Sunday 6 September 2015

देश ने इतना नकारात्मक और विनाशकारी विपक्ष पहली बार देखा है।

देश ने इतना नकारात्मक और विनाशकारी विपक्ष पहली बार देखा है। 
लोकतंत्र में विपक्ष विरोध करता है, लेकिन अब तो देश को दांव पर लगाकर विपक्ष की राजनीति की जा रही है। 
सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो रही हो तो हार्दिक पटेल को साष्टांग नमस्कार है।
सीमा पर तनाव हो तो पाकिस्तान की बोली बोलने को तैयार हैं। 
देश के अंदर आगज़नी हो तो ताली बजाने को तैयार हैं। 
इनकी चिन्ताएँ भी कैसी-कैसी है -
जीएसटी बिल पास हो गया तो अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा, और उसका श्रेय सरकार को मिलेगा। तो बिल को सदन में रखने ही मत दो।
भूमि अधिग्रहण बिल पर अपनी ही राज्य सरकारों की माँगों पर पलट जाओ और सदन में झूठ बोल दो।
संसद में हुड़दंग मचाओ और उलटे आँख दिखाओ कि "संसद चलाना तो सरकार की जिम्मेदारी है।"
पाकिस्तान की फायरिंग का सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया तो बोलो कि सरकार सीमा पर शान्ति स्थापित नहीं कर पा रही है।
हर छोटी-मोटी बात पर प्रधानमंत्री से बयान माँगो। सरकार को काम मत करने दो और हल्ला मचाओ कि कोई काम नहीं हो रहा है।
एक कहावत है-" सयाना कौआ कूड़े में चोंच मारता है। "
संक्षेप में, देश देख रहा है, और ये लोग समझ नहीं पा रहे है कि देश पक चुका है।
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ये है 85 वष॔ की लीला बाई पुरवार ,सागर मे सदर के 8 नं मुहाल मे चाय की दुकान चलाती है। विधवा है, एक लङका पागल है ,एक मर गया
सुबह से शाम तक चाय हर गाहक को उसकी दुकान तक देने जाती है
कम॔ठता की एक मिसाल है ,उमर इन पर कभी भारी नही हुई ....आज भी हसती हुई अपना जीवन जिनदादिली से जी रही है
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Sahil Yadav
जीवन की डगर....
एक बार आइंस्टाइन प्रिंसटन से रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे. जब टिकट चेक करने वाला रेल अधिकारी उनके पास आया और उनसे टिकट माँगा उन्होंने अपने कोट की जेब में हाथ डाला, लेकिन टिकट वहां नहीं मिला. अब तो वे बदहवास हो टिकट ढूंढने लगे. कभी कोट तो कभी पतलून की जेब तो कभी ब्रीफकेस में. टिकट कहीं नहीं था. अब आइंस्टाइन पास वाली ख़ाली सीट झाड़ने लगे. टिकट चेकर उन्हें छोड़ आगे बढ़ गया. उसने देखा कि इतना बड़ा वैज्ञानिक परेशानी में फ़र्श पर बैठ बर्थ के नीचे टिकट खोज रहे हैं और टिकट था कि मिल ही नहीं था.टिकट चेकर बोला - सर आप परेशान मत हों. आप आइंस्टाइन साहब हैं , मैं आप को अच्छी तरह से जानता हूँ. मुझे यह भी पता है कि आप ने टिकट जरुर लिया होगा. कोई बात नहीं. रहने दीजिए, परेशान मत होइए .
आइंस्टाइन ने टिकट चेकर से कहा - बात सिर्फ टिकट की नहीं है. मुझे याद ही नहीं आ रहा है कि आखिर मैं जा कहाँ रहा हूँ.
सचमुच हम में से ज्यादा लोगों को यही प्रश्न अपने आप से करना चाहिए. हम अपना जीवन यूँ ही जीते चले जाते हैं लेकिन हमें यह पता नहीं होता है कि हम कहाँ जाने के लिए निकले थे. अतः अपनी यात्रा शुरू करने से पहले अपने लक्ष्य को भली -भांति जान लेना चाहिए चाहे वह कोई सफ़र हो या जीवन की डगर.
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