Sunday 31 January 2016

और इस तरह गाय ने बदल दी इस गांव की जिंदगी!

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रायसेन। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के इमलिया गौंडी गांव के लोगों की जिंदगी में गौ-पालन ने बड़ा बदलाव ला दिया है। एक तरफ जहां वह लोगों के रोजगार का जरिया बन गई है, वहीं गाय की सौगंध खाकर लोग नशा न करने का संकल्प भी ले रहे हैं। इमलिया गौंडी गांव में पहुंचते ही ‘गौ संवर्धन गांव’ की छवि उभरने लगती है, क्योंकि यहां के लगभग हर घर में एक गाय है। इस गाय से जहां वे दूध हासिल करते हैं, वहीं गौमूत्र से औषधियों और कंडे (उपला) का निर्माण कर धन अर्जन कर रहे हैं। इस तरह गांव वालों को रोजगार भी मिला है।
भोपाल स्थित गायत्री शक्तिपीठ द्वारा इस गांव के जंगल में गौशाला स्थापित की गई है। इस गौशाला के जरिए उन परिवारों को गाय भी उपलबध कराई जा रही है, जिनके पास गाय नहीं है। अभी तक 150 परिवारों को गाय उपलब्ध कराई जा चुकी है। इस गौशाला में हर रविवार को ग्रामीण क्षेत्र से लोग औषधि बनाना सीखने आते हैं। गौशाला प्रबंधन मुक्त में इन ग्रामीणों को 44 प्रकार की औषधियां बनाना सिखाता है। साथ ही गरीब किसानों को मुक्त में खाद और एक गाय भी दी जाती है।
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गौशाला का संचालन करने वाले डा़ॅ शंकरलाल पाटीदार ने बताया कि यह गौशाला 22 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है और यहां अलग-अलग प्रजाति की 350 से अधिक गाय मौजूद हैं। यहां आने वाले ग्रामीणों को गोबर और गौमूत्र से बनने वाली औषधियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे एक तरफ जहां गाय परिवार के लिए दूध देती है, वहीं गोबर और गौमूत्र के अर्क के साथ बनने वाली औषधियां आय का साधन भी बन रही हैं। साथ ही जैविक खाद को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।डॉ. पाटीदार ने बताया कि जिन परिवारों को पास गाय नहीं है, उन्हें गौशाला की ओर से गाय उपलब्ध कराई जाती है। इस गांव में 2500 की आबादी है और लगभग 450 घर हैं। इस गांव में अब तक 150 गाय गौशाला की ओर से दी जा चुकी है।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या की अध्यक्षता में इसी गांव में राष्ट्रीय गौ-विज्ञान कार्यशाला का आयोजन हुआ था। तभी से यहां पर गौमूत्र व गौ आधारित पदार्थों से कई तरह की दवाइयां बनाना सिखाई जाती हैं। इस हुनर को सिखने के बाद कई महिलाओं ने अपना खुद का रोजगार स्थापित किया है।
अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या का कहना है कि ‘गौ-संरक्षण, गौ-पालन, गौ-संवर्धन सबका कर्तव्य है। गौ-सेवा के साथ पंचगव्य आधारित उत्पादों की दिशा में कार्य होने चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हमने गांव वालों से किया वादा पूरा कर दिया है। अब इसे निरंतर जारी रखने का कार्य गांव वासियों का है। बदली हुई गांव की तस्वीर आने वाले दिनों में समाज की तस्वीर बदलेगी।
इस गांव में एक तरफ गौ संवर्धन के प्रति लोगों में जागृति आई है, वहीं ग्रामीण गाय की सौगंध खाकर नशा न करने का संकल्प भी ले रहे हैं। इस गांव के अब तक 95 प्रतिशत लोग नशा न करने का संकल्प ले चुके हैं।
हरिद्वार स्थित गायत्री परिवार के प्रमुख केंद्र शांतिकुंज के मीडिया सेल की तरफ से आईएएनएस को बताया गया कि इमलिया गौंडी गांव की ही तरह कई अन्य स्थानों पर भी गौ संरक्षण का कार्य चल रहा है, जिनमें उत्तराखंड का भोगपुर, हरिद्वार तथा मध्यप्रदेश में सेंधवा, बुरहानपुर आदि प्रमुख है|

पांच साल की उम्र में याद कर लिए गीता के 700 श्लोक




महज पांच साल की उम्र में गीता के सात सौ श्लोक कंठस्थ करने वाली काशी की सोनम पटेल  की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में की तो उसका उत्साह और बढ़ गया। सोनम ने बीते 18 सितंबर को बनारस दौरे पर आए पीएम से डीरेका गेस्ट हाउस में मुलाकात की थी और उनको गीता के चौथे अध्याय का श्लोक सुनाया था।

सुंदरपुर मुहल्ले के निजी स्कूल के शिक्षक सदाबृज पटेल की दो संतानों में सबसे बड़ी पुत्री सोनम  तब चर्चा में आई जब ‘मन की बात’ के दौरान पीएम ने उसकी तारीफ की।

