Sunday 15 November 2015

‘हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर।’
by Madhu Dhama
औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए। किंतु बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए। उन्हें कैद कर लिया गया, उनके एक शिष्य को खौलते तेल के कढ़ाह में भून दिया गया और दूसरे शिष्य को आरा से काट दिया गया, इस प्रकार दो शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु तेगबहादुर टस से मस नहीं हुए। 
उन्होंने औरंगजेब को समझाया, ‘‘अगर तुम जबर्दस्ती करके लोगों को इस्लाम धारण करने के लिए मजबूर कर रहे हो तो यह जान लो कि तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं हो, क्योंकि तुम्हारा धर्म भी यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म किया जाए।’’
औरंगजेब ने गुरु से कहा, ‘‘तेग बहादुर, अब तुम मेरे रहमो-करम पर हो। अगर तुम सच्चे संत हो तो हमें कोई चमत्कार करके दिखाओ, वरना अपना ईमान छोड़ दो।’’
गुरु तेग बहादुर ने कहा, ‘‘मेरी गर्दन में एक ताबीज बंधा है, जिसके कारण तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।’’
यह सुनते ही औरंगजेब के इशारे पर गुरु तेग बहादुर का सर कलम कर दिया गया। यह घटना दिल्ली के चांदनी चौक में 11 नवम्बर 1675 में हुई। उनकी गर्दन में बंधा ताबीज खोलकर देखा गया तो उसमंे लिखा था, ‘‘मैंने अपना सिर दे दिया, धर्म नहीं।’’
गुरु साहिब ने हँसते-हँसते अपना शीश कटाकर बलिदान दे दिया। इसलिए गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा साहिब बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है।
हिन्दुस्तान और हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए गुरु तेगबहादुर को प्रेम से कहा जाता है - ‘हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर।’

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