Tuesday 7 April 2015

टिक-टिक करता टाइम बम -

 कम से का एक बार अवश्य पड़े और विचार करे.....
टिक-टिक करता टाइम बम -

711 ईसवी में स्पेन पर मुस्लिम फौजों के सफल आक्रमण
के बाद यूरोप में इस्लाम के पैर जमे। इसी प्रकार इटली
के सिसली पर अरबों व बर्बरों का दबदबा कायम हुआ।
जजिया (कर) लागू हुआ। बाद में आक्रमणकारियों को
खदेड़ दिया गया। हंगरी कुछ समय तक इस्लामिक
प्रभाव में रहा, और बाल्कन क्षेत्र में इस्लाम का
स्थायी प्रभाव पड़ा। शेष यूरोप अछूता रहा।
पिछली शताब्दी में पश्चिम के उद्योग जगत को सस्ते
श्रमिकों की आवश्यकता महसूस हुई। उद्योग जगत के
दबाव में अप्रवासी आए, जिनमें बड़ी संख्या में पश्चिम
एशिया के मुस्लिम थे। ये मुस्लिम अप्रवासी अन्य
अप्रवासियों की तरह यूरोप के समाज में घुल मिल
नहीं सके। उच्च जन्मदर व निरंतर योजनाबद्घ अप्रवासी
आगमन के चलते इनकी संख्या बढ़ती गई, और मूल
यूरोपीय श्वेतों के साथ इनके अलगाव की खाई भी
दिन पर दिन स्पष्ट होती गई।
आज यूरोप के शहरों में लेबनान, मोरक्को, इराक, ईरान,
पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान व अरब देशों से
आए लाखों मुस्लिम अप्रवासी एक प्रभावी व
आक्रामक अल्पसंख्यक समुदाय बनकर उभर आए हैं। आने
वाले वर्षो में यूरोप के मुस्लिम बहुल महाद्वीप में
परिवर्तित होने की प्रबल संभावना है।
कुछ लेखकों ने इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने
के लिए 2025 के बाद के यूरोप को यूरेबिया (यूरोप +
अरेबिया) कहना शुरू कर दिया है। पिछले पाँच दशकों में
श्वेतों की जनसंख्या वृद्घि दर में आधुनिक जीवन शैली
तथा अनेक सामाजिक बदलावों के कारण बहुत तेजी से
गिरावट आई है, जबकि मुस्लिम प्रवासियों की
जनसंख्या श्वेतों की तुलना में कई गुना तेजी से बढ़ रही
है। यूरोप में भय व्याप्त हो रहा है, आज से दो दशक बाद
ब्रिटेन में ब्रिटिश और फ्रांस में फ्रेंच अल्पसंख्यक हो
जाएंगे।
विश्व के किसी भी कोने में मुस्लिमों को लेकर
उत्पन्न हुई किसी भी विवादास्पद स्थिति में यूरोप के
शहरों में वातावरण बिगड़ने लगता है। फ्रांस में फ्रांस
का, ब्रिटेन में ब्रिटेन का, नार्वे में नार्वे का
राष्ट्रध्वज जला दिया जाता है और अपने मेजबान देश
में इस्लामी शरिया कानून लागू करने की मांग को
लेकर नारा लगाया जाता है- देश का कानून जाए
जहन्नुम में। यूरोप की सड़कों पर 'शरिया फॉर फ्रांस',
'शरिया फॉर ब्रिटेन', 'शरिया फॉर हॉलैंड' जैसे नारे
सुने जा सकते हैं।
ब्रिटेन में इस्लाम सर्वाधिक तेजी से बढ़ रहा
राजधानी लंदन में मुस्लिम बहुल इलाकों पर
कट्टरपंथियों का दबदबा है। श्वेत मूल के लोगों के लिए
ये इलाके असुरक्षित हो चुके हैं। इन इलाकों में 'शरिया
नियंत्रित क्षेत्र' की तख्तियां देखी जा सकती हैं।
रात के समय मुस्लिम युवकों के समूह 'मुस्लिम पेट्रोल' के
नाम से गश्त लगाते हैं और 'गैर-इस्लामी' हरकतों को
बलपूर्वक रोकते हैं।
फ्रांस में सड़कों पर उपद्रव आम बात है। यहां पर भी कई
संवेदनशील क्षेत्र अस्तित्व में आ गए हैं। इन क्षेत्रों में
फ्रेंच लोगों पर शारीरिक आक्रमण भी होने लगे हैं।
लेखक तारिक यिल्दिज़ ने 'एन्टी व्हाइट रेसिज़्म'
नामक किताब में फ्रेंच मूल के लोगों पर मुस्लिम
अप्रवासियों द्वारा किए जा रहे हमलों का विषय
