Tuesday 25 August 2015



प्रकर्ति के पंच तत्व ।
थल तत्व
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इसे भू तत्व या पृथ्वी तत्व भी कहाए हैं इस विभाग के अंतर्गत थल तथा थल तत्व से संबंधित सारी वस्तुएं तथा उनसे संबंधित सारे विषय, उनकी जानकारी एवं पहचान तथा उसके प्रयोग से संबधित सारी बातें आती हैं। थल तत्व या पृथ्वी तत्व का सूक्ष्म विषय ‘गन्ध’ है यानि थल तथा थल तत्व प्रधान वस्तुओं की जानकारी व पहचान ‘गन्ध’ के माध्यम से ही होती है। हालांकि शक्ति-आकाश-वायु-अग्नि-जल पाँचों इकाइयाँ मिलकर थल तत्व की रचना करती हैं।
इसलिए इन पाँचों के अपने सूक्ष्म विषय प्रभाव-शब्द-स्पर्श-रूप-रस भी इस थल तत्व तथा इसके सूक्ष्म विषय गन्ध में समाहित रहते हैं। इसलिए थल तथा थल तत्व सम्बन्धी विषय वस्तुओं की सही जानकारी तथा प्रयोग में यह काफी सहायक होते हैं। परन्तु मुख्य रूप से इसकी जानकारी गन्ध के माध्यम से ही होती है।
थल तत्व विभाग गढ़ के माध्यम से ही अपना कार्य संपादन करता है तथा शेष अन्य प्रभाव शब्द-स्पर्श-रूप-रस भी अपने अपने अंश तक इसका सहयोग करते हैं। शरीर के अन्तर्गत थल तत्व से संबधित वस्तुओं की जानकारी व पहचान के लिए ज्ञानेन्द्रिय के रूप में ‘नाक’ तथा इसकी सहायक के रूप में ‘मलद्वार’ नामक कर्मेन्द्रिय होती है।
जल तत्व के द्रवीभूत गुण के कारण बिना किसी ठोस पदार्थ के जल कहीं ठहर नहीं सकता, हमेशा नीचे की ओर बहता चला जाता है, इसलिए शक्ति ने आकाश-वायु-अग्नि-जल चारों को मिलाकर अपने प्रभाव से ही, इस पाँचवे तत्व थल को उत्पन्न किया। ब्रह्मांड में जितनी भी ठोस वस्तुएं दिखाई दे रही हैं, वे सब इस थल तत्व विभाग के अन्तर्गत आती हैं।
वायु तत्व
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यह स्थूल सृष्टि रचना क्रम में दूसरे स्थान पर आता है। अर्थात सृष्टि रचना क्रम में पहले आकाश तत्व की रचना की गई, उसके बाद आकाश के अन्तर्गत ही वायु तत्व की रचना या उत्पत्ति हुई। शक्ति तथा आकाश मिलकर वायु तत्व की रचना करते हैं। वायु तत्व विभाग आकाश तत्व विभाग के अधीन ही रहता है और अपने सूक्ष्म विषय “स्पर्श” के माध्यम से ही वायु प्रधान विषय-वस्तुओं की पहचान कराता है।
वायु तत्व दो इकाइयों से बना होता है, जिसमे एक इकाई आकाश भी उसमें समाहित रहता है। इसलिए वायु तत्व तथा वायु प्रधान वस्तुओं पर गौण रूप से आकाश तत्व विभाग की दृष्टि भी रहती है। यहाँ गौण कहने से तात्पर्य यह है कि वायु तत्व विभाग के कार्य संपादन में यह विरोध उत्पन्न न करके बल्कि उसे सहयोग करने के लिए ही होता है। वायु तत्व विभाग से संबंधित विषय-वस्तुओं की जानकारी के लिए शरीर में त्वचा नामक ज्ञानेन्द्रिय तथा हाथ नामक कर्मेन्द्रिय होती है।
