Thursday 9 July 2015

sanskar

महाराष्ट्र के पंढरपुर नामक नगर में विष्णु का मंदिर हैं इस मंदिर से जुड़ी हुई कहानी बड़ी अद्भुत हैं । इससे जुड़ी एक किवंदती हैं .
पंढरपुर गाँव में पुंडलीक नामक एक युवक रहता था ।
 उसके वृद्ध माता पिता काफी बीमार हो गए अत एवं उनकी सेवा कर रहा था और विपणन अवस्था मे चल रहा था उसकी भगवान कृष्ण पर बहुत असीम श्रद्धा थी और वह भगवान के दर्शन की इच्छा करता रहता था उसकी परम भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान रात्रि में उसके दरवाजे पर आए किन्तु वह उस समय अपने माता पिता की सेवा में इतना लीन था की उसे इसका भान ही न हो सका ।
भगवान चलकर पुंडलीक के घर आए उन्होने देखा की वह माता पिता की सेवा में जूटा था, पुंडलीक को दरवाजे से अंदर किसी व्यक्ति के आने का भान हुआ तो बिना उधर देखे ही उसने पूछा कौन हो ? उस पर भगवान बोले, मैं विट्ठल हूँ, तुम्हारी सहायता करना चाहता हूँ । पुंडलीक ने फिर बिना देखे ही एक ईंट भगवान की तरफ फेंक दी और कहा की इसी पर विश्राम करो, मैं माँ और पिता की सेवा समाप्त कर लूँ तो तुमसे आकार मिलता हूँ । माता पिता की सेवा में सारी रात बीत गई और सवेरा हो गया भगवान रात भर ईंट पर ही खड़े रहे । भगवान को बड़ी देर हो गई तो माता रुक्मणी उन्हें खोजते हुई आई । पुंडलीक ने यह जानकर की कोई व्यक्ति भी विट्ठल के साथ आया हैं उसके लिए भी एक ईंट सरका दी सवेरा हो गया ।
लोगो के मार्ग से निकलने का समय आ गया । ईंट पर खड़े हुए कृष्ण और रुक्मणी ने अपने आपको मूर्ति में परिवर्तित कर दिया । तब से दोनों विष्णु और रुक्मणी वहीं ईंट पर खड़े कमर पर हाथ धरे प्रतीक्षा कर रहे है की पुंडलीक की माता पिता सेवा समाप्त हो वह उनकी तरफ देखे । पुंडलीक की माता पिता पर इतनी श्रद्धा से भगवान इतने प्रसन्न उए की सदा के लिए मूर्ति बन कर उनके पास आ गए कोई भी कार्य पूर्ण श्रद्धा से किया जाता है वह प्रभु की पूजा की तरह है । पूर्ण श्रद्धा से अहंकार मिट जाता हैं और ऐसा होते ही सब प्रभुमय हो जाता है मान्यता हैं की पंधरपुर के मंदिर में यही मूर्ति विराजमान है .
घर घर तक विट्ठल अर्थात श्री विष्णु नाम की गूंज पहुँचते लोकगायक का नाम आते ही आँखों के सामने मराठी भाषा के सर्वश्रेष्ठ संत और महाकवि श्री तुकाराम का चित्रा उभरता हैं तुकाराम ने एक रात स्वप्न में 13 वी सदी के चर्चित संत नामदेव और स्वयं विट्ठल के दर्शन किए संत ने तुकाराम को निर्देश दिया , तुम अभंग रचो और लोगो मे आध्यात्म का प्रचार करो कर्मकांड से दूर रहकर श्री तुकाराम ने प्रेम के जरिये आध्यात्मिकता की खोज को महत्व दिया उन्होने हरी भक्ति कराते करते अनेक काष्ठ सहे समाज के ताने सहें लेकिन वे इतने लीन रहते थे की उन्हें सांसरिक जीवन का कुछ भान ही नहीं रहता था ।
आषाढ़ एकादशी पर महाराष्ट्र के कोने कोने से वारकरी पालकियों और दिंडियो के साथ पंढरपुर में भगवान श्री विट्ठल (श्री विष्णु) के दर्शन को पहुँचते हैं दर्शन को उमड़ने वाले इस जनसमुंह की संख्या का पता लगाना मुश्किल हैं
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ॐ नमः शिवाय
1400 साल पहले ... 200 साल तक 20 पिढीयों ने
पहाड को उपर से नीचे की तरफ तराशकर बनाया
गया यह " घृष्णेश्वर मंदिर " .. ताजमहल से लाख
गुना सुंदर और आकर्षक है .. भारतीय शिल्प कला का
अद्भुत नमूना है .. संपूर्ण हिन्दू पौराणिक कथाओं के
शिल्प है ... विष्णु अवतार , महादेव से लेकर रामायण
महाभारत भी ... मुर्तीयो के रूप में दर्शाया है ... वो
भी 1400 साल पहले
घृष्णेश्वर मंदिर , वेरुळ लेणी
संभाजीनगर , महाराष्ट्र
यह मंदिर महाराष्ट्र के संभाजीनगर (औरंगाबाद) के समीप दौलताबाद से 11 किलोमीटर
की दुरी पर स्थित है. यह स्थान विश्वप्रसिद्ध
एलोरा गुफाओं से एकदम लगा हुआ तथा वेलुर
नामक गाँव में स्थित है.
प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में इसे कुम्कुमेश्वर के
नाम से भी संदर्भित किया गया है.
घृष्णेश्वर मंदिर एलोरा गुफाओं से मात्र 500
मीटर की दुरी पर तथा संभाजी नगर से 30
किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. संभाजीनगर
से घृष्णेश्वर का 45 मिनट का सफ़र यादगार
होता है क्योंकि यह रास्ता नयनाभिराम
सह्याद्री पर्वत के सामानांतर दौलताबाद,
खुलताबाद और एलोरा गुफाओं से होकर जाता
है.











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