Thursday 30 June 2016

पिछले दिनों ग्रीक के फिल्म-निर्माता ओलिवर स्टोन की एक फिल्म प्रदर्शित हुई जिसमें भारत में सिकन्दर की हार को स्वीकार किया गया है ! फिल्म में दर्शाया गया है कि एक तीर सिकन्दर का सीना भेद देती है और इससे पहले कि वो शत्रु के हत्थे चढ़ता उससे पहले उसके सहयोगी उसे ले भागते हैं ! इस फिल्म में ये भी कहा गया है कि ये उसके जीवन की सबसे भयानक त्रासदी थी और भारतीयों ने उसे तथा उसकी सेना को पीछे लौटने के लिए विवश कर दिया !

लेकिन भारतीय बच्चे इतिहास में क्या पढ़ते हैं ? वे पढ़ते हैं कि "सिकन्दर ने पौरस को बंदी बना लिया था, उसके बाद जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय, तो पौरस ने कहा कि उसके साथ वही किया जाय जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता ! सिकन्दर इस बात से इतना अधिक प्रभावित हो गया कि उसने वो कार्य कर दिया जो अपने जीवन भर में उसने कभी नहीं किया था, अर्थात पौरस को पुरस्कार-स्वरुप अपने द्वारा जीता हुआ राज्य तथा धन-सम्पत्ति देकर वापस लौटने का निश्चय किया और लौटने के क्रम में ही उसकी मृत्यु हो गई !"

एक ओर विदेशी ऐसी फिल्म बना रहे हैं, जिसमें वे सिकंदर की हार को स्वीकार कर रहे रहे हैं और हम अपने ही वीरों का इस तरह अपमान कर रहे हैं ! वस्तुतः यह ये कितना बड़ा तमाचा है अंग्रेजों के मानस पुत्र. हीन ग्रंथि से पीड़ित उन भारतीय इतिहासकारों के मुँह पर ?

जरा विचार कीजिए कि जो सिकन्दर पूरे यूनान, ईरान, ईराक, बैक्ट्रिया आदि को जीतते हुए आ रहा था, वो भारत की सीमा से ही जीतने के बाबजूद वापस लौट गया, यह कैसे संभव है ? वह भारत के अन्दर क्यों नहीं प्रविष्ट हुआ ? उसने भारत के अन्य राजाओं से युद्ध क्यों नहीं किया ?
दरअसल जितना बड़ा अन्याय और धोखा इतिहासकारों ने महान पौरस के साथ किया है उतना बड़ा अन्याय इतिहास में शायद ही किसी के साथ हुआ होगा।एक महान नीतिज्ञ, दूरदर्शी, शक्तिशाली वीर विजयी राजा को निर्बल और पराजित राजा घोषित कर दिया गया ! जबकि पराजित सिकंदर को विश्व विजेता का तमगा दे दिया ! थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि सिकंदर ने पौरस को हरा दिया था, तो भी वो विश्व-विजेता कैसे बन गया..? पौरस तो बस एक राज्य का राजा था..भारत में उससे बड़े अनेक राज्य थे, तो पौरस पर सिकन्दर की विजय भारत की विजय तो नहीं कही जा सकती और भारत तो दूर चीन,जापान जैसे एशियाई देश भी तो जीतना बाकी ही था, फिर वो विश्व-विजेता कहलाने का अधिकारी कैसे हो गया...?


भारत में तो ऐसे अनेक राजा हुए जिन्होंने पूरे विश्व को जीतकर राजसूय यज्य करवाया था पर बेचारे यूनान के पास तो एक ही घिसा-पिटा योद्धा कुछ हद तक है ऐसा जिसे विश्व-विजेता कहा जा सकता है....तो.! ठीक है भाई यूनान वालों,संतोष कर लो उसे विश्वविजेता कहकर...!

महत्त्वपूर्ण बात ये कि सिकन्दर को सिर्फ विश्वविजेता ही नहीं बल्कि महान की उपाधि भी प्रदान की गई है और ये बताया गया कि सिकन्दर बहुत बडे हृदय वाला दयालु राजा था ! अब क्योंकि सिर्फ लड़ कर लाखों लोगों का खून बहाने वाले एक विश्व-विजेता को महान की उपाधि नहीं दी सकती, इसलिए ये घोषित किया गया कि उसने पोरस को सम्मानित किया ! 

