Monday 20 April 2015


गुमनामी बाबा के अट्ठाइस साल
पुराने रहस्य में नया मोड़ आ गया है। राज्य सरकार भी
अब उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस मान रही
है। 17 मई को शासन स्तर पर गृहसचिव की
अध्यक्षता में बैठक के निर्णयों पर हो रहीकार्यवाही से तो यही प्रतीत
हो रहा है। शासन और जिला प्रशासन के पत्राचार में
गुमनामी बाबा उर्फ भगवन जी को
नेताजी सुभाषचंद्र के तौर पर उल्लिखित किया गया है।
पढ़ें: नेताजी की पत्नी और
पुत्री से जुड़ी फाइलों से कैसा खतरा
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी साल 31
जनवरी को गुमनामी बाबा से संबंधित
दस्तावेजों को संग्रहालय में रखने व बाबा के संदर्भ में एक आयोग
गठित करने का आदेश दिया था। गृहसचिव की
अध्यक्षता में हुई बैठक में गुमनामी बाबा
यानी नेता सुभाषचंद्र बोस से संबंधित दस्तावेजों को
संग्रहालय में रखने का निर्णय तो किया है, लेकिन आयोग गठन
शासन ने पुनर्विचार याचिका दायर करने का भी फैसला किया
है। चार सितंबर को गृह अनुभाग से मिले पत्र के बाद जिला मजिस्ट्रेट
विपिन कुमार द्विवेदी ने अयोध्या में
निर्माणाधीन रामकथा संग्रहालय का चयन दस्तावेजों को
रखने के लिए किया है।
रहस्यमय व्यक्तित्व वाले गुमनामी बाबा उर्फ भगवन
जी की मृत्यु फैजाबाद के रामभवन में 16
सितंबर 1985 को हुई थी। उनके कमरे व बक्सों से मिले
दस्तावेजों से उनकी पहचान नेताजी
सुभाषचंद्र बोस के तौर पर होने के संकेत मिले। दस्तावेजों में
नेताजी की पारिवारिक तस्वीरें,
आजाद हिन्द फौज की वर्दी,
जापानी, जर्मन व अंग्रेजी भाषा में लिखे
पत्र, समाचार पत्रों पर राजनीतिक टिप्पणियां,
नेताजी के जन्मदिवस 23 जनवरी पर
टेलीग्राम से दिए गए सैकड़ों बधाई संदेश थे। आजाद हिंद
फौज के गुप्तचर शाखा के प्रमुख डॉ. पवित्रमोहन राय के कुछ संदेश
भी दस्तावेजों में मिले थे। उच्च न्यायालय के आदेश पर
ये साक्ष्य फैजाबाद के कोषागार में डबल लाक में 24 बक्सों में रखे
गए हैं।
गौरतलब है कि बरामद इन्हीं साक्ष्यों के मद्देनजर
कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश पर गठित मुखर्जी
आयोग ने 14 नवंबर 2005 को केंद्र को सौंपी
अपनी रिपोर्ट में माना था कि नेताजी
की मौत 1945 की विमान दुर्घटना में
नहीं हुई। संसद में मई 2006 में रिपोर्ट पर जमकर
बहस हुई थी। संसद ने इस रिपोर्ट को
स्वीकार नहीं किया था।
इस तरह रहा प्रवास गुमनामी बाबा से जुड़े तथ्य बताते
हैं कि 1970 में वे अयोध्या के लखनउवा मंदिर में
अजनबी की तरह आए थे। गोलाघाट स्थित
लाल कोठी, ब्रह्माकुंड गुरुद्वारे व अन्य मंदिरों में रहने
के बाद आखिर में वे सिविल लाइंस स्थित रामभवन में आ गए। यहां
एक कमरे में उनकी संपूर्ण गृहस्थी
थी। कई वर्षो तक सरस्वती
देवी नामक महिला सेविका ने उनकी देखभाल
की थी। गुमनामी बाबा
किसी से मिलना तो दूर चेहरा तक नहीं
दिखाते थे। सरस्वती देवी के माध्यम से
ही कोई बातचीत होती
थी। अयोध्या व फैजाबाद में प्रवास के दौरान उन्होंने
कभी कमरे से बाहर पैर तक बाहर नहीं
निकाला।
समाधि बनी श्रद्धा का केंद्रगुमनामी बाबा
की समाधि सरयू के गुप्तारघाट पर स्थित है, जिसे देखने
के लिए देश-विदेश के लोग आते रहते हैं। यह स्थान
पर्यटनस्थल के रूप में विकसित हो रहा है। यहां आने वाले
अधिकांश लोग पश्चिम बंगाल के होते हैं।

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