Wednesday 18 March 2015

राजमाता जिजाऊ भोसले : हिन्दवी स्वराज्यकी जननी एवं छत्रपति शिवाजी महाराजकी प्रेरणाशक्ति !

१. जन्म एवं बचपन

इ.स. १५९५ में विदर्भके सिंदखेडराजामें जिजाबाईका जन्म हुआ । वे लखोजीराजे जाधवकी
 सुकन्या थी । सभी उन्हें प्रेमसे ‘जिऊ’ कहते थे ।
 यादव देवगिरीके सम्राट (राजा) थे । लखोजीराजे जाधव यादव राजाके वारिस थे ।
 इसलिए वास्तवमें जिजाऊ तो देवगिरीकी राजकन्या ही थी; परन्तु लखोजीराजेका 
तीनों सुपुत्रोंके साथ निजामकी चाकरीमें प्रवीण सरदार होनेकी बात जिजाऊको सदैव खटकती थी ।
१ अ. हिन्दुओंपर असीम अत्याचार करनेवाले यवनोंके विषयमें 
बचपनसे ही मनमें भयंकर चिढ होना
महाराष्ट्रके ब्राह्मण ‘श्राद्धकी पिण्ड कौन डालेगा ?’ इनके बयानोंका निवारण 
करने सुलतानके पास जाते थे । सुलतानके सरदारद्वारा यहांके क्षत्रियोंकी
 औरतोंको अगुवा किए जानेपर क्षत्रिय हाथमें रुमाल बान्धकर सरदारके पास
 जाते थे एवं उन्हें रिश्वत देकर अपनी औरतोंको मुक्त करा लाते थे । जहां ब्राह्मण
 एवं क्षत्रियोंने ही धर्म एवं पराक्रमका अनादर किया, वहां अन्य लोगोंके सन्दर्भमें 
क्या कहना ? यवनोंके अत्याचारसे हिन्दू प्रजाको असहाय रूपसे झुलसते देख
 जिजाऊका रक्त खौल उठता था । हिन्दुओंपर असीम अत्याचार करनेवाले 
सुलतानी यवनोंके विषयमें उनके मनमें बचपनसे ही भयंकर चिढ थी ।

२. विवाहके उपरान्त ससुराल-मायकेमें उत्पन्न
वैमनस्य जिजाऊके राष्ट्र एवं धर्मप्रेमके कारण समाप्त 

२ अ. कुछ कारणसे जाधव एवं भोसले परिवारमें उत्पन्न वैमनस्य 

समाप्त करने एवं यवनोंसे युद्ध कर हिन्दुओंका स्वराज्य स्थापित 

करनेका जिजाऊ एवं शहाजीका मनोरथ रहना

आदिलशाहीके सबमें पराक्रमी सरदार शहाजीराजे भोसलेके साथ जिजाऊका विवाह हुआ
 एवं वे पुणेमें रहने लगी । एक समारोहमें अनेक मराठी सरदार एकत्रित हुए थे । उस
 समय खण्डागळेका हाथी अकस्मात भडककर हुडदंग मचाने लगा । सब भागदौड 
करने लगे । भागदौडमें उन्मत्त हाथीके पांवके नीचे आनेवाले लोगोंको बचाते समय
 कुछ लोगोंके शस्त्रोंसे हाथीको चोट आई, जिससे जाधव एवं भोसले सरदारोंमें झगडा
 चरमसीमापर पहुंच गया एवं तलवारसे अत्यधिक मारपीट हुई ।
प्रिय व्यक्तियोंकी मृत्युसे जिजाऊ एवं शहाजीको दुःख हुआ । दोनों कुलोंमें वैमनस्य
 आनेपर भी इन दोनोंमें कभी दुराव एवं द्वेष नहीं उत्पन्न हुआ । जिजाऊ एवं शहाजी 
चाहते थे कि दोनों कुल भूतकालके कटु प्रसंग तथा मान-अपमान भूल एक-दूसरेका 
वैमनस्य समाप्त कर संगठित हो यवनोंसे युद्ध करें एवं हिन्दुओंका स्वराज्य स्थापित 
करें’,परन्तु स्वार्थी एवं अहंकारी मराठा सरदारोंको इन दोनोंके उच्च एवं व्यापक
 विचार अच्छे नहीं लगे ।

