Tuesday 30 June 2015

नालंदा विश्वविद्यालयन को क्यों जलाया गया था..?
जानिए सच्चाई ...??
एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क लूटेरा
था....बख्तियार खिलजी.
इसने ११९९ इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।
उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित
कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.
एक बार वह बहुत बीमार पड़ा उसके
हकीमों ने
उसको बचाने की पूरी कोशिश कर
ली ...
मगर वह ठीक नहीं हो सका.
किसी ने उसको सलाह दी...
नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के
प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र
जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय
विधियों से इलाज कराया जाय
उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई
भारतीय
वैद्य ...
उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और
वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाए
फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए
उनको बुलाना पड़ा
उसने वैद्यराज के सामने शर्त रखी...
मैं तुम्हारी दी हुई कोई दवा
नहीं खाऊंगा...
किसी भी तरह मुझे ठीक करों
...
वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो.
बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत
उपाय सोचा...
अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर
चले गए..
कहा...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से
इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!
उसने पढ़ा और ठीक हो गया ..
जी गया...
उसको बड़ी झुंझलाहट
हुई...उसको ख़ुशी नहीं हुई
उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके
मुसलमानी हकीमों से इन
भारतीय
वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...!
बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने
के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ...
उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग
लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के
राख कर दिया...!
वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग
लगी भी तो तीन माह तक
पुस्तकें धू धू करके
जलती रहीं
उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार
डाले.
आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक
बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन
बनाये पड़ी हैं... !
उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को...
मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के
वह
कैसे ठीक हुआ था.
हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को
जमीन पर
रख के नहीं पढ़ते...
थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते
मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज
को थूक लगा लगा के पलटते हैं...!
बस...
वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के
कुछ
पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप
लगा दिया था...
वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट
गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान
का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया
आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जान
लेते है
यह प्राचीन भारत में उच्च्
शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और
विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के
इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के
साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के
छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में
पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व
और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में
एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम
द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध
विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन
वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक
पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण
के लिए आये चीनी यात्री
ह्वेनसांग
तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस
विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत
जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने
7वीं शताब्दी में
यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक
विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में
व्यतीत
किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र'
का जन्म यहीं पर हुआ था।
स्थापना व संरक्षण
इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय
गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७०
को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमार
गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग
मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले
सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में
अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट
हर्षवर्द्धन और पाल
शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए
शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के
साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से
भी अनुदान मिला।
स्वरूप
यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय
विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें
विद्यार्थियों की संख्या करीब १०,००० एवं
अध्यापकों की संख्या २००० थी। इस
विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न
क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान,
चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस
तथा तुर्की से भी विद्यार्थी
शिक्षा ग्रहण
करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट
शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध
धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय
की नौवीं शती से
बारहवीं शती तक
अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही
थी।
परिसर
अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र
में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य
कला का अद्भुत नमूना था।
इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से
घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य
द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर
मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक
भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध
भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं।
केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और
इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें
व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में
तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के
होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल
के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर
की चौकी होती
थी। दीपक, पुस्तक
इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे।
प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था।
आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक
प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के
अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें
भी थी।
प्रबंधन
समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध
कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे
जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे।
कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के
परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथम
समिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्य
देखती थी और द्वितीय समिति
सारे
विश्वविद्यालय की आर्थिक
व्यवस्था तथा प्रशासन की देख--भाल
करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिले
दो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय
की देख--रेख यही समिति
करती थी। इसी से
सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े
तथा आवास का प्रबंध होता था।
आचार्य
इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के
आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम,
द्वितीय और तृतीय श्रेणी में
आते थे।
नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र,
धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और
स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में
ह्वेनसांग
के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख
शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक
और विद्वान थे। एक प्राचीन श्लोक से
ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ
एवं खगोलज्ञ आर्यभट भी इस
विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे। उनके लिखे
जिन तीन ग्रंथों की जानकारी
भी उपलब्ध है
वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र।
ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ
आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र
३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ
का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था।
प्रवेश के नियम
प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती
थी और
उसके कारण
प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही
प्रवेश पा सकते
थे। उन्हें तीन कठिन
परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था।
यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। शुद्ध
आचरण और संघ के नियमों का पालन
करना अत्यंत आवश्यक था।
अध्ययन-अध्यापन पद्धति
इस विश्वविद्यालय में आचार्य
छात्रों को मौखिक व्याख्यान
द्वारा शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त
पुस्तकों की व्याख्या भी होती
थी।
शास्त्रार्थ होता रहता था। दिन के हर पहर
में अध्ययन तथा शंका समाधान
चलता रहता था।
अध्ययन क्षेत्र
यहाँ महायान के प्रवर्तक नागार्जुन,
वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की
रचनाओं
का सविस्तार अध्ययन होता था। वेद, वेदांत
और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे। व्याकरण,
दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र
तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के
अन्तर्गत थे। नालंदा कि खुदाई में मिलि अनेक
काँसे की मूर्तियोँ के आधार पर कुछ
विद्वानों का मत है कि कदाचित् धातु
की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान
का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोलशास्त्र
अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था।
पुस्तकालय
नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और
आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक
विराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख से
अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस
पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें
थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर'
नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था।
'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य
हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें
से
अनेक
पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी
यात्री अपने
साथ ले गये थे।

