Tuesday 18 August 2015

इलाहाबाद हाई कोर्ट का जबरदस्त आदेश--
सभी सरकारी कर्मचारियो, अफसरों, निकायों, पदाधिकारियो, विधायको, सांसदों एवं वो सब ,जो सरकार लाभान्वित है। उन सब के बच्चे स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़े। up के मुख्य सचिव को 6 महीने के अंदर नियम बना कर हाई कोर्ट को सुचना देने का आदेश।
अगले सत्र से आदेश लागु करने को कहा।
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आदर्श गांव!!!
यूपी के जौनपुर जिले में माधोपट्टी एक ऐसा गांव है जहां से कई आईएएस और ऑफिसर हैं. इस गांव में महज 75 घर हैं, लेकिन यहां के 47 आईएएस अधिकारी विभिन्‍न विभागों में सेवा दे रहे हैं.
इतना ही नहीं माधोपट्टी की धरती पर पैदा हुए बच्‍चे इसरो, भाभा, काई मनीला और विश्‍व बैंक तक में अधिकारी हैं. सिरकोनी विकास खण्ड का यह गांव देश की अंगूठी में नगीने की तरह जगमगा रहा है.
दरअसल, यहां प्रख्यात शायर रहे वामिक जौनपुर के पिता मुस्तफा हुसैन सन 1914 पीसीएस और 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की दूसरी रैंक में सलेक्शन क्या हुआ मानो यहां युवा वर्ग को खुद को साबित करने की होड़ लग गई.
चार सगे भाई बने आईएएस
आईएएस बनने के बाद इन्दू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे. इस गांव के चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर जो इतिहास रचा है वह आज भी भारत में कीर्तिमान है. इन चारों सगे भाइयों में सबसे पहले 1955 में आईएएस की परीक्षा में 13वीं रैंक प्राप्त करने वाले विनय कुमार सिंह का चयन हुआ. विनय सिंह बिहार के प्रमुख सचिव पद तक पहुंचे.
सन् 1964 में उनके दो सगे भाई क्षत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह एक साथ आईएएस अधिकारी बने. क्षत्रपाल सिंह तमिलनाड् के प्रमुख सचिव रहे.
बरहाल, विनय सिंह भाई चौथे भाई शशिकांत सिंह 1968 आईएएस अधिकारी बने. इनके परिवार में आईएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा. 2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी न केवल आईएएस बने बल्‍कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की. इस कुनबे का रिकॉर्ड आज तक कायम है.
इसके अलावा इस गांव की आशा सिंह 1980, उषा सिंह 1982, कुवंर चद्रमौल सिंह 1983 और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983, अमिताभ बेटे इन्दू प्रकाश सिंह 1994 आईपीएएस उनकी पत्नी सरिता सिंह 1994 में आईपीएस भारत की सर्व प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में चयनित होकर इस गांव मान और बढ़ाया.
पीसीएस अधिकारियों का तो यहां पूरी फौज है. इस गांव के राजमूर्ति सिंह विद्याप्रकाश सिंह प्रेमचंद्र सिंह पीसीएस महेन्द्र प्रताप सिंह जय सिंह प्रवीण सिंह व उनकी पत्नी पारूल सिंह रीतू सिंह अशोक कुमार प्रजापति प्रकाश सिंह राजीव सिंह संजीव सिंह आनंद सिंह विशाल सिंह व उनके भाई विकास सिंह वेदप्रकाश सिंह नीरज सिंह पीसीएस अधिकारी बने चुके थे. अभी हाल ही 2013 के आए परीक्षा परिणाम इस गांव की बहू शिवानी सिंह ने पीसीएस परीक्षा पास करके इस कारवां को आगे बढ़ाई है.
इस गांव के अन्मजेय सिंह विश्‍व बैंक मनीला में, डॉक्‍टर निरू सिंह लालेन्द्र प्रताप सिंह वैज्ञानिक के रूप भाभा इंस्टीट्यूट तो ज्ञानू मिश्रा इसरो में सेवाएं दे रहे हैं. यहीं के रहने वाले देवनाथ सिंह गुजरात में सूचना निदेशक के पद पर तैनात हैं.
