Monday 11 January 2016

इन बातों को देखकर कुछ विचार मन में आते हैं

बच्चों को परियों की कहानी सुना कर सुलाते हुए बुजुर्ग महिला और पुरुषों को देखा है लेकिन स्वयं उम्र के इस पड़ाव में पहुँचने वाले बुजुर्ग को कोई फुसला कर कई निर्दोष व्यक्तियों की जान लेने को तैयार कर ले और झूठे ख्वाब दिखाए कि मासूमों की हत्या करके तुम जन्नत जा कर प्रोफेट मुहम्मद के साथ दस्तरखान में भोजन करने का मौका मिलेगा तो ये बात निहायत चौंकाने वाली लगती है , इस उम्र में जहाँ नाती पोते घर में खिलखिलाते घूमते हैं वहां मन में ममता,दया और समझदारी होने की जगह सिर्फ भोजन करने के लिए इतनी हत्याओं के लिए कोई कैसे तैयार किया जा सकता है , इन बातों को देखकर कुछ विचार मन में आते हैं
1- या तो इन्हें बचपन से ही इस्लाम के बारे में ठीक तरह से समझाया नहीं गया , अगर समझाया जाता तो ये बुजुर्ग इन्हें पट्टी पढ़ाने वाले जेहादियों से कह देते कि मुझे नहीं चाहिए ऐसी जन्नत जहाँ बेगुनाह काफिरों की खून से लथपथ लाशों पर चलकर प्रोफेट के साथ खाना नोश फरमाउं , न मेरा खुदा कभी कहता है कि बेगुनाहों को मारो ...
2- या इनकी आसमानी किताब में काफिरों की हत्या को बार-बार हजार बार जायज बताया गया है जिसे पढ़-पढ़ कर इनका मन खुद कहने लगा कि अब उम्र हो चली, कुछ हत्याएं कर ही लूँ जिससे जन्नत नसीब हो
फ़िलहाल जो भी है पर गलत ही है , ये इस्लाम को सही तरह से समझते हैं तो अब्दुल कलाम बनते हैं अशफ़ाक़ुल्लाह बनते हैं और इस्लाम ठीक तरह से नहीं समझते हैं तो जेहादी बनते हैं
और जरा गिनिये ऊँगली पर कि जेहादी ज्यादा हैं दुनिया में या अब्दुल कलाम
अगर जेहादी ज्यादा हैं तो संशोधन कीजिये अपनी किताब में जो आपको जेहाद की तरफ प्रेरित कर रही है या किताब में कोई कमी नहीं तो उन मौलानाओ की गर्दन पकड़िये जो आपको गलत रास्ते पर डाल रहे हैं
फैसला आपके हाथ
क्योंकि
बदनाम आप ही हो रहे हैं

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