Tuesday 29 December 2015

दोज़ख का कब्रस्तान
(राबिया की कविताओं का सीधा फारसी से अनुवाद)
By Farhana Taj
किसने बनाया है नफरत को
सांसारिकता का अपराग,
किसने जलाई है निर्ममता से
दोजख में अबुझ आग।
कौन बना रहा स्वर्ग में
शीतल जल की नहरें,
जिसने हटाए हूर तन से
नारी सुलभ लज्जा के पहरें।
क्या नर के लिए स्वर्ग है
केवल हूरों का जमघट
क्या रति में ही देखी है
खुदा की खुदाई की आहट।
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अक्षम्य अपमान
क्या ऐसी कल्पित जन्नत में
अल्लाह का वास है?
क्या रति क्रीड़ाओं में ही
स्वर्ग का आभास है?
नहरों में किसने डुबो दिया है
मुहम्मद के नूर को,
किसने बना दिया अध्यात्म
जन्नत की हूर को।
नारी खुदा की रचना है
अतः पाक है और महान,
लेकिन जन्नती हूर के रूप में
नारी का है अक्षम्य अपमान।
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एक हाथ में जल का पात्र
दूसरे में जलती हुई मशाल,
मैं जन्नत में आग लगाकर
कर दूंगी अजब कमाल।
और दोजख की बुझा अग्नि
मैं अजाब से मुक्ति पा लूंगी,
उठकर जन्नत दोजख से ऊपर
मैं असली अल्लाह को पा लूंगी।

राबिया बसरी पुस्तक से साभार, लेखिका फरहाना ताज, कीमत 100 रुपए

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