उठाया। वे कहते हैं कि ''मेरी किताब को वर्जित रचना
के रूप में देखा जा रहा है। श्वेतों पर हमले हो रहे हैं, पर
कोई इस बात को मानने को तैयार नहीं है। पुलिस पर
भी आक्रमण हो रहे हैं और मीडिया चुप है।''
प्रशासन और मीडिया की उदासीनता के कारण श्वेत
युवक समूह बनाकर आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेने लगे हैं।
हॉलैंड में 'शरिया फॉर हॉलैंड' नामक संगठन कॉफी
शॉप, सिनेमा, पब आदि को बंद करने की मांग कर रहा
है। मुस्लिम जगत में महिलाओं की दुर्दशा पर 'सबमिशन'
नामक फिल्म बनाने वाले डच फिल्म निर्माता थियो
वॉन गॉग की हत्या की जा चुकी है। हत्या करने
वाला मोरक्को मूल का 26 वर्षीय मुस्लिम युवक था
जिसने सरे राह हत्या करने के बाद बयान दिया कि वो
मौका मिलने पर सौ बार यही काम करेगा।
बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में मुस्लिम इलाकों में
'बेल्जिस्तान' का बोर्ड देखा जा सकता है। मुस्लिम
जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। नवजात बच्चों के जन्म
पंजीयन डाटा के विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे
ज्यादा रखे जाने वाले नामों में 'मोहम्मद' नाम शीर्ष
पर है। पाश्चात्य वेशभूषा को गैर इस्लामी बताते हुए
श्वेत महिलाओं एवं लड़कियों पर शारीरिक हमले हो रहे
हैं।
जनसंख्या के वर्तमान रुझान संकेत कर रहे हैं कि 2030
तक बेल्जियम मुस्लिम बहुल हो जाएगा।
शरिया फॉर बेल्जियम का युवा नेता अबू इमरात
कहता है ''ये एक गंदा समाज है। हम चाहते हैं कि
बेल्जियम पर मुस्लिमों का शासन हो और शरिया
कानून लागू हो क्योंकि अल्लाह के अलावा कोई और
कानून नहीं बना सकता।'' मॉस्को में तेजी से नई
मस्जिदें खड़ी हो रही हैं। फ्रांस, ब्रिटेन, हॉलैंड, नॉर्वे
आदि की तरह यहाँ सड़कों पर सामूहिक नमाज पढ़ी
जाने लगी है।
रूस के राष्ट्रगीत की धुन में चर्च की घंटियों की
आवाज़ शामिल है। मुस्लिम नेता इसे राष्ट्रगान से
बाहर करने की मांग कर रहे हैं। नमाज़ के समय चर्च की
घंटियाँ बजने पर अब उग्र विरोध होता है। चेचेन और
तार्तार मुस्लिमों से होते हुए वहाबी इस्लाम रूस में पैठ
बनाता जा रहा है। बल्गारिया के ग्रामीण इलाकों में
ईसाई बच्चों को मुस्लिम बनाने संबंधी विवाद खड़े हो
रहे हैं।
स्पेन की राजधानी बार्सिलोना सहित कुछ इलाकों
में सांडों की लड़ाई (बुल फाईट) अब प्रतिबंधित कर दी
गई है। बार्सिलोना के भव्य एरीना (सांडों की लड़ाई
का प्रेक्षागृह) भव्य व्यापार केंद्रों में बदल दिया गया
है। स्थानीय मुस्लिम शेष प्रेक्षागृहों को मस्जिदों में
परिवर्तित करने की मांग कर रहे हैं। स्पेन में दो अरबी
इस्लामिक टीवी चैनल प्रसारित होने लगे हैं। जुमे की
नमाज़ में अरबी में खुतबे दिए जा रहे हैं। स्पेन पर हुए
इस्लामी आक्रमण की 1300 वीं वर्षगांठ को स्पेन में
धूमधाम से मनाया गया। सारे यूरोप की तरह नॉर्वे में
मुस्लिम युवतियों की परिवार द्वारा प्रताड़ना और
शान के नाम पर हत्या (ऑनर किलिंग) के मामले बढ़ रहे
हैं।
कानून की आड़ में कानून के खिलाफ काम यूरोपीय
मुस्लिमों के इस कट्टरपंथी तबके की विशेषता है कि ये
उन्हें वहाँ मिल रही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
लाभ उठा कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ
