Friday 21 August 2015


भारतीय इतिहास के मुग़ल काल का एक और झूठ -----------------------------------
“ दिल्ली के लाल किला का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था” लाल किला शाहजहाँ निर्मित नहीं ,एक हिन्दू राजपूती निर्माण “लाल कोट” है---- 
वास्तव में यह “लाल किला” महाराजा प्रथ्वीराज चौहान काल में लिखित “प्रथ्वीराज रासो” नामक काव्य में वर्णित “लाल कोट” ही है
इसका निर्माण प्रथ्वीराज चौहान के नाना महाराजा अनंगपाल तोमर (द्वितीय) ने दिल्ली बसाने के क्रम में 1060 AD में करवाया था और महाराजा प्रथ्वीराज चौहान ने इसे पूरा कराया था 




शाहजहाँ ने इसे बनवाना तो दूर इसे अपना निर्माण सिद्ध करने के लिए इसमे हिन्दू साक्ष्यों और प्रतीकों को नष्ट करने और मिटाने का ही कार्य ही किया था
इसके हिन्दू निर्माण होने के कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं
1 - दिल्ली गेट पर दोनों ओर पूर्ण आकार के पत्थर के दो हाथी स्थापित थे (चित्र नं 1) इनका निर्माण गज प्रेमी राजपूत राजाओं ही संभव हो सकता है शाहजहाँ द्वारा इन्हें तोडा गया होगा और इसके टूटे टुकड़े किसी तहखाने मे फेंक दिए गए होंगे
2 - दीवाने खास / प्रमुख महल में द्वार (गेट) पर सामने की ओर दो तलवारें ऊपर को रखी हुयी ,उसके ऊपर फिर कलश , कमल और न्याय तुला (तराजू) सूर्य की परिधि में बनाए गए हैं तलवारों के सिरों पर दोनों ओर शंख कि आकृतियाँ बनी है (चित्र नं2);ये तलवारें और न्याय तुला तोमर राजाओं का राज्य चिन्ह रहा है ये सब चिन्ह मुसलमानों द्वारा स्वीकार नहीं किये जा सकते थे
3 - दीवाने खास / प्रमुख महल के द्वार (गेट) पर मेहराब में ऊपर की ओर सूर्य का चिन्ह बना है और उसके दोनों ओर ॐ कि आकृतियाँ बनी है (चित्र नं 3) ये भी हिन्दू धार्मिक चिन्ह हैं और मुसलमानों द्वारा निर्मित होने का खंडन करते है
4 - खास महल के प्रत्येक द्वार पर दरवाजों के कुंडों पर हाथी पर सवार महावत ढाले गए है (चित्र नं 4) ये भी मुस्लिम परम्परा विरोधी और हिन्दू निर्माण के समर्थक है
5 – चित्र नं 5 इस पेन्टिंग में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को 1628 ईसवी में गद्दी पर बैठे हुए पर्शियन राजदूत का,दिल्ली के लाल किले के दीवाने आम में स्वागत करते हुए दिखाया गया है
यह पेन्टिंग बोद्लियन Bodleian Library Oxford me सुरक्षित है और भारत में इलस्ट्रेटेड Illustrated weekly मार्च 14 ,1971 में page 32 पर छपी थी
मुग़ल बादशाह शाहजहाँ जिसे श्रेय दिया जाता है कि इन्होने 1638 ईसवी से 1648 ईसवी में लाल किला बनवाया था
वही पेन्टिंग के अनुसार 1628 ईसवीं में गद्दी पर बैठे पर्शियन राजदूत का स्वागत करता दिख रहा है इस प्रकार शाहजहाँ अपनी गद्दी पर बैठने के समय लाल किले में ही उपस्थित था अतः किला पहले से ही बना हुआ था और उसका लाल किला के निर्माण कर्ता होने का प्रश्न ही नहीं उठता
6 – किले में एक स्थल “केसर कुंड” नाम से है जिसके फर्श पर कमल पुष्प अंकित है केसर और कुंड दोनों शब्द हिन्दू शब्दावली से हैं हिन्दू राजा केसर व पुष्पों से भरे जल स्थान जिन्हें कुंड कहते थे स्नान के लिए प्रयोग मे लाते थे यह भी हिन्दू निर्माण का प्रमाण है
7 – लाल किले में पीछे यमुना नदी की ओर का स्थल “राज घाट” के नाम से है यदि यह मुसलमान निर्मित होता तो घाट का नाम “बादशाह घाट’ जैसा कुछ होता
8 – छतों से पानी गिराने के लिए जो ड्रेन पाईप के सिरे वराह (सुवर) के मुह से सजे है
“वराह” (सुवर) हिन्दुओ में भगवन विष्णु का अवतार माना जाता है और मुसलमानों में एक घ्रणित वस्तु जिसे वे कभी न बनने देते
9 – लाल किला कुछ दूरी पर सम सामयिक निर्मित एक जैन मंदिर जिसे लाल मंदिर कहते है और एक गौरी शंकर मंदिर है क्या किला बनाते समय शाहजहाँ ये मंदिर बनने देता ,यह भी सिद्ध करता है ये दोनों मंदिर और लाल किला शाहजहाँ से पूर्व निर्मित हैं