bal paheli.....

भगवान कृष्ण ने किस ग्रंथ में कहा है ‘धेनुनामसिम’ मैं गायों में कामधेनु हूं?
श्रीमद् भगवतगीता |
‘चाहे मुझे मार डालो पर गाय पर हाथ न उठाओ’ किस महापुरुष ने कहा था?
बाल गंगाधर तिलक |
रामचंद्र ‘बीर’ ने कितने दिनों तक गौहत्या पर रोक लगवाने के लिए अनशन किया?
70 दिन |
पंजाब में किस शासक के राज्य में गौ हत्या पर मृत्यु दंड दिया जाता था?
पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह |
गाय के घी से हवन पर किस देश में वैज्ञानिक प्रयोग किया गया?
रूस |
गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग किस में होता है?
खेती के लिए जैविक (केंचुआ) खाद बनाने में |
मनुष्य को गौ-यज्ञ का फल किस प्रकार होता है?
कत्लखाने जा रही गाय को छुड़ाकर उसके पालन-पोषण की व्यवस्था करने पर |
एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर क्या बनता है?
एक टन आँक्सीजन |
ईसा मसीहा का क्या कथन था?
एक गाय को मरना, एक मनुष्य को मारने के समान है |
प्रसिद् मुस्लिम संत रसखान ने क्या अभिलाषा व्यक्त की थी?
यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं |
पं. मदन मोहन मालवीय जी की अंतिम इच्छा क्या थी?
भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने |
भगवान शिव का प्रिय श्री सम्पन्न ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति कहा से हुई है?
गाय के गोबर से |
गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 क्या है?
10 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए तक का जुर्माना |
गाय की रीढ़ में स्थित सुर्यकेतु नाड़ी से क्या होता है?
सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होता है |
देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम कितने जीवाणु होते है?
300 करोड़ |
गाय के दूध में कौन-कौन से खनिज पाए जाते है?
कैलिशयम 200 प्रतिशत, फास्फोरस 150 प्रतिशत, लौह 20 प्रतिशत, गंधक 50 प्रतिशत, पोटाशियम 50 प्रतिशत, सोडियम 10 प्रतिशत, पाए जाते है |
‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय है’, यह युक्ति किस पुराण की है?
स्कन्द पुराण |
विश्व की सबसे बड़ी गौशाला का नाम बताइए?
पथमेड़ा, राजस्थान |
गाय के दूध में कौन-कौन से विटामिन पाए जाते है?
विटामिन C 2 प्रतिशत, विटामिन A (आई.क्यू) 174 और विटामिन D 5 प्रतिशत |
यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाय हमारी रक्षा करेंगी ‘यह संदेश किस महापरुष का है?
पंडित मदन मोहन मालवीय का |
‘गौ’ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है| इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है| यह विचार किनका था?
महर्षि अरविंद का |
भगवान बालकृष्ण ने गायें चराने का कार्य किस दिन से प्रारम्भ किया था?
गोपाष्टमी से |
श्री राम ने वन गमन से पूर्व किस ब्राह्मण को गायें दान की थी?
त्रिजट ब्राह्मण को |
‘जो पशु हां तों कहा बसु मेरो, चरों चित नंद की धेनु मंझारन’ यह अभिलाषा किस मुस्लिम कवि की है?
रसखान |
‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटआऊँ‘ यह इच्छा किस गुरु ने प्रकट की?
गुरु गोबिंद सिंह जी ने |

