Wednesday 21 October 2015

उसने एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया...!

Abhijeet Shandily

यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था...। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।अनेक पुराभिलेखों और सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
 वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है..... और, इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा... और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला... तथा , स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
 यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था.... और, विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी.। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं सदी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी।
         बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मुस्लिम लूटेरा था .उसी मूर्ख मुस्लिम ने इसने 1199 इस्वी में इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया। उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.. एक बार वह बहुत बीमार पड़ा... जिसमे उसके मुस्लिम हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ... मगर वह ठीक नहीं हो सका...! और, मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया....! तभी उसे किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय....!
 उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य ... उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाया जाए.... फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए
उनको बुलाना पड़ा....! उस बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि. मैं एक मुस्लिम हूँ ... इसीलिए, मैं तुम काफिरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करों .वर्ना .मरने के लिए तैयार रहो... सुनकर.... बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई...!
उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा .. और, सोचने के बाद.. वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए. और, उस बख्तियार खिलजी से कहा कि ...इस कुरान की पृष्ठ संख्या  इतने से इतने तक पढ़ लीजिये. ठीक हो जायेंगे...! बख्तियार खिलजी ने. वैसे ही कुरान को पढ़ा और ठीक हो गया ., उसकी जान बच गयी.....!
इस से  उस पागल को. कोई ख़ुशी नहीं. बल्कि बहुत झुंझलाहट हुई . उसे बहुत गुस्सा आया कि.उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...? और.उस एहसानफरामोश  बख्तियार खिलजी ने  बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया और. पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया. ताकि फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके.....!
कहा जाता है कि.वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग लगने के बाद भी  तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..! सिर्फ इतना ही नहीं. उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाले.
. बख्तियार खिलजी . कुरान पढ़ के ठीक कैसे हो गया था.....
हुआ दरअसल ये था कि जहाँ...हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते हैं....! जबकि.... मुस्लिम ठीक उलटा करते हैं और, वे कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के ही पलटते हैं...! बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था...इस तरह वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट गया और, ठीक हो गया .परन्तु. उसने इस एहसान का बदला . अपने मुस्लिम संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए. नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया...!
           हद तो ये है कि. आज भी हमारी बेशर्म और निर्ल्लज सरकारें...उस पागल और एहसानफरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं..शर्मिन्दिगी नाम की चीज ही नहीं बची है. इन तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हमारी तथाकथित सेकुलर सरकारों में ...!

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