२ आ. जिजाऊका राष्ट्र एवं धर्मप्रेम

शहाजीराजाको पकडने हेतु निजामने लखोजीराजे जाधवको सैन्यके साथ जुन्नर भेजा था ।
 गर्भवती होनेके कारण जिजाऊ घोडेपर सवार हो दौडधूप कर पुणेतक पहुंचनेमें सक्षम नहीं थी ।
 इसलिए शहाजीराजे जिजाऊको जुन्नरके शिवनेरी किलेमें अपने समधी किलेदार श्री. विश्वासराव
 एवं वैद्यराज निरगुडकरकी सुरक्षामें रखकर पुणे गए । इसी कालावधिमें लखोजीराजे जुन्नर 
पहुंचे । बहुत वर्षोंके उपरान्त शिवनेरी किलेपर पिता-पुत्रीकी भेंट हुई । जिजाऊने पितासे कहा,
 ‘क्षुद्र स्वार्थ एवं अहंकारके लिए मराठे आपसमें युद्ध करते हैं । आपसमें युद्ध करनेकी अपेक्षा बाबाजी 
काटेसे रायरावतक सभी पराक्रमी तलवारें एकत्रित हुर्इं, तो ये अपशगुनी विदेशी क्षणभरमें ही
 समुद्रमें डूब जाएंगे । विदेशियोंकी चाकरीमें रहकर अपना जीवननिर्वाह करनेका लज्जाजनक 
जीवन हम समाप्त करेंगे’ उसके राष्ट्र एवं धर्मप्रेमसे भरपूर प्रखर विचार पिताजीके अंतःकरणको 
स्पर्श कर गए । उसके प्राणोंकी तडप एवं लगनको देखकर लखोजीराजे अन्तर्मुख हो गए । 
शिवनेरीकी तलहटीपर पहुंचने तथा शहाजीराजाओंसे भेंट होनेपर वे शान्त हुए एवं जाधव-भोसलेका 
वैमनस्य स्थायी रूपसे समाप्त हुआ ।

 असीम मानसिक यातनाएं 

३ अ. शहाजी राजाने महाबतखानद्वारा अपहृत भाभीको मुक्त कराकर 

महाबतखानका वध करना

मुगल सरदार महाबतखानने दिनदहाडे गोदावरी नदीके किनारेसे गोदावरीबाईको अगुवा किया था ।
 खेळोजीने गोदावरीको (पत्नीको) बचानेके लिए कोई प्रयास नहीं किए; परन्तु शहाजीराजाने
 महाबतखानकी छावनीसे गोदावरी भाभीको त्वरित मुक्त कराया एवं कुछ समयके पश्चात पता 
लगते ही पलायन महाबतखानकी हत्या की ।

३ आ. निजामने जिजाऊके पिता एवं तीन भाईयोंके 

साथ धोखा कर उनकी हत्या की

निजामने जिजाऊके पिता लखोजीराजे जाधव एवं तीन भाईयोंको दरबारमें निःशस्त्र आमन्त्रित
 कर उनके साथ धोखा किया एवं उन्हें मार डाला । यह दुःखद समाचार सुनकर जिजाऊका
 हृदय विदीर्ण होगया; परन्तु मायका समाप्त होनेपर भी उन्होंने स्वराज्यके विचारको नहीं छोडा ।

३ इ. आदिलशहाके द्वारा पुणेपर आक्रमण 

आदिलशहाके आदेशसे सरदार रायरावने शहाजीराजाके पुणेकी सम्पत्तिपर/जमीन्दारी 
पर आक्रमण कर आगजनी की, जनतापर अत्याचार कर अनगिनत लोगोंकी हत्याएं कीं
 तथा खेती एवं घरद्वार उद्ध्वस्त किए । इस पुण्यभूमिपर गधेका हल चलाया । हृदय 
द्रवित करनेवाली इन घटनाओंके कारण शिवनेरीपर निवास करनेवाली जिजाऊके मनपर
 एकके पीछे एक दुःखके पर्वत आघात कर रहे थे । अत्यन्त मानसिक यातनाएं होनेसे 
उनका जीना दूभर होगया । तब भी उन्होंने स्वयंको सम्भालकर मनको दृढ किया एवं 
अन्तःकरणमें प्रतिशोधकी ज्वालाको निरन्तर प्रज्वलित रखा ।

