Thursday 24 September 2015

अल्लाह पर भरोसा है। ईमान भी पुख्ता है। फिर बेटे की कुर्बानी क्यों नहीं देते ?

इस संवाद को पढ़े और हकीकत अगर अलग हे तो मुझे बताये
शमीम - भाईजान बकरीद आने वाली है और आपको हमारे घर पर होने वाली दावत में शरीक होना ही पड़ेगा कोई बहाना नहीं चलेगा।
सुनील - वो सब तो ठीक है मियां पर यह तो बताओ कि बकरीद मनाते क्यों हैं ?
शमीम - भाईजान बहुत पहले एक हजरत ईब्राहिम हुए थे जिनका अल्लाह पर ईमान बहुत पुख्ता था और जिन्होंने अल्लाह के कहने पर अपनी सबसे प्यारी चीज़ यानि अपने बेटे की कुर्बानी दी थी और अल्लाह ने खुश होके उनके बेटे को फिर ज़िंदा कर दिया था। तो उसी की याद में हम भी अपनी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी देते हैं।
सुनील - अच्छा मतलब आप भीअपने बेटे या किसी और करीबी की कुर्बानी देते हो इस दिन?
शमीम - लाहौल विला कुव्वत कैसी बातें करते हो भाईजान बेटे की कुर्बानी कैसे दे दें हम ? हम तो किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं इस दिन।
सुनील - क्यों समस्या क्या है इसमें? अगर आपका ईमान पुख्ता है तो अल्लाह आपके बेटे को फिर ज़िंदा कर देगा।
शमीम - अरे ऐसा कोई होता है भाईजान।
सुनील - क्यों आपका ईमान पुख्ता नहीं है क्या?
शमीम - अरे नहीं भाईजान हमारा ईमान तो एकदम पुख्ता है।
सुनील - तो फिर क्या अल्लाह के इंसाफ पर शुबहा है कि वो बाद में मुकर जाएगा और बेटे को ज़िंदा नहीं करेगा?
शमीम - तौबा तौबा हम अल्लाह पर शुबहा कैसे कर सकते हैं ?
सुनील - अल्लाह पर भी भरोसा है। ईमान भी पुख्ता है। फिर बेटे की कुर्बानी क्यों नहीं देते ? या फिर आपको सबसे प्यारा वो जानवर है जिसकी कुर्बानी देते हो ?
शमीम - नहीं नहीं भाईजान हमें सबसे प्यारा हमारा बेटा ही है। भला बकरीद से कुछ दिन पहले बाजार से खरीदा कोई जानवर कैसे हमें हमारे बेटे से ज्यादा प्यारा हो जाएगा आप ही बताओ ?
सुनील -तो मतलब आप अल्लाह से भी फरेब कर रहे हो। पैसे देकर खरीदे जानवर को औलाद से भी प्यारा बताकर अल्लाह को उसकी कुर्बानी दे रहे हो। यह तो बड़ी शर्म की बात है ।
शमीम - छोड़ें जनाब यह आपकी समझ में नहीं आएगा क्योंकि आप काफिर हो। चलते हैं हमारी नमाज़ का वक्त हो गया।

No comments:

Post a Comment