कम उम्र में ही उसे पूरी गीता याद हो गई थी

कम उम्र में ही उसे पूरी गीता याद हो गई थी
दरअसल दो दिन पहले अपने पिता के साथ सोनम डीरेका गेस्टहाउस में पीएम से जब मिलने पहुंच थी, तब उसने अपनी वाक्पटुता और निर्भीकता से उन्हें प्रभावित किया था। सोनम के मुताबिक पीएम को जब बताया गया कि कम उम्र में ही उसे पूरी गीता याद हो गई थी, तब उन्होंने उसकी तारीफ की और कहा कि तुम्हें जो श्लोक बहुत अच्छा लगता हो उसे सुनाओ।

इसके बाद सोनम ने गीता के चौथे अध्याय का सातवां श्लोक- 
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:...सुनाया। 
पीएम ने इस पर उसे शाबाशी दी, फिर पढ़ाई के बारे में पूछने लगे। यूनिवर्सल एकेडमी की पांचवीं कक्षा की छात्रा सोनम को इंग्लिश में भी पूरी गीता याद है। मन की बात में पीएम ने उसका जिक्र किया तो परिवार के लोग खुशी से झूम उठे। 
पीएम की सराहना के कुछ देर बाद ही सुंदरपुर इलाके में महज पांच सौ वर्ग फुट में बने उसके छोटे से मकान के सामने इस नन्हीं प्रतिभा को देखने और बधाई देने वालों की भीड़ लग गई। सोनम का कहना है कि वह आने वाले समय में अपने पिता के साथ गीता प्रचार के लिए विश्व भ्रमण पर निकलेगी।

Saturday 30 January 2016

भारतीय बुद्धिजीवी जैसा अव्यवहारिक और हकीकत से मीलों दूर जीने वाला व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखा. दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है और उसे मोदी, आरएसएस और प्याज-टमाटर से अलग कुछ दिख ही नहीं रहा.
वही हाल राष्ट्रवादियों का है, जो आमिर और शाहरुख़ से आगे ही नहीं बढ़ रहे हैं. मगर उनसे तो और कोई उम्मीद की भी क्या जा सकती है.भगवान भला करे भारतवर्ष का!!

