Friday 18 December 2015


          बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे छत्तीसगढ़ मे मगरमच्छ का संरक्षण केन्द्र है । 
बिलासपुर के जांजगीर जिले में कोटमी सोनार एक जगह है जहां इन दिनों दो सौ से भी ज्यादा मगरमच्छ हैं । मैने बचपन में ही सूना था कि छत्तीसगढ़ के किसी गांव में मगरमच्छ है । 
         पिछले दिनों जशपुर जाते हुए मैने कोटमी सोनार का नाम सुना तो वहां चला गया । मूढा तालाब में वहां पंडित सीताराम दास जी से भेंट हुई । मैने देखा कि सीताराम जी के बुलाने पर तालाब के अन्दर से दूर -दूर से मगरमच्छ उनकी ओर आने लगे । आ...आजा....खाना मिलेगा, मूर्गा मिलेगा आवाज सुनते ही कई मगरमच्छ बाहर निकल आये । 
        एक पर्यटक तो सचमूच मूर्गा ले आया था । मूर्गा को अन्दर डालते ही एक मगरमच्छ बिजली की गति से हवा में छलांग लगा कर मर्गा को पकड लिया और उसे लेकर तुरन्त रफुचक्कर हो गया । अन्य मगरमच्छ उसे देखते ही रह गये, मगरमच्छ पंडित सीताराम को घूर कर देखने लगे, जैसे कह रहे हों कि तुमने उसे ही क्यों दिया । चलो अब हो गया बस सीताराम के यह कहते और हाथ का इशारा होते ही मगरमच्छ वापस तालाब में पानी के अन्दर जाने लगे ।         बहुत ही रोचक है पंडित सीताराम और मगरमच्छों की ये दोस्ती । सीताराम इन मगरमच्छों के कारण अपना एक हाथ गंवा बैठे हैं फिर भी सीताराम के मन में इनके प्रति काफी अच्छे विचार हैं । सीताराम की इच्छा है कि उसके मरने के बाद उसकी लाश को इन मगरमच्छों को खिला दिया जाये । कभी जाने का अवसर मिले तो आप जरुर जाइये कोटमी सोनार, फिलहाल आज 18 दिसम्बर के नवभारत में प्रथम पृष्ठ पर छपा मेरा यह लेख जरुर पढ़ें ।

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