बोलते हैं। लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग करते
हुए 'डेमोक्रेसी गो टू हैल' के नारे लगाते हैं। जिस देश ने
उन्हें आश्रय दिया और समृद्घ बनाया उसकी जीवन
पद्घति और संविधान को चुनौती देते घूमते हैं।
डेनमार्क का 4 प्रतिशत अप्रवासी मुस्लिम समाज
कल्याण योजनाओं के 40 प्रतिशत का उपभोग कर रहा
है। जर्मनी में 35 प्रतिशत मुस्लिम प्रवासियों की एक
से अधिक पत्नियाँ हैं जो कल्याणकारी योजनाओं
और बेरोजगारी भत्ते पर रह रही हैं।
किसी अरब देश या पाकिस्तान अथवा
अफगानिस्तान से आने वाला प्रवासी मुस्लिम जब
अपने मूल देश से दूसरी पत्नी को लेकर आता है तो
उसकी सूचना जर्मन सरकार को नहीं देता। वो
शरणार्थी के रूप में आती है और योजनाओं का लाभ लेने
लगती है। बच्चे होने पर उसे एकाकी माँ (सिंगल मदर) के
रूप में प्रस्तुत किया जाता है और बच्चा भत्ता भी
मिलने लगता है।
अपनी पुस्तक 'जजेज़ विदाउट लॉ' में पत्रकार व लेखक
जोखेम वैग्नर कहते हैं कि ''अरब देशों में केवल धनी लोग
ही बहुविवाह कर पाते हैं पर जर्मनी में हर मुस्लिम
प्रवासी ऐसा कर सकता है।''
वहाबी लहर और सऊदी अरब का पैसा यूरोप की
मस्जिदों और मुस्लिम संस्थाओं में वहाबी इस्लाम पैर
पसार रहा है। विश्वविद्यालय व अन्य शैक्षणिक
संस्थाएं भी इससे अछूती नहीं। इसके मूल में है सऊदी
अरब और कतर जैसे देशों द्वारा वहाबी प्रयास के लिए
उड़ेला जा रहा धन। प्रतिवर्ष अकेला सऊदी अरब ही
दो से तीन बिलियन डॉलर इसके लिए खर्च करता है।
1987 से 2007 तक सऊदी अरब ने इस उद्देश्य के लिए 87
बिलियन डॉलर खर्च किए हैं।
मस्जिदों, मदरसों और एनजीओ के माध्यम से आ रहा ये
धन यूरोप में कट्टरपंथी इस्लाम को हवा दे रहा है। कतर,
फ्रांस, इटली, आयरलैंड और स्पेन में मुस्लिम संस्थाओं
को धन दे रहा है। इटली की लगभग 60 प्रतिशत मस्जिदें
मुस्लिम ब्रदरहुड के नियंत्रण में हैं।
श्वेत मानव का अपराध बोध:
1899 में रूडयार्ड किपलिंग ने श्वेत लोगों के कंधों पर
शेष अश्वेत-बर्बर मानवता के उद्घार का बोझ डालते हुए
एक कविता लिखी थी - व्हाइट मैन्स बर्डन। बीसवीं
सदी में विचार स्वातंत्र्य के बीच बड़ी हुई पश्चिमी
देशों की श्वेत पीढ़ी ने इस कविता के वास्तविक मर्म
को समझा और जाना कि इस तथाकथित उद्घार के
नाम पर किस प्रकार से अश्वेत विश्व का सदियों तक
क्रूर शोषण हुआ। इस बोध के साथ यूरोप, अमरीका और
कनाडा के शिक्षित समाज के मन में एक गहरा अपराध
बोध भी उतर आया। आज वो नस्लवादी कहलाए जाने
में असहज महसूस करता है। इसका फायदा उठाकर
स्थानीय वामपंथी पार्टियाँ, तथाकथित लिबरल्स
और कट्टरपंथी इस्लामिक संस्थाएं इस्लामिक कट्टरपंथ
के खिलाफ आवाज उठाने वाले किसी भी व्यक्ति
या संगठन को नस्लवादी घोषित कर देते हैं।
कुटिलता और अपराधबोध के इस घातक मिश्रण में
पश्चिम के मूल श्वेत नागरिकों को इतना भ्रमित कर
दिया है कि वो अमरीका में जिहादी आतंकवाद की
पनाह 'इस्लामबर्ग' जैसी बस्ती को नजरअंदाज कर
देता है। ऑस्ट्रेलिया में स्थानीय मुस्लिमों के दबाव में
शॉपिंग मॉल्स, में क्रिसमस कैरोल बंद कर दिए जाते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्घ में जिस डेनमार्क ने नाजि़यों का
अधिकार होने के पहले अपने सात हजार यहूदियों को