सृष्टि के मूल में है और चेतना जीवन के क्रमिक विकास में कहीं पदार्थ से निकली है


दुनिया में बहुत से भ्रम हैं। उनमे एक बड़ा भ्रम यह है कि पदार्थवाद या भौतिकतावाद एक वैज्ञानिक सत्य है। जबकि वास्तविकता इससे मीलों दूर है। पदार्थवाद कहता है कि पदार्थ सृष्टि के मूल में है और चेतना जीवन के क्रमिक विकास में कहीं पदार्थ से निकली है। कब, कहाँ और कैसे यह वह न जानता है न बता सकता है। ऐसा कोई भी वैज्ञानिक तथ्य नहीं है जो यह साबित कर सके कि चेतना पदार्थ से निकली है।
चूंकि जीवन के क्रमिक विकास के सिद्धांत से इतना समझ आ गया कि जीवन का विकास इसी पृथ्वी पर हुआ है और किसी ईश्वर ने स्वर्ग से आदम और हव्वा नहीं भेजे हैं तो यह भी मान लिया गया कि चेतना भी इसी विकास में कहीं पैदा हुई होगी। हालांकि सबसे पहले क्रमिक विकास का सिद्धांत देने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वालेस स्वयं इस बात से सहमत नहीं थे। वालेस का मानना था कि पदार्थ और चेतना अलग अलग है और क्रमिक विकास में चेतना पदार्थ से मिली है न कि उससे निकली है। वालेस के साथ डार्विन बाद में मिले और दोनों ने मिलकर द थ्योरी ऑफ़ ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज लिखी।
खैर पदार्थवाद को सबसे बड़ा झटका लगा क्वांटम विज्ञान की खोज से। क्वांटम विज्ञान ने बताया कि पदार्थ तब तक अस्तित्व में नहीं आता जब तक कि उसका अवलोकन न हो। अवलोकन से पहले वह एक तरंग के रूप में रहता है और अवलोकन पर वह पदार्थ का रूप लेता है। इस खोज ने विज्ञान जगत में खलबली मचा दी। क्योंकि अवलोकन के लिए चेतना ज़रूरी है, तो फिर चेतना पहले हुई, पदार्थ बाद में।क्वांटम विज्ञान की खोज के बाद कई वैज्ञानिकों ने यह मान लिया कि चेतना ही मूल में है और पदार्थ उससे निकला है। इसमें सबसे अहम नाम थे महान ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक और फिजिक्स के नोबल प्राइज विजेता एर्विन श्रोडिंगर। श्रोडिंगर ने चेतना को समझने के लिए भारतीय वेदांत का अध्ययन किया और वे उससे इतने प्रभावित हुए की आजीवन वेदांत के अनुयायी बने रहे।
मगर क्वांटम विज्ञान की एक समस्या यह थी कि वह आइंस्टीन के थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी से मेल न खाता था। दोनों अपनी जगह सही थे मगर एक दूसरे से बेमेल। इस पर वैज्ञानिकों में लंबी बहस हुई। आइंस्टीन एक अन्य क्वांटम वैज्ञानिक नील बोर से सालों बहस करते रहे और हर बार बोर ही विजेता रहे। इस मलाल को लेकर आइंस्टीन ने भी चेतना को समझने के लिए भारतीय अध्यात्म को समझना चाहा और गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर से लंबी चर्चाएं कीं। परन्तु नतीजा कुछ न निकला। क्वांटम विज्ञान और चेतना उनके लिए पहेली ही बने रहे।
उसके बाद लंबे समय तक वैज्ञानिक मतभेद में ही रहे। फिर आए ऑस्ट्रेलियाई फिलॉसफर और वैज्ञानिक डेविड चामर। डेविड ने अपनी पुस्तक The conscious mind में hard problem ऑफ़ consciousness का ज़िक्र किया। hard problem यानि मनुष्य का आंतरिक संसार और उसकी फ्री विल। डेविड ने कहा कि चेतना पदार्थ से निकल ही नहीं सकती क्योंकि इससे आप मनुष्य के आंतरिक संसार और फ्री विल को एक्सप्लेन नहीं कर सकते। पदार्थ से निकली चेतना से मनुष्य सिर्फ एक आम कंप्यूटर जैसा हो सकता है, बिना किसी अनुभव और फ्री विल के। पदार्थवादी वैज्ञानिक हार्ड प्रॉब्लम को टालते रहे क्योंकि न तो उनके पास कोई उत्तर था न आज है।
इसी दौरान चेतना को समझने के लिए एक नए किस्म के विज्ञान की शुरुआत हुई जिसे न्यू ऐज या नए युग का विज्ञान कहते हैं। इसका केंद्र अमेरिका की एरिज़ोना यूनिवर्सिटी रहा। इसके वैज्ञानिकों ने चेतना के मॉडल बना कर बताया कि किस तरह चेतना सृष्टि के मूल में है पदार्थ उससे निकला है। इसी बीच एक सबसे महत्वपूर्ण काम किया आज दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में एक माने जाने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक रॉजर पेनरोस ने। रॉजर ने अपनी किताब द एम्परर्स न्यू माइंड में क्वांटम विज्ञान और थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का मेल कराते हुए एक नई थ्योरी दी जिसे उन्होंने ऑब्जेक्टिव रिडक्शन का नाम दिया। इस थ्योरी में उन्होंने भी यही कहा कि चेतना ब्रह्माण्ड के मूल में है और एक्सप्लेन किया कि किस तरह उस चेतना की तरंग ऑब्जेक्टिव रिडक्शन पर पदार्थ को जन्म देती है। रॉजर के साथ जुड़े अमरीकी जीववैज्ञानिक स्टुअर्ट हमरोफ़्फ़्। दोनों ने मिलकर चेतना का मॉडल बनाया और सपष्ट किया कि किस तरह ब्रह्माण्ड के मूल से चेतना मानव मस्तिष्क में न्यूरोन के भीतर microbules में ऑब्जेक्टिव रिडक्शन से आती है। इस मॉडल को उन्होंने नाम दिया ऑर्केस्ट्रेटेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन मॉडल। ORCH- OR या और-ORCH। ORCH-OR आज चेतना का सबसे विस्तृत और व्यापक मॉडल है जो लगभग वही कहता है जो भारतीय या पूर्वी अध्यात्म कहता है। हालांकि वह अभी मॉडल ही है और सर्व मान्य नहीं है, मगर वह दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों से आया है न कि किसी बाबा या महर्षि से।
Manmohan Nahar ji और Nikhilesh Mishranik ji मैं आपका और आपके मित्रों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा। यह ज़रूरी नहीं है कि आप इसे माने मगर स्वयं अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि पदार्थवाद कितना सही है और कितना गलत।
"एएसआई के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. बीबी लाल की अगुवाई में १९७६-७७ में अयोध्या में जो खुदाई हुई थी उसमें मंदिर के अवशेष मिले थे। उस खुदाई के लिए बनी टीम में मैं भी शामिल था। लेकिन मार्क्सवादी इतिहासकारों ने झूठ बोला। लोगों को ही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी गुमराह किया।
अयोध्या का मसला बहुत पहले हल हो जाता लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों का ब्रेनवाश किया और उनसे झूठ बोला। डॉ इरफान हबीब उस वक्त भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के चेयरमैन थे। उनकी अगुवाई में जो बैठकें होती थीं उसमें रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस गोपाल जैसे (वामपंथी) इतिहासकारों ने तर्क दिया कि उन्नीसवीं सदी के पहले अयोध्या में तोड़फोड़ होने का कोई ऐतिहासिक जिक्र नहीं है। सूरज बेन, अख्तर अली, आरएस शर्मा और डीएन झा जैसे वामपंथी इतिहासकारों ने इसका समर्थन किया।
ये वो लोग थे जिनमें से कई लोगों ने मुस्लिम चरमपंथियों के साथ मिलकर खुलेआम बाबरी एक्शन कमेटी का समर्थन किया।
खुदाई के दौरान हमें विवादित स्थल पर चौदह स्तंभ मिले थे। सभी स्तंभों पर जो नक्काशी हुई थी वह ग्यारहवीं और बारहवीं सदी में मंदिरों के स्तंभों पर होनेवाली नक्काशी जैसी थी। यह भी स्पष्ट हो गया था कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी है। उन दिनों मैंने अंग्रेजी के कई अखबारों में अपना लेख भेजा था लेकिन किसी ने उसे प्रकाशित नहीं किया। सिर्फ एक अखबार ने प्रकाशित किया, वह भी लेटर टू एडीटर कॉलम में।"
(भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग "एएसआई" रीजनल डायरेक्टर रहे केके मुहम्मद ने मलयालम में लिखी आत्मकथा "मैं एक भारतीय" में ये तथ्य लिखे हैं।)


