Saturday 4 June 2016

ये है दक्षिण की काशी, यहां भी विराजमान हैं काशी विश्‍वनाथ
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तमिलनाडु के चेंगलपेट-आर्कोणम् रेलमार्ग पर स्‍थित है कांचीपुरम। यहीं स्‍थित है कांची नामक पुण्‍यभूमि। वर्तमान में इसे कांचीवरम् कहते हैं। भारत की प्रसिद्ध सप्‍तपुरियों में से एक है कांची। इसे दक्षिण की काशी होने का गौरव भी प्राप्‍त है। कांची भारत के प्रसिद्ध 51 शक्‍तिपीठों में से भी एक है। पौराणिक मान्‍यता है कि देवी सती के शव को जब सुदर्शन चक्र ने टुकड़े-टुकड़े में काटकर इधर-उधर गिरा दिया था, तब उनका कंकाल यहीं गिरा था और इसके बाद से ही यहां प्रतिष्‍ठित हुईं ललितादेवी को कामाक्षीदेवी का नाम दिया गया।
शैव-वैष्‍णव का समन्‍वय
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कांची एक धार्मिक नगरी है। यह शैव-वैष्‍णव समन्‍वय या सामंजस्‍य की कहानी बयां करती है। इसके तीन भाग हैं, शिव कांची, विष्‍णु कांची और जैन कांची। यहां शैव, वैष्‍णव और जैन धर्म के अति प्राचीन मंदिर मौजूद हैं। किसी समय में यह पल्‍लव और चोल राजाओं की राजधानी भी रही है।
मंदिरों की नगरी है कांची
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लोकआस्‍था के अनुसार कांची ही एकमात्र स्‍थान है जहां शिव, विष्‍णु और ब्रह्मा की शादी हुई थी। यह कांची तीर्थ मंदिरों का शहर है। कहते हैं कि यहां एक हजार मंदिर और दस हजार शिवलिंग मौजूद हैं। स्‍कंदपुराण के अनुसार कांची तीर्थ तीनों लोकों में सबसे अधिक कमनीय है, क्‍योंकि यहां साक्षात लक्ष्‍मिपति निवास करते हैं।
एकाम्रेश्‍वर मंदिर और प्राचीन आम का पेड़
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कांची में स्‍थित शिव कांची शैव धर्म का अति पावन तीर्थ है। शिव कांची में भगवान शिव का मंदिर भी है। इस स्‍थान को दक्षिण कांची भी कहते हैं। यहां का एकाम्रेश्‍वर मंदिर देश-विदेश के श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। वैसे तो इस मंदिर का गोपुर विश्‍व प्रसिद्ध है लेकिन यहां मौजूद एक आम का पेड़ भी दुनिया के लिए कम कौतुहल का विषय नहीं है। मान्‍यता है कि यह आम का वृक्ष कम से कम कई हजार साल पुराना है। यहां एकाम्रेश्‍वर मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्‍य के प्रतापी राजा कृष्‍णदेव राय का बनवाया हुआ है। यह 184 फुट ऊंचा है।
सर्वतीर्थ सरोवर और काशी विश्‍वनाथ मंदिर
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शिवकांची में स्‍नान के लिए सर्वतीर्थ नामक एक परम पुण्‍यदायी सरोवर भी है। सरोवर के चारों ओर कई मंदिर हैं, प्रधान मंदिर काशी विश्‍वनाथ का है। एकाम्रेश्‍वर मंदिर सर्वतीर्थ सरोवर के बिल्‍कुल समीप ही स्‍थित है। मंदिर के द्वार पर भगवान गणेश तथा भगवान कार्तिकेय की मूर्तियां स्‍थापित हैं। मुख्‍य मंदिर में तीन द्वारों के अंदर श्री एकाम्रेश्‍वर शिवलिंग की प्रतिष्‍ठा की गयी है। लिंग के पीछे गौरीशंकर की युगल मूर्ति भी मौजूद है।
नहीं होता शिवलिंग का जलाभिषेक
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एकाम्रेश्‍वर मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां शिवलिंग का जल से अभिषेक नहीं किया जाता है। इसके बदले शिवलिंग का अभिषेक चमेली के सुगंधित तेल से किया जाता है। मंदिर की दो परिक्रमाएं की जाती हैं। पहली परिक्रमा के दौरान जहां कई देव प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं वहीं दूसरी परिक्रमा के दौरान कैलास मंदिर में होती है जहां शिव-पार्वती की सुंदर उत्‍सव मूर्ति विराजमान है। यहां शिव कामशासन के नाम से पुकारे जाते हैं।
शक्‍तिपीठ कामाक्षी देवी