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कर्नाटक में एक ग्राम पंचायत है खानापूर, जहाँ की सरपंच हैं प्रेमा थिम्मागौड़... इन्होंने गाँव के 173 परिवारों को अपने घर में शौचालय बनवाने के लिए राजी किया... सभी ग्रामीणों को उसमें सहयोग करने के लिए मनाया और चमत्कार कर दिखाया... सिर्फ एक माह में, यानी तीस दिनों में इस गाँव ने 173 टॉयलेट बना डाले. गाँव के युवाओं ने ईंटे ढोईं, महिलाओं ने मजदूरों के लिए चाय-भोजन का इंतजाम किया... और स्वप्रेरणा से देखते-देखते 173 टॉयलेट बन गए...
कल मोदी सरकार द्वारा पिछले पन्द्रह माह में शासकीय स्कूलों में बनाए गए चार लाख सत्तर हजार टॉयलेट के बारे में पोस्ट डाली थी, तब भी और उससे पहले भी ANI की इसी खबर को लेकर मोदी के "अंध-विरोधियों" (खासकर वामियों) ने इस दावे की खिल्ली उड़ाई थी, नकारात्मकता बरसाते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता... झूठे आँकड़े हैं... "सब दूर" सिर्फ फर्जीवाड़ा है... लेकिन अब धीरे-धीरे ऐसे लोग पीछे छूटते जा रहे हैं. मोदी का अंध-विरोध करके ये खुद को अप्रासंगिक बनाते जा रहे हैं... मोदी के आव्हान पर "स्वच्छ भारत" चल पड़ा है और आगे भी चलता रहेगा... गाँवों में लड़कियों ने आवाज़ बुलंद करना शुरू कर दिया है कि टॉयलेट नहीं तो शादी नहीं...
जिन "बौद्धिक कव्वों" को मोदी के भाषण सिर्फ "फेंकना" या "प्रलाप" लगते हैं, वे अपनी घृणा के चलते इस बात को जानबूझकर नहीं समझ पा रहे कि जो "नेतृत्त्व" होता है, वह प्रेरणा देता है, जनता में जोश भरता है, योजनाएँ बनाता है... और यह काम बखूबी हो रहा है... वे पड़े चिल्लाते रहें... अब जनता उनसे उकता चुकी है, और आगे बढ़ना चाहती है...
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रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?"
एक बार एक दरोगा जी का मुंह लगा नाई पूछ बैठा -"हुजूर पुलिस वाले रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?"
दरोगा जी बात को टाल गए। लेकिन नाई ने जब दो-तीन बार यही सवाल पूछा तो दरोगा जी ने मन ही मन तय किया कि इस भूतनी वाले को बताना ही पड़ेगा कि रस्सी का साँप कैसे बनाते हैं ! लेकिन प्रत्यक्ष में नाई से बोले - "अगली बार आऊंगा तब बताऊंगा !"
इधर दरोगा जी के जाने के दो घंटे बाद ही 4 सिपाही नाई की दुकान पर छापा मारने आ धमके - "मुखबिर से पक्की खबर मिली है, तू हथियार सप्लाई करता है। तलाशी लेनी है दूकान की !" तलाशी शुरू हुई ... एक सिपाही ने नजर बचाकर हड़प्पा की खुदाई से निकला जंग लगा हुआ असलहा छुपा दिया ! दूकान का सामान उलटने-पलटने के बाद एक सिपाही चिल्लाया - "ये रहा रिवाल्वर"
छापामारी अभियान की सफलता देख के नाई के होश उड़ गए - "अरे साहब मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता"। "आपके बड़े साहब भी मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं !"
एक सिपाही हड़काते हुए बोला - "दरोगा जी का नाम लेकर बचना चाहता है ? साले सब कुछ बता दे कि तेरे गैंग में कौन-कौन है ...  तेरा सरदार कौन है ... तूने कहाँ-कहाँ हथियार सप्लाई किये ... कितनी जगह लूट-पाट की ...  आ चल तू अभी थाने चल !"
थाने में दरोगा साहेब को देखते ही नाई पैरों में गिर पड़ा - "साहब बचा लो ... मैंने कुछ नहीं किया !"
दरोगा ने नाई की तरफ देखा और फिर सिपाहियों से पूछा - "क्या हुआ ?"