सभी भाइयो को अहमदाबाद की दलित महिला उद्योगपति सविताबेन परमार से प्रेरणा लेनी चाहिए... जिन्होंने ठेले पर कोयला बेचा, मजदूरी की और आज चार सौ करोड़ का टर्नओवर करने वाली स्टर्लिंग सिरेमिक्स लिमिटेड की मालकिन है... उनके पास ओडी, पजेरो, बीएमडब्ल्यू, मर्सीडीज जैसी लक्जरी कारो का काफिला है... और अहमदाबाद के पॉश एरिया में १० बेडरूम का विशाल बंगला है...
और हाँ ..सविताबेन परमार ने कभी दिलीप मंडल जैसे तथाकथित उन दलित एक्टिविस्टो के ब्रेनवाश के चक्कर से दूर रहकर समाज में मेहनत करके अपने दम पर आज विशाल साम्राज्य खड़ा किया .. वो भी उस गुजरात में जिसे वामपंथी दोगले हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहते है...
क्या कोई वामपंथी दोगला ये बता सकता है की यूपी बिहार , बंगाल आदि राज्यों में जहाँ कई दलित नेता अपने आपको दलितों कारहनुमा बताते है वहां कितने दलित उद्योगपति है?
सविताबेन के पति देवजीभाई सिटी बस में कन्डक्टर थे .. बेहद मामूली सेलेरी मिलती थी.. जिसमे गुजारा नही होता था ..इसलिए मजबूरी में सविताबेन ने मिलों में से जला हुआ कोयला बीनकर उसे ठेले पर लेकर घर घर बेचना शुरू किया .. इसलिए उन्हें सब कोलसावाला [गुजराती में कोयला को कोलसा कहते है ] कहने लगे ... फिर उन्होंने कोयला की एक छोटी दूकान शुरू की... एक सिरेमिक वाले ने उनसे अर्जेंसी में कोयला खरीदा.. कोयला की डिलेवरी औरपेमेंट लेने कई बार सविताबेन कारखाने में गयी ..और उन्होंने अपनी छोटी सी सिरेमिक भट्टी डाल दी ... सिरेमिक की क्वालिटी अच्छी थी ,..धंधा चल निकला .. फिर उन्होंने 1989 में प्रीमियर सिरेमिक्स और 1991 में स्टर्लिंग सिरेमिक्स लिमिटेड नामक कम्पनी बनाई.. और कई देशो में आज सिरेमिक्स प्रोड्क्स एक्सपोर्ट करती है ..

Friday 29 January 2016


RAW का यह एजेन्ट पाकिस्तान की

 सेना में बन गया मेजर;

