Friday 29 January 2016


RAW का यह एजेन्ट पाकिस्तान की

 सेना में बन गया मेजर;

 ISI को भनक भी नहीं लगी

हेडलाइन पढ़कर आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे, लेकिन यह सच है। भारत के अग्रणी गुप्तचर
 संस्थान रिसर्च एन्ड एनेलिसिस विंग (RAW) का एक एजेन्ट न केवल पाकिस्तान की सेना 
में मेजर बन गया, बल्कि लंबे समय तक इसके बारे में न तो पाकिस्तान की सरकार को कुछ
 पता चला और न ही वहां की एजेन्सी ISI को।
रवीन्दर कौशिक नामक इस एजेन्ट का जन्म हुआ था वर्ष 1952 में राजस्थान के श्रीगंगानगर में। बताया जाता है कि थिएटर का शौकीन रवीन्दर युवावस्था में ही RAW के 
सम्पर्क में आ गया था। यह संभवतः वर्ष 1975 की घटना थी। उस समय रवीन्दर ने शायद
 ही सोचा होगा कि वह जो कुछ भी करने जा रहा है, उससे उसकी जिन्दगी हमेशा के लिए 
बदल जाएगी।
रवीन्दर कौशिक उर्फ नबी अहमद भारत का सबसे तेज-तर्रार एजेन्ट था, जो पाकिस्तानी सेना की रैन्क को तोड़ने में सफल रहा था। 23 वर्ष की अवस्था में उसने RAW के लिए 
अन्डरकवर के रूप में काम करना शुरू किया था।
दिल्ली में अपनी ट्रेनिंग के दौरान उसने उर्दू सीखी और अलग-अलग मुस्लिम धार्मिक ग्रन्थों 
पर पकड़ बनाना शुरू किया। यही नहीं, वर्ष 1975 में पाकिस्तान भेजे जाने से पहले उसका
 खतना भी कर दिया गया, ताकि उसकी पहचान मुसलमान के रूप में हो।
पाकिस्तान भेजने से पहले भारत ने यहां उसके सारे दस्तावेज और रिकॉर्ड नष्ट कर दिए और
 पाकिस्तान के लिए उसकी एक नई पहचान बनाई गई। नाम दिया गया नबी अहमद शकीर। 
पाकिस्तान में घुसने के बाद रवीन्दर ने नबी अहमद के रूप में कराची विश्वविद्यालय में 
एलएलबी में दाखिला ले लिया।
इसी दौरान उसे पाकिस्तान सेना में इन्ट्री मिल गई। जल्दी ही वह मेजर के रैन्क तक भी पहुंच गया। अपने पाकिस्तान प्रवास के दौरान रवीन्दर कौशिक ने अमानत नामक एक
 लड़की से शादी भी कर ली और एक बच्चे का बाप बन गया।
वर्ष 1979 से 1983 के बीच उसने भारत को जरूरी जानकारियां मुहैया कराई। यहां तक की
 भारत खुफिया हलकों में उसे ‘द ब्लैक टाइगर’ कहा जाने लगा। माना जाता है कि यह नाम
 उसे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने दिया था।
वर्ष 1983 में RAW ने इनायत मसीहा नामक अपने एक एजेन्ट को नबी अहमद से सम्पर्क साधने के लिए कहा। दुर्भाग्य से इनायत को पाकिस्तानी एजेन्सियों ने पकड़ लिया। 
प्रताड़ना के बाद इनायत ने नबी अहमद की पहचान बता दी।
रवीन्दर कौशिक को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। 1985 में उसे मौत की सजा सुनाई गई। 

हालांकि बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारागार में 
तब्दील कर दिया।
रवीन्दर कौशिक ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 16 साल मियावली और सियालकोट के जेलों में बिताए। पाकिस्तान की जेलों में खराब मानवीय हालत की वजह से रवीन्दर को अस्थमा और 
टीबी हो गया, जो उसकी मौत की का कारण बन गया। वर्ष 2001 में न्यू सेन्ट्रल मुल्तान जेल में 
उसने आखिरी सांस ली। उसे जेल परिसर में ही दफना दिया गया।

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