Thursday 17 September 2015

गणेश उत्सव कोई धार्मिक ग्रंथो में उल्लेखित सदीओ पुराना त्यौहार नहीं हे
बल्कि आजादी पाने के लिए और मुस्लिमो और अंग्रेजो के विरुद्ध हिन्दू एकता हो प्रदर्शित करने के लिए किया गया ...एक आन्दोलन था .....
आज की पीढ़ी तो आन्दोलन का मतलब हड़ताल ही जानती है.... मतलब तोड़फोड़, धरना, गुंडागर्दी ....ताला बंदी........
जबकि आन्दोलन का मतलब जनमत को शान्तिपूर्व उग्र करना ....

पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी।
परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये।

तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और

उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।
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वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में ‘मित्रमेला’ संस्था बनाई थी। इस संस्था का काम था देशभक्तिपूर्ण पोवाडे (मराठी लोकगीतों का एक प्रकार) आकर्षक ढंग से बोलकर सुनाना।

इस संस्था के पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी। कवि गोविंद को सुनने के लिए लोगों उमड़ पड़ते थे। राम-रावण कथा के आधार पर वे लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होते थे।

उनके बारे में वीर सावरकर ने लिखा है कि कवि गोविंद अपनी कविता की अमर छाप जनमानस पर छोड़ जाते थे। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था।

अंग्रेज भी इससे घबरा गये थे। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी थी। रपट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है।
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गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे - वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू।

दामोदर हरि चाफेकर , बालकृष्ण हरि चाफेकर तथा वासुदेव हरि चाफेकर को संयुक्त रूप से चाफेकर बंधु कहते हैं। ये तीनों भाई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सम्पर्क में थे। तीनों भाई तिलक जी को गुरुवत्‌ सम्मान देते थे। पुणे के तत्कालीन जिलाधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैण्ड ने प्लेग समिति के प्रमुख के रूप में पुणे में भारतीयों पर बहुत अत्याचार किए। इसकी बालगंगाधर तिलक एवं आगरकर जी ने भारी आलोचना की जिससे उन्हें जेल में डाल दिया गया। दामोदर हरि चाफेकर ने २२ जून, १८९७ को रैंड को गोली मारकर हत्या कर दी।

उधर बालकृष्ण चाफेकर ने जब यह सुना कि उसको गिरफ्तार न कर पाने से पुलिस उसके सगे-सम्बंधियों को सता रही है तो वह स्वयं पुलिस थाने में उपस्थित हो गए। अनन्तर तीसरे भाई वासुदेव चाफेकर ने अपने साथी महादेव गोविन्द विनायक रानडे को साथ लेकर उन गद्दार द्रविड़-बन्धुओं को जा घेरा और उन्हें गोली मार दी।

वह ८ फरवरी, १८९९ की रात थी। अनन्तर वासुदेव चाफेकर को ८ मई को और बालकृष्ण चाफेकर को १२ मई, १८९९ को यरवदा कारागृह में फांसी दे दी गई। बालकृष्ण चाफेकर सन्‌ १८६३ में और वासुदेव चाफेकर सन्‌ १८८० में जन्मे थे।

