Sunday 11 September 2016

II एक रोंगटे खडी कर देने वाली दास्तां...
लडना तो बिहारियों से सीखिए. II
4 मंत्री, 30 सरकारी गठबंधन के विधायक, 1300 गाड़ियों का काफिला। यह सब होगा एक ए टाइप मुजरिम की रिहाई के काफिले में। जी हाँ, शहाबुद्दीन बिहार सरकार के हिसाब से ए टाइप के क्रिमिनल हैं, मतलब सरकार मानती है कि ये सुधर नहीं सकते। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है। कम से कम सरकार के 4 मंत्रियों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता। वे उनकी जय जयकार करने के लिए उस काफिले में होंगे। अब बस इसी बात से बिहार के राजनीतिक हलके में शहाबुद्दीन की हैसियत को समझ लीजिये। हैरत होती है, कैसे इस व्यक्ति को 11 साल तक जेल में रखा गया? यह एक बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति का नतीजा था। क्या वक़्त था जब एक डीएसपी ने जेल में घुस कर इस खूंखार जानवर की पिटाई की थी। मगर अब? अब क्या यह सब मुमकिन है? सरकार के मुंह से वकार नहीं फूट रहा है। बड़े सरकार ने अपने बाघ को आजाद करा लिया है। सीवान के लोग अपने घर की सिटकिनी ठीक करा रहे हैं। दरवाजे पर ग्रिल लगवा रहे हैं। सत्यानन्द निरुपम भाई ने कहा है हम सब सीवानवासियों को ही जेल में डाल दें। कम से कम वहां तो सुरक्षित रहेंगे।
सवेरे चंदा बाबू से बातचीत हुई। कह रहे थे, अब लड़ के भी क्या करना है। मेरा मरना तो तय है। ठीक भी है। जीकर भी क्या कर रहे हैं। एक 70 साल का बुजुर्ग इस बुढ़ापे में अपने अपाहिज बेटे और बीमार पत्नी की सेवा करने को विवश है। उनके लिए खाना पकाना, उन्हें नहलाना टॉयलेट ले जाना। सब चंदा बाबू को ही करना है। ऐसे में वे कितनी लड़ाईयां लड़ें। वे सीवान में टिके हैं यही बहुत है। यह जरूर है कि इतनी हत्याओं के बाद उनके मन से मौत का भय खत्म हो गया है। गल्ला व्यवसाय कर परिवार का जीवन यापन करने वाले चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू के बेटे सतीश राज व गिरिश राज की 16 अगस्त, 2004 को अपहरण कर तेजाब से नहला कर हत्या कर दी गयी थी. इस दौरान उसके तीसरे भाई राजीव रोशन अपहरणकर्ताओं के चंगुल से भाग कर अपनी जान बचायी. राजीव रोशन की चश्मदीद गवाही के आधार पर विशेष अदालत ने पूर्व सांसद मो शहाबुद्दीन, राजकुमार शर्मा समेत चार लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुना चुकी है. मगर हमें दुःख होता है। न्याय को इतना असहाय होता देखा नहीं जाता। इतना मौन है कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं। सरकार से लेकर मीडिया तक। प्राइम टाइम से लेकर डीएनए तक। विपक्ष भी मिमिया रहा है। बीजेपी का विरोध डबल कॉलम और वामदलों का विरोध सिंगल कॉलम रह गया है। पत्रकार भी राजबीर रंजन का अंजाम देखकर सशंकित हैं। फेसबुक पर लिखते हुए भी संशय होता है। बस इतना ही सुकून है कि जश्न की खबरों से परहेज किया जा रहा है।
ठीक लिखा है अपने भाई Pushya Mitra जी ने..
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लालू प्रसाद के साथ शहाबुद्दीन की एक यादगार फोटो
नौकरशाही रिसर्च
एक-
अपराध की दुनिया में सुर्खियां बटोरने वाल 50 वर्षी शहाबुद्दीन ने लगातार दो बार विधायक और चार बाल लोकसभा चुनाव जीता था. 1990 में पहली बार वे चुनाव जीते थे तब उनकी उम्र 25 साल थी.
दो-
उस वक्त तक लालू प्रसाद के साथ उनका कोई खास पालिटकल नजदीकी नहीं थी. 1995 आते आते शहाबुद्दीन लालू के करीब आये और फिर चुनाव जीता. लेकिन उसके तुरंत बाद 1996 में उनकी महत्वकांक्षा उन्हें लोकसभा में ल गयी.
तीन-
शहाबुद्दीन के खिलाफ पहला आपराधिक मामला 1986 में दर्ज किया गया. तब उनकी उम्र 19 वर्ष थी. तब वह कालेज में पढ़ते थे.इस दौर में शहाबुद्दीन का राजीनिक रसूख काफी बढ़ चुका था. और उन्हीं दिनों लालू प्रसाद की सरकार संकट में आ गयी थी.
चार-
1997 आते आते लालू प्रसाद के ऊपर चारा घोटाला के आरोप लगे थे. तब उनकी सरकार संकट में थी. इसी दौरान शहाबुद्दीन ने उनकी सरकार को बचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
पांच-
इसके बाद शहाबुद्दीन न सिर्फ राजनीतिक रूप से बहुत शक्तिशाली हुए बल्कि उन पर यह भी आरोप लगने लगा कि सीवान में उनकी सामानांतर सरकार चलती है. डीएम, एसपी तक उनके इशारों पर काम करने के आरोप लगे. 2001 में एक स्थानीय राजद नेता मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ वारंट की तामील करने पहुंचे पुलिस अधिकारी  पर तमाचा जड़ने का आरोप लगा.
छह-
प्रतापपुर गोलीकांड- इसी घटना के बाद शहाबुद्दीन के खिलाफ स्थानीय पुलिस ने उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई की इस दौरान पुलिस और शहाबुद्दीन के शूटरों के बीच घंटो गोलीबारी होती रही.
सात-
शहाबुद्दीन के ऊपर हत्या, अपहरण, मारपीट, के दर्जनों मामले दर्ज हुए. अनेक मामलों में अदालत ने उन्हें सजा सुनाई. एक युवक को एसिड से नहला कर मार देने के आरोप में स्थानीय अदालत ने सजा सुनाई थी.
आठ-
जेल में रहने के दौरान भले ही शहाबुद्दीन की ताकत काफी कम हो गयी लेकिन वह इस पीरियड में हमेशा राजद के लिए महत्वपूर्ण रहे. उनकी गैरमौजूदगी में पार्टी उनकी पत्नी को चुनाव में टिकट देती रही लेकिन वह दो बार चुनाव हार गयीं.
नौ-
हाल ही में राजद के पुनर्गठन के बाद शहाबुद्दीन को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया, मतलब राजद में अब भी उनकी गहरी पैठ जगजाहिर हैं.
शहाबुद्दीन इन आपराधिक मामलों में 9 वर्षों तक जेल में रहे. इस दौरान उन्हें 49 मामलों में अदालत का चक्कर लगाना पड़ा. इन तमाम मामलों में अब उन्हें बेल मिल गयी है. माना जा रहा है कि वह जल्द ही जमानत पर रिहा हो जायेंगे.

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