Monday 4 May 2015


अब गौमाता के पेट में से प्लास्टिक पौलिथिन निकलने के लिए पेट फाड़ने की जरूरत
नहीं..
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विश्व हिन्दू परिषद् की गो-सम्पदा नामक पुस्तक में लिखा था गाय के पेट से प्लास्टिक
पौलिथिन को समाप्त करने का सफल उपचार..जयपुर के डॉ कैलाश मोड़े, पशुपालन अधिकारी, जयपुर नगर निगम मो० न. ----09414041752 के हवाले से उपचार इस प्रकार है...
सामग्रीः
 100 ग्राम सरसों का तेल, 100 ग्राम तिल का तेल, 100 ग्राम नीम का तेल और
100 ग्राम अरण्डी का तेल..
विधिः 
इन सबको खूब मिलाकर 500 ग्राम गाय के दूध की बनी छांछ में डालें तथा 50
ग्राम फिटकरी, 50 ग्राम सौंधा नमक पीस कर डालें। ऊपर से 25 ग्राम साबुत राई डाले...यह घोल तीन दिन तक पिलायें और साथ में हरा चारा भी दें..
ऐसा करने से गाय जुगाली करते समय मुहं से पौलिथिन निकालती है। कुछ ही दिनों में
सारी पौलिथिन बाहर होगा...यह उपचार सफल सिद्ध हो रहा है 
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 सबसे अधिक हिन्दू सैनिक ही क्यों बचे ?
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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो
जाने के कारण मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त
नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी
दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी
में से मात्र 210व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते
में ही मर गये..
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात्
186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो
विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः ‘वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके
रक्त में तप,तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही
श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।’
हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि
उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी,
सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है...
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प्रिय नेपाली बंधुओं... यदि आपको अपने आँगन में भारतीय मीडिया कोई बेहूदा और अमानवीय सवाल पूछता हुआ दिखे तो उसे वहीं जमकर बजाईए... हमें कतई ऐतराज नहीं है..
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ना तो इन्हें सवाल पूछने की तमीज है, ना घटनाओं की समझ, ना ही मानवीयता इसलिए "पीपली लाईव के गिद्धों" को धुनकने में लिहाज कैसा?? ये लोग तो भारत में भी लतखोर जैसी हरकतें करते हैं, स्वाभाविक है कि वहाँ भी अपना "गुणधर्म" आसानी से छोड़ेंगे नहीं..
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...नेपाली मित्रों आप लोग सिर्फ भारत सरकार, भारतीय सेना, NDRF अथवा RSS के लोगों से संवाद रखें, बाकियों को तत्काल दफा करें.
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एक 30वर्षिय युवक से बातचीत के कुछ अंश
मैने पुछा कुछ कमाते धमाते क्यो नही?
वह बोला- क्यो?
मै बोला शादी कर लो 
वह बोला- हो गई
केसे ?
वह बोला
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना मे
मे बोला फिर बच्चे वगेरा के लिये कमाओ
वह बोला
डिलेवरि और उसके बाद खिलाई जननी सुरक्षा से डिलेवरि फ्री और साथ मे 1400 रू का चेक
मेने बोला
बच्चो की पडाई लिखाई के लिये कमाओ
वह बोला उनके लिये पडाई और भोजन फ्री
मेने बोला यार घर केसे चलाते हो वह बोला
1रू किलो गैहू व चावल से
मै झुंझला कर बोला यार माॅ बाप को तीर्थयात्रा के लिये तो कमा
वह बोला
दो धाम करवा दिये है मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा से
मुझे गुस्सा आया और मेने बोला माॅ बाप के मरने के बाद जलाने के लिये कमा
वह बोला 1रू मे विध्युत शवदाह गृह है
मेने कहा तेरे बच्चो कि शादि के लिये कमा
वह मुस्कुराया और बोला
फिर वहींआ गये
जैसे मेरी हुई थी...मामा करेगा
यार एक बात बता ये इतने अच्छे कपडे तु कैसे पहनता है
वह बोला राज की बात है फिर भी मै बता देता हु
सरकारि जमिन पर कब्जा करो, आवास योजना मे लोन लो और फिर  मकान बेच कर फिर जमीन कब्जा कर
पट्टा लेलो
मुझे समझ नहि आया कि ये किस प्रदेश का निवासी है
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मौत और मोछ में क्या अंतर है
साँसे पूरी हो जाये और तमन्नाये बाकी रह जाये तो मौत
तमन्नाये पूरी हो जाये और साँसे बाकि हो तो मोछ
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सारिका चौधरी
कल 02:23 अपराह्न बजे · 

देश की तरक्की में सहयोग के नाम पर सिफ़र लेकिन आगजनी ,तोड़फोड़ ,मारपीट ,पत्थर बाजी में इस्लाम के नुमायंदे सबसे आगे रहते हैं .... जिस तरह से ये छोटी -छोटी बात पर ट्रेन को रोकते हैं और उसमें बैठी सवारियों के साथ मारपीट करते हैं और ट्रेन में आग लगाते हैं ... उसे नजर में रखते हुए इन्हें किसी भी तरह की सरकारी वाहनों की सुविधा से पूर्णतः वंचित कर देना चाहिए ..... टैक्स के नाम पर गरीबी का रोना रोते हैं लेकिन जब पब्लिक प्रोपर्टी को आग के हवाले करते हैं तो उसकी भरपाई कौन करेगा ?
 हिन्दू टैक्स पे करते हैं और ये इन्हें आग की भेंट करते हैं . सफर के दौरान अक्सर लड़ाई झगड़े होते हैं लेकिन उसके लिए बदले में ये ट्रेन रोकेंगे और उसमें बैठी सवारियों से अभद्रता करेंगे ?
 क्या सरकार को इन पर रासुका नहीं लगानी चाहिए ? ऐसे लोग सभ्य समाज के लिए खतरा बन चुके हैं .... ये आज भी मूर्खानी किताब पढ़-पढ़ के 1400 साल पुरानी कबीलायी जिंदगी से बाहर निकल ही नहीं पाते . सरकार को चाहिए कि इन्हें ऊँट की ही सुविधा दी जाए .उसी में सफर करें और सभ्य समाज को चैनों सुकून से जीने का हक़ दें . वर्ना किसी दिन गोधरा काण्ड हो जायेगा ..... जिसे प्रेश्याई मीडिया नहीं कहेगी लेकिन गुजरात 2 को सालों साल याद रखेगी .....
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(HIV+ तरबूज को बेचते हुए कई मुस्लिम ठेलेवाले पकडे गए)
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मुगलकाल और उसके पहले ''तलवार जिहाद'' फिर ''लालच-भय जिहाद'' फिर '' लव जिहाद '' फिर ''नाइ जिहाद'' अब आया ''फल जिहाद'' कुल मिलाकर काफिरों को ख़त्म करना है तरीका कोई भी हो ! काफिरों को मारने के लिए रोज रोज नए नए तरीके का आविष्कार किया जा रहा है । क्या करें बेचारे दोष इनका नही, दोष इनकी ''आसमानी किताब'' की ''मजहबी शिक्षा'' का है ।
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कहाँ हो ''सेकुलरो/वामपंथियो/समाजवादियो/आपियो'' देखो अपने ''शांतिप्रिय सहोदरों'' की करतूत !
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