इनके साथी क्रांतिवीर महादेव गोविन्द विनायक रानडे को १० मई, १८९९ को यरवदा कारागृह में ही फांसी दी गई। --------------------------
तिलक जी द्वारा प्रवर्तित "शिवाजी महोत्सव' तथा "गणपति-महोत्सव' ने इन चारों युवकों को देश के लिए कुछ कर गुजरने हेतु क्रांति-पथ का पथिक बनाया था। उन्होंने ब्रिटिश राज के आततायी व अत्याचारी अंग्रेज अधिकारियों को बता दिया गया कि हम अंग्रेजों को अपने देश का शासक कभी नहीं स्वीकार करते और हम तुम्हें गोली मारना अपना धर्म समझते हैं।
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इस प्रकार अपने जीवन-दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कभी कोई प्रतिदान की चाह नहीं रखी। वे महान बलिदानी कभी यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि यह देश ऐसे गद्दारों से भर जाएगा, जो भारतमाता की वन्दना करने से इनकार करेंगे।
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1894 मे लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरु किया। भाद्रपद (अगस्त नही तो सितंबर ) महीने मे आने वाले इन दस दिनो की अवधि मे पुणे शहर चैतन्यमय होता है। देश-परदेश से लोग इस उत्सव मे भाग लेने पुणे आते है। जगह-जगह छोटे-बडे गणेश मंडल के मंडपो को सजाया जाता है। इस उत्सव के दरमयान महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल पुणे उत्सव नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराता है, जिसमे संगीत, नृत्य, मैफिली, नाटक और खेल समाविष्ट होते है। दस दिवस चलने वाला यह उत्सव गणेश विसर्जन के साथ समाप्त होता है। अनंत चतुर्दशी के सुबह शुरु होने वाला विसर्जन अगले दिन तक चलता रहता है। प्रमुख पाँच मंडल है -
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कसबा गणपती-पुणे के ग्राम देवता
कसबा गणपती (यह पुणे के ग्राम देबता है)
तांबडी जोगेश्वरी
गुरूजी तालीम
तुलशीबाग
केसरी वाडा (यह मंडल तिलक पंचांग के अनुसार गणेशोत्सव को सजाता है)
पुणे मे गणेशोत्सव मंडल प्राणप्रतिष्ठा की गई मूर्ति विसर्जीत कर के उत्सव मर्ति वापस ले जाते है। विसर्जन के दरमयान ढोल, लेझीम जैसे अनेक पथके होते है। अनेक विद्यालय अपने पथके सिखाते है।
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आज "गणेश उत्सव" से ज्यादा "आयोजन" में बदल गया हे इसका उद्देश्य ज्यदा से ज्यदा लोग एक जगह इकठ्ठा हो और अंग्रेजो के अत्याचार के खिलाफ रणनीति बनाये जाने के लिए किया गया था .....
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1) मगर आज गगेश उत्सव .....में गणेश की आरती की जगह DJ बजता हे
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२) तब गणेश उत्सव में लोक गीत के रूप में आपके अन्दर जोश का संचार कराया जाता था ..आज ....पंडाल के पीछे बैठ कर दारु पार्टी चलती हे
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3) तब गणेश उत्सव मेल मिलाप में एक दुसरे का परिचय कराया जाता था और आजादी में आन्दोलन में भाग लेने के लिए युवाओ का आहवान किया जाता था
अब गणेश उत्सव ...नोजवानो का तफरीक और घूमने फिरने का अड्डा बन गया हे .....
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4) तब गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है।
मगर अब सिर्फ भव्य पंडालो ..लाईटो ...और आर्क्रेस्ता और dj की पार्टी के तोर पे जना जाता हे .....
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5) तब गणेश उत्सव में चंदा इकठ्ठा किया जाता था ताकि अत्याचारों और संघर्षो के खिलाफ आवाज उठाने बालो को आर्थिक मदद दी जाये .....मगर आज चंदा सिर्फ ..आखिरी दिन ...भंडारा कराने और बचे पैसे से मौज मस्ती करने के काम आता है ......
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6) आज dj पे रीमिक्स गानों और डांस पार्टी करने से क्या गणेश जी खुस होंगे .....धार्मिक अनुष्ठान हवं और यज्ञ के बिना क्या पूजा पूरी होगी केवल रोज आरती करने से अनुष्ठान पूरा होता हे ..
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आरती के बाद उसी साउंड सिस्टम से फ़िल्मी गाने बजने लगते हे इससे क्या मन की शांति मिलेगी .....
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7) आज कल तो गणेश उत्सव ...फिल्मो के लान्चिक की प्लेटफोर्म बनगया हे ....फ़िल्मी सितारे आते हे अपनी फिल्म के गाने पे डांस करते हे डांस पार्टी और बो सब होता हे जो नहीं होना चाहिए .....क्या ये गणेश उत्सव को सोभा देता हे .........ताज़ा उदहारण चेन्नई एक्सप्रेस की लांचिंग हे जो जन्म अष्टमी को शाहरुख़ खान ने की थी जिसमे कृष्ण जी के भजन के स्थान पे चेनई एक्सप्रेस के गाने तू कश्मीर में कन्याकुमारी जेसे गाने बज रहे थे ...
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8) अति तो तब हो गई जब एक ही मोहल्लो में दो गणेश जी स्थापित हो जाते हे ......तेरा गणेश मेरे गणेश से ऊँचा केसे ......और मारपीट और हाथापाई की नौबत तक आजाती हे ....
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9) तब 10 दिवसीय आयोजन में २ दिन महिला मंडल का काम महिलाओ को इस आयोजन के द्वारा छुआछूत सती प्रथा और बाल विवाह जेसे धार्मिक और सामाजिक आडम्बरो के प्रति जागरूक बनाने के लिए किया जाता था
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.........आज ये लडकियों के लडको से मिलने और लेट नाईट पार्टी मनाने का अड्डा बन गया हे .......

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