Wednesday 13 July 2016

सम्राट मिहिर भोज:
 जिनके नाम से थर-थर कांपते थे अरबी और तुर्क !!
ऐसे सम्राट की कहानी बताने वाले हैं, जो कि हमारे देश का एक महान शासक था. वो राजा थे प्रतिहार वंश के नवमी शताब्दी के मिहिर भोज. उनकी ख्याति चक्रवर्ती गुप्त समारत से किसी भी मान्य में कम नहीं थी. उनका .राज्य व्यवस्था, आकार, प्रशासन, और धार्मिक स्वतंत्रता में किसी से भी कम नहीं था. उनके राज्यकाल में देश पर कई तरह के शत्रुओं ने परहार किया था. उनपर कभी तुर्कियों ने, और कभी अरबों ने हमले किये, पर उन्होंने उन सब तो बुरीतरह हराकर भगा दिया. और वह ऐसा भागे की वह एक शताब्दी तक डर के मारे लौटे ही नहीं.

उनका एक चुम्बिकिय व्यक्तित्व था, उनकी बहुत बड़ी भुजाये थी, और विशाल नयन थे. उनका लोगों पर एक विचित्र सा प्रभाव पड़ता था. वो हर शेत्र में निपुण थे. कहा जाता है की वो एक प्रबल पराक्रमी, महानधार्मिक, राजनीती में निपुण, और एक महान सम्राट थे. हम यह कह सकते हैं की वो भारत के एक निष्ठावान शासक थे. उनका राज्य विश्व में सबसे शक्तिशाली था. उनके राज्य में चोर और डाकुओं से कोई भय नहीं था. सब लोग आर्थिक सम्पन्नता से खुश थे. आप को यह जानकर ख़ुशी होगी की इनके राज्यकाल में ही भारत को सोने की चिड़िया कहा जात था.

दुःख की बात तो यह है, की इस पराक्रमी सम्राट का हमारी साहित्य की किताबों में कही भी ज़िक्र नहीं है. सम्राट मिहिर भोज के राज्यकाल में ही सबसे ज्यादा अरबी म्सुलिम लेखक भारत आये, और लोगों की उन्नति देखकर चौकन्ने रह गए. अपने देश लौट कर उन्होंने भारत के गुणगान करा और जो देखा था उसका विस्त्र में विवरण किया. और इनता ही नहीं, क्या आप जानते है की उनके राज्यकाल में उनके राज्य आधे विश्व तक फैला हुआ था. उनक ऐसा डर था अरबों और मुसलमानों में की उन्हें छिपने के लिए जगह कम पढ़ रही थी. इस बात का विवरण मुस्लिम इतिहासकार बिलादुरी सलमान और अलाम्सुदी ने अपनी किताबों में किया है . मिहिर भोज ने  836  से  885, लगभग पचास साल तक राज़ किया.
उनका जन्म सूर्यवंशी शत्रिया कुल में हुआ था. कहते है वेह महारानी अप्पा देवी की उपसना का फल थे. मिहिर भोज के बारे में बहुत ज्यादा नहीं पता है. जो जानकारी है वो वराह तम्र्शासन से मिली है. कहते हैं उनका राज्य मुल्तान से पश्चिम बंगाल और कश्मीर से कर्नटक तक फैला हुआ था. वेह शिव और शक्ति के उपासक थे. कहा जाता है की वेह सोमनाथ के परम भक्त थे, और उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था. 49 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिर भोज ने एक सिक्का भी चलाया था. उन्होंने कन्नौज को देश की राजधानी बनाने था। सम्राट मिहिर भोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। 
उनकी बहादुरी के किस्से आप के साथ बांटकर आज हमने, उन्हें अपनी भाव पूर्ण श्रधांजलि दी है.

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