Monday 21 March 2016

पहली बात तो ये समझ लीजिये की आप नरेंद्र मोदी नहीं है. आप कूद कर स्टेज पर चढ़ भी जाएँ तो जैसे भीड़ “मोदी...मोदी....” का नारा लगाना शुरू करती है वैसा नहीं होगा. काफ़ी संभावना है  कि आपका हाल राहुल बाबा वाला हो ! ब्लॉग या फेसबुक कोई फॉर्मल तरीका नहीं होता है. यहाँ लोग उतनी तमीज़ भी नहीं याद रखने वाले हैं. कई बार जो कमेंट आयेंगे उनके वर्णन के लिए विस्फोटक, ज्वलनशील, vitriolic, या caustic जैसे शब्द इस्तेमाल होते हैं. कई बार लोग सीधा गालियाँ भी टाइप कर डालेंगे. नरेंद्र मोदी को “मोदी...मोदी...” का नारा लगवाने में बरसों लगे हैं, आपको भी साल भर मेहनत तो करनी ही पड़ेगी.
ये संवाद का अनौपचारिक तरीका है. यानि Informal Communication, जिसके बारे में शायद ही कहीं पढ़ाया जाता है. कम से कम हिंदी में तो नहीं ही पढ़ाया जाता. ऐसे में जब कोई अपना ब्लॉग लिखना चाहे, या फेसबुक पर पोस्ट लिखना चाहे तो कैसे सीखेगा ? फ़िलहाल तो लोग गलतियाँ कर कर के ही सीखते हैं. अगर आप ये सोच रहे हैं कि अगर आदमी को लेखक-पत्रकार जैसा कुछ नहीं बनना तो वो सीखे ही क्यों ? तो शायद आपने गौर किया होगा कि ब्लॉग और सोशल मीडिया ने कई नए लेखक बना डाले हैं. थोड़े साल पहले तक जहाँ इन संस्थानों पर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों का कब्ज़ा था, वहीँ आज ये किला टूट रहा है.
आम नौकरीपेशा लोग, गृहणियां, छात्र सबने अपनी आवाज़ दर्ज करवानी शुरू कर दी है. कई लोग जो नहीं लिखना चाहते उनका मानना होता है कि मुझे तो लिखना ही नहीं आता. ये एक ग़लतफ़हमी है. अभी जब हम लिखने की बात कर रहे हैं तो हम किसी छठी क्लास के बच्चे को पहली बार essay लिखना नहीं सिखा रहे. एक लेख क्या होता है ये आप पहले से जानते हैं. उसके अलावा जो लिखने के फॉर्मल से तरीके होते हैं वो आप स्कूल-कॉलेज में सीख चुके हैं. यानि आप लेख – निबंध लिखना जानते हैं, कोई आवेदन पत्र (application) लिखना आपने सीखा था, घरेलु किस्म की चिट्ठियां लिखना भी आपको सिखाया गया था.
अगर लम्बे लेख लिखने में दिक्कत होती है तो पहले लेख का खाका बना लीजिये.
एक आउटलाइन बड़े काम की चीज़ होती है. अगर आपको बचपन का रंगना याद होगा तो उसमें जानवरों, चिड़ियों, कार्टून सबका सिर्फ आउटलाइन यानि खांचा होता था. उसके अन्दर रंग भरते वक्त आपको गलती तुरंत पता चल जाती थी. जैसे ही रंग खांचे से बाहर जाने लगे, लोग फ़ौरन संभल जाते हैं. ब्लॉग पोस्ट जैसा कुछ 1000 या ज्यादा शब्दों का लिखने बैठे हैं तो पहले ही तय कर लीजिये कि किस विषय पर लिखना है. जैसे ये लेख लिखते समय हम ये जोड़ के बैठे हैं कि सिर्फ लिखने के बारे में बताना है. पांच बिन्दुओं से ज्यादा नहीं इस्तेमाल करने हैं. ज्यादा से ज्यादा 1000 शब्दों तक जाना है.
मुकाबला खुद से है, किसी बाहर की चीज़ से नहीं है !
हमेशा याद रखिये कि आपका मुकबला आपसे ही है. किसी प्रेमचंद, किसी निराला, किसी मिल्टन, या शेक्सपियर से मुकाबला करने के लिए नहीं बैठे हैं आप. अख़बार के किसी शरद जोशी, किसी स्वामीनाथन के जैसे लेख लिखने भी नहीं बैठे. आपको कोई लिखने के पैसे थोड़ी ना दे रहा है ! किसी को आपने अपनी कलम किराये पर नहीं दी है ! आपका लिखा आपके खुद के ही पिछले लेख से बेहतर हो इसकी कोशिश कर रहे हैं आप. अगर आपका लिखा अभी का एक लाइन आपकी पिछली लाइन से बेहतर है तो आपने कामयाबी पा ली है.
इसके लिए आप छोटे शब्दों का इस्तेमाल भी सीख सकते हैं. अक्सर ये तरीका ब्लॉग, अख़बारों में लिखने पर फायदेमंद साबित होता है. जैसे, “आरंभ” के बदले “शुरू” लिखना.  टॉपिक ऐसा चुनिए जिसपर लोग बेवकूफी भरी बातें करते दिखते हों.
अक्सर किसी पोस्ट, किसी ब्लॉग पर चर्चा में, कमेंट्स में कुछ देखकर आपको लगेगा कि ये लोग ऐसे मूर्खतापूर्ण सवाल क्यों करते हैं ? किसी किसी के कमेंट पढ़कर हंसी भी आ जाती होगी. फ़ौरन उस पोस्ट, उस ब्लॉग के टॉपिक को धर दबोचिये. अगर वो आपको आसानी से समझ में आ रहा है तो एक ही वजह हो सकती है. आप उस विषय पर पहले से काफी ज्यादा जानते हैं. लोगों के सवाल बेवकूफी भरे लग रहे हैं तो इसका मतलब है ज्यादातर लोग उस विषय के बारे में नहीं जानते हैं. या फिर गलत, या बहुत कम, कुछ उल्टा पुल्टा सा जानते हैं.
ऐसे विषय पर अच्छा लिखने की संभावना आपके लिए काफ़ी बढ़ जाती है. उस विषय की दो चार किताबें आपके पास पहले से ही होंगी. उस से सम्बंधित कुछ इ – बुक्स आपने कंप्यूटर में रखी होंगी, पत्रिकाएं होंगी, वेबसाइट जानते होंगे आप ! आसानी से उस विषय पर कम मेहनत में आप ज्यादा अच्छा लिख लेंगे.
अभी हाल में ही, यानि 22 फ़रवरी को वर्ल्ड थिंकिंग डे था. लड़कियों के स्काउट एंड गाइड इस साल “connect” यानि एक दूसरे तक पहुँच बनाने और संवाद जोड़ने के विषय पर सोचने में जुटी होंगी. भारत, सोशल मीडिया पर लोग एक दूसरे से और आप खुद अपने आप से कैसे संवाद जोड़ते हैं ? कम से कम लिखे बिना आप अपने आप से तो नहीं जुड़ सकते ना ! खुद से बातें करने लगे तो लोग पागल कहेंगे. खतरा है, डायरी या इन्टरनेट पर कहीं लिखना ही बेहतर तरीका होगा.
कोशिश कीजिये आप खुद क्या सोचते हैं, वो जानकार आप खुद भी आश्चर्यचकित हो जायेंगे.



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