४. शिवाजी राजाके जन्मसे पूर्र्व  की गई प्रार्थना 

४ अ. भवानीमाताको की गई प्रार्थनाएं

जिजाऊ द्रवित होकर भवानीमाताको आर्ततासे निरन्तर इस प्रकार प्रार्थना कर रही थी, 
दुष्टोंका निर्दालन करने हेतु, राष्ट्र एवं धर्मकी रक्षा हेतु प्रभु श्रीरामके समान वीर सुपुत्र दें’ 
अथवा ‘अष्टभुजाधारिणी श्री दुर्गामाताके समान निर्दालन करनेवाली रणरागिनी दें ।’

४ आ. लगे हुए दोहद

जिजाऊको बाघपर सवार होकर हाथमें तलवार लेकर शत्रुके साथ युद्ध करना प्रतीत हो रहा 
था । उन्हें निरन्तर युद्ध एवं रामराज्यकी स्थापनाके सपने आते थे ।

५.  शिवाजीको सिद्ध करनेवाली जिजाऊ !

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया (इ.स. १६२७) को शिवनेरी किलेपर शिवाजी राजाका जन्म हुआ ।
 बाल शिवाजीपर राष्ट्र एवं धर्मके संस्कार होने हेतु जिजाऊने उन्हें बचपनसे ही प्रभु 
श्रीराम, हनुमान, श्रीकृष्ण इत्यादि देवी-देवताओं तथा महाभारत एवं रामायणकी कथाएं 
बतार्इं । इन कथाओंके माध्यमसे जिजाऊने उन्हें राष्ट्र एवं धर्म भक्तिकी घूंटी पिलाकर 
आदर्श राजा बनने हेतु सिद्ध किया । जिजाबाई शिवाजीकी केवल माता नहीं, 
अपितु प्रेरक शक्ति भी थी ।

६. व्यष्टि जीवनकी गुणविशेषताएं

६ अ.  धैर्यके साथ अनगिनत संकटोंका सामना 

शिवाजी राजाके साथ रहने हेतु पुणे जानेके पश्चात उन्होंने कसबा पेठमें भगवान श्री
 गणपतिकी स्थापना की एवं ताम्बडी जोगेश्वरी एवं केदारेश्‍वर मन्दिरोंका जीर्णोेद्धार किया ।
 उन्हें देवदर्शन करना, सन्तोंके भजन-कीर्तन सुनना एवं संस्कृत धर्मग्रंथोंका ज्ञान ग्रहण 
करना प्रिय था । उन्होंने मनसे व्रत-वैकल्य, कुलधर्म, पातिव्रत्य एवं मातृधर्मका पालन किया । 
यद्यपि वे धार्मिक थी; परन्तु कर्मकाण्डमें नहीं फंसी थीं । उन्होंने अपने कठोर धर्माचरणसे 
बहुत पुण्यसंचय किया था । इसलिए उन्होंने धैर्यके साथ अनगिनत संकटोंका सामना किया ।

६ आ. भगवानपर दृढ आस्था 

उनकी निश्चित/दृढ आस्था थी कि मां भवानी एवं शम्भू महादेव हमारे आधार हैं । इसलिए वे 
सदैव पराक्रमी पति एवं पुत्रके समर्थनमें निर्भयता एवं दृढतासे खडी रहती थी । पति 
अथवा पुत्रके सामने आनेवाले प्राणांतिक संकटोंमें उनकी रक्षा हेतु द्रवित मनसे 
रात-दिन निरन्तर प्रार्थना करती थी एवं उनकी मुक्तिके लिए भवानीमाताको 
संकटमें (साकडे) डालती थी । उन्होंने अनेक बार ऐसा अनुभव किया था कि भगवानपर
 आस्था रखकर प्रयास करनेसे सफलता मिलती है ।

