इस बात से समझ में आता है कि सवा लाख लोग जहाँ एकत्र हैं उससे सौ मीटर दूर जिला चिकित्सालय में आने जाने वाली एम्बुलेंस और अन्य वाहन बेरोकटोक आ जा रहे थे | पाँचों यात्राएँ सड़क मार्ग के एक तरफ से होकर चली और केवल रेलवे अंडर ब्रिज को छोड़कर कहीं भी आवागमन अवरुद्ध नहीं हुआ | सौ डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जंगल-पहाड़ों के गाँवों से हजारों लोगों का आना और जाना इतना व्यवस्थित था कि किसी को खरोंच तक नहीं आई | इसमें प्रशासन की भूमिका भी अत्यन्त सराहनीय रही | साथ ही बैतूल के मीडिया पत्रकार भाईयों और समाचार पत्रों ने एक सप्ताह में वो समा बाँधा मानों समाचार पत्र के बैतूल पृष्ठ सम्मेलन की ओर से जोग लिखी चिठ्ठियों के सामान (आत्मीय आमन्त्रण) हो गए हो |
कार्यक्रम की सबसे बड़ी सफलता रही बैतूल के जनजाति समाज की हजारों की संख्या में और उसमें भी महिलाओं की भारी उपस्थिति | यह समाज तोड़क अलगाववादियों के मुँह पर करारा तमाचा भी है | समाज के हर जाति वर्ग ने यह दिखा दिया कि वह समाज को जोड़ने वालों के साथ है, तोड़ने वालों के नहीं | इस महा सम्मेलन से समाज में न केवल एकात्म भाव जागा अपितु उसे संगठित रहने का मन्त्र भी मिला | परम पूज्य सरसंघचालक जी का यह कथन कि समाज को अपने सारे मतभेद भुलाकर एक होना ही होगा क्योंकि लंगड़ा समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता, उनका यह आव्हान भी सबको आंदोलित कर गया कि हिन्दू नाम का समाज है तो उसमें एकता होनी चाहिए...! उन्होंने आव्हान किया कि हम देश के सम्मान के लिए हमेशा सजग रहे। उन्होंने कहा कि भारत का जिम्मेवार समाज हिन्दू है। भारत अगर विश्वगुरु नहीं बनेगा तो इसका जवाब हिंदुओं से माँगा जाएगा। परम पूज्य सतपाल महाराज और श्रद्धेय संत श्यामस्वरूप जी महाराज ने धर्म और मातृशक्ति के सम्मान का पालन करने के लिए लोगों से आव्हान किया | श्यामस्वरूप जी की यह बात हर एक को समझ आई कि धर्म की स्थापना के लिए अधर्म का नाश करना होगा | जिस सारस्वत मंच पर अतिथिगण विराजमान थे वह भी इस सम्मेलन के आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहा, बैतूल की संस्कृति से ओतप्रोत सभा मंच | गोबर और लकड़ी से बने इस मंच में कहीं भी प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया गया | बाजू में ही बने एक ओर विशाल मंच पर बैतूल के युवा कलाकारों द्वारा बैतूल की लोकसंस्कृति के खूब रंग बिखेरे |
कुल मिलाकर सम्मेलन से कुछ ध्वनियाँ निकली है, जिसे हर को स्पष्ट हो जाना चाहिए कि बैतूल अब न केवल उठ खड़ा हो रहा है, अपितु उसने एक कदम भी आगे बढ़ा दिया है और यह संगठित कदम है स्वच्छ पर्यावरण के लिए, जल संरक्षण के लिए, मातृशक्ति के सम्मान के लिए, युवाओं में राष्ट्रबोध के लिए, सज्जन शक्ति के संरक्षण के लिए, अपने गाँव, अपने महापुरुष अपने धर्म और अपने राष्ट्र के प्रति गौरव भाव रखने के लिए ...| इन सब भावों के जागरण में पिछले छः माह से सैंकडों कार्यकर्ता अपना घर-व्यवसाय छोड़कर निस्वार्थ भाव से सकारात्मक समाज के निर्माण में लगे थे | सम्मेलन स्थल पर कार्यकर्ता अभिभूत थे, कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता पर अनेक कार्यकर्ताओं की आँखे डबडबा रही थी, एक-दूसरे को बाहों में भरकर अत्यंत आत्मीयता से बधाईयां दे रहे थे | आयोजन समिति के अध्यक्ष श्री गेंदू जी बारस्कर की आँखों में प्रेमाश्रु मैंने मंच पर कई बार देखे | इतना बड़ा संगठित, समरस, एकात्म जनसमूह देखना कई कार्यकर्ताओं का सपना था | मैंने परम पूज्य सरसंघचालक मोहन राव जी भागवत को मंच पर आमंत्रित करने के पूर्व कहा कि “यह वही बैतूल है जब १९४९ में गांधी जी की हत्या के कलंक से निर्दोष सिद्ध हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर से जब १२ जुलाई १९४९ को प्रतिबन्ध हटा लिया गया तब बैतूल कारागृह में बन्द संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य श्री गुरूजी जब रिहा होकर जेल से बैतूल स्टेशन पर जी टी एक्सप्रेस में बैठने के लिए पैदल ही स्टेशन की ओर चले थे तब उनके साथ केवल एक धर्माधिकारी नाम के सज्जन थे और उसके बाद ६८ वर्षों तक असंख्य कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम, त्याग, समर्पण परिणामस्वरूप आज उस जिला जेल से महज एक किलोमीटर दूर एक लाख से अधिक लोग उसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छटवें सरसंघचालक को सुनने और उनके स्वर में स्वर मिलाने आये हैं |”
इसके आगे की राह सरल है, लैकिन उस पर चलना होगा | सम्मेलन की सफलता तब है जब समाज जिस कार्य के लिए इकठ्ठा हुआ था वह व्यवहार में ले आयें, इसके लिए समाज से निरंतर संपर्क के कुछ ओर सूत्र ढूँढकर उसे सदैव सजग व सक्रिय रखना होगा |

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