 ISI को भनक भी नहीं लगी

हेडलाइन पढ़कर आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे, लेकिन यह सच है। भारत के अग्रणी गुप्तचर
 संस्थान रिसर्च एन्ड एनेलिसिस विंग (RAW) का एक एजेन्ट न केवल पाकिस्तान की सेना 
में मेजर बन गया, बल्कि लंबे समय तक इसके बारे में न तो पाकिस्तान की सरकार को कुछ
 पता चला और न ही वहां की एजेन्सी ISI को।
रवीन्दर कौशिक नामक इस एजेन्ट का जन्म हुआ था वर्ष 1952 में राजस्थान के श्रीगंगानगर में। बताया जाता है कि थिएटर का शौकीन रवीन्दर युवावस्था में ही RAW के 
सम्पर्क में आ गया था। यह संभवतः वर्ष 1975 की घटना थी। उस समय रवीन्दर ने शायद
 ही सोचा होगा कि वह जो कुछ भी करने जा रहा है, उससे उसकी जिन्दगी हमेशा के लिए 
बदल जाएगी।
रवीन्दर कौशिक उर्फ नबी अहमद भारत का सबसे तेज-तर्रार एजेन्ट था, जो पाकिस्तानी सेना की रैन्क को तोड़ने में सफल रहा था। 23 वर्ष की अवस्था में उसने RAW के लिए 
अन्डरकवर के रूप में काम करना शुरू किया था।
दिल्ली में अपनी ट्रेनिंग के दौरान उसने उर्दू सीखी और अलग-अलग मुस्लिम धार्मिक ग्रन्थों 
पर पकड़ बनाना शुरू किया। यही नहीं, वर्ष 1975 में पाकिस्तान भेजे जाने से पहले उसका
 खतना भी कर दिया गया, ताकि उसकी पहचान मुसलमान के रूप में हो।
पाकिस्तान भेजने से पहले भारत ने यहां उसके सारे दस्तावेज और रिकॉर्ड नष्ट कर दिए और
 पाकिस्तान के लिए उसकी एक नई पहचान बनाई गई। नाम दिया गया नबी अहमद शकीर। 
पाकिस्तान में घुसने के बाद रवीन्दर ने नबी अहमद के रूप में कराची विश्वविद्यालय में 
एलएलबी में दाखिला ले लिया।
इसी दौरान उसे पाकिस्तान सेना में इन्ट्री मिल गई। जल्दी ही वह मेजर के रैन्क तक भी पहुंच गया। अपने पाकिस्तान प्रवास के दौरान रवीन्दर कौशिक ने अमानत नामक एक
 लड़की से शादी भी कर ली और एक बच्चे का बाप बन गया।
वर्ष 1979 से 1983 के बीच उसने भारत को जरूरी जानकारियां मुहैया कराई। यहां तक की
 भारत खुफिया हलकों में उसे ‘द ब्लैक टाइगर’ कहा जाने लगा। माना जाता है कि यह नाम
 उसे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने दिया था।
वर्ष 1983 में RAW ने इनायत मसीहा नामक अपने एक एजेन्ट को नबी अहमद से सम्पर्क साधने के लिए कहा। दुर्भाग्य से इनायत को पाकिस्तानी एजेन्सियों ने पकड़ लिया। 
प्रताड़ना के बाद इनायत ने नबी अहमद की पहचान बता दी।
रवीन्दर कौशिक को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। 1985 में उसे मौत की सजा सुनाई गई। 

हालांकि बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारागार में 
तब्दील कर दिया।
रवीन्दर कौशिक ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 16 साल मियावली और सियालकोट के जेलों में बिताए। पाकिस्तान की जेलों में खराब मानवीय हालत की वजह से रवीन्दर को अस्थमा और 
टीबी हो गया, जो उसकी मौत की का कारण बन गया। वर्ष 2001 में न्यू सेन्ट्रल मुल्तान जेल में 
उसने आखिरी सांस ली। उसे जेल परिसर में ही दफना दिया गया।


शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बांकि यही निशा होगा

आज जिस जमीन पर हम भारतीयों को इतना गुमान है
आज जिसे हम धरती का जन्नत बताकर गर्व महसूस करते हैं, शायद आपमें से कम हीं लोगों को ये पता होगा कि इसके पीछे उस आदमी की बाजु है जिसने टूटे हुए हाथों से भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। आज हम आपको बताएंगे मेजर सोमनाथ शर्मा के बारे में जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर कश्मीर को पाकिस्तान के हाथों में जाने से बचा लिया। 

मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था। उनके पिता भी भारतीय सेना में मेजर के पद पर थे। 31 अक्टूबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी को कश्मीर के बड़गाम पर एयरलिफ्ट किया गया। यद्यपि उनके एक हाथ पर प्लास्टर था, लेकिन उन्होंने फिर भी अपनी कंपनी के साथ जाने की इजाजत मांगी। उन्हें परमिसन मिल भी गया। ये उनकी देशभक्ति ही थी जिसने उन्हें ऐसा हालत में भी युद्ध के मोर्चे पर जाने को प्रेरित किया।

3 नवंबर की उस हड्डियों तक को जमा देने वाली ठंढ में दुश्मन ने हमला किया। दुश्मन पूरे साजो-सामान के साथ आए थे। वो करीब 700 की संख्या में थे और उनके पास पूरी टैंक बटालियन मौजूद थी। मेजर सोमनाथ शर्मा की अगुवाई वाली टुकड़ी में सिर्फ 100 सैनिक थे। उनकी कंपनी के पास दुश्मनों के मुकाबले का कोई हथियार नहीं था। इस मुश्किल घड़ी में शर्मा ने अपनी टुकड़ी का मजबूती से नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी कंपनी के जवानों को दुश्मन के सामने डटकर लड़ने को प्रेरित किया। इसके बदौलत अपने बचे-खुचे हथियारों के साथ भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों पर हमला बोल दिया।