जान बचाने के लिए रात के अंधेरे में स्वीडन भेज दिया
था उसी डेनमार्क का श्वेत नागरिक सड़कों पर
यहूदियों का उत्पीड़न देख कर मुंह फेर लेता है।
इसी भ्रमित मानसिकता का नतीजा है कि फ्रांस
की फ्रेंच सोशलिस्ट पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण करके
आम चुनावों में नब्बे प्रतिशत मुस्लिम वोट पाती है।
मुस्लिम लड़की की परिवार द्वारा की गई हत्या
(ऑनर किलिंग) को उनका मजहबी मामला मान
लिया जाता है, और नॉर्वे में सड़क पर होने वाली
प्रताड़ना से बचने के लिए भूरे बालों वाली लड़कियाँ
(ब्लॉन्ड) अपने बालों को रंगकर काला कर लेती हैं।
प्रतिरक्षा के स्वर:
इस्लामिक कट्टरवाद की नई लहर ने सारे यूरोप में
चेतावनी के संकेत भेज दिए हैं। यूरोपियन पार्लियामेंट
में विशेषकर मुस्लिम अप्रवासियों को लेकर आव्रजन के
नियमों को कठोर बनाने की चर्चा प्रारंभ हो गई है।
गत 14 जून को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन ने
बयान दिया कि ''ब्रिटेन में रहने वालों को ब्रिटिश
जीवन मूल्य और जीवन पद्घति अपनानी ही होगी और
इसका कोई विकल्प नहीं है। हमें (ब्रिटिश सरकार)
ब्रिटिश जीवन मूल्यों को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ाने
की आवश्यकता है।''
ब्रिटेन की सरकार मैग्नाकार्टा की 800वीं जयंती
को ब्रिटिश जीवन मूल्यों के पुनर्स्थापना दिवस के रूप
में मनाने की योजना बना रही है। पूर्व प्रधानमंत्री
टोनी ब्लेयर ने 23 अप्रैल 2014 को यूरोपीय शक्तियों
को आह्वान किया है कि वे रूस के साथ यूक्रेन संबंधी
मतभेदों के बावजूद इस्लामी कट्टरपंथ से लड़ने में उसका
सहयोग करें।
जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने बयान दिया है
कि 'यूरोप में बहुसंस्कृतिवाद विफल हो चुका है।'
एंजेला का कहना है कि अब समय आ गया है कि
बहुसंस्कृतिवाद के स्थान पर केवल लोकतंत्र और मानव
स्वतंत्रता की बात की जाए। इसी मुद्दे पर 3 जुलाई
2012 को हैमबर्ग में उग्र प्रदर्शन हुए थे। ब्रिटेन की लेबर
पार्टी में भी सस्ते श्रम के नाम पर मुस्लिम
अप्रवासियों की बाढ़ लाने वाली अपनी नीतियों
के लिए सार्वजनिक रूप से गलती स्वीकार की है।
हॉलैंड की फ्रीडम पार्टी का कहना है कि 'हम
असहिष्णुता के प्रति अत्यधिक सहिष्णु रहे हैं। पर, अब
हम हॉलैंड में हॉलैंड की संस्कृति चाहते हैं। हम चाहते हैं
कि हॉलैंड के बच्चों को हॉलैंड के मूल्यों की शिक्षा
दी जाए।' जनवरी 2012 में डच संसद ने बुर्के पर प्रतिबंध
लगा दिया है। डेनमार्क ने कानून बनाया है कि उनके
यहाँ आने वाले अप्रवासियों को 3 साल की भाषा
शिक्षा अनिवार्य होगी और डेनमार्क के इतिहास
और संस्कृति पर परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। साथ
ही लोकतंत्र, मानव स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता पर प्रश्न उठाने की अनुमति नहीं होगी।
कनाडा सख्त कानून बनाने की ओर अग्रसर है। जर्मनी
अपनी जन कल्याण की योजनाओं की पुनर्समीक्षा
कर रहा है। यूरोप अपने नव-जीवन मूल्यों की रक्षा के
लिए धीरे- धीरे खड़ा होता दिख रहा है। राह कठिन
हो चुकी है, और इस पर चलने के लिए उसके पास कितना
समय बचा है, यह आने वाला समय ही बताएगा।

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