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एकाम्रेश्‍वर मंदिर के समीप ही कामाक्षी देवी का मंदिर भी है। यह भारत के 51 शक्‍तिपीठों में से एक है। इस विशाल मंदिर में मां कामाक्षी देवी की भव्‍य प्रतिमारूप में विराजमान हैं। यह मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया है।
विष्‍णु कांची का महात्‍म्‍य
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शिव कांची से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्‍थित है विष्‍णु कांची। यहां चतुर्भुज भगवान् विष्‍णु की मूर्ति स्‍थापित है। यह मंदिर अपने भित्‍तिचित्रों के लिए पूरी दुनिया में विख्‍यात है। यहां आपको द्रविण वास्‍तुकला का उत्‍कृष्‍ट नमूना देखने को मिलेगा। यह मंदिर पल्‍लव शासकों की धार्मिकता, कलाशिल्‍प और वास्‍तुशिल्‍प का अति सुंदर उदाहरण है।
यहां हैं 18 विष्‍णु मंदिर
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विष्‍णुकांची में अठारह विष्‍णु मंदिर हैं, पर मुख्‍य मंदिर वरदराजस्‍वामी का है, जो भगवान विष्‍णु नारायण ही हैं1 यह अत्‍यंत विशाल मंदिर है। भगवान का निज मंदिर तीन घेरों के भीतर है। मंदिर की पूर्व दिशा में जो गोपुर है वह ग्‍यारह मंजिल ऊंचा है। पश्‍चिम गोपुर के भीतर गरुड़ स्‍तंभ है, जो स्‍वर्णिम है। उसके दक्षिण में रामानुजाचार्य का श्रीविग्रह है। गरुड़ स्‍तंभ के घेरे में ही श्रीलक्ष्‍मी जी का मंदिर है। इन्‍हें यहां श्रीपेरुन्‍देवी के नाम से पूजा जाता है। वहीं भगवान के निज मंदिर को 'विमान' कहते हैं। वरदराज स्‍वामी की दिव्‍य मूर्ति चार हाथ ऊंची है।
प्रसिद्ध कांची कामकोटि पीठ
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यहीं समीप में है शंकराचार्य द्वारा स्‍थापित चार पीठों में से एक कांची कामकोटि पीठ। आदि शंकराचार्य यहीं विराजे थे और यहीं से अंतिम दिनों में बदरीनाथ चले गये थे। विष्‍णुकांची में वैशाख पूर्णिमा की वरदराजस्‍वामी मंदिर में ब्रह्मोत्‍सव मनाया जाता है।
काशी और कांची
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ब्रह्मपुराण के अनुसार कांची और काशी भगवान शिव के दो नेत्र हैं। ये भगवान शिव को सुलभ करने वाले पुण्‍य तीर्थ हैं।
शिव हुए थे पापमुक्‍त
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कांची में ही स्‍थित है पंचतीर्थ। मान्‍यता है कि कि ब्रह्महत्‍या पाप से मुक्‍त होने के लिए स्‍वयं भगवान शिव ने यहां तप किया था। यही क्‍यों यह तीर्थ ब्रह्मा जी की भी तपोभूमि है। उन्‍होंने यहां श्रीदेवी के दर्शनार्थ लंबे समय तक घोर तपस्‍या की थी।
हजारों साल पुराने मंदिरों की कहानी
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कांची का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्‍व है। ऐतिहासिक प्रमाणों को आधार मानकर यह कहा जा सकता है कि यहां का कैलाशनाथ मंदिर और बैकुंठ पेरुमाल का मंदिर कम से कम बारह सौ वर्ष पुराना है। इन्‍हें पल्‍लव नरेश नंदिवर्मन् ने बनवाया है।
कैसे पहुंचे कांची तीर्थ
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कांची सड़क मार्ग से पूरे देश से जुड़ा हुआ है। नेशनल हाईवे नंबर 4 के द्वारा चेन्‍नई और बेंगलूरु से यहां सीधे पहुंचा जा सकता है। तमिलनाडु स्‍टेट ट्रांस्‍पोर्ट कॉर्पोरेशन की बसें 24 घंटे कांची के लिए चलती रहती हैं। चेन्‍नई के गिंडी और थांम्‍बरम बस टर्मिनल से कांची के लिए 24 घंटे सीधी बस सेवाएं उपलब्‍ध हैं।
रेलमार्ग से भी कांचीवरम् स्‍टेशन पहुंचा जा सकता है। यह रेलवे स्‍टेशन चेंगलपेट-आर्कोणम् रेलमार्ग के बीच स्‍थित है। वहीं निकटवर्ती हवाई अड्डा चेन्‍नई एयरपोर्ट है, जोकि यहां से मात्र 72 किमी दूर है।
01-Jun-2016 EENADU INDIA के अनुसार << सूर्य की किरण >>
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