अगर सिकन्दर सचमुच बडे हृदय वाला व्यक्ति होता, तो धन के लालच में भारत न आता और नाहक इतने लोगों का खून न बहाता ! इस बात को उस फिल्म में भी दिखाया गया है कि सिकन्दर को भारत के धन(सोने,हीरे-मोतियों) से लोभ था ! यहाँ ये बात सोचने वाली है कि जो व्यक्ति धन के लिए इतनी दूर इतना कठिन रास्ता तय करके भारत आ जाएगा वो पौरस की वीरता से खुश होकर पौरस को जीवन-दान भले ही दे दे, पर अपना जीता हुआ प्रदेश पौरस को क्यों सौंपेगा ? 

सच्चाई ये थी कि उन दिनों भारत के उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे ! झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी ! पौरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था ! तीसरा राज्य अभिसार था, जो कश्मीरी क्षेत्र में था ! अम्भि का पौरस से पुराना बैर था ! इसलिए वह सिकन्दर के आगमन से खुश हो गया और अपनी शत्रुता निकालने का उपयुक्त अवसर समझ उसके साथ हो गया ! जबकि अभिसार के लोग तटस्थ रहे ! इस तरह पौरस ने अकेले ही सिकन्दर तथा अम्भि की मिली-जुली सेना का सामना किया! 

"प्लूटार्च" के अनुसार सिकन्दर की बीस हजार पैदल सैनिक तथा पन्द्रह हजार अश्व सैनिक पौरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थे ! सिकन्दर की सहायता फारसी सैनिकों ने भी की थी ! इसके बाबजूद युद्ध के शुरु होते ही पौरस ने अपने सैनिकों के साथ विनाश का तांडव मचाना शुरु कर दिया !

पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन कर्टियस ने इस तरह से किया है—

इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी, जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी ! इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए, जहाँ इनको शरण मिल सके ! उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ लेता था,उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने महावत के हाथों सौंप देता था, जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था ! इन पशुओं ने घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था !

इसी तरह का वर्णन "डियोडरस" ने भी किया है –

विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ! उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी ! हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे..अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे !

इन पशुओं का आतंक उस फिल्म में भी दिखाया गया है..

अब विचार करिए कि डियोडरस का ये कहना कि उन हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ये क्या सिद्ध करता है..फिर ? "कर्टियस" का ये कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था ये क्या सिद्ध करता है...?

अफसोस की ही बात है कि इस तरह के वर्णन होते हुए भी लोग यह दावा करते हैं कि पौरस को पकड़ लिया गया और उसके सेना को शस्त्र त्याग करने पड़े !

एक और विद्वान ई.ए. डब्ल्यू. बैज का वर्णन देखिए-

उनके अनुसार झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था ! सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा ! अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की -"श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है ! मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय, मैं इनका अपराधी हूँ,....और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया.----ये बातें किसी भारतीय द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है !

 इस विषय पर "प्लूटार्च" ने लिखा है कि मलावी नामक भारतीय जनजाति बहुत खूँखार थी ! इनके हाथों सिकन्दर के टुकड़े-टुकड़े होने वाले थे लेकिन तब तक प्यूसेस्तस और लिम्नेयस आगे आ गए ! इसमें से एक तो मार ही डाला गया और दूसरा गम्भीर रुप से घायल हो गया ! .तब तक सिकन्दर के अंगरक्षक उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए !

स्पष्ट है कि पोरस के साथ युद्ध में तो इनलोगों का मनोबल टूट ही चुका था रहा सहा कसर इन जनजातियों ने पूरी कर दी थी ! .अब इनलोगों के अंदर ये तो मनोबल नहीं ही बचा था कि किसी से युद्ध करे पर इतना भी मनोबल शेष ना रह गया था कि ये समुद्र मार्ग से लौटें ! फलतः वे बलुचिस्तान के रास्ते ही वापस लौटे....

अब उसके महानता के बारे में भी कुछ विद्वानों के वर्णन देखिए...

एरियन के अनुसार जब बैक्ट्रिया के बसूस को बंदी बनाकर सिकन्दर के सम्मुख लाया गया तब सिकन्दर ने अपने सेवकों से उसको कोड़े लगवाए तथा उसके नाक और कान काट कटवा दिए तथा बाद में बसूस को मरवा ही दिया गया ! सिकन्दर ने कई फारसी सेनाध्यक्षों को नृशंसतापूर्वक मरवा दिया था ! फारसी राजचिह्नों को धारण करने पर सिकन्दर की आलोचना करने के लिए उसने अपने ही गुरु अरस्तु के भतीजे कालस्थनीज को मरवा डालने में कोई संकोच नहीं किया ! क्रोधावस्था में अपने ही मित्र क्लाइटस को मार डाला ! उसके पिता के विश्वासपात्र सहायक परमेनियन को भी सिकन्दर के द्वारा मारा गया था ! जहाँ पर भी सिकन्दर की सेना गई उसने समस्त नगरों को आग लगा दी,महिलाओं का अपहरण किया और बच्चों को भी तलवार की धार पर सूत दिया ! ईरान की दो शाहजादियों को सिकन्दर ने अपने ही घर में डाल रखा था.उसके सेनापति जहाँ-कहीं भी गए अनेक महिलाओं को बल-पूर्वक रखैल बनाकर रख लिया !