" अंतरराष्ट्रीय नार्थ-साउथ कॉरिडोर"

अभी तक चाहते हुए भी भारत से रूस को निर्यात नही हो पाता है क्योकि वर्तमान में मुम्बई से रूस के बंदरगाह सेंट पीटरस बर्ग की दुरी 8673 नॉटिकल माईल( 11500 किलोमीटर) है जो भारत के बंदरगाह Mumbai से 2. Arabian Sea,3. Gulf Of Aden,4. Red Sea,5. Gulf Of Suez, 6. Suez Canal River,7. Suez Canal,8. Ismailiya Canal River,9. Nile River,10. Damietta Branch River,11. Mediterranean Sea,12. Alboran Sea,13. Strait Of Gibraltar,14. North Atlantic Ocean,15. Bay Of Biscay,16. English Channel,17. North Sea,18. Ijsselmeer Lagoon19. Skagerrak Fjord,20. Kattegat Sea,21. Baltic Sea,22. Gulf Of Finland और तब रूस का Port of St. Petersburg बन्दरगाह तक 36.5 दिन की समुद्री यात्रा के बाद पूरी होती है।
रूस के साथ मित्रता को और मजबूत करने तथा रूस को कृषि और अन्य औद्योगिक उत्पादों का.निर्यात बढ़ाने के लिए प्रधानमन्त्री मोदी इस दुरी और समय को 70 % तक घटा कर करने के लिए मुम्बई से ईरान के बन्दर अब्बास बंदरगाह, फिर सड़क मार्ग से ईरान के कैस्पियन सागर स्थित अस्त्रा और अंजाली बन्दरगाह तक फिर इरान के इन बन्दरगाहों से केस्पियन सागर में अजरबैजान के बाकू बन्दरगाह होते हुए रूस के कैस्पियन सागर स्थित बन्दरगाह अस्तरखान तक का मार्ग " अंतरराष्ट्रीय नार्थ-साउथ कॉरिडोर" बनवाने के लिए ईरान, मश्या एशिया के देश ,अजरबैजान और रूस के साथ एक 10 देशो का सम्मिलित समझौता करवा रहे है जिसके फलस्वरूप समय तो बचेगा ही प्रति 15 तन के कंटेनर पर $2500 डॉलर की बचत होगी ...
हालॉकि अमेरिका इस समझौते के पक्ष में नही है लेकिन मोदी जी अमेरिका के सुझाव की अंनदेखी करते हुए समझौते पर आगे बढ़ रहे है और जुलाई में रूस तथा 5 मध्य एशियाई देशो की यात्रा के समय इसे पूरा कर लेगे ..
यह एक प्रकार से चीन की "ONE BELT- ONE ROAD" का भी जबाब और काट है ...=
======================================
मैगी के बाद अब चावल में मिलावट की खबरें आ रही हैं। जानकारी के मुताबिक बाजार में बिकने वाला यह मिलावटी चावल एक कटोरा पॉलीथीन बैग खाने के बराबर है।
खबर पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन हाल ही में लीक फैक्ट्री के एक वीडियो में यह घटना सामने आई है। भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामानों के अलावा खाद्य पदार्थ भी चीन से आयात किया जाता है। ऐसे में वहां से आयात किया जाने वाला मिलावटी चावल दरअसल प्लास्टिक से बना है।
जानकारी के मुताबिक चीन में बने इस चावल का निर्यात भारत के अलावा सिंगापुर,इंडोनेशिया और अन्य देशों में भी किया जा रहा है। प्लास्टिक से बने इस चावल को सामान्य चावल के साथ मिलाकर विक्रेता इसे ग्राहकों को धड़ल्ले से बेच रहे हैं। सामान्य चावल में मिलाने के बाद इसे खरीदारों के लिए पहचान पाना नामुमकिन हो जाता है।
प्लास्टिक से बना यह चावल भी सामानय चावल की तरह पकाने पर आसानी से गल जाता है। लेकिन खाने के बाद यह चावल शरीर को किस कदर हानि पहुंचाएगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
source : Jansatta




ये इजराईल की खेती की तकनीक है ..बिना पेस्तिसायीड मिलाये ......
क्यो इजराईल की दोस्ती के नाम पे देश द्रोही और देश उन्नति विरोधयो को मिर्ची लगती है.... आज यदि इजराईल के साथ 50% भी तकनीक साझा करली जाए तो देश उन्नति के शिखर पर हो...