६ इ. सर्वार्थसे आदर्श हिन्दू नारी रहना

जिजाऊने धर्मशास्त्रमें हिन्दू नारीके लिए बताए गए सभी कर्तव्य भली-भान्ति निभाकर
 कन्या, बहन, पत्नी, बहू, जेठानी, माता, सास एवं नानी-दादी ऐसे सभी पारिवारिक 
सम्बन्धोंको उत्तम पद्धतिसे मर्यादित रखा । सभी परिवारजनोंको वे प्रिय एवं आदरणीय थी ।
 सभीको उनका आधार प्रतीत होता था । वे सर्वार्थसे आदर्श हिन्दू नारी थी ।
समस्त हिन्दुओंको राजमाता जिजाऊ देनेके लिए हम भगवानके चरणोंमें कृतज्ञ हैं । 

७. समष्टि जीवनकी आदर्श राजमाता !

७ अ. युद्धकलामें कुशल रहना

घोडेपर सवार होकर गतिसे दौडते हुए युद्ध करने एवं सहजतासे तलवारबाजी करनेकी
 युद्धकलामें जिजाऊ कुशल थी।

७ आ. पराक्रमी रणरागिनी

७ आ १. सिद्दी जोहरसे युद्ध कर पन्हाळके किलेका घेरा मोडकर शिवाजी महाराजको
 मुक्त कर लाने हेतु जिजाऊ कमरमें तलवार बान्धकर युद्धके लिए सिद्ध हुई थी ।
७ आ २. अफजलखानको निर्भयतासे नष्ट करनेका आदेश देना :
 कनगगिरीके उपक्रममें अफजलखानने जिजाऊके ज्येष्ठ पुत्र संभाजीराजेको तोप 
चलाकर षडयन्त्रसे मारा । शिवाजी महाराजको नष्ट करने हेतु अफजलखान प्रचण्ड
 सैन्यके साथ आगजनी, मूर्र्तिभंजन, हत्याकाण्ड इत्यादि आसुरी अत्याचार करते हुए 
राजगढकी दिशामें गतिसे आ रहा था ।
इस अवसरपर यदि शिवाजी महाराज अफजलखानकी सेनासे सीधे युद्ध करते, तो मराठी
 सैन्यका पराभव निश्चित था तथा यदि अफजलखानसे समझौतेके लिए विचार-विमर्श 
करनेका प्रयास किया होता, तो शिवाजी राजाकी मृत्यु निश्चित थी । अतः पन्तमण्डली 
एवं शिवाजी राजाके सरदारने शिवाजी राजाको अफजलखानसे दूर सुरक्षित स्थानपर
 छिपनेका परामर्श दिया । परन्तु जिजाऊने शिवाजी राजाको पराक्रमका समादेश 
दिया । क्रूरकर्मी अफजलखानके साथ निर्भयतासे मिलकर उसका अन्त करनेका आदेश दिया ।

७ इ. राज्यका कार्य उत्कृष्ट पद्धतिसे चलाना

तत्कालीन राजनीति एवं समाजकारणमें जिजामाता निरन्तर ध्यान रखतीं एवं प्रसंगवश
 राज्यका कामकाज भी उत्कृष्ट पद्धतिसे करती थी ।
७ इ १. शिवाजी महाराजके पन्हाळके घेरेमें फंसे रहतेमें 
स्वराज्य सम्भालनेवाले एवं शाहिस्तेखानसे युद्ध करनेवाले मराठोंका नेतृत्व करना : 
सिद्दी जोहरने पन्हाळके किलेके घेरेमें शिवाजी महाराज ४ माहतक (महीने) फंसे थे । 
उस समय जिजाऊने स्वराज्यका पूरा कामकाज सम्भाला । जिजाऊने शिवाजी 
महाराजको पन्हाळके घेरेसे मुक्त होनेतक राज्यमें कुहराम मचानेवाले शाहिस्तेखानसे युद्ध
 करनेवाले मराठोंका नेतृत्व किया एवं स्वराज्यकी रक्षा की ।
७ इ २. शिवाजी महाराजके आगरासे वापिस आनेतक प्रौढ जिजाऊद्वारा
 ८ माहसे अधिक समयतक अनेक बलवान शत्रुओंसे स्वराज्यकी रक्षा  : 
शिवाजी महाराज आगरा जाते समय जिजाऊके हाथों स्वराज्य सौंपकर गए थे । 
औरंगजेबद्वारा शिवाजी महाराजको बन्दी बनानेपर वे हिम्मत नहीं हारीं । दक्षिणके मुगल, 
आदिलशाह एवं कुतुबशाहकी सेना, कोकण-गोमंतकके अंग्रेज एवं पोर्तुगीज तथा मुरुड-जजिर्‍याके
 सिद्दीकी आरमारी सेना स्वराज्यपर ध्यान लगाए बैठी थी । इन सबके आक्रमणोंसे प्रौढ
 जिजाऊने ८ माहसे अधिक समयतक स्वराज्यकी रक्षा की । सिंधुदुर्ग किलेका निर्माणकार्य 
पूरा किया, शत्रुके नियन्त्रणवाला एक गढ(किला) जीता । जनताकी अडचनोंका निवारण कर 
उत्तम पद्धतिसे सुराज्य किया ।