तो ये थी सिकन्दर की महानता....इसके अलावा अपने पिता फिलिप की हत्या का भी शक इतिहास ने इसी पर किया है ! इसने अपनी माता के साथ मिलकर फिलिप की हत्या करवाई क्योंकि फिलिप ने दूसरी शादी कर ली थी और सिकन्दर के सिंहासन पर बैठने का अवसर खत्म होता दिख रहा था !  इसके बाद सिकंदर ने अपने सौतेले भाई को भी मार डाला, ताकि सिंहासन का और कोई उत्तराधिकारी ना रहे...

तो ये थी सिकन्दर की महानता और वीरता....

अब निर्णय करिए कि पोरस तथा सिकन्दर में विश्व-विजेता कौन था..? दोनों में वीर कौन था..?दोनों में महान कौन था..?

यूनान वाले सिकन्दर की जितनी भी विजय गाथा दुनिया को सुना ले सच्चाई यही है कि ना तो सिकन्दर विश्वविजेता था औ महान तो कभी वो था ही नहीं....

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस पोरस ने लगातार जीतते आ रहे सिकन्दर के अभिमान को अकेले ही चकना-चूर कर दिया,उसके मद को झाड़कर उसके सर से विश्व-विजेता बनने का भूत उतार दिया, उस पोरस को इतिहास ने उचित स्थान नहीं दिया ?

भारतीय इतिहासकारों ने तो पोरस को इतिहास में स्थान देने योग्य समझा ही नहीं है.इतिहास में एक-दो जगह इसका नाम आ भी गया तो बस सिकन्दर के सामने बंदी बनाए गए एक निर्बल निरीह राजा के रुप में ! .नेट पर भी पोरस के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है.....

आज आवश्यकता है कि नेताओं को धन जमा करने से अगर अवकाश मिल जाय तो वे इतिहास को फिर से जाँचने-परखने का कार्य करवाएँ, ताकि सच्चाई सामने आ सके और भारतीय वीरों को उसका उचित सम्मान मिल सके ! जो राष्ट्र वीरों का इस तरह अपमान करेगा वो राष्ट्र ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगा...

मानते हैं कि ये सब घटनाएँ बहुत पुरानी हैं, हजार वर्ष से अधिक काल की गुलामी के कारण भारत का अपना इतिहास तो विलुप्त हो गया और जब देश आजाद हुआ भी तो कांग्रेसियों ने इतिहास लेखन का काम धूर्त्त अंग्रेजों को सौंप दिया ताकि वो भारतीयों को गुलाम बनाए रखने का काम जारी रखे ! अंग्रेजों ने इतिहास के नाम पर काल्पनिक कहानियों का पुलिंदा बाँध दिया ताकि भारतीय हमेशा यही समझते रहें कि उनके पूर्वज निरीह थे तथा विदेशी बहुत ही शक्तिशाली, ताकि भारतीय हमेशा मानसिक गुलाम बने रहें, पर अब तो कुछ करना होगा ना ?

इससे एक और बात सिद्ध होती है कि अगर भारत का एक छोटा सा राज्य अकेले ही सिकन्दर को धूल चटा सकता है, तो अगर भारत मिलकर रहता और आपस में ना लड़ता रहता, तो मुगलों या अंग्रेजों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वो भारत का बाल भी बाँका कर पाते ! .कम से कम अगर भारतीय ही दुश्मनों का साथ ना देते तो उनमें इतनी शक्ति नहीं थी कि वो भारत पर शासन कर पाते ! भारत पर विदेशियों ने शासन किया है तो सिर्फ यहाँ की आपसी दुश्मनी के कारण..

भारत में एक ही साथ अनेक वीर पैदा हो गए और यही भारत की बर्बादी का कारण बन गया ! क्योंकि सब शेर आपस में ही लड़ने लगे ! महाभारत काल में इतने सारे महारथी, महावीर पैदा हो गए थे, इसी कारण महाभारत का विध्वंशक युद्ध हुआ और आपस में ही लड़ मरने के कारण भारत तथा भारतीय संस्कृति का विनाश हो गया ! पर आज जरुरत है भारतीय शेरों को एक होने की क्योंकि बैसे भी आजकल भारत में शेरों की बहुत ही कमी हो गई है....

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