Sunday 29 May 2016

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असम का शिवाजी था यह वीर योद्धा

 औरंगज़ेब का पूरे भारत पर राज करने का सपना अधूरा था  औरंगज़ेब चाहता था कि उसका साम्राज्य पूरे भारत के ऊपर हो लेकिन भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से तक वह नहीं पहुँच पा रहा था.

यह बात औरंगज़ेब को सपनों में सताने लगी थी और तभी औरंगज़ेब के अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 राजपूत सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी सैनिक की विशाल सेना असम पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी.
सबसे रोचक बात यह थी कि असम अगर कोई जीत लेता तो इस तरह से वह उत्तर-पूर्वीं भारत पर कब्जा कर सकता था.
औरंगजेब ने इस इस हमले के लिए एक राजपूत राजा को भेजा था. उस समय असम का नाम अहोम था. राजा राम सिंह अहोम को जीतने के लिए विशाल सेना लेकर निकल चुका था.
अहोम का एक वीर सेनापति, जिसको बहुत ही कम लोग जानते हैं
अहोम राज के सेनापति का नाम था लचित बोरफूकन था. इस नाम से उस समय लगभग सभी लोग वाकिफ थे. पहले भी कई बार लोगों ने अहोम पर हमले किये थे जिसे इसी सेनापति ने नाकाम कर दिए थे. जब लचित को मुग़ल सेना आने की खबर हुई तो उसने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास एक खड़ा कर दिया था.
लचित बोरफूकन की यह होती थी योजना

कुछ इतिहासकार अपनी पुस्तकों में लिखते हैं कि लचित बोरफूकन (बरफुकन-बोरपूकन, नाम को लेकर आज भी थोड़ा रहस्य है) अपने इलाके को अच्छी तरह से जानता था. वह ब्रह्मपुत्र नदी को अपनी माँ मानता था. असल में अहोम पर हमला करने के लिए सभी को इस नदी से होकर आना पड़ता था और एक तरफ (जिस तरफ लचित सेना होती थी) का भाग ऊचाई पर था और जब तक दुश्मन की सेना नदी पार करती थी तब तक उसके आधे सैनिक मारे जा चुके होते थे. यही कारण था कि कोई भी अहोम पर कब्जा नहीं कर पा रहा था.
वैसे उत्तर पूर्वी राज्य का इतिहास बताता है कि कुछ समय के लिए गोवाहाटी पर मुग़ल का शासन था किन्तु इस वीर सेनापति ने ही गोवाहाटी को मुगलों से आजाद करा लिया था. इसी बात से मुग़ल काफी गुस्से में थे.
सरायघाट का भीषण युद्ध

यह युद्ध सरायघाट के नाम से जाना जाता है. लचित बोरफूकन की सेना के पास बहुत ही कम और सीमित संसाधन थे. सामने से लाखों लोगों की सेना आ रही थी किन्तु लचित बोरफूकन की सेना का मनोबल सातवें आसमान पर था. जैसे ही सेना आई तो कहा जाता है कि लचित के एक सैनिक ने कई सौ औरंगजेब के सैनिकों को मारा था. जब सामने वालों ने लचित बोरफूकन के सैनिकों का मनोबल देखा तो सभी में भगदड़ मच गयी थी.
इस युद्ध के बाद फिर कभी उत्तर-पूर्वी भारत पर किसी ने हमला करने का सपने में भी नहीं सोचा. खासकर औरंगजेब को लचित बोरफूकन की ताकत का अंदाजा हो गया था.
दुर्भाग्य की बात यह है कि आज इस वीर योद्धा का नाम भारत के कुछ 10 प्रतिशत लोग ही जानते हैं








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