Thursday 16 July 2015

भारत के टॉप 50 मोस्ट वांटेड भगोड़े !!
1. हाफिज मोहम्मद सईद
2. साजिद माजिद
3. सैयद हाशिम अब्दुर्रहमान पाशा
4. मेजर इकबाल
5. इलियास कश्मीरी
6. राशिद अब्दुल्लाह
7. मेजर समीर अली
8. दाऊद इब्राहिम
9. मेमन इब्राहिम
10.छोटा शकील
11. मेमन अब्दुल रज्जाक
12. अनीस इब्राहिम
13. अनवर अहमद हाजी जमाल
14. मोहम्मद दोसा
15. जावेद चिकना
16. सलीम अब्दुल गाजी
17. रियाज खत्री
18. मुनाफा हलरी
19. मोहम्मद सलीम मुजाहिद
20. खान बशीर अहमद
21. याकूब येदा खान
22. मोहम्मद मेमन
23. इरफान चौगले
24. फिरोज राशिद खान
25. अली मूसा
26. सगीर अली शेख
27. आफताब बटकी
28. मौलाना मोहम्मद मसूद अजहर
29. सलाउद्दीन
30. आजम चीमा
31. सैयद जबीउद्दीन जबी
32. इब्राहिम अतहर
33. अजहर युसुफ
34. जहूर इब्राहिम मिस्त्री
35. अख्तर सईद
36. मोहम्मद शकीर
37. रऊफ अब्दुल
38. अमानुल्ला खान
39. सूफियान मुफ्ती
40. नाछन अकमल
41. पठान याकूब खान
42. कैम बशीर
43. आयेश अहमद
44 अल खालिद हुसैन
45 इमरान तौकीब रजा
46 शब्बीर तारिक हुसैन
47. अबू हमजा
48. जकी उर रहमान लखवी
49. अमीर रजा खान
50. मोहम्मद मोहसिन
कौन कहता है आतंकवाद का कोई धर्म नही होता .... ?
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Greece के डिफ़ॉल्ट हुए लोन की रकम है
323 बिलियन डॉलर .......
.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 351 बिलियन डॉलर ...क्या करें खरीद ले Greece को .सिकंदर भी क्या याद करेगा..!!.
.........................................................................
विलाप करना लाज़िमी है ................................................
FTII का सारा फसाद वामपंथी फैक्ट्री से निकला है। पोस्टर्स पर लिखे स्लोगन्स पढ़िए -
'युधिष्ठिर ! ये हमारा स्वर्ग है। ' ....... ' हम शिक्षा के भगवाकरण के खिलाफ हैं '.......
पिछले 6 दशकों से FTII भारतीय सिनेमा में कम्युनिस्टों को प्लांट करने का माध्यम बना हुआ है।
सो,विलाप करना लाज़िमी है - "YUDHISHTHIR , THIS HEAVEN IS 'OURS.' "
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
#‎बाहुबली‬ फिल्म सिर्फ 2 दिनों में 100 करोड़ से ज्यादा कमा चुकी है ,चूँकि यह फिल्म हिंदुत्व से जुडी हुई है इसलिए अपनी दलाल मिडिया के किसी भी कोठे पर इसका जिक्र तक नही है....हाँ अगर जेहादी मुल्ला आमिर खान हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाते हुए कोई फिल्म बनाता ,तो यही मिडिया के दल्ले चीख चीख कर उसका प्रचार भी करते !
