Thursday 9 April 2015

 आग्रा के दिवानी न्यायालय
में ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ संस्था के अधिवक्ता हरि शंकर
जैन के साथ अन्य ५ अधिवक्ताओंने मूल शिवमंदिर रहनेवाले
ताजमहल वास्तु को शिवमंदिर के रूप में घोषित करने के संदर्भ में
याचिका प्रविष्ट की है।
इस याचिका में भगवान अग्रेश्वर महादेव को मुख्य
वादी बनाया गया है तथा वर्तमान में भारत के पुरातत्व
विभाग के नियंत्रण में रहनेवाले ताजमहल वास्तु पर
मालिकी अधिकार बताया गया है तथा इस याचिका में इस
वास्तु में स्थित सभी कब्रों को हटाकर वहां
मुसलमानों को प्रार्थना करने को मना करने तथा हिन्दुओंको पूजा
करने का अधिकार मिलने की मांग की गई
है। इस याचिका में ताजमहल की वास्तु, पश्चिम
दिशा में उस से सटी मस्जिद, पूर्व की
वास्तु की प्रतिकृति तथा वास्तु में स्थित बाग, पश्चिम,
पूर्व एवं दक्षिण दिशा में रहनेवाले द्वारोंके साथ वाली
भूमि पर (स्वामित्व) मालिकी अधिकार बताया गया है।
यचिका में कहा गया है कि यह वास्तु अत्यंत
प्राचीन कालावधि से भगवान अग्रेश्वर महादेव
नागनाथेश्वर का स्थान है एवं यह संपत्ति उस देवता
की मालिकी की है। यह
वास्तु दफनभूमि नहीं है एवं इस वास्तु का उपयोग
दफन के लिए कभी नहीं किया गया था।
वास्तविक रूप में इस पूरी भूमि में कभी
कब्र नहीं थी। हिन्दुओंके पूजन-
अर्चन के अतिरिक्त अन्य बातोंके लिए इस वास्तु का उपयोग करना
अवैध एवं घटनाबाह्य है। यह वास्तु एक बार देवता के नाम पर
होने पर सदैव के लिए देवता की मालिकी
की ही रहती है।
किसी भी राजनेता के लिए इस वास्तु को
नियंत्रण में लेना अथवा अन्य लोगोंको देना संभव नहीं
है।

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