यानि वायु तत्व प्रधान की जानकारी “स्पर्श” के माध्यम से त्वचा करेगी और उसके पश्चात आवश्यकतानुसार उसके सहयोगी के रूप में कर्मेन्द्रिय उसका कार्य करेगी। ज्ञानेन्द्रिय प्रधान तथा कर्मेन्द्रिय सहायक के रूप में रहते हैं। वायु तथा वायु-तत्व विभाग के विषय वस्तु को जानने समझने में शब्द भी सहयोग कर सकता है परन्तु स्पष्ट रूप से इसकी पहचान स्पर्श से ही होती है। रूप, रस और गंध की पहुँच स्पर्श में नहीं होती है क्योंकि स्पर्श इन तीनों से ही अति सूक्ष्म होता है यानि सूक्ष्मता के क्रम में स्पर्श से पहले शब्द ही आता है। रूप, रस और गंध तो बाद वाले पदार्थ तत्वों में होता है।
जल तत्व
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जल तत्व विभाग के अंतर्गत जल तथा जल से संबंधित सारी वस्तुएं, उनकी जानकारी तथा प्रयोग से संबधित बातें आती हैं। जल तत्व का सूक्ष्म विषय ‘रस’ है यानि रस के माध्यम से ही जल तथा जल तत्व प्रधान वस्तुओं की जानकारी होती है। यह स्थूल सृष्टि रचना क्रम में चौथे स्थान पर आता है। जल तत्व की रचना चार इकाइयों शक्ति-आकाश-वायु-अग्नि द्वारा होती है। इसीलिए इन चारों का भी प्रभाव शब्द-स्पर्श-रूप भी जल तत्व में समाहित रहता है।
अर्थात शक्ति के अधीन आकाश, शक्ति और आकाश के अधीन वायु, शक्ति-आकाश और वायु के अधीन अग्नि, शक्ति-आकाश-वायु और अग्नि के अधीन जल तत्व रहता है। इसीलिए जल में क्रमशः प्रभाव शब्द, स्पर्श और रूप भी समाहित रहता है। यानि जल तत्व की पहचान में ये चारों ही रस का सहयोग करते हैं। जल तत्व रस के माध्यम से ही अपना कार्य संपादन करता है। जल तत्व का प्रभाव होता है द्रव, मुलायम या विनम्रता। जल तथा जल से संबंधित विषयों की जानकारी के लिए शरीर में ज्ञानेन्द्रिय के रूप में जिह्वा होती है तथा इसकी सहयोगी के रूप में मूत्रद्वार होता है।
शब्द सूक्ष्म रूप विषय रूप आकाश में तो अभी शक्ति का प्रभाव प्रकट हुआ, परन्तु वह ‘बल’ से महसूस हुआ था, प्रभाव का खुल्लम खुल्ला प्राकट्य अभी नहीं हुआ था। अग्नि तत्व के माध्यम से उसका रूप भी भौतिक रूप में प्रकट हो गया। इसमे इतना तेज था कि उस तेज को उपयोग में लाने के लिए जल तत्व की उत्पत्ति की गई, ताकि तेज को ठंडा, मुलायम या द्रवित करते हुये उपयोगी बनाया जा सके। जल के वगैर उसका तेज कम नहीं हो रहा था। इस कारण जल तत्व की उत्पत्ति हुई।
आकाश तत्व
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आकाश तत्व स्थूल सृष्टि रचना क्रम में पहले स्थान पर आता है अर्थात जब इस भौतिक सृष्टि की रचना आरम्भ हुई तो सबसे पहले आकाश तत्व की रचना की गई। आकाश तत्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अन्य पदार्थों की तरह सामान्यतः यह उत्पन्न और नष्ट नहीं होता है।