मेजर सोमनाथ शर्मा खुद एक-एक पोस्ट पर जाकर अपने सैनिकों की हौसला अफजाई करते रहे। उन्हें अच्छी तरह पता था कि अगर ये पोस्ट हथिया लिया गया तो कश्मीर हवाई अड्डे को बचाना मुश्किल हो जाएगा और एक बार हवाई अड्डा हाथ से चला गया तो कश्मीर को बचाना अत्यंत दुस्कर हो जाएगा। पोस्ट पर जाने से वो बुरी तरह घायल हो गए। इधर भारतीय सैनिकों की संख्या कम होने लगी। यद्यपि उन्होंने शत्रु सेना का बहादुरी से मुकाबला किया लेकिन दुश्मन के मजबूत हथियारों क सामने शहीद हो गए। तब मेजर सोमनाथ शर्मा ने खुद ही मैगजीन भर-भर कर अपने सिपाहियों को देने लगे। इसके अलावा वो लाईट मशीन गन भी चलाते रहे।

इसी दौरान शत्रु की तोप का एक गोला उन्हें लग गया और वो शहीद हो गए। मरने से पहले उन्हेंने अपने कमांड को कहा था कि शत्रु सिर्फ 50मीटर की दूरी पर है लेकिन मैं और मेरे सिपाही आखिरी दम तक लड़ेंगे। मरणोंपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वो परमवीर चक्र पाने वाले पहले सैनिक थे।

Suresh Chiplunkar

असहिष्णुता सिर्फ भारत में नहीं है... ठेठ अमेरिका तक फैला हुआ है... ग्रीनपीस और फोर्ड फाउन्डेशन जैसे "महाकाय" खुराफातियों की पूँछ पर पैर रखने का ही नतीजा है कि मोदी के सत्ता में आते ही अचानक चर्च में मामूली चोरी की घटना अंतर्राष्ट्रीय बन जाती है...जो "गिरोह", 1999 में शनि शिंगणापुर में महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज़ उठा रहा था... उसी "गिरोह" को महाराष्ट्र और केन्द्र में भाजपा के सत्ता में आते ही, आज पूरे सोलह साल बाद फिर से शनि याद आए... बाकी राजदीप हो, तीस्ता सीतलवाड हो या हर्ष मंदर अथवा अरुंधती रॉय हो... जरा सी खुदाई कीजिए, जरा सी दुम उठाईये... तो किसी NGO गिरोह या वेटिकन पोषित संस्था से इनका कनेक्शन तुरंत सामने आ जाएगा...

मोदी को चुपचाप अपना काम करने दो... "विरोधियों के खेमे" में हडकम्प मचा हुआ है...
समझ सकते हो तो समझ जाओ... वर्ना सेकुलर-प्रगतिशील बन जाओ...

जब केरल के राजा शिवाराम ने पिछले हफ्ते अपने माता-पिता का आधार कार्ड बनवाने के लिए पीएमओ को लिखा तो उनको ऐसी प्रतिक्रिया मिलेगी इसकी उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी। शिवाराम ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि उन्हें अपना घर शिफ्ट करना था जिस वजह से वो अपने बूढ़े माता-पिता का आधार कार्ड बनवाना चाहते थे। उन्हें इसके लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। हाकर उन्होंने पीएमओ को लिखने की सोची।  थोड़ी देर बाद ही उन्हें इ-मेल करके उनका कम्प्लेन नंबर उन्हें बताया गया। इसके थोड़ी ही देर बाद निकटतम आधआर कार्ड सेंटर से तुरंत 4 कॉल्स आए। 


रविवार को उनके घर पर आधार से जुड़े अधिकारी सारे लाव-लस्कर के साथ पहुंचे और उन्होंने तुरंत ही उनके माता-पिता की जरूरत के सारे कागजात बनवा ले गए। शिवाराम ने बताया कि ये एक अद्भुत अनुभव था जो कि एक आम आदमी को उम्मीद देगा।

ये पहला मौका नहीं जब मोदी सरकार में किसी आम आदमी की मदद की गई है। पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले साल 8 लाख से ज्यादा शिकायतें मिली जिसमें 6 लाख से अधिक को हल कर दिया गया है। जबकि यूपीए के दौरान महज 2 लाख शिकायतें मिली थी। 

