Thursday 26 March 2015

आगरा का लाल किला किसने बनवाया था-- मुगल बादशाह अकबर ने, अकबर महान ने....... यही पढ़ते आ रहे थे ना आप अभी तक, यही पढ़ाया गया, रटाया गया और यही आपके लिखने-पढ़ने के लिए किताबों में काले मोतियों में सजाया गया था अब तक कि आगरे का लाल किला मुगलों की देन है, अकबर का बनाया हुआ है......
आजादी के बाद लम्बे समय से सर गोपीनाथ शर्मा, सर यजुनाथ सरकार जैसे राष्ट्रवादी इतिहासकारों का एक धड़ा इस बात का विरोध करता चला आ रहा था कि ताजमहल से लेकर कुतुब मीनार जैसी एतिहासिक इमारतें तुर्की, फारसियों या मुगलों की बनायी नहीं बल्कि हिन्दू राजाओं के द्वारा बनावाई गयी हैं, लेकिन JNU की अगुवाई में वामपंथी इतिहासकारों ने जो किताबें लिखीं उनके हिसाब से अरबी-फारसियों और मुगलों के शासन में भारतीय स्थापत्य कला बुलन्दियों का आसमान छूने लगी, मुस्लिम राजाओं ने ही आपको अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, कुतुब मीनार, लालकिला, ताज महल जैसी नेमतें बनवाकर सौंपी वरना आप लोग तो घोर अंधकार युग में सभ्यता से कोसों दूर अज्ञानता में जी रहे थे.......
इसलिए अरबी, फारसियों, तुर्क और मुगलों के धार्मिक अत्याचार और लूट-खसोट से भरे-पूरे शासन को महिमा मंडित करने के उद्देश्य से असली इतिहास से छैड़छाड़ कर ऐसी-ऐसी झूठी बातें गढ़ी गयीं जो आपके अन्दर सेक्युलरिजम का भाव पैदा करे ताकि भारत के विभाजन जैसी बड़ी कीमत चुकाने के बाद भी जिन्हे लात मारकर पाकिस्तान भगाना था उन्हे आपकी छाती पर मूंग दलने के लिए प्रेम-मनुहार से रोक रख छौड़ा गया है वे जब आपकी छाती पर मूंग दलें तो आप दर्द से कराहते हुए भी कौमी एकता जिन्दाबाद के नारे लगाते रहें........ सो भइया आपके घोंटने के लिए अलग ही इतिहास लिख छौड़ा गया है.......
दद्दे अब आते हैं मुद्दे की बात पर....... जैसा कि मैंने बताया कि इतिहासकारों का एक धड़ा ऐसे झूठे एवं तथ्यहीन इतिहास को झूठा साबित करने में जुटा था उसकी राह में पहली सफलता थी कि अजमेर का अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, जिसे कुतुबुद्दीन एबक ने नहीं बल्कि अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ ने एक संस्कृत पाठशाला के रूप में खड़ा करवाया था, जिसकी एबक ने मात्र छत गिरवाकर उस पर फारसी शैली के बस गुम्बद बनवा दिये थे बाकि उसकी नींव, खम्भे, दरवाजे और बेल-बूटों की अलंकृत सजावट, भित्ति चित्र आदि हिन्दू शैली मे ही थे, वरना ऐसा, इतना बड़ा भवन अढ़ाई दिन में कैसे बन गया........ ऐसे शासक जो मजहब पर शासन करते थे और जिनका मजहब चित्रकारी और सजावट को निषिद्ध मानता हो, भवनों में तड़क-भड़क, अलंकरण व सजावट से रोकता हो वह भला कैसे चित्रकारी, पच्चीकारी, भित्तीचित्रण व बेल-बूटों के अलंकरण की इजाजत देता होगा जबकि अरब में न तो ऐसी भव्य इमारतें कभी बनी मिलीं और नहि वहाँ फारसी शैली में बनी भवन इतनी सुन्दर व आलीशान मिलीं.......
राष्ट्रवादी इतिहासकारों के अकाट्य साक्ष्य व तथ्य काटे नहीं जा सके जिन्हे भारतीय राष्ट्रीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद से मान्यता मिली और अन्तत: अढ़ाई दिन का झोंपड़ा विग्रहराज यानि हिन्दू शासकों की इमारत साबित हुई।
इसके बाद महरौली की कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, राय पिथौरा दुर्ग अनेक मस्जिद-मजारें (जो पहले मन्दिर थीं) हिन्दू इमारतें ही साबित हुयीं। अब अगली सबसे बड़ी सफलता देखिए, आगरा का लाल किला अकबर ने नहीं बनवाया था, यह सिकरवार राजपूतों के द्वारा आगरा में 9 वीं शताब्दी में बनवाया गया था.......
दरअसल 1000 ई. से 1027 ई. के मध्य हुए महमूद गजनी के आक्रमण का आंखों देखा हाल उसके इतिहासकार उतबी ने किताब ए यामिनी में लिखा था जिसमें कई जगह आगरा शहर और वहाँ बने सिकरवारों के लाल किले का उल्लेख मिलता है, लाल किले पर गजनी के आक्रमण का भी उल्लेख इस किताब में मिलता है, जिससे साबित हुआ कि अव्वल तो आगरा शहर सिकन्दर लोदी का बसाया शहर नहीं था, उसके शासन से करीब 500 साल पहले आगरा शहर स्थापित था, दूसरी बात कि आगरे का लाल किला किसी अकबर का बनाया नहीं बल्कि लाल किला अकबर से 600 साल पहले से ही सिकरवार हिन्दुओं का बनाया था जिसका उल्लेख उतबी ने हू-ब-हू आज के जैसे ही अपने ग्रन्थ यामिनी में किया.........
इतिहास की कोख में अनदेखे अछूते तथ्य को जब सबके सामने रखा गया तो यह भी अकाट्य सिद्ध हुआ इसलिए ही NCERT द्वारा तैयार कक्षा 7 की सामाजिक विज्ञान की किताब में उल्लेखित किया गया है कि आगरे का लाल किला सिकरवार राजपूतों के द्वारा बनवाया गया था (चित्र में रेखांकित लाइन देखें).......
यानि आने वाली पीढ़ियों को इतिहास के वास्तविक तथ्य पढ़ाने की शुरूवात हो चुकी हैं जिसके लिए राष्ट्रवादी इतिहासकार साधुवाद के पात्र हैं जिनके लम्बे व अथक परिश्रम से हम वास्तविक इतिहास से परिचित हो रहे हैं........
और हाँ ये याद रहे कि ये किताबें UPA-2 सरकार ने (छाती पर बहुत बड़ा पत्थर रखकर) 2012 में छपवायीं थीं जिन्हे जुलाई 2013 से विद्यालयों में बांटा जा चुका है, झूठे इतिहास के पर्दाफाश के पीछे मोदी सरकार का कोई हाथ या पांव नहीं है। यह तो राष्ट्रवादी इतिहासकारों की कारिस्तानी है जी जो पोंगे वामपंथियों के द्वारा लिखे गये झूठे, तथ्यहीन व भ्रामक इतिहास को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हैं और लम्बे समय से संघर्षरत हैं.........

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