‪#‎कुलदीपबिश्नोई‬
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हिन्दुओ को सेक्युलर बनने के लिए कभी ..टोपी पहनना पड़ता है, कभी ,इफ्तार देना या उसमे शामिल होना पड़ता ..लेकिन किसी मुस्लिम को सेक्युलर होने के लिए ऐसा कुछ करते नहीं देखा.... जैसे भंडारा का आयोजन,होली खेलते ,...दीपावली पर पठाखे फोड़ते ..तिलक लगाते..आदि ...आदि
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
शिक्षाप्रेमी सन्त : स्वामी कल्याणदेव जी
स्वामी कल्याणदेव जी महाराज सच्चे अर्थों में सन्त थे। उनकी जन्मतिथि एवं शिक्षा-दीक्षा के बारे में निश्चित जानकारी किसी को नहीं है। एक मत के अनुसार जून 1876 में उनका जन्म ग्राम कोताना (जिला बागपत, उ.प्र.) के एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री फेरूदत्त जाँगिड़ तथा माता श्रीमती भोईदेवी थीं। कुछ लोग जिला मुजफ्फरनगर के मुण्डभर गाँव को उनकी जन्मस्थली मानते हैं। उनके बचपन का नाम कालूराम था।
धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण दस साल की अवस्था में उन्होंने घर छोड़ दिया था। 1900 ई0 में ऋषिकेश में स्वामी पूर्णदेव जी से दीक्षा लेकर वे हिमालय में तप एवं अध्ययन करने चले गये। 1902 में राजस्थान में खेतड़ी नरेश के बगीचे में स्वामी विवेकानन्द से उनकी भेंट हुई। विवेकानन्द ने उन्हें पूजा-पाठ के बदले निर्धनों की सेवा हेतु प्रेरित किया। इससे कल्याणदेव जी के जीवन की दिशा बदल गयी।
1915 में गान्धी जी से भेंट के बाद स्वामी जी स्वाधीनता संग्राम के साथ ही हिन्दी और खादी के प्रचार तथा अछूतोद्धार में जुट गये। इस दौरान उन्हें अनुभव आया कि निर्धनों के उद्धार का मार्ग उन्हें भिक्षा या अल्पकालीन सहायता देना नहीं, अपितु शिक्षा की व्यवस्था करना है। बस, तब से उन्होंने शिक्षा के विस्तार को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
स्वामी जी ने मुजफ्फरनगर जिले में गंगा के तट पर बसे तीर्थस्थान शुकताल को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया। यह वही स्थान है, जहाँ मुनि शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को वटवृक्ष के नीचे पहली बार भागवत की कथा सुनायी थी। वह वटवृक्ष आज भी जीवित है। स्वामी जी ने इस स्थान का जीर्णाेद्धार कर उसे सुन्दर तीर्थ का रूप दिया। इसके बाद तो भक्तजन स्वामी जी को मुनि शुकदेव का अंशावतार मानने लगे। स्वामी जी ने गंगा तट पर बसे महाभारतकालीन हस्तिनापुर के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
सरलता और सादगी की प्रतिमूर्ति स्वामी जी का प्रेम एवं आशीर्वाद जिसे भी मिला, वही धन्य हो गया। इनमें भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद से लेकर पण्डित नेहरू, नीलम स॰जीव रेड्डी, इन्दिरा गान्धी, डा. शंकरदयाल शर्मा, गुलजारीलाल नन्दा, के.आर. नारायणन, अटल बिहारी वाजपेयी आदि बड़े राजनेताओं से लेकर सामान्य ग्राम प्रधान तक शामिल हैं। स्वामी कल्याणदेव जी सबसे समान भाव से मिलते थे।
स्वामी जी ने अपने जीवनकाल में 300 से भी अधिक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की। वे सदा खादी के मोटे भगवा वस्त्र ही पहनते थे। प्रायः उनके वस्त्रों पर थेगली लगी रहती थी। प्रारम्भ में कुछ लोगों ने इसे उनका पाखण्ड बताया; पर वे निर्विकार भाव से अपने कार्य में लगे रहे। वे सेठों से भी शिक्षा के लिए पैसा लेते थे; पर भोजन तथा आवास सदा निर्धन की कुटिया में ही करते थे। शाकाहार के प्रचारक इस सन्त को 1992 में पद्मश्री तथा 2000 ई. में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
13 जुलाई की अतिरात्रि में उन्होंने अपने शिष्यों से उन्हें प्राचीन वटवृक्ष एवं शुकदेव मन्दिर की परिक्रमा कराने को कहा। परिक्रमा पूर्ण होते ही 12.20 पर उन्होंने देहत्याग दी। तीन सदियों के दृष्टा 129 वर्षीय इस वीतराग सन्त को संन्यासी परम्परा के अनुसार अगले दिन शुकताल में भूसमाधि दी गयी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नारी उत्थान को समर्पित : दुर्गाबाई देशमुख