Wednesday 27 January 2016


क्या आप जानते हैं मोती लाल नेहरु की एक धर्म पत्नी और चार अन्य अवैध पत्नियाँ थीं ।
(1) श्रीमती स्वरुप कुमारी बक्शी :- (विवाहिता पत्नी) से दो संतानें थीं ।
(2)
 थुस्सू  रहमान बाई :- से श्री जवाहरलाल नेहरु और शैयद हुसैन (अपने मालिक मुबारक अली से पैदा हुए थे । मालिक को निपटा दिया उसके बाद उसकी धन संपत्ति और बीबी बच्चे हथिया लिए थे)
(3) श्रीमती मंजरी :- से श्री मेहरअली सोख्ता (आर्य समाजी नेता)
(4) ईरान की वेश्या :- से मुहम्मद अली जिन्ना ।
(5) नौकरानी (रसोइया) :- से शेख अब्दुल्ला (कश्मीर के मुख्यमंत्री )
(क) श्रीमती स्वरुप कुमारी बक्शी (विवाहिता पत्नी) से दो संतानें थीं | A. श्रीमती कृष्णा w/o श्री जय सुख लाल हाथी (पूर्व राज्यपाल ) B. श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित w/o श्री आर.एस.पंडित (पूर्व. राजदूत रूस), पहले विजय लक्ष्मी पंडित ने अपने आधे भाई शैयद हुसैन से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये थे जिससे संतान हुई चंद्रलेखा जिसको श्री आर.एस.पंडित ने अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया ।
(ख.) थुस्सू रहमान बाई - से श्री जवाहरलाल नेहरु और शैयद हुसैन - शैयद हुसैन इनके मालिक मुबारिक अली की संतान थी जिनको इन्होने मुबारिक की मौत के बाद अपना लिया था ।मुबारक अली की एक और संतान थी मंज़ूर अली जो कि इंदिरा की खुनी पिता थे ।
जवाहर लाल नेहरु ने कमला कोल को कभी अपनी पत्नी नहीं माना था और सुहागरात भी नहीं मनाई थी। कमला कश्मीरी पंडित थी यह जवाहर को एकदम पसंद नहीं थी, वैसे वो सिर्फ मुल्ले या अँग्रेज़ को ही ऊँची Race का घोडा मानते थे ।
कमला की जिंदगी एक दासी के जैसी थी जिस अबला नारी को मंजूर अली ने ही हाथ थाम लिया था । इसी कारणवश नेहरु को इंदिरा जरा भी नही सुहाती थी । अब जब क़ानूनी तौर पर इंदिरा ही उसकी बेटी थी इसलिए न चाहते हुए भी उसको इंदिरा को आगे बढ़ाना पड़ा हलाकि उसके जीते जी इंदिरा कोई खेल नहीं कर पाए थी । वो तो बेचारे शास्त्री जी इसकी बातों में आकर ताशकंत चले गए थे पाकिस्तान से समझौता करने वहाँ इंदिरा ने याह्या खान की मदद से शास्त्री जी को जहर दिलवा कर मरवा डाला था और बताया की मौत ह्रदय की गति रुकने से हो गई ।कोई पोस्टमार्टम नहीं कोई रिपोर्ट नहीं. इंदिरा ने मौका पाते ही झट से कुर्सी हड़प ली थी ।
प्रियदर्शिनी नेहरु उर्फ़ मैमूना बेगम उर्फ़ श्रीमती इंदिरा खान w/o श्री फिरोज जहाँगीर
खान (पर्शियन मुस्लमान) जो कि बाद में गाँधी बन गए थे । से दो पुत्र एक राजीव खान (पिता फ़िरोज़ जहाँगीर खान) और संजय खान (पिता मोहम्मद युनुस), तीसरा बच्चा जो म. ओ. मथाई (जवाहरलाल का पी ऐ) जिसको गिरा दिया गया क्योंकि वो आशंका थी की कही रंग दबा हुआ (काला) निकला तब कैसे मुह छुपाएगी ।
(ग.) श्रीमती मंजरी - से एक पुत्र श्री मेहर अली सोख्ता (आर्य समाजी नेता )
(घ.) ईरान की वेश्या - से मुहम्मद अली जिन्ना
(ङ.) नौकरानी (रसोइया ) से शेख अब्दुल्ला (कश्मीर के मुख्यमंत्री ). शेख अब्दुल्लाह के दो पुत्र फारूक अब्दुल्ला , पुत्र उमर अब्दुल्ला
नेहरु ने देश के तीन टुकड़े किये थे ।इंडिया (इंदिरा के लिए), पाकिस्तान (अपने आधे भाई जिन्ना के लिए) और कश्मीर (अपने आधे भाई शेख अब्दुल्लाह के लिए) ।अरे वाह एक ही परिवार तीनो जगह सियासत भाई मानना पड़ेगा नेहरु के दिमाग को ।
यह वही नेहरु है जिनके मुह बोले पिता मोतीलाल के पिता गयासुद्दीन गाजी जमुना नहर वाले दिल्ली से चम्पत हो गए थे 1857 की म्युटिनी में और जाकर छुप गए कश्मीर में । जहाँ अपना नाम परिवर्तित किया था गयासुद्दीन गाजी से पंडित गंगाधर नेहरु नया नाम और सर पर गाँधी टोपी लगाये पहुच लिए इलाहबाद । लड़के को वकील बनाया और लगा दिया मुबारक अली की लॉ कंपनी में ।
टिप्पणी :- एक घर से तीन प्रधानमन्त्री और चौथा राहुल को कांग्रेस बनाने जा रही है ।
साभार - जॉन मथाई की आत्मकथा से (जवाहरलाल नेहरु के व्यक्तिगत सचिव )
Satish Chander Goyal
लाजपत राय