सिपाही ने वही जंग लगा असलहा दरोगा के सामने पेश कर दिया - "सर जी मुखबिर से पता चला था .. इसका गैंग है और हथियार सप्लाई करता है.. इसकी दूकान से ही ये रिवाल्वर मिली है !"
दरोगा सिपाही से - "तुम जाओ मैं पूछ-ताछ करता हूँ !"
सिपाही के जाते ही दरोगा हमदर्दी से बोले - "ये क्या किया तूने ?"
नाई घिघियाया - "सरकार मुझे बचा लो ... !"
दरोगा गंभीरता से बोला - "देख ये जो सिपाही हैं न ...साले एक नंबर के कमीने हैं ...मैंने अगर तुझे छोड़ दिया तो ये साले मेरी शिकायत ऊपर अफसर से कर देंगे ...  इन कमीनो के मुंह में हड्डी डालनी ही पड़ेगी ...  मैं तुझे अपनी गारंटी पर दो घंटे का समय देता हूँ , जाकर किसी तरह बीस हजार का इंतजाम कर ..  पांच - पांच हजार चारों सिपाहियों को दे दूंगा तो साले मान जायेंगे !"
नाई रोता हुआ बोला - "हुजूर मैं गरीब आदमी बीस हजार कहाँ से लाऊंगा ?"
दरोगा डांटते हुए बोला - "तू मेरा अपना है इसलिए इतना सब कर रहा हूँ तेरी जगह कोई और होता तो तू अब तक जेल पहुँच गया होता ...जल्दी कर वरना बाद में मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा !"
नाई रोता - कलपता घर गया ... अम्मा के कुछ चांदी के जेवर थे चौक में एक ज्वैलर्स के यहाँ सारे जेवर बेचकर किसी तरह बीस हजार लेकर थाने में पहुंचा और सहमते हुए बीस हजार रुपये दरोगा जी को थमा दिए !
दरोजा जी ने रुपयों को संभालते हुए पूछा - "कहाँ से लाया ये रुपया?"
नाई ने ज्वैलर्स के यहाँ जेवर बेचने की बात बतायी तो दरोगा जी ने सिपाही से कहा - "जीप निकाल और नाई को हथकड़ी लगा के जीप में बैठा ले .. दबिश पे चलना है !"
पुलिस की जीप चौक में उसी ज्वैलर्स के यहाँ रुकी ! दरोगा और दो सिपाही ज्वैलर्स की दूकान के अन्दर पहुंचे ...दरोगा ने पहुँचते ही ज्वैलर्स को रुआब में ले लिया - "चोरी का माल खरीदने का धंधा कब से कर रहे हो ?"
ज्वैलर्स सिटपिटाया - "नहीं दरोगा जी आपको किसी ने गलत जानकारी दी है!"
दरोगा ने डपटते हुए कहा - "चुप ~~~ बाहर देख जीप में
हथकड़ी लगाए शातिर चोर बैठा है ... कई साल से पुलिस को इसकी तलाश थी ... इसने तेरे यहाँ जेवर बेचा है कि नहीं ? तू तो जेल जाएगा ही .. साथ ही दूकान का सारा माल भी जब्त होगा !"
ज्वैलर्स ने जैसे ही बाहर पुलिस जीप में हथकड़ी पहले नाई को देखा तो उसके होश उड़ गए.. तुरंत हाथ जोड़ लिए - "दरोगा जी जरा मेरी बात सुन लीजिये! कोने में ले जाकर मामला एक लाख में सेटल हुआ !
दरोगा ने एक लाख की गड्डी जेब में डाली और नाई ने जो गहने बेचे थे वो हासिल किये फिर ज्वैलर्स को वार्निंग दी - "तुम शरीफ आदमी हो और तुम्हारे खिलाफ पहला मामला था इसलिए छोड़ रहा हूँ ... आगे कोई शिकायत न मिले !"
इतना कहकर दरोगा जी और सिपाही जीप पर बैठ के रवाना हो गए !
थाने में दरोगा जी मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे - "साले तेरे को समझ में आया रस्सी का सांप कैसे बनाते हैं !"
नाई सिर नवाते हुए बोला - "हाँ माई-बाप समझ गया !"
दरोगा हँसते हुए बोला - "भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और एक हजार रुपया और जाते-जाते याद कर ले ...हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि नेवला .. अजगर ... मगरमच्छ सब बनाते हैं " फिर मत पूछना।
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