संस्कृत वाक्य अभ्यासः
~~~~~~~~~~~~
ततः धूम्रः निर्गच्छति
= वहाँ से धुंआँ निकल रहा है ।
किमपि दहति वा ?
= कुछ जल रहा है क्या ?
पश्यामि ? = देखता हूँ ।
ओह , सा सुगन्धवर्तिकां प्रज्ज्वालितवती
= ओह , उसने अगरबत्ती जलाई है ।
तस्य उपरि एकं करवस्त्रं पतितम्
= उसके ऊपर एक रूमाल गिर गया ।
अधुना करवस्त्रं दहति
= अब रूमाल जल रहा है ।
अग्निम् निर्वापयामि अहम्
= मैं आग बुझाता हूँ ।
न निर्वापयामि चेत् अग्नि: प्रसरिष्यति
= नहीं बुझाऊँगा तो आग फ़ैल जाएगी
अनवधानेन अग्निकाण्डा: भवन्ति
= लापरवाही से आग लगने की घटनाएँ घटती हैं
दीपं प्रज्ज्वालयामः वा यज्ञम् कुर्मः
= दीपक जलाते हैं या यज्ञ करते हैं
तदा ध्यानं देयं भवति
= तब ध्यान देना होता है ।
=============================
संस्कृत वाक्य अभ्यासः
~~~~~~~~~~~~
विश्वविद्यालयस्य परिसरे द्वौ छात्रौ वार्तालापं कुरुतः
= विश्वविद्यालय के परिसर में दो छात्र बात करते हैं
सोमेन्द्रः - चल आवां पानगृहं चलावः
= चलो , हम दोनों कॉफे चलते हैं ।
सत्येशः - किमर्थं पानगृहम् ??
क्यों कॉफे ??
सोमेन्द्रः - कॉफ़ी पास्यावः
= कॉफ़ी पियेंगे ।
सत्येशः - कॉफ़ी तु अत्र अपि मिलति
= कॉफ़ी तो यहाँ भी मिलती है ।
सत्येशः - पादमार्गे तस्य मूल्यं केवलं दश रूप्यकाणि एव
= फुटपाथ पर उसकी कीमत केवल दस रूपया है ।
सोमेन्द्रः - पानगृहे अहं पाययामि
= कॉफे में मैं पिलाता हूँ ।
सत्येशः - बहु अधिकं धनम् आगतं खलु तव कोषे ?
= तुम्हारी जेब में बहुत अधिक धन आ गया है क्या ?
सत्येशः - पश्य , तत्र श्रमिकाः कार्यम् कुर्वन्ति
= देखो , वहाँ मजदूर काम कर रहे हैं ।
सत्येशः - तान् पायय
= उनको पिला दो ।
सत्येशः - आवाम् अपि पिबावः , ते अपि पास्यन्ति
= हम दोनों भी पीते हैं , वे भी पियेंगे
सत्येशः - धनं तु तावन्तम् एव देयं भविष्यति
= पैसे तो उतने ही देने होंगे ।
सोमेन्द्रः - उत्तमा युक्तिः
= good idea
==============================
संस्कृत वाक्य अभ्यासः
~~~~~~~~~~~~
एकः स्थूलः प्रौढ़: च तस्य वेदानां वदति
= एक मोटा प्रौढ़ अपनी वेदना कहता है ।
ओह ..... आह ..... बहु कष्टम् अस्ति
= बहुत कष्ट है ।
एक वारम् उपविशामि अनन्तरम्
= एक बार बैठता हूँ उसके बाद
उत्थापने बहु कष्टम् भवति
= खड़े होने में बहुत कष्ट होता है ।
सन्धिषु बहु पीड़ा भवति
= जोड़ों में बहुत दर्द होता है ।
चूर्णस्य अपि न्यूनता वर्तते
= चूने की भी कमी है ।
मम भारः अपि अधिकः अस्ति
= मेरा वजन भी अधिक है ।
अधुना भारं न्यूनीकर्तुम् अहं प्रयासं करोमि
= अब वजन कम करने के लिए प्रयास कर रहा हूँ ।
तैलीयं पदार्थम् न खादामि
= तेल वाली (तली हुई ) चीजें नहीं खाता हूँ ।
रात्रौ फलानि एव खादामि
= रात में फल ही खाता हूँ ।
तथापि भारः न्यूनः न भवति
= तब भी वजन कम नहीं होता है ।
किं करोमि अहम् ?
= क्या करूँ मैं ?