( 28 जनवरी, 1865 - 17 नवंबर, 1928 ) को भारत के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को 'पंजाब केसरी' भी कहा जाता है। लालाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता तथा पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। उन्हें 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर हिसार में वकालत प्रारम्भ की थी, किन्तु बाद में स्वामी दयानंद के सम्पर्क में आने के कारण वे आर्य समाज के प्रबल समर्थक बन गये। यहीं से उनमें उग्र राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। लालाजी को पंजाब में वही स्थान प्राप्त है, जो महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक को प्राप्त है।
जन्मदिवस पर शत् शत् नमन है महान विभूति पंजाब केसरी जी को
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भ्रष्टाचार खत्म करने में भारत ने चीन को पछाड़ा
भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर भारत की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्टाचार पर करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2015 जारी किया है। इस सूची में शामिल 168 देशों में भारत को 76वां स्थान दिया गया है। बीते साल इसी सूची में भारत 85वें पायदान पर था। सूची में डेनमार्क पहले स्थान पर बना हुआ है। करप्शन परसेप्शन्स इंडेक्स (सीपीआई) 2015 में भारत का स्कोर पिछले साल की तरह ही 38 बना हुआ है।
सूची में डेनमार्क पहले स्थान पर बना हुआ है। करप्शन परसेप्शन्स इंडेक्स (सीपीआई) 2015 में भारत का स्कोर पिछले साल की तरह ही 38 बना हुआ है। सीपीआई में 0 से लेकर 100 तक अंक होते हैं। जिस देश को जितने ज्यादा अंक दिए जाते हैं, उस देश में उतना कम भ्रष्टाचार होता है।
यहां बढ़ रहा है भ्रष्टाचार
पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल बीते सालों की तुलना में थोड़ा सुधार देखा गया है। नॉर्थ कोरिया और सोमालिया इस सूची में सबसे निचले स्थान पर हैं, दोनों देशों के आठ अंक है।
Shubhendu Shekhar
भारती सिंह ने ये किस्सा सुनाया ।
विषय था ,
मोदी जी के आने के बाद सरकार के काम करने के तरीके में किस तरह का बदलाव आया है ।
भारती CISF में उच्च पद पे नौकरी में रही हैं और लखनऊ , दिल्ली , जोधपुर और जम्मू Airport की security इंचार्ज रही हैं ।
उन्होंने Prime Minister के तौर पे अटल जी का ज़माना भी देखा है और मनमोहन सिंह का भी । और अब मोदी जी का देख रही हैं ।
उस जमाने में जब अटल जी लखनऊ के सांसद थे तो PM होते जब लखनऊ आते तो Airport पे उतरते । पूरा protocol होता ।
पूरा सरकारी अमला ........ लाव लश्कर ........ तामझाम .......... इसके लिए catering की व्यवस्था वही airport का ही एक caterer करता था ।
उन दिनों वहाँ लखनऊ में अटल जी की एक visit पे caterer का बिल बन जाता था एक से डेढ़ लाख रु तक का ।
Congress के जमाने में यदि सोनिया जी या PM आते तो बिल 10 लाख के ऊपर चला जाता था ।
मोदी जब से PM बने हैं , 4 या 5 बार कश्मीर दौरा कर आये हैं ।
जम्मू श्रीनगर कटरा और लेह लद्दाख आते जाते रहते हैं ।
एक बार जम्मू
उतरे थे ।
Caterer का बिल बना सिर्फ 3500 रु ।
वो भी CISF और Air India ने pay किया क्योंकि उनके स्टाफ के लिए चाय नाश्ता आया था कैंटीन से ।
मोदी जब भी ऐसी किसी visit पे जाते हैं तो transit में चाय अपने पैसे से पीते हैं ।
उनके साथ उनके अमले में जो लोग होते हैं वो भी चाय नाश्ता अपने पैसे से करते हैं ।
इसके बदले उन्हें on duty travel का TA , DA मिलता है ।
भारती बताती हैं कि CISF में 22 साल नौकरी करने के दौरान उन्होंने PM के विदेश दौरों की तैयारियों को खुद देखा है ।
PM का जहाज जब लोड होता था
विदेश दौरों के लिए तो उसपे क्या क्या लादा जाता था
वो पूरा खोल के लिखने लायक नहीं ।
Private News channels के पत्रकारों की फ़ौज जाती थी PM के साथ । और क्या ऐश अय्याशी होती थी ।
अब सिर्फ दूरदर्शन के 3 या 4 आदमी
जाते हैं ।
अब PM के दौरों में दारू की नदियां नहीं बहती ।
सभी कर्मचारी
अपने travelling allowance में से ही खर्चा करते हैं ...