आंध्र प्रदेश से स्वाधीनता समर में सर्वप्रथम कूदने वाली महिला दुर्गाबाई का जन्म 15 जुलाई, 1909 को राजमुंदरी जिले के काकीनाडा नामक स्थान पर हुआ था। इनकी माता श्रीमती कृष्णवेनम्मा तथा पिता श्री रामाराव थे। पिताजी का देहांत तो जल्दी ही हो गया था; पर माता जी की कांग्रेस में सक्रियता से दुर्गाबाई के मन पर बचपन से ही देशप्रेम एवं समाजसेवा के संस्कार पड़े।
उन दिनों गांधी जी के आग्रह के कारण दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार हो रहा था। दुर्गाबाई ने पड़ोस के एक अध्यापक से हिन्दी सीखकर महिलाओं के लिए एक पाठशाला खोल दी। इसमें उनकी मां भी पढ़ने आती थीं। इससे लगभग 500 महिलाओं ने हिन्दी सीखी। इसे देखकर गांधी जी ने दुर्गाबाई को स्वर्ण पदक दिया। गांधी जी के सामने दुर्गाबाई ने विदेशी वस्त्रों की होली भी जलाई। इसके बाद वे अपनी मां के साथ खादी के प्रचार में जुट गयीं।
नमक सत्याग्रह में श्री टी.प्रकाशम के साथ सत्याग्रह कर वे एक वर्ष तक जेल में रहीं। बाहर आकर वे फिर आंदोलन में सक्रिय हो गयीं। इससे उन्हें फिर तीन वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। कारावास का उपयोग उन्होंने अंग्रेजी का ज्ञान बढ़ाने में किया।
दुर्गाबाई बहुत अनुशासनप्रिय थीं। 1923 में काकीनाड़ा में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में वे स्वयंसेविका के नाते कार्यरत थी। वहां खादी वस्त्रों की प्रदर्शनी में उन्होंने नेहरू जी को भी बिना टिकट नहीं घुसने दिया। आयोजक नाराज हुए; पर अंततः उन्हें टिकट खरीदना ही पड़ा।
जेल से आकर उन्होंने बनारस मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा आंध्र विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में बी.ए किया। मद्रास वि. वि. से एम.ए की परीक्षा में उन्हें पांच पदक मिले। इसके बाद इंग्लैंड जाकर उन्होंने अर्थशास्त्र तथा कानून की पढ़ाई की। इंग्लैंड में वकालत कर उन्होंने पर्याप्त धन भी कमाया। स्वाधीनता के बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में वकालत की।
1946 में दुर्गाबाई लोकसभा और संविधान सभा की सदस्य निर्वाचित हुईं। 1953 में ही उन्होंने भारत के प्रथम वित्तमंत्री श्री चिन्तामणि देशमुख से नेहरू जी की उपस्थिति में न्यायालय में विवाह किया। इसी वर्ष नेहरू जी ने इन्हें केन्द्रीय समाज कल्याण विभाग का अध्यक्ष बनाया। इसके अन्तर्गत उन्होंने महिला एवं बाल कल्याण के अनेक उपयोगी कार्यक्रम प्रारम्भ किये। इन विषयों के अध्ययन एवं अनुभव के लिए उन्होंने इंग्लैंड, अमरीका, सोवियत रूस, चीन, जापान आदि देशों की यात्रा भी की।
दुर्गाबाई देशमुख ने आन्ध्र महिला सभा, विश्वविद्यालय महिला संघ, नारी निकेतन जैसी कई संस्थाओं के माध्यम से महिलाओं के उत्थान के लिए अथक प्रयत्न किये। योजना आयोग द्वारा प्रकाशित ‘भारत में समाज सेवा का विश्वकोश’ उन्हीं के निर्देशन में तैयार हुआ। आंध्र के गांवों में शिक्षा के प्रसार हेतु उन्हें नेहरू साक्षरता पुरस्कार दिया गया। उन्होंने अनेक विद्यालय, चिकित्सालय, नर्सिंग विद्यालय तथा तकनीकी विद्यालय स्थापित किये। उन्होंने नेत्रहीनों के लिए भी विद्यालय, छात्रावास तथा तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्र खोले।
दुर्गाबाई देशमुख का जीवन देश और समाज के लिए समर्पित था। लम्बी बीमारी के बाद नौ मई, 1981 को उनका देहांत हुआ। उनके द्वारा स्थापित अनेक संस्थाएं आज भी आंध्र और तमिलनाडु में सेवा कार्यों में संलग्न हैं
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,











No comments:

Post a Comment