Tuesday 17 May 2016

 8 साल की उम्र में कंठस्‍थ थे सारे वेद

 16 की उम्र में बजा उनके नाम का डंका...

शंकराचार्य का जन्‍म आज से तकरीबन ढाई हजार साल पहले 788 ई. में दक्षिण भारत के केरल में हुआ था। शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश में हिंदू धर्म का प्रचार किया और चार पीठो की स्‍थापना कर भारत को हिंदू दर्शन, धर्म और संस्‍कृति की अविरल सनातन धारा में पिरो दिया। दरअसल, उन्‍होंने एक तरह से हिंदू धर्म की फिर से स्‍थापना की। आज जिस हिंदू धर्म का स्‍वरूप में हमें दिखाई देता है, वह शंकराचार्य का ही बनाया हुआ है।


बालक शंकर की प्रज्ञा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे सात वर्ष के हुए तो वेदों के विद्वान, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और सोलहवें वर्ष में उन्‍होंने ब्रह्मसूत्र- भाष्य रच दिया, जबकि उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी।

भारतीय इतिहास में शंकराचार्य को सबसे श्रेष्‍ठतम दार्शनिक कहा गया। उन्‍होंने अद्वैतवाद को प्रचलित किया। उपनिषदों, श्रीमद्भगवद गीता एवं ब्रह्मसूत्र पर ऐसे भाष्य लिखे जो दुर्लभ हैं। इसके अलावा उपनिषद, ब्रह्मसूत्र एवं गीता पर भी उन्‍होंने लिखा। वे अपने समय में उत्कृष्ट विद्वान एवं दार्शनिक थे।
आज भी दुनिया में उनके जैसा ‘अद्वैत सिद्धान्त’ दुर्लभ है और अकाट्य है। खुद भारतीय सभ्‍यता के इतिहास में शंकराचार्य जैसा विद्वान नहीं हुआ। देखा जाए तो भारत में सही मायनों में उनके बाद कोई दार्शनिक ही नहीं रहा। बाद में जितने भी दार्शनिक हुए, उन पर शंकराचार्य का प्रभाव साफ देखा जा सकता है।
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शंकराचार्य का जन्‍म आज से तकरीबन ढाई हजार साल पहले 788 ई. में दक्षिण भारत के केरल में हुआ था। शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश में हिंदू धर्म का प्रचार किया और चार पीठो की स्‍थापना कर भारत को हिंदू दर्शन, धर्म और संस्‍कृति की अविरल सनातन धारा में पिरो दिया। दरअसल, उन्‍होंने एक तरह से हिंदू धर्म की फिर से स्‍थापना की। आज जिस हिंदू धर्म का स्‍वरूप में हमें दिखाई देता है, वह शंकराचार्य का ही बनाया हुआ है।
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बालक शंकर की प्रज्ञा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे सात वर्ष के हुए तो वेदों के विद्वान, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और सोलहवें वर्ष में उन्‍होंने ब्रह्मसूत्र- भाष्य रच दिया, जबकि उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी।
भारतीय इतिहास में शंकराचार्य को सबसे श्रेष्‍ठतम दार्शनिक कहा गया। उन्‍होंने अद्वैतवाद को प्रचलित किया। उपनिषदों, श्रीमद्भगवद गीता एवं ब्रह्मसूत्र पर ऐसे भाष्य लिखे जो दुर्लभ हैं। इसके अलावा उपनिषद, ब्रह्मसूत्र एवं गीता पर भी उन्‍होंने लिखा। वे अपने समय में उत्कृष्ट विद्वान एवं दार्शनिक थे।

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