Wednesday 2 March 2016


ये तो महज एक शुरुवात है.
 मिर्च अभी और तेज होगी. वामपंथ अभी और बेनकाब होगा. 
आपका बौद्धिक आतंकवाद अब समाप्ति की ओर है. आह्वान हो चुका है. ध्यान से सुनिए आपको नए भारत की पदचाप सुनाई देगी.

साहब लोग नक्सलियों के समर्थक है. साहब लोग अपना अपना एनजीओ चलाते हैं. साहब लोग छंटे हुए कथाकार हैं, कहानियाँ लिखने में माहिर हैं. साहब लोगो का चार खुरों वाला नया भगवान है. कहाँ से आया, कौन लाया, क्या किया इस भगवान् ने कुछ पता नहीं.
साहब लोग आर्य-अनार्य का विवाद खड़ा करते हैं. इसके पक्ष में संस्कृत कोट करते हैं बिना यह जाने कि संस्कृत तो आर्यों की भाषा थी. साहब लोग संघ को गाली देते हैं. यहाँ तक कि जिस संघ का कभी हिस्सा नहीं रहे उस पर कवर पेज स्टोरी लिखते हैं.
साहब लोग देश की राजधानी में खुलेआम पाकिस्तान जिन्दाबाद और हिंदुस्तान के टुकड़े होंगे के नारे लगाते हैं. बिना ये सोचे कि गर हिंदुस्तान न रहा तो इन लोगों को दाना-पानी कहां से मिलेगा?
कहने की जरूरत नहीं कि साहब लोग JNU वाले बौद्धिक आतंकवाद की उपज हैं. ऐसे तथाकथित 'साहब लोग' हमारे देश में बुद्धिजीवी और समाजसेवी कहे जाते हैं.
इन 'घाघ' बुद्धिजीवियों के हाथ में पूरे 60 साल देश की शिक्षा व्यवस्था का दारोमदार था. इन्हीं लोगो ने वीर शिवाजी को 'पहाड़ी चूहा' और और सिख गुरुओं के हत्यारे औरंगजेब को 'सूफी बादशाह' बनाया. भगत सिंह को 'आतंकवादी' और शोभा सिंह को महिमामंडित करने वाले यही लोग थे.
इतिहास के नाम पर जमा कूड़ा करकट देश के युवाओ को पीढ़ी दर पीढ़ी शर्बत बता पिलाया गया. यहाँ तक कि हमारी जड़ो से हमें काट के रख दिया. हेमू कौन था और दाहिर कौन हमें नहीं पता. हरी सिंह नलवा का नाम पूछने पर हम अपने कान खुजाते नजर आते हैं.
क्यों भाई कौन बताएगा हमें इनके बलिदान के बारे में? कौन कहेगा उन लाखों अनाम शहीदों की गाथा जो पिछले 1200 सालो में देश के लिए बलिदान हो गये?
पूरे 60 साल देश ने इन लोगो को बिना उफ़ किये भुगता है. मगर आज महज 2 सालों में साहब लोगो के तख़्त हिलने लगे हैं. एक 'हाफ चड्डी' पहने कल का चाय वाला छोकरा आज 'लाल सलाम' का भगवाकरण करने में लगा है और साहब लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
तय नहीं कर पा रहे हैं कि वैचारिक प्रतिरोध करें या फिर से मार्क्स की 'खूनी क्रांति' लिख दें. पर क्या करें पूरा राष्ट्र केरल तो है नहीं जहाँ सघियों के आप कबाब बना कर खा सकें.
माना आपके शास्त्रों में लिखा है कि सत्ता बन्दूक की नलियों से होकर गुजरती है पर ये चीन या रूस नहीं है जहाँ कत्ल की नयी-नयी इबारतें लिखी गयी. ये भारत है जहाँ हमेशा शास्त्र ने शस्त्र को जीता है.
ये तो महज एक शुरुवात है. मिर्च अभी और तेज होगी. वामपंथ अभी और बेनकाब होगा. आपका बौद्धिक आतंकवाद अब समाप्ति की ओर है. आह्वान हो चुका है. ध्यान से सुनिए आपको नए भारत की पदचाप सुनाई देगी.
भारत नव निर्माण के पवित्र यज्ञ में आहुति लगना शुरू हो चुकी हैं. हो सके तो आप भी इस यज्ञ हिस्सा बनिए और खुद को शुद्ध कीजिये. वरना तय जानिए कि इस बार इतिहास हमारी कलमें लिखेंगी, जिसमें आपका असल वर्णन विस्तार से होगा.

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