Wednesday 24 February 2016

ai
 आज गोबर पर ही चर्चा की जाये. 
गाय के दूध-घी और यहाँ तक की गौमूत्र के भी सामान्य व औषधीय गुण उपयोग बहुत प्रसिद्ध व प्रचलित है किन्तु गाय के गोबर के विषय में ईंधन से अधिक कोई उपयोग आमजन में नहीं बताया जाता.  गाय के गोबर के भी कई औषधीय उपयोग आयुर्वेद व अन्य ग्रंथों में कहे गये हैं. शायद इसी लिये गाय के गोबर को "गोमय" नाम दिया गया है.

गाय के गोबर में जीवाणुनाशक व विषाणुहर शक्ति विद्यमान है. आधुनिक विज्ञान ने भी गोबर के इस गुण को माना है. रोगों के कीटाणु व दूषित गन्ध को नष्ट करने में गोबर अद्वितीय है. यहाँ तक कि भीषण रोगकारक बैक्टीरिया-वायरस के लिए तो गोबर यमराज के तुल्य है. इसी गुण के कारण कुछ वर्षों पूर्व इटली के वैज्ञानिकों ने एक शोध में कहा था कि टीबी सेनिटोरियम में कम से कम एक हिस्सा तो गोबर से लीपा हुआ रखा जाये तो टीबी कीटाणु अपेक्षाकृत तेजी से नष्ट होते हैं.
प्राचीनकाल से ही प्रत्येक गृहस्थ का घर आँगन व रसोई में गोबर के लेप किया जाता था. यही नहीं हर त्यौहार व शुभ मांगलिक अवसर पर गोबर से भूमि लीपना जरूर किया जाता था. कहा भी गया है कि "गोमयेन भूमिमुपलिप्य".
गोबर दूषित गंध को दूर करने में बेहतरीन फिनायल से भी अधिक गुणकारी है. विभिन्न गोसेवा केन्द्र गोबर व गौमूत्र से निर्मित फ्लोर क्लीनर, शैम्पू, साबुन, धूपबत्ती, अगरबत्ती इत्यादि बना रहे हैं. ये उत्पाद वाकई तुलनात्मक रूप से लाभप्रद साबित भी हो रहे हैं.
* गोमय के औषधीय प्रयोग:-
1. अत्यधिक पसीना आने की दशा में सूखे गोबर का चूर्ण शरीर पर मसल कर थोड़ी देर बाद स्नान करें. धीरे धीरे अतिस्वेद में लाभ होता है.
2. शीतला के प्रकोप में गाय के गोबर को जला कर बनाई राख को रोगी के नीचे बिछायें.
3. ताजा गोबर का कपड़े से दबा-निचो कर निकाला हुआ रस तीन चार बूँद सुबह शाम आँखों में डालने से रतौंधी में लाभ मिलता है.
4. बच्चों के पेट के कीड़ों में गाय के गोबर की राख को छान कर दस गुना पानी में घोलकर दो तीन घूँट करके दिन में कई बार पिलाने से कीड़े नष्ट होते हैं.
5. कुत्ता-बंदर आदि के काटने से हुए घाव पर तिनका आदि हटाया हुआ गोबर सुहाता गर्म करके लगाने से पीड़ा दूर होती है.
6. पुराने दाद पर सूखे गोबर के कण्डे से रगड़-खुजा कर दद्रुहर लेप लगाने से दाद मिटता है.
7. करंट लगने से कई बार स्थानिक या सार्वदैहिक रक्तप्रवाह रूक जाता है, एसे में गोबर की राख मलने से रक्तप्रवाह सुचारू होने लगता है.
8. व्रण-कण्डुहर मलहम:- सूखी खुजली में दस ग्राम नीला थोथा पचास ग्राम के लगभग ताजा गोबर में दबा कर सुखा लें. सूखने पर जलाकर राख कर लें. इस राख में दस दस ग्राम राल, सिन्दूर, देसी मोम व सज्जी पीसकर मिला लें व गौघृत आवश्यकतानुसार मिला कर मलहम बना लें. यह मलहम खुजली, फोड़े फुन्सी, नासूर इत्यादि में लाभप्रद है.
9. कुष्ठरोग में गोबर रस, काली मिर्च, निशोथ, मुस्ता, जटामांसी, लालचंदन, इंद्रायणमूल, कूठ, हल्दी, दारूहल्दी, अर्क दूध, हरताल, मैनसिल- सबको पीसकर चटनीनुमा बना लें.
इसे एक किलो तैल में दो किलो ताजा गौमूत्र के साथ डालकर पकायें. जब तैल मात्र शेष रहे तब उतार कर छान लें. इसे सुबह शाम लगाने से कुष्ठ, खाज, दाद, फोड़े आदि सभी में लाभ होता है.
10. गोबर व गौमूत्र से निर्मित साबुन, शैम्पू आदि त्वचारोग नाशक हैं.
11. अंगुलबेड़ा रोग में गोबर की राख में समान हल्दी चूर्ण कर घोटकर पानी में गाढा पेस्ट बनाकर अँगुली पर लेप करें व गीली पट्टी लपेट दें. पट्टी सूखने पर पुनः नम कर दें. कुछ दिन प्रयोग करने पर स्थायी लाभ हो जाता है.
* पंचगव्य:-
विभिन्न धर्मग्रंथों में पवित्र पंचगव्य बताया गया है. इस पंचगव्य में एक भाग गौघृत, एक भाग गौमूत्र, दो भाग दही, तीन भाग गौदुग्ध व आधा भाग गोमय होता है.
पंचगव्य को विशेष प्रभावी बनाने के लिए विशिष्ट गाय तथा विशिष्ट मंत्रों का भी उल्लेख है.
इसके अतिरिक्त भी आयुर्वेद में औषधि व भस्म आदि निर्माण के समय जंगली कण्डों की अग्नि देने का विधान बताया गया है. इसे पुट देना कहते हैं. विभिन्न उष्णता व ताप के आधार पर इसे गजपुट, कुक्कुटपुट, कपोतपुट आदि नाम दिया है.
कुछ निजी योगों में किण्वन प्रक्रिया आदि के लिए भी गोबर के ढेर में कुछ समय के लिए दबा कर रखने का निर्देश भी किया जाता है.
हवन इत्यादि में विविध रोगनाशक व पर्यावरण हितकारी समिधा काष्ठ के साथ गोबर के कण्डों व गौघृत का प्रयोग पर्यावरण शुद्धिकरण, रोगनाशन व धार्मिक उद्देश्यों की भी पूर्ति करता है.
स्पष्ट है कि गोबर कण्डों व बायोगैस के रूप में ईंधनोपयोगी तो है ही, साथ ही इसके कण्डों को जलाने से निकलने वाला धुँआ घी के संयोग से हानिकारक जीवाणु नष्ट करता है. इसी प्रकार यह औषधीय रूप में भी अत्यन्त हितकारी है.
एक अनुमान के तौर पर एक गाय प्रतिवर्ष 3500 किलो गोबर, 2000 लीटर गौमूत्र, 4500 घनफीट बायोगैस, 100 टन जैविक खाद प्रदान करती है. जैविक खाद से फसल में भी 20-30% का उत्पादन वृद्धि होती है.
गौदुग्ध, दही, गौघृत, गौमूत्र आदि के गुणों से तो आप अक्सर परिचित होते रहें हैं. आज आपको पता चल गया होगा कि गोबर भी बड़े काम की चीज है.
(डॉ. कुमारसम्भव जोशी)

No comments:

Post a Comment