७ ई. उत्तम न्यायाधीश

उन्होंने उत्तम न्यायदान कर स्वराज्यकी जनताकी पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक
 एवं राज्यव्यवस्थासे सम्बन्धित अनगिनत परिवादोंपर तत्परतासे समाधान ढूंढा । जिजाऊ
 धर्मशास्त्रकी जानकार, स्पष्ट, तेजस्वी, तत्त्वनिष्ठ एवं निष्पक्ष थी । इसलिए इन परिवादोंपर 
अचूक निर्णय एवं धर्माधिष्ठित न्याय देती थी । इसलिए स्वराज्यमें अपराध नियन्त्रित
 होनेसे सर्वसाधारण जनताको उनका आधार प्रतीत होता था एवं धर्मराज्यके सुखका अनुभव होता था ।

७ उ. स्वराज्यका आधारस्तम्भ

उन्होंने रानी अथवा राजमाताके रूपमें प्रजासे अलग रहकर कभी व्यक्तिगत जीवनके 
सुखका उपभोग नहीं लिया । वे जानकार राजाकी जानकार राजमाता एवं स्वराज्यके लिए
 आधारस्तम्भ थी ।

७ ऊ. उत्कृष्ट राजनीतिक एवं युद्ध परामर्शदाता

उनका निर्णय एवं समादेश इतना उत्कृष्ट एवं अनमोल होता था कि शहाजीराजे एवं शिवाजी
 महाराज उनके सुझावसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय लेते थे । शत्रुको समाप्त करने हेतु 
षडयन्त्र एवं युद्धनीतिकी रचना करनेमें वे कुशल थी ।