10 – तवारीखे फिरोज्शाही पेज 160 पर लिखा है कि अलाउद्दीन खिलजी 1296 AD में जब सेना के साथ दिल्ली पहुँछा तो कुश्क–ए-लाल यानि लाल महल में विश्राम किया तो वह लाल किला ही होगा जो कि 1296 AD से पहले ही मौजूद था
11 – लाल किले के अन्दर कोई ऐसा प्रमाण या शिला लेख नहीं मिला है जो यह प्रमाणित करे कि लाल किला शाहजहाँ का बनवाया था
इस प्रकार हम देखते है कि लालकिला में अनेको साक्ष्य और चिन्ह बचे हैं वे सब यही प्रमाणित करते है कि यह हिन्दू निर्माण है और वही यह भी प्रमाणित करते हैं कि यह मुसलमानी इस्लामिक निर्माण नहीं है
निश्चय ही यह ”लाल किला” शाहजहाँ से लगभग 500 वर्ष पूर्व महाराजा अनंगपाल तोमर द्वारा 1060 AD में बनवाया गया ” लाल कोट” ही है
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द्वारा बनवाया गया समझते हैं….
दरअसल वह……
महाराजा विक्रमादित्य के राज्यकाल में….
राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया …. “”हिन्दू
नक्षत्र निरीक्षण केंद्र”” है…..
जिसका “”असली नाम ध्रुव स्तम्भ”” है
पढीये केसे???
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 380-413) गुप्त
राजवंश के राजा।
चन्द्रगुप्त द्वितीय महान जिनको संस्कृत में
विक्रमादित्य या चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम
से जाना जाता है;
गुप्त वंश के एक महान
शक्तिशाली सम्राट थे। उनका राज्य
375-413/15 ई तक चला जिसमें गुप्त राजवंश
ने अपना शिखर प्राप्त किया ।
गुप्त साम्राज्य का वह समय भारत का स्वर्णिम युग
भी कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय महान अपने
पूर्व राजा समुद्रगुप्त महान के पुत्र थे।
उसने आक्रामक विस्तार की नीति एवं लाभदयक पारिग्रहण नीति का अनुसार करके सफलता प्राप्त की ।
आजकल दिल्ली में हम जिसे कुतुबमीनार कहते हैं
और …. उस लूले कुतुबुद्दीन ऐबक
द्वारा बनवाया गया समझते हैं…. दरअसल
वह…… महाराजा विक्रमादित्य के राज्यकाल
में…. राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया …. “”हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र”” है…..
जिसका “”असली नाम ध्रुव स्तम्भ”” है…!
जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है …….
उसे मेहरौली कहा जाता है,…..
और यह मेहरौली ……..वराहमिहिर के नाम पर
बसाया गया था …..
जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक और .. एक बहुत बड़े खगोलशास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ थे !
उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के
चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए……..
27 कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था….
और इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्मकारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं
भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद
भी कहीं कहीं दिख ही जाती हैं… ( चित्र संलग्न )
इसका दूसरा सबसे बड़ा प्रमाण…..
उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है……..
जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसमे लिखा है कि…..
यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है… सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य
(राज्य काल 380-413 ईसवीं ) द्वारा स्थापित
किया गया था…..
और, यह लौहस्तम्भ आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य की बात है क्योंकि…
आज तक इसमें जंग नहीं लगा…
उसी महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ
आर्य भट्ट…….
खगोल शास्त्री एवं भवन
निर्माण विशेषज्ञ वराह मिहिर……
वैद्य राजब्रम्हगुप्त आदि हुए**




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