जब स्थूल सृष्टि की रचना होती है तब यह सबसे पहले शक्ति से उत्पन्न होता है और महाप्रलय के समय ही जब समस्त सृष्टि का अंत होता है तब यह शक्ति में ही विलीन हो जाता है, नष्ट नहीं होता है । आकाश तत्व का सूक्ष्म विषय “शब्द” है, यानि “शब्द” के माध्यम से ही आकाश तथा आकाश तत्व प्रधान वस्तुओं की जानकारी प्राप्त होती है। इस संसार में सभी प्रकार के सूचना प्रसारण तंत्रों का मुख्य आधार यही आकाश तत्व होता है।
आकाश तत्व प्रथम व एक इकाई वाला होने के कारण, वह किसी अन्य विभाग के द्वारा जाना या समझा नहीं जा सकता। इसकी सही सही जानकारी सिर्फ “शब्द” से ही हो सकती है। इसमें स्पर्श, रूप, रस तथा गंध जैसी कोई बात नही होती है क्योंकि उनकी पहुँच इसमें नहीं है और यह उन सभी से अति सूक्ष्म होता है। हमारे शरीर में कान और वाणी ही आकाश तत्व की क्रमशः ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय हैं। इसकी सारी जानकारी और क्रियाकलाप आदि सब कुछ ही “शब्द” के द्वारा ही होता है। कान जानकारी को ग्रहण(प्राप्त) करता है और वाणी जानकारियाँ प्रकट और प्रेषित करती है।
अग्नि तत्व
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स्थूल सृष्टि रचना क्रम में तीसरे स्थान पर अग्नि तत्व की रचना हुई। अग्नि तत्व विभाग के अन्तर्गत अग्नि तथा अग्नि से संबंधित सारी विषय-वस्तुएं, उनकी जानकारी व पहचान तथा उसके प्रयोग सम्बन्धी बातें आती हैं। अग्नि तत्व का सूक्ष्म विषय “रूप” है। यानि “रूप” के माध्यम से ही अग्नि तत्व तथा उससे संबंधित वस्तुओं की जानकारी तथा पहचान होती है।
अग्नि तत्व तीन इकाइयों से मिलकर बना होता है- शक्ति, आकाश और वायु ये तीनों मिलकर ही अग्नि तत्व की रचना करते हैं। वायु तत्व दो इकाइयों ‘शक्ति-आकाश’ तथा आकाश केवल एक इकाई ‘शक्ति’ द्वारा ही उत्पन्न हुआ है लेकिन अग्नि में ‘शक्ति-आकाश-वायु’ तीनों ही समाहित होते हैं। इसीलिए शक्ति के अधीन आकाश तत्व विभाग, शक्ति और आकाश तत्व विभाग के अधीन वायु तत्व विभाग तथा शक्ति, आकाश और वायु तत्व विभाग के अधीन अग्नि तत्व विभाग रहता है। अग्नि तत्व विभाग अपना कार्य संपादन ‘रूप’ और तेज के माध्यम से ही करता है, हालांकि इसका प्रधान कार्य तो रूप के माध्यम से ही होता है। परंतु जहाँ यह होता है,
क्षमतानुसार उसका प्रभाव तेज भी रहता ही है क्योंकि तेज के वगैर रूप हो ही नहीं सकता। अग्नि का रूप प्रकाश या ज्योति ही है। अग्नि तक आते आते वह शक्ति मानव के लिए दिखाई देने योग्य रूप (प्रकाश रूप) में प्रकट हो जाती है। अग्नि तथा अग्नि से संबंधित विषय-वस्तुओं में रस एवं गंध का प्रवेश नहीं हो पाता क्योंकि रस एवं गंध से रूप सूक्ष्म होता है। हाँ, शब्द और स्पर्श जरूर उसमें समाहित होते हैं। ये सहयोगी हैं अग्नि तत्व विभाग के। अग्नि तत्व के कार्य संपादन के लिए शरीर में ज्ञानेन्द्रिय के रूप में आँख और सहायक रूप में पैर रूपी कर्मेन्द्रिय मिली है, जो आवश्यकता के अनुसार गतिशील होती है।

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