७ ए. कूटनीति एवं दूरदर्शी

७ ए १. परिवार टूट जानेपर भी शिवाजी राजाको संयमपूर्वक सिद्ध करना : 
माहुलीके समझौतेमें शहाजीराजाने स्वराज्य गंवाया । उन्हें महाराष्ट्रसे सीमापार होकर 
ज्येष्ठ पुत्रको साथ लेकर कर्नाटक जाना पडा । हाथसे स्वराज्य गया तथा पति एवं परिवार
 टूट जानेपर भी जिजामाता स्थिर थी । आदिलशाहद्वारा शहाजीको दिए पुणे एवं सुपे 
परगणा सम्भालनेके निमित्त महाराष्ट्रमें रहकर जिजाऊने शिवाजी महाराजको सिद्ध करनेका 
संयमी कार्य लगनके साथ पूरा किया ।
७ ए २. शत्रुके षडयन्त्र जानने हेतु उन्होंने नाती संभाजीको बचपनसे ही उर्दू
 एवं फारसी भाषाओंकी शिक्षा दी ।
७ ए ३. पुरन्दर समझौतेके पश्चात शिवाजी राजाको जिजाऊके बोलनेपर उभार एव
 प्रोत्साहन मिलनेसे उनकेद्वारा नए उत्साहके साथ स्वराज्यका कार्य आरम्भ करना : 
पुरंदरके समझौतेमें शिवाजी महाराजको स्वराज्यके बहुतसे प्रान्त एवं २३ गढ(किले) मिरजा
 राजे जयसिंहको देने पडे । शिवाजीराजे मुगल छावनीके जानलेवा प्रसंगसे सुखपूर्वक वापिस
 आए । उन्होंने शत्रुको स्वराज्यका सम्पूर्ण कौर नहीं लेने दिया । यह अत्यन्त महत्वपूर्ण
 एवं प्रशंसनीय कार्य शिवाजी राजाने कैसे किया ? इसपर जिजाऊने आश्चर्य व्यक्त किया ।
 उनके सकारात्मक प्रेरणादायी भाष्यके कारण शिवाजी राजाके मनमें उभारी आई एवं 
उन्हें प्रोत्साहन मिलनेसे उन्होंने नए उत्साहके साथ स्वराज्यका अगला कार्य आरम्भ किया ।
७ ऐ. भावनाकी अपेक्षा कर्तव्यको अधिक महत्त्व देकर प्रजाहितको प्राधान्य देना :
जिजाऊ शहाजीराजे भोसलेकी पत्नी एवं छत्रपति शिवाजी महाराजकी माता अर्थात 
वे रानी एवं राजमाता दोनों ही थी । उन्होंने पत्नी अथवा माताकी भावनाओंकी अपेक्षा
 रानी एवं राजमाताके कर्तव्योंको अधिक महत्त्व देकर प्रजाहितको सर्वाधिक प्राधान्य दिया ।
७ ऐ १. शिवाजी महाराजपर अनेक संकटोंके आनेपर भी जिजाऊद्वारा मन कठोर
 कर उन्हें स्वराज्य स्थापित करने हेतु आशीर्वाद देना : 
मुगल सत्ताने सम्पूर्ण उत्तर भारतमें एवं आदिलशाही तथा कुतुबशाहीने दक्षिण भारतमें 
सुलतानी अत्याचारसे हिन्दू प्रजाको त्रस्त कर रखा था । उनकी सत्ताको नष्ट कर स्वराज्य 
स्थापित करने हेतु शिवाजी महाराज सैनिकोंको साथ लेकर प्रयासरत हुए । जिजाऊके पुत्रोंमें 
अकेले शिवाजी महाराज शेष रहे एवं उनपर भी अनेक संकट आ रहे थे; परन्तु ऐसी स्थितिमें 
भी विजय प्राप्त करने हेतु वे मनको कठोर कर शिवाजी महाराजको आशीर्वाद देती थी ।
७ ऐ २. पतिवियोगके कारण हिम्मत न हार स्वयंको सम्भालकर पुनश्च 
कामकाज देखना : 
ढलती आयुमें भी उन्होंने पति शहाजीराजकी मृत्युके आघातको सहन किया पतिवियोगसे
 उन्हें अत्यन्त दुःख हुआ; परन्तु स्वराज्यके लिए उन्होंने सती होनेके निर्णयका त्याग किया । 
पतिकी मृत्युके पश्चात दुःखी होते हुए भी उनका साहस बना रहा । उन्होंने दुःखसे स्वयंको 
त्वरित सम्भाला एवं राज्यके कामकाजमें पुनः ध्यान देकर शिवाजी राजाको सहायता की ।

कृतज्ञता एवं प्रार्थना

शिवाजी राजाके राज्याभिषेकका सुवर्ण अवसर देखनेके पश्चात केवल १२ दिनोंके अन्दर
 वर्ष १६७४ में जिजाऊने पाजाडमें देहत्याग किया । उनका पूरा जीवन स्वराज्यकी सेवामें 
व्यतीत हुआ । आदर्श हिन्दू नारीका साक्षात रूप राजमाता जिजाऊ हमें मिली । इसलिए हम
 भगवानके चरणोंमें कोटि कोटि कृतज्ञ हैं ।
‘जिजामाताके समान तीव्र जिज्ञासा, आस्था, लगन, संयम, स्वधर्माभिमान, निःस्वार्थ वृत्ति,
 क्षात्रतेज, व्यापकता, निर्भयता, नेतृत्व, उत्साह, रणकौशल्य तथा त्यागी एवं विजिगीषु 
मानसिकताके अष्टपैलू/बहूद्देशीय व्यक्तित्त्व सभी हिन्दुओंमें उत्पन्न होने दें’, भगवानके चरणोंमें 
ऐसी आर्त प्रार्थना है ।’

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