Thursday 9 April 2015

‘नेहरु’ पंडित तो क्या हिंदू भी नही थे


लिखा है,
“My grandfather, Ganga Dhar Nehru, was Kotwal of
Delhi for some time before the great revolt of
1857.” (pg.2)
मुगल रिकॉर्ड से पता चलता है की १८५७ के विप्लव के
समय और उससे पहले कोई भी हिंदू
दिल्ली का कोतवाल नही था. उस समय
दिल्ली का कोतवाल था गयासुद्दीन
गाजी. यह दिल्ली में मुगलों का अंतिम
कोतवाल था. तत्कालीन इतिहास से जानकारी
मिलती है की अंग्रेज सैनिक इसे ढूढ रहे
थे और यह अपनी जान बचाने के लिए सपरिवार आगरा
की ओर भाग गया था.
नेहरु ने अपनी जीवनी में
लिखा है, “The Revolt of 1857 put an end to our
family’s connection with Delhi…The family, having
lost nearly all it possessed, joined the numerous
fugitives who were leaving the old imperial city and
went to Agra. He (Gangadhar) died at the early age
of 34 in 1861” (pg.2)उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है
की गियासुद्दीन गाजी और
गंगाधर नेहरु दोनों एक ही व्यक्ति था. १८५७ में विप्लव
के समय जब अंग्रेज सैनिक इन्हें ढूंड रहे थे तो
अपनी जान बचाने के लिए आगरा की ओर
भाग गए साथ ही अपना पहचान छुपाने के लिए अपना नाम
भी बदल लिए और पहचान भी क्योंकि बाद
में इनके परिवार का और कोई भी सदस्य
गियासुद्दीन के जैसा लिवास पहने नहीं
दीखता है. यह वैसा ही है जैसे
की १९८४ के सिक्ख दंगे के समय अल्पसंख्यक
क्षेत्रों मं8 सिक्खों ने अपने बाल मुंडवा लिए और पगड़ी
बांधना छोड़ दिए थे. परन्तु देखनेवाली बात यह है
की गियासुद्दीन ने छद्म नाम गंगाधर
हिन्दुवाला तो रख लिया परन्तु सर नेम किसी हिंदू का
नही रखा शायद इसलिए की सर नेम
खानदान को व्यक्त करता है. इसलिए एक नया सर नेम ‘नेहरु’ रख
लिया ताकि जरुरत पड़ने पर यथापरिस्थिति लोगों को संशय में डाल सके
और अपनी वास्तविक पहचान छुपा सकें. नेहरु सर नेम
की उत्पति पर नेहरु ने अपनी
जीवनी में लिखा है, “A jagir with a
house situated on the banks of canal had been
granted …and, from the fact of this residence,
‘Nehru’ (from nahar, a canal) came to be attached to
his name.” (pg.1)
नेहरु ने अपने पिता मोतीलाल नेहरु के शिक्षा के बारे में
लिखा है, “His early education was confined entirely to
Persian and Arabic and he only began learning
English in his early teens.” (pg.3)
प्रश्न उठता है की जब नेहरु पंडित थे तो उन्हें
संस्कृत की शिक्षा तो अवश्य दी
जानी चाहिए थी भले ही
उन्हें अरबी फारसी भी पढाया
जाता. परन्तु उन्हें संस्कृत की शिक्षा ही
नही दी गयी. इतना
ही नही नेहरु ने अपने
जीवनी में कई ऐसे घटनाओं का उल्लेख
किया है जो दर्शाता है की पिता मोतीलाल या
उनके चाचा और चचेरे भाईओं के दिल में हिंदू धर्म, हिंदुओं के
भगवान और हिंदू कर्मकांड में कोई दिलचस्पी
नही थी. इससे स्पष्ट होता है
की ‘नेहरु’ पंडित तो क्या हिंदू भी
नही थे. एक स्थान पर नेहरु लिखते है, “Of
religion I had very hazy notions. It seemed to be a
woman’s affair. Father and my older cousins
treated the religious question humorously and
refused to take it seriously.”

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